सोमवार, 13 अप्रैल 2015

कोणार्क चिकित्सा केंद्र :कुछ चिकित्सा मामले एक विहंगावलोक



पूर्व में हम बतला चुके हैं कि 'Ksct :Cure for incurables 'देसी जड़ी ब्यूटी एवं कॉस्मिक -रे 'आधारित एक सम्पूर्ण

चिकित्सा तंत्र है। डॉ शेखर इस केंद्र के संस्थापक निदेशक हैं।

यहां पहुंचे मरीज़ों को होने वाले लाभ पर आज एक नज़र डालते हैं सरसरी सी। जो हम कहना चाहते हैं

देखते हैं अक्सर पूरा कह नहीं पाते। शब्दों की अपनी सीमा है। फिर भी बात तो कहनी ही है।

FIRST MEDICAL CASE

शेखर जी का पहला बड़ा मामला एक सोलह सत्रह साला किशोरी थी जिसके माँ -बाप हर पल उसके मरने की प्रतीक्षा

कर रहे थे क्योंकि उसकी दोनों किडनियाँ  खराब हो चुकी थीं।डायलिसिस ने भी हाथ खड़े कर दिए थे। लड़की बिस्तर

पर पड़ी करवट भी नहीं ले पाती थी।  उसके बड़े भाई की शादी निरंतर इसी वजह से टलती जा रही थी कि एन  वक्त पर

कोई अशुभ न खड़ा हो जाए।शेखर जी तक उसके पिता पहुंचे। इलाज़ चला। चार महीनों बाद उस लड़की ने अपने भाई

की शादी में अपने पैरों खुद चलकर धूमधाम से शिरकत की।  यह बात कोई २६ -२७ बरस पहले की थी।

SECOND MEDICAL CASE

दूसरा मामला चिकत्सा क्षेत्र में एक मील का पत्थर कहा जा सकता है।

२००५ -०६ के आसपास हाइड्रो -सेफलस (Hydro-cephalus )का एक ऐसा मामला Ksct पहुंचा जिसे मुंबई के

एक नामचीन अस्पताल  -

 Bombay Hospital ने ज़वाब दे दिया था।  ये आर्य समाज के तात्कालिक राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय थे जो गत

तीन दशकों से डायबिटीज़ से ग्रस्त थे। इस दरमियान इन्हें कार्डिएक सर्जरी भी करानी पड़ी थी।

जीवन शैली रोगों की इसी कड़ी में आप उक्त रोग की चपेट में चले आये थे। इस रोग(हाइड्रो -सेफलस)  में आम भाषा में

कहें तो मरीज़ के दिमाग में पानी भर जाता है। परम्परा गत इलाज़ इसका दिमाग में शंट लगाना  रहा है। लेकिन

 इस मामले में निवर्तमान मेडिकल कंडीशन के चलते शंट डालना भी मुमकिन नहीं रह गया था।

अंतिम उम्मीद के तौर पर इन्हें Ksct (www.ksct.net )के बारे में पता चला और ये आस के पल्लू से बंधे बेंगलूर चले

आये। अध्यक्ष महोदय यहां पहुँचने से पहले पूर्णतया Bed Ridden  हो चुके थे। मलमूत्र त्याग को लेकर भी असंयम की

चपेट में आ चुके थे। याददाश्त जा चुकी थी। अपने तीमारदार बेटे को भी नहीं पहचान पाते थे।

तीन बरस के निरंतर इलाज़ के बाद न सिर्फ आप रोग मुक्त होकर कलकत्ता लौटे अपना पुश्तैनी व्यापार भी पुन :

सम्भाला।

अपनी बीमारी से पूरी तरह उबरने के बाद आप पश्मीने का एक शाल और बीमारी के बाद लिखी गई अपनी नवीनतम

पुस्तक लेकर शेखर जी को भेंट करने बेंगलूर पहुंचे।

गौर तलब है कि हाइड्रोसेफलस  के परिणाम स्वरूप आखिरी चरण में आप अपनी याददाश्त शेखर जी तक पहुँचने से

पहले पूरी तरह खो चुके थे। यहां तक की आप अपने सगे  सम्बन्धियों तक को भी नहीं पहचान पाते थे  जबकि रोगमुक्त

होने पर आपने न सिर्फ शेखरजी को  भेंट स्वरूप दी गई अपनी नवीनतम पुस्तक ही लिखी अपने  पारिवारिक  व्यवसाय

की कमान भी दोबारा संभाल संभाल ली।

यह एक मेजर ब्रेक -थ्रू था जिसने एक लम्बी पारी की ज़मीन तैयार कर दी थी।

(ज़ारी )

सन्दर्भ -सामिग्री :शेखर भाई के संग एक अन-औपचारिक बातचीत।

www.ksct.net

1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कमाल कर रहा है ये चिकित्सा केंद्र ...