पिछले दिनों सुदान के उत्तरी आकाश में बीस डिग्री पर तकरीबन तीस हज़ार किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से एक आसमानी पिंड ( asteroid) पूर्व घोषित वक्त पर दाखिल हुआ, आसमान में इसकी होली जल गई, हवा के ज़ोरदार घर्षण बल से। विज्ञानियों ने यह भी बतलाया : यदि यह पिंड सिर्फ़ पाँच गुना और बड़ा होता तो भारी तबाही की वजह बनता, दस मीटरी व्यास होने पर यह भयंकर विस्फोट के साथ फटता फलतः बीस किलो तन trionitrotoulvene के तुल्य ऊर्जा पैदा होती। यानी पृथ्वी के एक हिस्से पर नागासाकी की पुन्राव्रृति हो जाती और यदि इसका व्यास मात्र एक किलोमीटर होता तब भूमंडलीय स्तर पर यानी ग्लोबल लेवल पर भारी तबाही होती लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ क्योंकि खगोल विज्ञानियों ने पहले ही इसकी भविष्यवाणी कर दी थी। नासा के निअर अर्थ प्रोग्राम के मुताबिक तकरीबन २०० asteroid पृथ्वी के लिए अबूझ खतरा बन सकते हैं और तकरीबन इतने ही खतरनाक ऐसे ही २०० पिंडों की टोह नही ली जा सकी है। लेकिन इन आसमानी आपदाओं से निजाद दिलवाने के बहुबिध उपाय ढूंढ लिए गए हैं इन्हे समय रहते शक्तिशाली लेज़र किरण पुंज डाल कर भस्मीभूत किया जा सकता है, इनसे सोलर सैल (solar sail) चस्पां करके इनकी कक्षाओं को बदला जा सकता है, रॉकेट दाग कर तथा राकेटों को इनसे जोड़ कर इनकी दिशा और रुख भौंमेतरग्रहों की ओर मोडा जा सकता है।
असली खतरा इन दिनों सुल्तानों, छत्रपों, राज ठाकरों से है। सुलतान कृत हिंसा, दहशतगर्दों पर भी भारी है।
साक्षी भाव से, दृष्टा बने यह नज़ारा कब तक देखेंगे हम लोग कम से कम वोट मिसाइल to दाग सकते हैं सही दिशा में हम लोग।
घुमंतू लघु ग्रह तो मंगल और ब्रहस्पति ग्रहों की कक्षाओं के बीच जबसे सौर मंडल बना है तभी से मंडराते रहे हैं, कभी धूमकेतुओं के टुकड़े बन कर तो कभी मेतेओरोइड बन कर। रात के निविड़ में गहन अन्धकार में अक्सर एक चमकीली लकीर छोड़ते हुए काल कवलित हो जाते हैं यह लघुतर पिंड। यूँ dinasauraus के सफाए की वजह भी यह एक मर्तबा बन चुके हैं। क्या इन्हे राजनीति के dinasauraus पर केंद्रित नही किया जा सकता ?
असली खतरा इन दिनों सुल्तानों, छत्रपों, राज ठाकरों से है। सुलतान कृत हिंसा, दहशतगर्दों पर भी भारी है।
साक्षी भाव से, दृष्टा बने यह नज़ारा कब तक देखेंगे हम लोग कम से कम वोट मिसाइल to दाग सकते हैं सही दिशा में हम लोग।
घुमंतू लघु ग्रह तो मंगल और ब्रहस्पति ग्रहों की कक्षाओं के बीच जबसे सौर मंडल बना है तभी से मंडराते रहे हैं, कभी धूमकेतुओं के टुकड़े बन कर तो कभी मेतेओरोइड बन कर। रात के निविड़ में गहन अन्धकार में अक्सर एक चमकीली लकीर छोड़ते हुए काल कवलित हो जाते हैं यह लघुतर पिंड। यूँ dinasauraus के सफाए की वजह भी यह एक मर्तबा बन चुके हैं। क्या इन्हे राजनीति के dinasauraus पर केंद्रित नही किया जा सकता ?
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