इसे कांग्रेस का दुर्भाग्य और देश का महा दुर्भाग्य कहा जायेगा, कांग्रेस जो खेल चुनाव पूर्व बेला में खेल रही थी वह डेक्कन मुज्जाहिद्दीन ने मुंबई को थर्रा कर बिगाड़ दिया। मनमोहन की सरकार से आतंरिक सुरक्षा तो संभाले नही संभालती, देश को क्या सुरक्षा मुहैय्या कराएगी। सरकार का खेल दो चरणों में कामयाब हो चुका था पहले इसने देश की आतंरिक सुरक्ष और शील के ध्वज वाहक भारत्धर्मी समाज के साधू संतों को हड़काया, मकोका लगा कर उन्हें अपमानित किया फिर सेना के छठे पे कमीशन की सिफारिशों से असंतोष ज़ाहिर करने पर शहीद मोहन चंद शर्मा के प्रतिराख्षा सेनाओं में परियाय रहे लेफ्टिनेंट कर्नल प्रशाद श्रीकांत पुरोहित को निशाने पर लिया ताकि फौज कार्य पालिका के अगुवाओं के बराबर भत्तों की मांग आइन्दा न दोहराएं।
इन दिनों सरकार के निशाने पर न्याय पालिका थी। सुप्रीम कोर्ट कोलिजियम की सिफारिशों को विधाइयका द्बारा दो बार लोटाने के पीछे यही मंशा थी।
आतंकवादियों ने अब जब मुंबई में खुला खेल फर्रुखाबादी खेला तब सरकार को इल्म हुआ अपनी सीमाओं का। विलास राव देशमुख तो अभी भी इतरा रहे हैं, कहते हैं की १८६ ही मरे निशाने पर तो पाँच हज़ार थे, शर्म की बात है सरकार के लिए, जो सेना कल तक निशाने पर थी हमेशा वही काम आती है। अब तो चेतो मनमोहन और अगर अब भी कुछ पूछना है तो सोनिया से पूछ लो...........
शनिवार, 29 नवंबर 2008
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