सोमवार, 24 दिसंबर 2012

आज के हालात का तप्सरा है


आज के हालात का तप्सरा है






रविवार, 23 दिसम्बर 2012


"मंडराती हैं चील चमन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

सज्जनता बेहोश हो गई,
दुर्जनता पसरी आँगन में।
कोयलिया खामोश हो गई,
मंडराती हैं चील चमन में।।

अबलाओं के कपड़े फाड़े,
लज्जा के सब गहने तारे,
यौवन के बाजार लगे हैं,
नग्न-नग्न शृंगार सजे हैं,
काँटें बिखरे हैं कानन में।
मंडरातीं हैं चील चमन में।। 

मानवता की झोली खाली,
दानवता की है दीवाली,
कितना है बेशर्म-मवाली,
अय्यासी में डूबा माली,
दम घुटता है आज वतन में।
मंडरातीं हैं चील चमन में।। 

रवि ने शीतलता फैलाई,
पूनम ताप बढ़ाने आई,
बदली बेमौसम में छाई,
धरती पर फैली है काई,
दशा देख दुख होता मन में।
मंडरातीं हैं चील चमन में।। 

सुख की खातिर पश्चिमवाले,
आते हैं होकर मतवाले,
आज रीत ने पलटा खाया,
हमने उल्टा पथ अपनाया,
खोज रहे हम सुख को धन में।
मंडरातीं हैं चील चमन में।। 

 शावकसिंह खिलाने वाले,
श्वान पालते बालों वाले,
बौने बने बड़े मनवाले,
जो थे राह दिखाने वाले,
भटक गये हैं बीहड-वन में।
मंडरातीं हैं चील चमन  में।।


क्या  दिल्ली रैप से बचा  जा सकता था ?

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2 टिप्‍पणियां:

अशोक सलूजा ने कहा…

नौजवान पीढ़ी की उर्जा किसी काम आये
अब भारत का उज्जवल भविष्य ज़ाग जाये ......
शुभकामनायें!

अरुन अनन्त ने कहा…

आदरणीय सर अब और चुप रहने से काम नहीं चलेगा, बहुत सो चुके हैं अब जागने का समय आ चुका है, उत्साहित एवं जागरूक करती रचना हेतु बधाई स्वीकारें