संरक्षणवादी राजनीति (patronage politics) के पक्षधरों से यदि वोट और देश में से किसी एक का चयन करने को कहा जाए तो यह जमूरे वोट को ही चुनेंगे। हिन्दुस्तान की अकेली विश्व नगरी मुंबई में हुए आतंकवादी हमले में शहीद हुए श्री हेमंत करकरे और पूर्व में जामिया नगर के बटला हाउस में शहीदे आज़म श्री मोहन चंद शर्मा पर अब्दुल रहमान अंतुले, दिग्विजय सिंह, अमर सिंह और उनके चेलों ने जिस प्रकार की बेशर्म सवालिया मिसाईलें दागी उस पर यही कहा जा सकता है : नंग बड़े परमेश्वर से। अल्पसंख्यक राजनीति के टुकड़ खोर जो करा दें सो कम फिर अंतुले तो अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री थे।
माननीय प्रधानमंत्रीजी यह आपके एक काबिना मंत्री की मानविय भूल नही थी, अगले लोक सभा चुनाव की अदबदा कर की गई पोसिशनिंग थी। इतनी बात तो कोई पप्पू भी समझ लेगा। एक अखबार ने अपने सम्पादकीय "एक जुटता ज़रूरी' में लिखा अंतुले साहब ने इससे आम जनता की नजर में कुछ खोया ही है। मान्यवर अल्पसंख्यक राजनीति को कौमी नुक्सान का इल्म ही कहाँ होता है / यदि यह मानविय भूल है तो ब्लंडर किसे कहते हैं, अब्सर्ड क्या होता है ? कृपया बतलायें।
बुधवार, 24 दिसंबर 2008
दलित देवी की करतूतें
बहन मायावती के कारकुनों ने एक सरकारी engineer की हत्या कर के राज ठाकरे की महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के सैनिकों को भी क्रूरता में पछाड़ दिया है। लगता है विधायक मनोज तिवारी मायावती फोबिया से ग्रस्त थे, बहनजी के जन्मदिन के लिए जबरी चंदा नही वसूलते तो ख़ुद मारे जाते। घड़ा एक दिन राज ठाकरे के पापों का भी भरेगा अभी तो उन्स्की चाची ही पहाड़ के नीचे से निकली है जो ख़ुद को बेदाग़, चैतन्य देव प्रतिमा बतलाती थी। हमारा मानना है राजनीतिक कार्यकर्ता भी अमर नही होता।
जाको राखे साईंयां
जाको राखे साईंयां मार सके ना कोय ... राजस्थान विधान सभा में एक सर्प विधायकों से तब तक छिपता छिपाता रहा जब तक सपेरों ने उसे भयमुक्त नही कर दिया, किसी विधायक को काट लेता तो बेचारा (सर्प) मारा जाता। खुदा का लाख लाख शुकराना। जाको राखे साईंयां ........
मंगलवार, 16 दिसंबर 2008
जूता फेक तमाशा देख
चैनल अल-बग्दारिया के एलेक्ट्रोनी पत्रकार मुन्तज़र अल ज़ैदी साहब बा-तमीज़ इंसान हैं जिनसे हमारे प्रतिनिधि बहुत कुछ सीख सकते हैं, जो सदन में जूता तो फेंकते हैं पर एक ही फेंकते हैं ताकि वह (जूता) किसी के काम ना आ सके। यूँ अल ज़ैदी साहब ने जो कुछ भी किया वह जन आक्रोश की अभ्व्यक्ति ही नही तदानुभूति भी थी। और इसी को पुख्ता करने के लिए ऑनलाइन जूता खेल भी चल पड़ा है जिसमें जो जितनी बार बुश को जूता मारने में सफल रहेगा उसे उतने ही पॉइंट्स मिलेंगे। भले ही अल ज़ैदी की हड्डी पसली तोड़ दी गई है लेकिन बुश का तो प्रतीक ही चल पड़ा है। जूतम पैजार मुहावरे से उठ कर बुश पर हावी है। खुदा खैर करे.......
शनिवार, 29 नवंबर 2008
चुनाव पूर्व खेल बिगड़ गया
इसे कांग्रेस का दुर्भाग्य और देश का महा दुर्भाग्य कहा जायेगा, कांग्रेस जो खेल चुनाव पूर्व बेला में खेल रही थी वह डेक्कन मुज्जाहिद्दीन ने मुंबई को थर्रा कर बिगाड़ दिया। मनमोहन की सरकार से आतंरिक सुरक्षा तो संभाले नही संभालती, देश को क्या सुरक्षा मुहैय्या कराएगी। सरकार का खेल दो चरणों में कामयाब हो चुका था पहले इसने देश की आतंरिक सुरक्ष और शील के ध्वज वाहक भारत्धर्मी समाज के साधू संतों को हड़काया, मकोका लगा कर उन्हें अपमानित किया फिर सेना के छठे पे कमीशन की सिफारिशों से असंतोष ज़ाहिर करने पर शहीद मोहन चंद शर्मा के प्रतिराख्षा सेनाओं में परियाय रहे लेफ्टिनेंट कर्नल प्रशाद श्रीकांत पुरोहित को निशाने पर लिया ताकि फौज कार्य पालिका के अगुवाओं के बराबर भत्तों की मांग आइन्दा न दोहराएं।
इन दिनों सरकार के निशाने पर न्याय पालिका थी। सुप्रीम कोर्ट कोलिजियम की सिफारिशों को विधाइयका द्बारा दो बार लोटाने के पीछे यही मंशा थी।
आतंकवादियों ने अब जब मुंबई में खुला खेल फर्रुखाबादी खेला तब सरकार को इल्म हुआ अपनी सीमाओं का। विलास राव देशमुख तो अभी भी इतरा रहे हैं, कहते हैं की १८६ ही मरे निशाने पर तो पाँच हज़ार थे, शर्म की बात है सरकार के लिए, जो सेना कल तक निशाने पर थी हमेशा वही काम आती है। अब तो चेतो मनमोहन और अगर अब भी कुछ पूछना है तो सोनिया से पूछ लो...........
इन दिनों सरकार के निशाने पर न्याय पालिका थी। सुप्रीम कोर्ट कोलिजियम की सिफारिशों को विधाइयका द्बारा दो बार लोटाने के पीछे यही मंशा थी।
आतंकवादियों ने अब जब मुंबई में खुला खेल फर्रुखाबादी खेला तब सरकार को इल्म हुआ अपनी सीमाओं का। विलास राव देशमुख तो अभी भी इतरा रहे हैं, कहते हैं की १८६ ही मरे निशाने पर तो पाँच हज़ार थे, शर्म की बात है सरकार के लिए, जो सेना कल तक निशाने पर थी हमेशा वही काम आती है। अब तो चेतो मनमोहन और अगर अब भी कुछ पूछना है तो सोनिया से पूछ लो...........
सोमवार, 24 नवंबर 2008
कौन देगा सज़ा ?
सुप्रिया राहुल गांधी आप १९८४ के दंगों के दोषियों को सज़ा दिलवाना चाहते हैं। भैय्या सज़ा देगा कौन और सजायाफ्ता कौन होंगे ? कुछेक तो भगवान् को भी प्यारे हो चुके हैं, भारतीय परम्परा है, मृत लोगों पर कटाक्ष नही किया जाता है। आपको यह तो याद होगा, आपके पिताजी ने ही कहा था ; जब कोई बड़ा वृक्ष गिरता है तो धरती कांपती है, आपको भान नही रहता, कहाँ क्या कहना है। उस दिन आप कह रहे थे : कांग्रेस का बेडा गर्क हाई कमान संस्कृति ने किया है, हाई कमान तो आपकी माँ ही हैं और स्वयं आप। छत्तीसगढ़ और उत्तराँचल को क्या आप प्रयायावाची समझते हैं ? किसी दिन भारत को इटली मत बतला देना जहाँ तुम्हारे मामा रहते हैं। छत्तीसगढ़ की चुनाव सभा में आपने बारहा कहा था : मैं उत्तरांचलियों को बहुत प्यार करता हूँ जबकि मोटी लाल वोहरा ने आपको आगाह भी किया। बेहतर हो मातुश्री की तरह आप अपना भाषण लिक्वा लिया करें और पढ़ कर बोला करें। यूँ आप राजनीति में दुधमुंहे हैं इसलिए आपके सौ खून मांफ।
लालू से सावधान रहो
राजनीति के अबोध बालक सुप्रिय राहुल गांधी ! नज़र अपनी पुश्तेनी कुर्सी पर रखो। लालू आपको कभी भी लाठी पकड़ा सकते हैं। उन्होंने प्रधान मंत्री बनने की अपनी ख्वाहिश छुपाई नही है। आपको महात्मा गांधी बना कर वह भारत दर्शन पर भेजना चाहते हैं। कलावती के पास जाओ या ना जाओ, नज़र कुर्सी पर रखो। अभी तो आपकी शादी भी नही हुई है। लालू आपको महात्मा गांधी बना कर कहीं का नही छोडेंगे। थोड़े लिखे को बोहोत समझना भैय्या...
सस्नेह - वीरेन्द्र शर्मा, नई दिल्ली
सस्नेह - वीरेन्द्र शर्मा, नई दिल्ली
शनिवार, 22 नवंबर 2008
कमुनिस्ट कदापि भारतीय न भवति
लेफ्टिए कुछ भी हो सकते हैं, रूस समर्थक भी हो सकते हैं और चीन समर्थक भी। थेन्मेइन चौक पर जब सैंकडों गणतंत्र समर्थकों को टंक से रोंदा जाता है तब यह लाल चीन का जैकारा बोलते हैं। जब १९६२ में इसी चीन ने हमारी सीमाओं पर हमला किया तो इन्होने फट कहा "मुक्ति सेना" आई है, इसका स्वागत होना चाहिए। इन मुखबिरों की राष्ट्रीयता इतिहास में बाकायदा दर्ज है। आज यह राष्ट्रीयता पर जब कलम चलाते हैं सशस्त्र सेनाओं पर निशाना साधते हुए कहता हैं " हिंदूवादी आतंक, आतंक न भवति" तब यही उक्ति याद आती है कमुनिस्ट कदापि भारतीय न भवति, इन रख्तरंगी और भैंसे में एक ही अन्तर है : भैसा लाल कपड़ा देख कर भड़कता है यह केसरिया ।
मालेगांव और मकोका के बहाने
बालक अमूमन दो तरह के होते हैं : उद्दंड और अनुशासित। जब उद्दंड बालक को लगातार शय दी जाती है और अनुशासित की लगातार उपेक्षा होती है, उसे प्रताड़ित किया जाता है। जब तुष्टिवाद का घड़ा भर जाता है, १५ % आबादी को खुश करने की जीतोड़ कोशिश की जाती है तब एक पुरोहित पैदा होता है, वह भी मात्र प्रतिकार करने के लिए, अह किसी को लक्षित करके कुछ नहीं करता, कुंठित होकर अपना ही सर दीवार से फोड़ता है। पुरोहित की चूक इससे ज़्यादा नही है।
एक तरफ़ मनमोहन है 15 फीसद के संरक्षक जो उस समय रात भर नही सो पाते जब सुदूर ऑस्ट्रेलिया में आतंकी वारदात की बिना पर एक इस्लामी पकडा जाता है दूसरी तरफ़ आडवानी हैं जो पुरोहित और अन्यों के मकोका ग्रस्त होने पर कम से कम सोते तो चैन से हैं। सिर्फ़ प्रज्ञा सिंह ठाकुर का हलफनामा पड़ कर विचिलित होते हैं जिंसकी जांच का भरोसा अब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने भी जताया है। निश्चय ही भारतीय सन्दर्भ में यह बिना वजह नही है जहाँ लेंगिक गैर बराबरी में भारत १३० देशों की बिरादरी में सिर्फ़ अज़रबैजान और आर्मीनिया से अगदी है यानी नीचे से औरत के साथ मार कूट और शिक्षा, स्वास्थ्य सम्बन्धी भेदभाव में तीसरे नम्बर पर है।
ऐसा लगता है : जांबाज़, खुदार और अनुशासित लेफ्टिनेंट कर्नल प्रशाद श्रीकांत पुरोहित के हाथों जो आतंकवादी मारे गए हैं, इटली नियंत्रित मनमोहिनी सरकार उनका बदला मकोका में घेर लिए गए दस ग्यारह लोगो से ले रही है। आम चुनाव तक सरकार अब कथित हिंदू आतंकवाद के अलगाव को सुलगाये रखेगी मनो इस्लामी आतंकवाद आलमी स्तर पर नेस्तोनाबूद हो चुका हो।
एक तरफ़ मनमोहन है 15 फीसद के संरक्षक जो उस समय रात भर नही सो पाते जब सुदूर ऑस्ट्रेलिया में आतंकी वारदात की बिना पर एक इस्लामी पकडा जाता है दूसरी तरफ़ आडवानी हैं जो पुरोहित और अन्यों के मकोका ग्रस्त होने पर कम से कम सोते तो चैन से हैं। सिर्फ़ प्रज्ञा सिंह ठाकुर का हलफनामा पड़ कर विचिलित होते हैं जिंसकी जांच का भरोसा अब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने भी जताया है। निश्चय ही भारतीय सन्दर्भ में यह बिना वजह नही है जहाँ लेंगिक गैर बराबरी में भारत १३० देशों की बिरादरी में सिर्फ़ अज़रबैजान और आर्मीनिया से अगदी है यानी नीचे से औरत के साथ मार कूट और शिक्षा, स्वास्थ्य सम्बन्धी भेदभाव में तीसरे नम्बर पर है।
ऐसा लगता है : जांबाज़, खुदार और अनुशासित लेफ्टिनेंट कर्नल प्रशाद श्रीकांत पुरोहित के हाथों जो आतंकवादी मारे गए हैं, इटली नियंत्रित मनमोहिनी सरकार उनका बदला मकोका में घेर लिए गए दस ग्यारह लोगो से ले रही है। आम चुनाव तक सरकार अब कथित हिंदू आतंकवाद के अलगाव को सुलगाये रखेगी मनो इस्लामी आतंकवाद आलमी स्तर पर नेस्तोनाबूद हो चुका हो।
गुरुवार, 20 नवंबर 2008
गंगाजी राष्ट्रीय नदी बनीं
गंगाजी को केंदीय सरकार ने राष्ट्रीय नदी घोषित किया है, हो सकता है एक दिन मुल्क को भी भारत घोषित कर दें, हो सकता है यह कदम आस्था और सदभावना के तहत उठाया हो लेकिन परिस्थितियाँ प्रतिकूल हैं। गंगाजल में ecoli बक्टीरिया का डेरा है गंगा तो अब गौमुख से ही गंधाने लगी है ग्लेशियर से कलौंच चस्पां है फलतः ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ रहा है, पीछे की और लौट रहा है। बस इतना भर हो जाए नगरों का मैला चर्म की रंगाई से निकला मैला गंगा के वक्ष को न झुलसाए। मरने वाले के मुहँ में दो बूँद गंगा जल तो डाला जा सके। गंगा मैय्या को तब ही पियरी चढाई जा सकेगी फिल वक्त तो उसके अपनी बहना जमुना जैसे हो जाने के आसार हैं। हाथ धो लिए तो छाजन हो जायेगी।
पहाड़ के नीचे रहने वाला ऊँट जो अपने आप को पहाड से ऊंचा समझे
कुएं का मेंडक कुएं को ही जलाशय समझने लगता है लेकिन राज ठाकरे तो रहते ही समुन्दर के पार्श्व में हैं। जिस ऊँट ने पहाड न देखा हो वह अपने आप को पहाड से ऊंचा समझे तो बात समझ में आती है लेकिन जो रहता ही पहाड़ के नीचे हो और ख़ुद को पहाड़ से ऊंचा समझे है उसे "राज ठाकरे' कहते हैं। विश्व नगरी मुंबई का मूल स्वरुप और स्वभाव ऐसे ऊंटों के चलते छीजने लगा है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते मुंबई समुन्दर के नीचे डूबे न डूबे भावाशियावानियाँ ग़लत भी होती हैं लेकिन राज जन्य आपदाएं मुंबई को डुबोने लगी हैं।
मौत को अनुदान, जीवन की अवेहलना
नेशनल लेवल की बोक्सर किशोरी मेघा भारद्वाज १ वर्ष कैंसर से जूझने के बाद काल कवलित हो गयीं। उनकी मौत के बाद अग्रसेन स्कूल, सिरसा, हरियाणा की इस होनहार छात्रा की मृत्यु के बाद हरियाणा सरकार ने सम्बद्ध परिवार को १ लाख रुपये की सहायता भेजी है।
सरकार मौत पर अनुदान देतीं हैं जीवन इनके लिए उपेक्ष्निया बना रहता है जिसका जहाँ जैसे दिल चाहे मरने के लिए आज़ाद है , सरकारें मौत का मुआवजा देती हैं, जैसे कुपुत्र पिंड दान करने के बाद उपेक्षित माँ बाप की तेहरवी पर दिखाऊ भोज का आयोजन करते हैं।
सरकार मौत पर अनुदान देतीं हैं जीवन इनके लिए उपेक्ष्निया बना रहता है जिसका जहाँ जैसे दिल चाहे मरने के लिए आज़ाद है , सरकारें मौत का मुआवजा देती हैं, जैसे कुपुत्र पिंड दान करने के बाद उपेक्षित माँ बाप की तेहरवी पर दिखाऊ भोज का आयोजन करते हैं।
बुधवार, 5 नवंबर 2008
प्रज्ञा सिंह ठाकुर को साध्वी क्यों कहा जाए ?
कबीर से लेकर प्रज्ञा सिंह ठाकुर तक एक संत परम्परा रही है जिसने जब भी भारत राष्ट्र पर संकट आया है तो उसका प्रतिकार किया है। क्या इस प्रतिकार को आतंकवाद कहा जा सकता है ? शिव सेना और RSS इसी प्रतिकार में पीछे पीछे आ रहे हैं प्रज्ञा सिंह ठाकुर के।
इधर भारत्धर्मी लोगों की गत चार वर्षों से एक एक करके निशाने पर लिया जाता रहा है। जयेंद्र सरस्वती से शुरू हुआ था यह सिलसिला फिर क्रिपालुचार्य, आसा राम बापू और अब प्रज्ञा सिंह ठाकुर हिट लिस्ट में हैं उन महा नपुंसक लोगों की जो महज़ रिमोट बटन दबाते ही बोलते हैं। यह तमाम निर्वीर्य लोग एक राष्ट्रीय धुंद संसदीय चुनाव tak यूँही बनाये रहेंगे। हिंदुत्व की अक्शुन्य धारा इनके बहकावे में आने वाली नही है। संत कूका की परम्परा से नावाकिफ TRP पिपासु चॅनल किस बहकावे में यह सवाल पूछ रहे हैं : प्रज्ञा सिंह ठाकुर को साध्वी कहा जाए या नही ऐसे तमाम सवाल आग्रहमूलक और नकारात्मक होते हैं.
इधर भारत्धर्मी लोगों की गत चार वर्षों से एक एक करके निशाने पर लिया जाता रहा है। जयेंद्र सरस्वती से शुरू हुआ था यह सिलसिला फिर क्रिपालुचार्य, आसा राम बापू और अब प्रज्ञा सिंह ठाकुर हिट लिस्ट में हैं उन महा नपुंसक लोगों की जो महज़ रिमोट बटन दबाते ही बोलते हैं। यह तमाम निर्वीर्य लोग एक राष्ट्रीय धुंद संसदीय चुनाव tak यूँही बनाये रहेंगे। हिंदुत्व की अक्शुन्य धारा इनके बहकावे में आने वाली नही है। संत कूका की परम्परा से नावाकिफ TRP पिपासु चॅनल किस बहकावे में यह सवाल पूछ रहे हैं : प्रज्ञा सिंह ठाकुर को साध्वी कहा जाए या नही ऐसे तमाम सवाल आग्रहमूलक और नकारात्मक होते हैं.
रविवार, 2 नवंबर 2008
प्रधानमन्त्री को पूछने का हक़ है
प्रधानमन्त्री ने विलास राव देशमुख को चिट्ठी लिख कर अपना फ़र्ज़ निभाया है। उन्होंने साफ़ कहा : जब मेरे मंत्री मंडल के लोग जो बाकायदा चुन कर आयें हैं राज के ख़िलाफ़ और महाराष्ट्र राज्य शासन के ख़िलाफ़ खुल कर सामने आयें हैं तो मैं क्या चिट्ठी भी नही लिखता, मैं तो बाकायदा चुन कर भी नहीं आया हूँ चुप कैसे बैठता।
पर भाई साहब राज पाठ तो देश्मिख को ही चलाना है, प्रधान मंत्री तो दूर बैठे हैं सुना है वैसे विलास राव ने राज के ख़िलाफ़ गैर ज़मानती धाराएं लगाने का मन बना लिया है।
हमारी राय ; जब सरकार ही डींग मार रही है, गंभीर नही है तब मैं भी क्या कर सकता हूँ।
पर भाई साहब राज पाठ तो देश्मिख को ही चलाना है, प्रधान मंत्री तो दूर बैठे हैं सुना है वैसे विलास राव ने राज के ख़िलाफ़ गैर ज़मानती धाराएं लगाने का मन बना लिया है।
हमारी राय ; जब सरकार ही डींग मार रही है, गंभीर नही है तब मैं भी क्या कर सकता हूँ।
शनिवार, 1 नवंबर 2008
अभागे देश की सौभाग्यवती सरकार
इस अभागे देश की सौभाग्यवती सरकार आतंकवादियों को आमंत्रित करती है। हमारे पास मरने के लिए बहुत लोग हैं, आप आयें जब चाहेजहाँ चाहें विस्फोट करें, पुल उडाएं हमारे पास ठेकेदार बहुत हैं। आप बस हमें वोट दें हम आपको नागरिकता और वोटर आई डी दोनों देंगे।
गुरुवार, 30 अक्टूबर 2008
गिरफ्तार होंगे राज़ ठाकरे
ताज़ा ख़बर: प्रधानमन्त्री ने लिखी आर आर पाटिल को कड़ी चिठ्ठी
गिरफ्तार होंगे राज़ ठाकरे :सूत्र -हमारी राय : चिठ्ठी लिखते रहियो प्रधानमन्त्री किरियाशील थे लिखित प्रमाण रहेगा .क्यूंकि फ़ोन पर की गई बात का कोई सबूत नहीं होता है.
गिरफ्तार होंगे राज़ ठाकरे :सूत्र -हमारी राय : चिठ्ठी लिखते रहियो प्रधानमन्त्री किरियाशील थे लिखित प्रमाण रहेगा .क्यूंकि फ़ोन पर की गई बात का कोई सबूत नहीं होता है.
दो पुत्रवधुएँ : दो धरोहर
श्री हरिवंश राए बच्चन जिस विराट सहितियिक परम्परा के स्वामी थे, उसी का प्रतिनिधित्व करती हैं उनकी पुत्र वधु सांसद और अभिनेत्री श्रीमती जाया बच्चन और इसीलिए वेह बेक़सूर होते हुए भी महज़ महाराष्ट्र की धरती पर हिन्दी बोलने पर तहे दिल से माफ़ी मांग लेती हैं। सहस्राब्दी के महानायक एवं उनके पति श्री अमिताभ बच्चन इसी का अनुसरण करते हुए महाराष्ट्र को एक गैर ज़रूरी फसाद से बचा लेते हैं।
दूसरे छोर पर बालासाहिब ठाकरे खानदान की पुत्रवधू हैं। यह वही खानदान है जो राजनीति से प्रजातंत्र को चलाता रहा है, इस परम्परा को बनाये रखने में श्रीमती राज ठाकरे १०० % कामयाब रहीं हैं। उन्होंने ने अपनी तरफ़ से राज ठाकरे को राज ठाकरे बनाने में कोई कसर नही छोड़ी है, पता नहीं लालू को लालू बनाए रखने में राबडी देवी का क्या योगदान है, रामविलास पासवान को पासवान किसने बनाया है ? लेकिन जब राजनीति प्रजातंत्र का रथ मनमानी दिशा में हांकती है तब राज ठाकरे ही पैदा होते हैं उनकी जगह लालू और पासवान होते तो वह भी यही करते जो महाराष्ट्र में राज ठाकरे ने किया।
दूसरे छोर पर बालासाहिब ठाकरे खानदान की पुत्रवधू हैं। यह वही खानदान है जो राजनीति से प्रजातंत्र को चलाता रहा है, इस परम्परा को बनाये रखने में श्रीमती राज ठाकरे १०० % कामयाब रहीं हैं। उन्होंने ने अपनी तरफ़ से राज ठाकरे को राज ठाकरे बनाने में कोई कसर नही छोड़ी है, पता नहीं लालू को लालू बनाए रखने में राबडी देवी का क्या योगदान है, रामविलास पासवान को पासवान किसने बनाया है ? लेकिन जब राजनीति प्रजातंत्र का रथ मनमानी दिशा में हांकती है तब राज ठाकरे ही पैदा होते हैं उनकी जगह लालू और पासवान होते तो वह भी यही करते जो महाराष्ट्र में राज ठाकरे ने किया।
मंगलवार, 28 अक्टूबर 2008
सेकुलर ब्रांड आतंकवाद
जबसे कांग्रेस के अल्पसंख्यक सेल के नेत्रित्व में मुसलामानों का एक प्रतिनिधिमंडल मनमोहन सिंह से जामिया नगर एनकाउंटर मुद्दे पर मिला है, आतंकवाद के वज़न को कम करने की कोशिशें जोरो पर हैं, इन्ही कोशिशों के तहत एक शगूफा छोड़ा गया है : हिंदू आतंकवाद। ये साजिश उन्ही लोगों ने रची है जो इंसपेक्टर महेश चंद्र शर्मा की शहादत को घेरे में लेने के बाद पुलिस की साख को मेटने की नाकाम कोशिश करने के बाद अब लोह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल को ही आतंकवादी घोषित कर रहे हैं पूर्व में यह शहीद भगतसिंह के बारे में भी ऐसा ही संलाप कर चुके हैं किसी और देश में ऐसा करने वालों के ख़िलाफ़ अब तक राष्ट्र द्रोह का मुकद्दमा दायर हो चुका होता लेकिन सोनिया संचालित मनमोहन की सरकार तो टिकी ही लादेंमुखियों के सहारे है जो अपने चेहरे से नकाब उठा कर अपना असली चेहरा कई मर्तबा दिखला चुके हैं, कभी अमर सिंह बन कर तो कभी राम विलास पासवान और मुलायम बन कर। दरअसल यह तमाम लोग अब एक ब्रांड बन चुके हैं । सेकुलर ब्रांड आतंकवाद इन्ही की मानसिक जुगाली है। तुश्तिवाद के यह तमाम पोषक और संरक्षक जामिया नगर एनकाउंटर में आज़म्गड़ वासियों के निशाने पर निशाने पर आ जाने के बाद से ही बेहद हैरान और परेशान थे। पहले इन्होने दिल्ली पुलिस को इशान पर लिया अब मुख्या धारा के लोगों पर ही निशाना साधा है यह बारहा कहते raहैं हैं : ज्यादा खतरनाक है बहुसंख्यक आतंकवाद जैसे अल्पसंख्यक आतंकवाद तो benign ट्यूमर और बहुसंख्यक सेकुलर ब्रांड malignant tumor हो हिन्दुस्तान की काया पर।
हिंदू मुजह्हिदीन इनकी माने तो इंडियन मुजह्हिदीन का ही तर्जुमा है। हिंदू चरमपंथ इन्ही सेकुलर पुत्रों ने चलाया है। इनसे पुछा जाना चाहिए ग्लेमर गर्ल प्रज्ञा सिंह ठाकुर के कथित प्रेम प्रसंगों का आतंकवाद से क्या सम्बन्ध है पुछा यह भी जाना चाहिए : जब आप मुख्या धारा के लोगों को ही आतंकवादी बतलाने पर आमादा हैं तब आगे इस देश का क्या होगा। मनमोहन सिंह और सोनिया दोनों बतलायें वह आगे और क्या क्या करवाना चाहते हैं। टी आर पी के आगे और कुछ भी ना देखने भालने वाले चैनल भी बतलायें : किधर ले जाना चाहते हैं वह इस देश को ?
हिंदू मुजह्हिदीन इनकी माने तो इंडियन मुजह्हिदीन का ही तर्जुमा है। हिंदू चरमपंथ इन्ही सेकुलर पुत्रों ने चलाया है। इनसे पुछा जाना चाहिए ग्लेमर गर्ल प्रज्ञा सिंह ठाकुर के कथित प्रेम प्रसंगों का आतंकवाद से क्या सम्बन्ध है पुछा यह भी जाना चाहिए : जब आप मुख्या धारा के लोगों को ही आतंकवादी बतलाने पर आमादा हैं तब आगे इस देश का क्या होगा। मनमोहन सिंह और सोनिया दोनों बतलायें वह आगे और क्या क्या करवाना चाहते हैं। टी आर पी के आगे और कुछ भी ना देखने भालने वाले चैनल भी बतलायें : किधर ले जाना चाहते हैं वह इस देश को ?
गुरुवार, 23 अक्टूबर 2008
आतंकवाद से दरी सहमी केन्द्र सरकार
आतंकवाद से दरी सहमी हुई है इन दिनों हमारी केन्द्र सरकार। ऐसे में इन्द्र देव पुत्र (काग) जयंतों की पों बारह है। जातीय हिंसा को श्री लंका में सीधे सीधे हवा देने वाले लोग आजकल मनमोहन सिंह की केन्द्र सरकार पर दबाव बनाये हुए हैं, यहाँ तो कान्ग्रेसिओं के राज्य में जिन्हें मकोका के तहत अन्दर होना चाहिए था कल तक वह z श्रेणी सुरक्षा में सरकारी गनरों की हिफाज़त में थे। जातीय हिंसा की आंच तो पूरे भारत को ही सुलगाये हुए हैं।
एक तरफ़ इन्द्र पुत्र काग जयंत सिम्मी की तरफदारी में मुब्तिला हैं दूसरी तरफ़ तमिल प्राइड के झंडाबरदार केन्द्र सरकार को सांसत में डाले हुए हैं इनमें अकेले कला चश्मा लगाने वाले (करुना निधि ) ही नही हैं उनकी पुत्री कन्निमोंझी भी हैं, रामदास जैसे प्रगतिशील भी हैं। राजीव गाँधी के हत्यारों के हिमायतियों के आगे केन्द्र सरकार नत शिशन है, नत शिर है। राष्ट्र शरमसार हैं लेकिन देशी विदेशी दोनों महा मयाएं एवं एक अदद राजकुमार खमोश हैं। दादी और पिता के लिए इन्साफ का इंतज़ार राजकुमार को भी है वही मनमोहन को समझाएं, यदि वह अपनी मनमोहिनी मुद्रा में यूंही बैठे रहे तो इन्साफ तो दूर सामाजिक उन्माद की ही फसल कटेगी।
एक तरफ़ इन्द्र पुत्र काग जयंत सिम्मी की तरफदारी में मुब्तिला हैं दूसरी तरफ़ तमिल प्राइड के झंडाबरदार केन्द्र सरकार को सांसत में डाले हुए हैं इनमें अकेले कला चश्मा लगाने वाले (करुना निधि ) ही नही हैं उनकी पुत्री कन्निमोंझी भी हैं, रामदास जैसे प्रगतिशील भी हैं। राजीव गाँधी के हत्यारों के हिमायतियों के आगे केन्द्र सरकार नत शिशन है, नत शिर है। राष्ट्र शरमसार हैं लेकिन देशी विदेशी दोनों महा मयाएं एवं एक अदद राजकुमार खमोश हैं। दादी और पिता के लिए इन्साफ का इंतज़ार राजकुमार को भी है वही मनमोहन को समझाएं, यदि वह अपनी मनमोहिनी मुद्रा में यूंही बैठे रहे तो इन्साफ तो दूर सामाजिक उन्माद की ही फसल कटेगी।
मंगलवार, 21 अक्टूबर 2008
ओजोन कवच के बाद अब छीझ रहा है सौर प्रभा मंडल
जिस तरह ओजोन कवच जो अब आवधिक तौर पर छीझ रहा है सौर विकरण के खतरनाक अंश से हमारी हिफाज़त करता है वैसे ही सौर प्रभा मंडल (sun's bubble) न सिर्फ़ सिकुड़ रहा है कमज़ोर भी पड़ रहा है।
नासा के विज्ञानियों के मुताबिक गत दस सालों में यह सौर कवच जो खतरनाक अन्तर-तारकीय विकिरण (inter-stellar radiation) से पृथ्वी की हिफाज़त करता है २५ % छीझ चुका है। यह सब उस अन्तरिक्ष युग का नतीजा है ही आधी शती पूर्व आरम्भ हुआ था।
इसके गहन अध्ययन के लिए विज्ञानी अन्तर तारकीय सीमान्त anveshi (inter stellar boundry explorer) यानी (IBEX) पृथ्वी के दो लाख चालीस हज़ार ऊपर कक्षा में स्थापित करेंगे यह उन shock waves का जायेज़ा लेगा जो हमारे सौर मंडल के अन्तर तारकीय विकिरण के परस्पर मिलन से पैदा होती है। वास्तव में अन्तर तारिकिया धूल एवं विकिरण हमारी galaxy में सर्वत्र व्याप्त है। इनमे वह अति ऊच ऊर्जा गांगेय विकिरण (very high energy galactic radiation) भी मौजूद होता है जो प्राणी जगत के लिए बेहद खतरनाक है, इसी का ९० % अंश हमारा सौर प्रभा मंडल विचिलित कर देता है जिसकी सीमा हमारी हिफाज़त करती है लेकिन यहाँ तो सीमा ही छीझ रही है। यह कहना है dermatologist यानी अन्तः चर्म विज्ञानी डॉक्टर डेविड पौल्सकी का। जायेज़ा लगाइए सौर कवच के छीजने का।
नासा के विज्ञानियों के मुताबिक गत दस सालों में यह सौर कवच जो खतरनाक अन्तर-तारकीय विकिरण (inter-stellar radiation) से पृथ्वी की हिफाज़त करता है २५ % छीझ चुका है। यह सब उस अन्तरिक्ष युग का नतीजा है ही आधी शती पूर्व आरम्भ हुआ था।
इसके गहन अध्ययन के लिए विज्ञानी अन्तर तारकीय सीमान्त anveshi (inter stellar boundry explorer) यानी (IBEX) पृथ्वी के दो लाख चालीस हज़ार ऊपर कक्षा में स्थापित करेंगे यह उन shock waves का जायेज़ा लेगा जो हमारे सौर मंडल के अन्तर तारकीय विकिरण के परस्पर मिलन से पैदा होती है। वास्तव में अन्तर तारिकिया धूल एवं विकिरण हमारी galaxy में सर्वत्र व्याप्त है। इनमे वह अति ऊच ऊर्जा गांगेय विकिरण (very high energy galactic radiation) भी मौजूद होता है जो प्राणी जगत के लिए बेहद खतरनाक है, इसी का ९० % अंश हमारा सौर प्रभा मंडल विचिलित कर देता है जिसकी सीमा हमारी हिफाज़त करती है लेकिन यहाँ तो सीमा ही छीझ रही है। यह कहना है dermatologist यानी अन्तः चर्म विज्ञानी डॉक्टर डेविड पौल्सकी का। जायेज़ा लगाइए सौर कवच के छीजने का।
सुल्तानी आफतों से कैसे निबटे ?
पिछले दिनों सुदान के उत्तरी आकाश में बीस डिग्री पर तकरीबन तीस हज़ार किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से एक आसमानी पिंड ( asteroid) पूर्व घोषित वक्त पर दाखिल हुआ, आसमान में इसकी होली जल गई, हवा के ज़ोरदार घर्षण बल से। विज्ञानियों ने यह भी बतलाया : यदि यह पिंड सिर्फ़ पाँच गुना और बड़ा होता तो भारी तबाही की वजह बनता, दस मीटरी व्यास होने पर यह भयंकर विस्फोट के साथ फटता फलतः बीस किलो तन trionitrotoulvene के तुल्य ऊर्जा पैदा होती। यानी पृथ्वी के एक हिस्से पर नागासाकी की पुन्राव्रृति हो जाती और यदि इसका व्यास मात्र एक किलोमीटर होता तब भूमंडलीय स्तर पर यानी ग्लोबल लेवल पर भारी तबाही होती लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ क्योंकि खगोल विज्ञानियों ने पहले ही इसकी भविष्यवाणी कर दी थी। नासा के निअर अर्थ प्रोग्राम के मुताबिक तकरीबन २०० asteroid पृथ्वी के लिए अबूझ खतरा बन सकते हैं और तकरीबन इतने ही खतरनाक ऐसे ही २०० पिंडों की टोह नही ली जा सकी है। लेकिन इन आसमानी आपदाओं से निजाद दिलवाने के बहुबिध उपाय ढूंढ लिए गए हैं इन्हे समय रहते शक्तिशाली लेज़र किरण पुंज डाल कर भस्मीभूत किया जा सकता है, इनसे सोलर सैल (solar sail) चस्पां करके इनकी कक्षाओं को बदला जा सकता है, रॉकेट दाग कर तथा राकेटों को इनसे जोड़ कर इनकी दिशा और रुख भौंमेतरग्रहों की ओर मोडा जा सकता है।
असली खतरा इन दिनों सुल्तानों, छत्रपों, राज ठाकरों से है। सुलतान कृत हिंसा, दहशतगर्दों पर भी भारी है।
साक्षी भाव से, दृष्टा बने यह नज़ारा कब तक देखेंगे हम लोग कम से कम वोट मिसाइल to दाग सकते हैं सही दिशा में हम लोग।
घुमंतू लघु ग्रह तो मंगल और ब्रहस्पति ग्रहों की कक्षाओं के बीच जबसे सौर मंडल बना है तभी से मंडराते रहे हैं, कभी धूमकेतुओं के टुकड़े बन कर तो कभी मेतेओरोइड बन कर। रात के निविड़ में गहन अन्धकार में अक्सर एक चमकीली लकीर छोड़ते हुए काल कवलित हो जाते हैं यह लघुतर पिंड। यूँ dinasauraus के सफाए की वजह भी यह एक मर्तबा बन चुके हैं। क्या इन्हे राजनीति के dinasauraus पर केंद्रित नही किया जा सकता ?
असली खतरा इन दिनों सुल्तानों, छत्रपों, राज ठाकरों से है। सुलतान कृत हिंसा, दहशतगर्दों पर भी भारी है।
साक्षी भाव से, दृष्टा बने यह नज़ारा कब तक देखेंगे हम लोग कम से कम वोट मिसाइल to दाग सकते हैं सही दिशा में हम लोग।
घुमंतू लघु ग्रह तो मंगल और ब्रहस्पति ग्रहों की कक्षाओं के बीच जबसे सौर मंडल बना है तभी से मंडराते रहे हैं, कभी धूमकेतुओं के टुकड़े बन कर तो कभी मेतेओरोइड बन कर। रात के निविड़ में गहन अन्धकार में अक्सर एक चमकीली लकीर छोड़ते हुए काल कवलित हो जाते हैं यह लघुतर पिंड। यूँ dinasauraus के सफाए की वजह भी यह एक मर्तबा बन चुके हैं। क्या इन्हे राजनीति के dinasauraus पर केंद्रित नही किया जा सकता ?
मनमोहन की मुश्किल तो आसान कर दी
कांग्रेस के अल्पसंख्यक सेल के संग मुसलमानों के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाले चाँद राज्य सभा सदस्य, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं महानुभाव और नेत्रियाँ मनमोहन सिंघजी से जामिया नगर एनकाउंटर के मुद्दे पर मिले हैं। सभी ने मुस्लिम भावनाओं के आहात होने का मुद्दा उठाया है।
इन लोगों का मानना है : आतंकवादी वारदात करने के baad यदि मगरिब की ओर भागें तो पुलिस को मशरिक की ओर भागना चाहिए। लेकिन फ़िर भी यदि दस आतंकी पकडे ही जाएँ ओर सब के सब मुसलमान हों तब इतने ही मुख्य धारा के कम से कम दो दो धर्माव्लाम्बी भी पकड़े जाएँ।
मुसलामानों के इन तमाम प्रतिनिधियों से पुछा जाना चाहिए : इस्लामी जेहाद के प्रस्तावक कौन हैं ? लश्कर-ऐ-तैयबा (हज़रात मोह्हमद की कर्मभूमि मदीना नगर की सेना), जैश-ऐ-मोह्हमद (हजरत मोह्हमद के सिपाही) और हिजबुल मुज्जाहिदीन (मुज्जाहिदीन की सेना), कुरान की आयातों की मनमानी व्याख्या करने वालों के बारे में इनका क्या कहना है ? क्या इनके मौन को इनके स्वीकृति समझा जाए, दहशतगर्दी के हक़ में.
इन लोगों का मानना है : आतंकवादी वारदात करने के baad यदि मगरिब की ओर भागें तो पुलिस को मशरिक की ओर भागना चाहिए। लेकिन फ़िर भी यदि दस आतंकी पकडे ही जाएँ ओर सब के सब मुसलमान हों तब इतने ही मुख्य धारा के कम से कम दो दो धर्माव्लाम्बी भी पकड़े जाएँ।
मुसलामानों के इन तमाम प्रतिनिधियों से पुछा जाना चाहिए : इस्लामी जेहाद के प्रस्तावक कौन हैं ? लश्कर-ऐ-तैयबा (हज़रात मोह्हमद की कर्मभूमि मदीना नगर की सेना), जैश-ऐ-मोह्हमद (हजरत मोह्हमद के सिपाही) और हिजबुल मुज्जाहिदीन (मुज्जाहिदीन की सेना), कुरान की आयातों की मनमानी व्याख्या करने वालों के बारे में इनका क्या कहना है ? क्या इनके मौन को इनके स्वीकृति समझा जाए, दहशतगर्दी के हक़ में.
शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2008
छोटी सी बात
पंडित बोला ये रात है--मुल्ला भी बोला ये रात है
यह सुबह सुबह की बात है यह सुबह सुबह की बात है
(बोबी मुदगिल )
यह सुबह सुबह की बात है यह सुबह सुबह की बात है
(बोबी मुदगिल )
गुरुवार, 16 अक्टूबर 2008
लार देगी र्प्गों के जोखिम की सूचना
इस देश में थूकने वाले बोहत हैं जो घर बाहर सब जगह हरदम थूकते रहते हैं चाहे फ़िर वह सिनेमा हॉल की दीवार हो या स्कूल की या फ़िर देश ही क्यों न हो। कुछ लोग तो आसमान की ओर मुहँ करके थूकते हैं। यह तमाम लोग विज्ञान का उपकार करने पर तुले हुए हैं, क्योंकि कैलिफोर्निया राज्य के जन स्वास्थ्य विभाग ने seliva की जांच पड़ताल करके हमारा आपका पूरा जीन पत्रा जीवन इकाइयों का लेखा किसमत का आलेख पढने बतलाने वाली सेवा आरम्भ की है। केवल लार की जांच करवाकर जीवन शैली रोगों के बारे में आपका जोखिम, vulnerability यानी संभावना का पता लगाया जा सकता है।
कुछ लोगों की इस सेवा पर ऐतराज़ है। बकौल उनके : ऐसा होने पर आप नाहक हैरान परेशान ओर आशंकित रहने लगेंगे, रोगभ्रमी (hypochondriac personality) paranoid शक्सिअत बनके रह जायेंगे। सर्विस सेक्टर इसका फायेदा उठा कर आपका शोषण कर सकता है। आपको नौकरी से दफा करेसकता है। बीमा कंपनियां आपके साथ दुभांत करे सकती हैं, जबकि आपके अपने शरीर में ही कुछ ओर ऐसे जीवन खंड सक्रिय हो करे रोग प्रवणता की काट करे सकते हैं, यानी आपकी रोगों के प्रति ओखिम के काट करे सकते हैं।
हमारा मानना है : सुनिश्चित तो विज्ञान में भी कुछ नही है। डार्क मैटर, डार्क एनर्जी जैसी entities के बारे में केवल गोचर पदार्थ (visible matter) के गुरुत्वीय प्रभावों के आधार पर ही अनुमान लगाया जाता है, निष्कर्ष निकाला जाता है। इन अबूझ चीज़ों का स्वरुप क्या है विज्ञान के लिए महज़ अनुमेय ही है अनुमित नही। केवल probability यानी प्रायिकता, संभाव्यता ही सत्य है सुनिश्चित जैसा यहाँ कुछ भी नही। यहाँ तक कि मृत्यु भी मात्र जीवन कि निरंतरता ही है। पदार्थ-ऊर्जा का यह खेल अनंत काल से चल रहा है, आइन्दा भी चलता रहेगा। फ़िर जीवन कि गुणवत्ता ke प्रति खबरदार रहने में हर्ज़ क्या है ?
कुछ लोगों की इस सेवा पर ऐतराज़ है। बकौल उनके : ऐसा होने पर आप नाहक हैरान परेशान ओर आशंकित रहने लगेंगे, रोगभ्रमी (hypochondriac personality) paranoid शक्सिअत बनके रह जायेंगे। सर्विस सेक्टर इसका फायेदा उठा कर आपका शोषण कर सकता है। आपको नौकरी से दफा करेसकता है। बीमा कंपनियां आपके साथ दुभांत करे सकती हैं, जबकि आपके अपने शरीर में ही कुछ ओर ऐसे जीवन खंड सक्रिय हो करे रोग प्रवणता की काट करे सकते हैं, यानी आपकी रोगों के प्रति ओखिम के काट करे सकते हैं।
हमारा मानना है : सुनिश्चित तो विज्ञान में भी कुछ नही है। डार्क मैटर, डार्क एनर्जी जैसी entities के बारे में केवल गोचर पदार्थ (visible matter) के गुरुत्वीय प्रभावों के आधार पर ही अनुमान लगाया जाता है, निष्कर्ष निकाला जाता है। इन अबूझ चीज़ों का स्वरुप क्या है विज्ञान के लिए महज़ अनुमेय ही है अनुमित नही। केवल probability यानी प्रायिकता, संभाव्यता ही सत्य है सुनिश्चित जैसा यहाँ कुछ भी नही। यहाँ तक कि मृत्यु भी मात्र जीवन कि निरंतरता ही है। पदार्थ-ऊर्जा का यह खेल अनंत काल से चल रहा है, आइन्दा भी चलता रहेगा। फ़िर जीवन कि गुणवत्ता ke प्रति खबरदार रहने में हर्ज़ क्या है ?
मौत का एक दिन मूय्यियन है,
नींद क्यों रात भर नही आती........
प्रधान मंत्री रोज़ कहते हैं
प्रधान मंत्री रोज़-ब-रोज़ कहते हैं : सांप्रदायिक हिंसा और आतंकवाद का मुकाबला करते हुए एक वर्ग पर ऊँगली ना उठाई जाए। प्रधान मंत्रीजी कृपया साफ़ साफ़ बतलायें आपका इशारा किधर है ? इस देश का बड़ा उपकार होगा यदि आपके द्बारा संकेतित इस एक वर्ग का शेष देश को भी पता चल जाए जिसे इसका ज़रा सा भी इल्म नही है।
बुधवार, 15 अक्टूबर 2008
महा ठाग्नियों की सियासी ज़ंग
माया महा ठगिनी हम जानी, तिरगुन फाँस लिए, कर डोलत बोले मधुरी वाणी। यहाँ हम देसी नही विदेशी माया की बात कर रहे हैं। विदेशी माया के पास आकर्षण के साधन ज़्यादा हैं उसे तो outsourcing के ज़रिये राज परिवार की काया पर प्रत्यारोपित किया गया है। वह कहती भी है : मुझे तो यह रोल फिरोज़ गाँधी, राजीव गाँधी की विरासत ने थमाया है।
अब देसी और विदेशी दो मायायें आपस में टकरा रहीं हैं बारास्ता राए बरेली रेल कोच फैक्ट्री, मुकाबला तगड़ा और रोचक होगा। यहाँ कोई किसी से कम नही है। एक ठगिनी दूसरी महा ठगिनी। फिर भी हमारी हमदर्दी तो गंदुमी और देसी माया के साथ ही रहेगी। राष्ट्रीय माया तो वही है।
पुरूष तो माया के जाल में आसानी से फँस जाता है। यहाँ तो दोनों मायायें head on collision में हैं. खुदा खैर करे. एक को तो हलाल होना ही है. वैसे राजनीति की माया जो ना कराये सो कम है, पहले इसने न्याय को पंगु बनाया (शाह बानो प्रकरण) फिर पुलिस की साख पे निशाना साधा जामिया नगर एनकाउंटर की मार्फ़त अब बारी प्रशासनिक मशीनरी की है कहीं के भी डी.सी साहिब हों वही करते कराते हैं जो राजनीतिक मायायें करवाएं, कोई उन्हें बीडा खिलाता है तो कोई केक। विदेशी प्रत्यारोप लगी माया ने तो एक पूरी विरासत को ही बौना बना दिया है। भारतीय राजनीति की मैडम बन गयीं हैं। कांग्रेस के वरिष्ठतम सदस्य उनके पूत की चिलम भर रहे हैं। उन्हें भावी प्रधान मंत्री घोषित कर चुके हैं। बेहर्सुरत चर्चा दो महाथाग्नियों के द्वंद युद्ध की है। उद्योग और राज्य की तरक्की बाद में देख ली जायेगी पहले सियासी ज़ंग तो निबटे, देसी विदेशी मायायों की कद काठी की पैमाईश तो हो ले। सेमी फाइनल मुकाबलों का एलान हो चुका है महाथाग्नियों ने बघनखे पहन लिए हैं, साँस रोक कर हरावल दस्तों का मुकाबला देखिये.
अब देसी और विदेशी दो मायायें आपस में टकरा रहीं हैं बारास्ता राए बरेली रेल कोच फैक्ट्री, मुकाबला तगड़ा और रोचक होगा। यहाँ कोई किसी से कम नही है। एक ठगिनी दूसरी महा ठगिनी। फिर भी हमारी हमदर्दी तो गंदुमी और देसी माया के साथ ही रहेगी। राष्ट्रीय माया तो वही है।
पुरूष तो माया के जाल में आसानी से फँस जाता है। यहाँ तो दोनों मायायें head on collision में हैं. खुदा खैर करे. एक को तो हलाल होना ही है. वैसे राजनीति की माया जो ना कराये सो कम है, पहले इसने न्याय को पंगु बनाया (शाह बानो प्रकरण) फिर पुलिस की साख पे निशाना साधा जामिया नगर एनकाउंटर की मार्फ़त अब बारी प्रशासनिक मशीनरी की है कहीं के भी डी.सी साहिब हों वही करते कराते हैं जो राजनीतिक मायायें करवाएं, कोई उन्हें बीडा खिलाता है तो कोई केक। विदेशी प्रत्यारोप लगी माया ने तो एक पूरी विरासत को ही बौना बना दिया है। भारतीय राजनीति की मैडम बन गयीं हैं। कांग्रेस के वरिष्ठतम सदस्य उनके पूत की चिलम भर रहे हैं। उन्हें भावी प्रधान मंत्री घोषित कर चुके हैं। बेहर्सुरत चर्चा दो महाथाग्नियों के द्वंद युद्ध की है। उद्योग और राज्य की तरक्की बाद में देख ली जायेगी पहले सियासी ज़ंग तो निबटे, देसी विदेशी मायायों की कद काठी की पैमाईश तो हो ले। सेमी फाइनल मुकाबलों का एलान हो चुका है महाथाग्नियों ने बघनखे पहन लिए हैं, साँस रोक कर हरावल दस्तों का मुकाबला देखिये.
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