संरक्षणवादी राजनीति (patronage politics) के पक्षधरों से यदि वोट और देश में से किसी एक का चयन करने को कहा जाए तो यह जमूरे वोट को ही चुनेंगे। हिन्दुस्तान की अकेली विश्व नगरी मुंबई में हुए आतंकवादी हमले में शहीद हुए श्री हेमंत करकरे और पूर्व में जामिया नगर के बटला हाउस में शहीदे आज़म श्री मोहन चंद शर्मा पर अब्दुल रहमान अंतुले, दिग्विजय सिंह, अमर सिंह और उनके चेलों ने जिस प्रकार की बेशर्म सवालिया मिसाईलें दागी उस पर यही कहा जा सकता है : नंग बड़े परमेश्वर से। अल्पसंख्यक राजनीति के टुकड़ खोर जो करा दें सो कम फिर अंतुले तो अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री थे।
माननीय प्रधानमंत्रीजी यह आपके एक काबिना मंत्री की मानविय भूल नही थी, अगले लोक सभा चुनाव की अदबदा कर की गई पोसिशनिंग थी। इतनी बात तो कोई पप्पू भी समझ लेगा। एक अखबार ने अपने सम्पादकीय "एक जुटता ज़रूरी' में लिखा अंतुले साहब ने इससे आम जनता की नजर में कुछ खोया ही है। मान्यवर अल्पसंख्यक राजनीति को कौमी नुक्सान का इल्म ही कहाँ होता है / यदि यह मानविय भूल है तो ब्लंडर किसे कहते हैं, अब्सर्ड क्या होता है ? कृपया बतलायें।
बुधवार, 24 दिसंबर 2008
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