बुधवार, 15 अक्तूबर 2008

महा ठाग्नियों की सियासी ज़ंग


माया महा ठगिनी हम जानी, तिरगुन फाँस लिए, कर डोलत बोले मधुरी वाणी। यहाँ हम देसी नही विदेशी माया की बात कर रहे हैं। विदेशी माया के पास आकर्षण के साधन ज़्यादा हैं उसे तो outsourcing के ज़रिये राज परिवार की काया पर प्रत्यारोपित किया गया है। वह कहती भी है : मुझे तो यह रोल फिरोज़ गाँधी, राजीव गाँधी की विरासत ने थमाया है।

अब देसी और विदेशी दो मायायें आपस में टकरा रहीं हैं बारास्ता राए बरेली रेल कोच फैक्ट्री, मुकाबला तगड़ा और रोचक होगा। यहाँ कोई किसी से कम नही है। एक ठगिनी दूसरी महा ठगिनी। फिर भी हमारी हमदर्दी तो गंदुमी और देसी माया के साथ ही रहेगी। राष्ट्रीय माया तो वही है।

पुरूष तो माया के जाल में आसानी से फँस जाता है। यहाँ तो दोनों मायायें head on collision में हैं. खुदा खैर करे. एक को तो हलाल होना ही है. वैसे राजनीति की माया जो ना कराये सो कम है, पहले इसने न्याय को पंगु बनाया (शाह बानो प्रकरण) फिर पुलिस की साख पे निशाना साधा जामिया नगर एनकाउंटर की मार्फ़त अब बारी प्रशासनिक मशीनरी की है कहीं के भी डी.सी साहिब हों वही करते कराते हैं जो राजनीतिक मायायें करवाएं, कोई उन्हें बीडा खिलाता है तो कोई केकविदेशी प्रत्यारोप लगी माया ने तो एक पूरी विरासत को ही बौना बना दिया है भारतीय राजनीति की मैडम बन गयीं हैंकांग्रेस के वरिष्ठतम सदस्य उनके पूत की चिलम भर रहे हैंउन्हें भावी प्रधान मंत्री घोषित कर चुके हैंबेहर्सुरत चर्चा दो महाथाग्नियों के द्वंद युद्ध की हैउद्योग और राज्य की तरक्की बाद में देख ली जायेगी पहले सियासी ज़ंग तो निबटे, देसी विदेशी मायायों की कद काठी की पैमाईश तो हो लेसेमी फाइनल मुकाबलों का एलान हो चुका है महाथाग्नियों ने बघनखे पहन लिए हैं, साँस रोक कर हरावल दस्तों का मुकाबला देखिये.

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