मंगलवार, 18 जून 2013

राज योग द्वारा आंतरिक शक्तियों का विकास

राज योग द्वारा आंतरिक शक्तियों का विकास 

मन की ऊर्जा (चैतन्य शक्ति )आत्मा का परमात्मा से मिलन करवाती है बशर्ते मन हमारा मुरीद हो हम मन के मुरीद न हों .एक सेकिंड में हम अपने आप को अशरीरी समझ आत्म स्वरूप में स्थित हो ,अपने ज्योति बिंदु स्वरूप शांत स्वरूप के स्मृति में टिककर परम ज्योति परमात्मा को याद करें और परमात्मा से हमारा मिलन हो जाए .दो तारों को जोड़ने के लिए ऊपर का रबड़ (इन्सुलेटर )हटाना पड़ता है तभी करेंट बहता है तार में .आत्मा का परमात्मा से योग भी तभी लगेगा जब हम ऊपर  का रबड़ हटा अ -शरीरी बनेंगे बुद्धि से . हमारे तार जो सर्वश्रेष्ठ सर्वोपरि है सर्वमान्य है सर्वज्ञ है ,ऊंचे  ते भी ऊंचे भगवान के साथ जुड़ जाते हैं इसीलिए आत्मा परमात्मा के इस प्रेममिलन को राजयोग कहा गया है .बस हमारा संकल्प एक स्विच बन जाए इधर स्विच आन किया उधर संपर्क जुड़ा .बे -तार का प्रसारण है राज योग .

राजयोग के अभ्यास से हमारा व्यवहार संस्कार बदलता है :

आचरण शुद्ध होता है राजयोग के अभ्यास से .वृतांत है स्वामी रामतीर्थ के आश्रम में एक सन्यासी आये ,आते ही बोले महाराज मैं नदी को पानी की सतह  पे चलके पार कर सकता हूँ .स्वामीजी बोले कितने साल लग गए इस अभ्यास में ,इस प्राप्ति में? साधू बोला दस साल .भले आदमी जो काम नाव में बैठके नदी पार करने का दो पैसे में हो सकता था उसमें तुमने जीवन के दस साल व्यर्थ कर दिए .तुम्हारे अन्दर अहंकार और आगया करिश्मा दिखाने का .आत्मा तुम्हारी उतनी ही कमज़ोर हो गई .जानते हो भाई भाई के परस्पर द्वेष से ही महा -भारत हुआ था . योग के अभाव में शक्ति नहीं थी आत्मा में .

योग हमें सहन करने की शक्ति देता है 

आज आदमी सोचता है हम क्यों सहन करें सामने वाला करे .आत्म ह्त्या  का एक कारण सहन शक्ति का ही अभाव है .क्रोध में विवेक नष्ट हो जाता है .गुस्से के तात्कालिक लाभ ही मिलते हैं .क्रोध से आप किसी से काम तो करवा सकते हैं लेकिन इसके दूरगामी परिणाम बुरे होते हैं .

माँ बाप सोचते हैं बच्चे पढ़ेंगे नहीं तो गुस्सा तो करना ही पड़ेगा .आप उन्हें प्यार से समझाइये .गुस्से में हम बच्चों को कुछ भी कह देते हैं .नालायक ,पाजी ,कुछ नहीं सीखेगा तू .बड़े होने पर ऐसे बच्चे विद्रोही बन सकते हैं .

निंदा हमारी जो करे मित्र हमारा होय :

हमारी किसी ने निंदा की और हम उसे स्वीकार करते हैं तो दुःख होता है .हम न चाहे तो कोई हमें दुःख नहीं पहुंचा सकता .मेरा कमंडल है मेरे पास ही रहा .मैं ने कुछ लिया ही नहीं तो दुःख कहाँ से आयेगा ?हमने लिया ही नहीं जो बुरा भला किसी ने कहा .कोई प्रतिक्रिया ही नहीं की तो सामने वाला शांत हो जाएगा .   

जब कोई गुस्सा करे मुंह में पानी रख लो निगलो नहीं :

एक पति महोदय रोज़ पत्नी को घुड़कते थे .शाम को दफ्तर से लौटे तो उन्होंने ऐसा ही किया .पत्नी ने झट मुंह में पानी रख लिया .दूसरे  दिन भी पति के गुस्सा  होने पर पत्नी ने ऐसा ही किया .पति को लगा अब यह बदल गई है .पति भी खुद पे ध्यान देने लगे और वह भी शांत हो गए .

बतला दें आपको वह पानी कोई सिद्ध पानी नहीं था .साधारण पानी ही था जो महात्मा जी ने बोतल में भरके दिया था .यह सचमुच हमारे कंट्रोल में है हम कैसा व्यवहार करें .कई बार बिना सोचे समझे ही हम रिएक्ट करते हैं .असाधारण व्यक्तियों ने कभी भी साधारण व्यवहार नहीं किया है .साधारण आदमी की तरह ईंट का ज़वाब पत्थर से नहीं दिया है .ईसा मसीह को तो सूली पर ही चढ़ा दिया गया था ,तब भी उन्होंने रिएक्ट नहीं किया .यही कहा ईश्वर इन्हें माफ़ करदेना .ये नहीं जानते ये क्या कर रहें हैं .
महात्मा गांधी एक मर्तबा ट्रेन में यात्रा कर रहे थे .साथ वाला व्यक्ति पान खा रहा था .दो बार गांधी के पैर पर उस व्यक्ति की थूक पड़ी दोनों बार महात्मा ने उसे चुपचाप पौंछ  दिया .उस व्यक्ति को कुछ भी नहीं कहा .व्यक्ति शर्मिन्दा हो महात्मा के पैरों पर गिर गया .

एक  साधू था .उसे एक व्यक्ति नियम निष्ठ होकर रोज गाली देता था .एक रोज साधू नेउस व्यक्ति को फल भिजवाये .वह व्यक्ति बहुत चकराया कहने लगा मैं तो आपको गाली देता था फिर भी आपने मुझे फल भिजवाये हैं .क्यों ?साधू बोले -तुम रोज़ मेरे ऊपर अमृत वर्षं करते हो तुम्हारी शक्ति बनी रहे इसीलिए मैं ने ये फल भिजवाये .तुमने मुझे सहने की शक्ति दी .राजयोग भी यही काम करता है .

समाने की शक्ति :

सागर तमाम नदियों के कचरे को समाता है और खुद कभी किनारा नहीं छोड़ता .हानि, लाभ ,सुख ,दुःख में जो समान भाव बनाए रहता है वह सागर के समान बन जाता है .

योग से हम वही ग्रहण करते हैं जो हमारे लिए लाभदायक हो :

एक कारीगर के पास एक जैसी तीन मूर्तियाँ थीं फिर भी एक की कीमत एक हजार दूसरी की दो तथा तीसरी की दस हज़ार थी .

पहली मूर्ती की विशेषता यह थी जब उसके एक कान में तार डाला जाता था ,वह उसके मुंह से बाहर आ जाता था .

दूसरी  के कान में तार  डालने पर वह दूसरे   कान से बाहर आजाता था तथा तीसरी के पेट में ही रह जाता था .

तीन प्रकार के व्यक्ति होतें हैं इसी प्रकार एक जो सुनी हुई को फट आगे कह देते हैं प्रसारित करदेते हैं .दूसरे एक कान से सुनते है दूसरे  से निकाल देते थे .तीसरे पचा लेते हैं .बात बुद्धि तक ले ही नहीं जाते हैं .

योग हमें  परखने, निर्णय करने की शक्ति देता है :

औचित्य ,अनौचित्य पर हम विवेक से काम लेते हैं .असली और नकली हीरे की पहचान कर लेते हैं .असली हीरे धूप में रखने पे गर्म नहीं होते .बुद्धि का पात्र निर्मल बनाता है योग जितनी बुद्धि श्रेष्ठ होती है निर्णय करने की शक्ति भी उतनी ही अव्वल हो जाती है .

सामना करने की शक्ति देता है योग :

तूफ़ान तो आयेंगें जीवन भर .इस जीवन में जो कुछ भी हो रहा है हमारे कल्याण के लिए ही हो रहा है .परिणाम का कोई तो कारण होता है .आज जो भी हमारे साथ घटित हो रहा है वह हमारे ही पूर्व जन्मों  का फल है परिणाम है .अकारण कुछ भी नहीं होता है .हमारी छाया की तरह हमारे कर्म हमारे साथ चलते हैं .

सहयोग की  शक्ति :

योग हमें सिखाता है हम एक ही परमपिता की संतान हैं इसीलिए भाई भाई हैं .असंभव को भी संभव कर देता है सहयोग .

एक भोज का आयोजन देवाताओं और असुरों के लिए किया गया .शर्त यह थी खाते समय किसी की भी कोहनी नहीं मुड़नी चाहिए .असुर भूखे रह गए .देवताओं ने भर पेट खाया .जानते हैं कैसे ?एक देवता ने अपने सामने वाले दूसरेदेवता  को अपने  हाथ से खिलाया .भर पूर खाया खिलाया .

एक जंगल में आग लगी थी .आग बुझाने के संकल्प में एक छोटी सी चिड़िया भी लगी हुई थी .अपनी नन्नी चौंच में पानी भर के लाती आग पे छिड़कती .एक कौवा यह कृत्य देख रहा था कहने लगा तुम्हारे इस पुरुषार्थ से क्या होगा ?क्या आग बुझ जायेगी .चिड़िया बोली भले न बुझे लेकिन मेरा नाम इतिहास में आग बुझाने वालों में लिखा जाएगा लगाने वालों में नहीं .

विस्तार को संकीर्ण करने की शक्ति :

कछुए की तरह हो जाएं  हम .ज़रुरत हो आसपास को जगत को देखे ज़रुरत हो अशरीरी बन जाए .योग से हम अपने मन को न्यारा कर  सकते हैं .मैं जब जो चाहूँ देखू जब न चाहूँ न देखूं .

समेटने की शक्ति :

न कुछ तेरा न कुछ मेरा चिड़िया रैन बसेरा .सब कुछ छोड़ने को तैयार रहो .नाम ,धन, शोहरत .कभी भी काल आ सकता है .


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11 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यही सब गुण जो हमें गुणवत्ता पूर्ण जीवन के लिये चाहिये, सुन्दर आलेख..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुंदर कथाओं के माध्यम से योग के महत्त्व को बताया है ... सार्थक लेख ।

राहुल ने कहा…

सहज, सरल उदाहरणों से लिखी गयी लाजवाब पोस्ट...जितनी भी तारीफ़ की जाए, वो कम है....आपसे इस तरह की पोस्ट की उम्मीदें बढ़ जाती है ....

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

तत्वपूर्ण एवं ज्ञानवर्धक आलेख !
latest post पिता
LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
l

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

न कुछ तेरा न कुछ मेरा चिड़िया रैन बसेरा .सब कुछ छोड़ने को तैयार रहो .नाम ,धन, शोहरत .कभी भी काल आ सकता है .jivn jine ki kala hai yog ...bahut acchhi prastuti .....barik vishleshan ..aabhar ...

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

राज योग की तो अपनी अदभुत महता है जो आंतरिक शक्तियों से मनुष्य का परिचय करवा कर उसे आत्म दर्शन के मार्ग पर ले जाता है.

समस्त आलेख ही अति कल्याण कारी है, बहुत आभार.

रामराम.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

योग के महत्त्व को बाखूबी समझाया है आपने ... सरल कहानियों के माध्यम से सहज ही अपनी बात कही है ... राम राम जी ...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

योग के महत्त्व को बहुत उम्दा तरीके से समझाया है,उपयोगी आलेख ,,,

RECENT POST : तड़प,

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सारगर्भित आलेख...आभार

Satish Saxena ने कहा…

वाह ..
आनंद आ गया !
हठ योग पर भी लिखें, बहुत कम जानकारी है इसकी !

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

अर्थपूर्ण बातें समेटे आलेख..... बस जीवन ये दिशा पकड़ पाए