रविवार, 31 अक्टूबर 2010

स्वास्थ्य समाचार और ट्रेंड्स .

एक कप कोफी का रोजाना सेवन सभी वजहों से होने वाली असमय मौत के खतरे को ३७ %कम करता है .दो कप डी रोजाना दिल के दौरों से होने वाली मौतों के जोखिम को २५ फीसद तथा ३ कप का सेवन डिमेंशिया एवं दूसरे न्युरोलोजिकल डिस -ऑर्डर 'अल्जाइ -मर्स'के खतरे के वजन को ६५ फीसद घटा देता है .जबकि चार कप या इससे ज्यादा कोफी का सेवन आपके जीवन शैली रोग डाय -बिटीज़ की चपेट में आ जाने की आशंका को ५६ %कम कर देता है ।
नवीनतर कई अध्ययनों से जावा के पुष्टिकर तत्वों से भरपूर होने की पुष्टि हुई है जो एक तरफ खून में घुली चर्बी को कम कर देतें हैं दूसरी तरफ इंसुलिन सेंसिटिविटी को न सिर्फ बढ़ा देतें हैं डेमेज्ड सेल्स को भी विनष्ट कर देतें हैं .शरीर को नष्ट -प्राय कोशाओं का शमशान बनने से रोक्तें हैं' जावा 'में मौजूद पुष्टिकर तत्व ।
इसलिए जब तक की आप अनिद्रा रोग (इनसोम्निया ),हेड -ऍक,हाई -पर -टेंशन जैसी स्थितियों से ग्रस्त न हों ,बिला वजह कैफीन -मुक्त उत्पादों के मोहताज़ न बने .कैफीन भी बचाव करती है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-हेल्थ (न्यूज़ +ट्रेंड्स )/४ वेज़ कोफी क्योर्स /प्रिवेंशन (हेल्थ मैगजीन )पृष्ठ २६ अक्टूबर २०१० ,अंक )

जानकारी: क्या है हयरेक्स?

क्या है ह्य्रेक्स ?
हयरेक्स 'ऑर्डर 'हीरा -की -डा '/हईरा -कोइदा, समूह से ताल्लुक रखने वाला एक स्तनपाई जीव है .समान गुण -धर्मा(करेक्टर -स्टिक्स वाले ) पशुओं को एक 'ऑर्डर 'या ग्रुप में रखा जाता है .ऑर्डर 'क्लास 'से छोटा तथा परिवार यानी फेमिली से बड़ा होता है ।
झुण्ड बनाकर रहने वाला यह पादप -भक्षी प्राणि (स्तनपाई ) देखने में खरगोश सरीखा छोटे -छोटे कर्ण (कान )लिए होता है .इसके पैर के नाखून खुर सरीखे होतें हैं ।
प्रोकावीदाए परिवार का यह स्तनपाई मेडीट्रे -नियन,दक्षिण -पश्चिम एशिया में पाया जाता है ।इसकी
कई प्रजातियाँ अफ्रीका में भी पाई जाती हैं .
एक दम से अजीबो -गरीब हैं यह लघुतर -स्तन -पाई .इनमे आरंभिक स्तन -पाई उद्भव और विकास की कुछ विलक्षण -ताएँ मौजूद हैं .ऐसा प्रतीत होता है यह स्तन -पाई -वर्ग की एक अलग कड़ी के रूप में विकसित हुए जो कभी आकार में दीर्घकाय थे ।
पहली नजर में बावजूद इस तथ्य के कि ह्य्रेक्स कृन्तक सदृश्य लगतें हैं इनका सम्बन्ध गज -परिवार और मनातीज़ से ज्यादा प्रतीत होता है ।अन्गुलेट्स से लगतें हैं ये .(खुर वाले प्राणि अन्गुलेट्स कहातें हैं .).
मनातीज़ क्या हैं ?
मनाटी इज ए लार्ज प्लांट ईटिंग एनीमल (मेमल )विद फ्रंट फ्लिपर्स एंड ब्रोड फ्लेतिंद टेल.

क्या और कितनी भरोसेमंद होतीं हैं टी आर पीज़ ?

टी आर पी ,टेलिविज़न रेटिंग पॉइंट्स का संक्षिप रूप है .दी इन्डियन टेलिविज़न आडियेंस मेज़रमेंट अकेली एजेंसी हैजो इल्केत्रोनिक गेजेट्स की मदद से किसी चैनल ,उससे सम्बद्ध कार्य -क्रम की लोकप्रियता का जायजा लेती है .इस एवज कुल हजार पांच -सौ एक घरों में पीपुल्स मीटर्स कायाम कर दिए जाते है एक नियत अवधि के लिए .यह इलेक्त्रोनी गेजेट न सिर्फ टेलीविजन के आगे बैठे दर्शकों की गिनती करती रहती है लगातार नियत काल तक .अलावा इसके जो पिक्चर (कार्य -क्रम)इस अवधि में देखी जा रही है उसका भी थोड़ा सा हिस्सा पीपुल्स मीटर दर्ज़ करता चलता है अनवरत ।
अब साम्पिल होम्स से उठाए गए आंकड़ों का मिलान मुख्य आंकडा बेंक से किया जाता है .बस चैनल की रेंकिंग इसी आधार पर की जाती है .ज़ाहिर है यह एक सांखिकीय तरीका है .जिसकी विश्वसनीयता का फैसला आप खुद करें .
अलबत्ता इसमें स्तेमाल तकनीकों को 'फ्रीक्युवेंसी मानी -टरन 'एवं 'पिक्चर मेचिंग 'कहा जाता है ।
भारत में इस टी आर पी को बढाने के चक्कर में बेहद का अंध -विश्वास ,भूत -प्रेत ,अपराध के बहु -विध किस्से कई चैनल निशि -बासर परोस रहें हैं .लगता है भारत में कुछ पोजिटिव घटता ही नहीं है .

भारत में वित्तीय वर्ष एक अप्रेल से क्यों आरम्भ होता है ?

दरअसल आज ही के दिन यानी एक अप्रेल १९६२ को भारत में इनकम -टेक्स -एक्ट लागू हुआ था .हालाकि भारत सरकार ने बारहा कोशिश की है ,वित्तीय वर्ष एक जनवरी से आरम्भ हो लेकिन यह कोशिश कभी सिरे नहीं चढ़ सकी है ।
कारण दिसंबर का महीना उत्सवी माहौल लिए रहता है .एक तरफ बड़े दिन का जश्न दूसरी तरफ नया -साल .दिसंबर मॉस का अंत आते -आते इन्वेंतरीज़ भी बे -शुमार हो जातीं हैं .असेट्स का हिसाब किताब रखना मुश्किल हो जाता है ऐसे में बही -खातों को पूरा करने का वक्त ही नहीं निकल पाताहै .।अप्रेल एक तक यह संपन्न कर लिया जाता है .

माउस -वाइव्ज़ कौन हैं ?

माउस -वाइव्ज़ उन हाउस -वाईव्स, घर -क़ाज़ी महिलाओं को कहा जाता है जो घर से ही ऑनलान जॉब करतीं हैं .और इस प्रकार मंदी के इस दौर में कुछ धेला -दूकडा(पैसा -धेला )कमा लेतीं हैं .इन महिलाओं को ही जो खासा समय ऑन लाइन रहकर घर से धंधा -धोरी कर लेतीं हैं 'माउस वाईव्स 'कहा जाता है ।
युनाईतिद किंडम में संपन्न एक अधययन, ये महिलायें कौन -कौन से काम बा -खूबी अंजाम दे रहीं हैं इसका खुलासा करता है ।
इनके विविध रूपा कामों में शरीक हैं ,मार्किट रिसर्च ,डी वी दीज़ की सेल (बिक्री ,विक्रय ),म्य्स्तेरी शोपिंग ,वैब -साइट्स निर्माण ,पार्टियों का आयोजन ,कम्पनियों का बही -खाता (लेखा -जोखा ,अकाउंटिंग ),उत्पादों का रिव्यू .आवाजाही में मंदी के इस दौर में तेल की जो बचत होती है सो अलग .

क्या है बरा या बारा डांस ?

यमन (देश )के कबीलों द्वारा एक नृत्य डैगर(छुरी )हाथ में लेकर किया जाता है इसे ही 'डैगर -डांस 'या छुरी नांच कहा जाता है .इसे बारा या बरा नृत्य भी कह दिया जाता है .बरा का मतलब डैगर ही होता है .तकरीबन बीस नर्तक इसमें शिरकत करतें हैं .नर्तक एक आकृति नृत्य के दौरान अंग्रेजी अक्षर 'यू 'की बनाते हैं .मुख्य नर्तक इस आकृति के बीचों -बीच खड़े होकर नृत्य करता है .इस नृत्य की कोई प्रामाणिक शैली नहीं है .हर कबीले की अपनी -अपनी शैली है .सर्कमशीस्जन (ख़तने,बचपन में शिश्न की फोरस्किन की कटाई ),विवाह (ब्याह -शादी ) एवं राष्ट्रीय उत्सवों के समय इस आउट -डोर डांस की रंगीनी देखते ही बनती है ।
वाद्य के रूप में इसमें ड्रम (नगाड़ा )पीटा जाता है .यह परकशन वाद्य आरम्भ में विलंबित फिर द्रुत से द्रुततर होता चलता है ।
सर्कम -सिस्जन इस दी सर्जिकल रिमूवल ऑफ़ दी फोरस्किन ऑफ़ दी पेनिस .दिस ओपरेशन इज ओफतिन पर्फोर्म्द फॉर रिलिजीयस एंड एथनिक रीजंस ,बट इज सम टाइम्स रिक्वायर्ड फॉर मेडिकल कंडीशंस मैनली 'फिमोसिस 'एंड 'पैरा -फिमोसिस '.फिमेल सर्काम्सिस्जंन ऑर फिमेल जेनितल म्युतीलेशन इन्वोल्व्स रिमूवल ऑफ़ दी क्लाइटोरिस ,लाबिया मिनोरा एंड लाबिया मज़ोरा फॉर कल्चरल रीजन्स .

बेहद विषाक्त बने हुएँ हैं भारत में फल और तरकारियाँ .

इंडियन वेगीज़ ,फ्रूट्स रिमैन हाइली टोक्सिक .पेस्टी -साइड्स मच हायर देन योरोपियन स्तेंदर्ड्स(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर ३१ ,२०१० ,पृष्ठ ९ ,नै -दिल्ली संस्करण ,केपिटल )।
एक गैर सरकारी संगठन 'कन्जूमर वोईस 'के अनुसार भारत के खाद्यों में स्तेमाल होने वाले नाशी -जीवनाशियों (पेस्टी -साइड्स )का क्वांटम (मात्रा ) योरोपीय मानकों से ७५० गुना ज्यादा है .प्रतिबंधित पेस्टी -साइड्स का स्तेमाल धड़ल्लसे फल और तरकारियों पर आजमाया जा रहा है ।
भारतीय किसान बे -झिझक होकर क्लोर -डैन ,एन्द्रिन ,हेप्टा -कोर जैसे नाशी -जीव -नाशियों को काम में ले रहा है .फसलों पर इनका छिडकाव ज़ारी है .उक्त संगठन ने दिल्ली ,मुंबई और बेंगलुरु से खुदरा और थोक विक्रेताओं से नमूने उठाकर विश्लेसन किया है ।
भारतीय बाज़ारों में मिलने वाली तरकारियों में अंतर -राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित पांच में से चार पेस्टी -साइड्स मौजूद पाए गयें हैं ।
कंज्यूमर वोईस के मुखिया सिसिर घोष के मुताबिक़ करेला और पालक में यह पाए गएँ हैं ."करेला और नीम चढ़ा कहावत चरितार्थ हो गई है ।
ज़ाहिर है इससे उपभोक्ताओं को तमाम तरह के न्युरोलोजिकल डिस -ऑर्डर्स के अलावा किडनी डेमेज और चमड़ी के विकारों का ख़तरा पैदा हो गया है ।
प्रतिबंधित पेस्टी -साइड्स में से 'क्लोर -डेन' एक तेज़ (असरकारी )सेंट्रल नर्वस सिस्टम टोक्सिन है .यह केन्द्रीय स्नायुविक तंत्र को प्रभावित करता है ।
'एन्द्रिन' सिर दर्द के अलावा ,मचली(वोमिटिंग या मतली ) ,चक्कर आना आदि लक्षण पैदा कर सकता है .हेप्टा -कोर यकृत को नुकसान पहुंचाने के अलावा बच्चे पैदा करने की क्षमता कम कर सकता है .
तमाम जांच सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में की गई जिनमे एन ए बी एल तथा अर्ब्रो एनालेटिक डिवीज़न भी शामिल रहीं हैं।
पता चला 'भिन्डी 'यानी लेडीज़ -फिंगरमें एक विषाक्त पेस्टी -साइड्स 'कप्तान '(सीएपीटीएएन )१५,००० पार्ट्स पर बिलियन मौजूद था .जबकि योरोपीय मानक २० पी पी बी ,ही है .फूल गोभी में मलाथियंन पेस्टी -साइड्स योरोपीय मानकों से १५० गुना ज्यादा पाया गया ।
आलू ,टमाटर ,स्नेक गौर्द (तोरई की एक किस्म ),घीया ,बंद -गोभी ,खीरा ,पम्पकिन (सीताफल ) आदि की जांच भी की गई .बात साफ़ है ,प्रतिबंधित पेस्टी -साइड्स के उत्पादन और आयात दोनों पर ही रोक लगनी चाहिए .न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी .
इससे पहले इसी संगठन ने इसी माह एक दर्जन फलों की जांच की थी जिनमे केला ,सेब (एपिल )अंगूर ,आदि में निर्धारित निरापद समझी जाने वाली मात्रा से कहीं ज्यादा पेस्टी -साइड्स पाया गया था .इनमे इंडो -सुप्ल्हन ,कप्तान ,थिअक्लोप्रिड ,परथिओं ,तथा डी डी टी के अवशेष भी मिले हैं .

'भारत को आज़ाद होने दीजिये 'अग्र लेख पर द्रुत टिपण्णी .

भारत को आज़ाद होने दीजिये /ज़िन्दगी नामा ,एन बी टी /सन्डे नवभारत टाइम्स, ३१ अक्टूबर ,२०१० ,में संजय खाती.
। हम अपने तमाम ब्लोगार्थियों से निवेदन करेंगे ,संजय खाती साहिब का यह अग्र लेख ज़रूर पढ़ें और अपनी प्रति -क्रिया ज़रूर देवें ।
बहरसूरत हमें सिर्फ यह कहना है -'चुके हुए लोगों से बदतर हैं वह लोग जो बिक चुकें हैं .भारत को मंदमति बालक से उतना ख़तरा नहीं है जितना विकृत मति से है ।
चीन के कसीदे काढ़े हैं खाती ने इस लेख में .उत्तरी सड़क मार्ग को खोलने की दुहाई देकर वह क्या सिद्ध करना चाहतें हैं .भारत की सीमाएं एक बार १९४७ -४८ में खोली गईं थीं ,कबीलाई और इर्रेग्युलार्स घुस आये थे ।

'भारत को आज़ाद होने दीजिये '
किसने कैद कर रखा है भारत को ?खाती पहले अपने घर के दरवाज़े खोलें .अर्थ -व्यवस्था का ढोल मनमोहन और आहलुवालिया क्या कम पीट रहें हैं .संजय लेफ्टियों ,रक्त -रंगियों सा सुलूक कर रहें हैं एन बी टी के पाठकों के साथ .

शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

अन्तरिक्ष में तैरते कचरे से बचालिया गया अंतर -राष्ट्रीय -अन्तरिक्ष स्टेशन को

एवोहिडिंग डेमेज /स्पेस स्टेशन टू शिफ्ट ऑर्बिट टू डोज फ़्लाइंग जंक (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २७ ,२०१० )।
रशिया की स्पेस कमान ने उस अंतर -राष्ट्रीय -अन्तरिक्ष स्टेशन को अन्तरिक्ष में तैरते कचरे से बचा लिया है जिसमे तीन रुसी तथा तीन अमरीकी अन्तरिक्ष यात्री सवार थे तथा जिसे १६ राष्ट्रों के आर्थिक सहयोग से अन्तरिक्ष में भेजा गया था हंड्रेड बिलियन डॉलर प्रोजेक्ट के रूप में .यह कचरा भी इसी ऑर्बिट में तैर रहा था आवारा और एक बड़ी दुर्घटना की वजह बन सकता था .इसीलिए कमान ने १०.२५ ग्रीन विच मीन टाइम पर रोकेट्स दागने का आदेश देकर इसस्टेशन को कक्षा बदलने का कमान ज़ारी किया .इसे ७०० मीटर दूर खिसका दिया गया .ताकि कचरा जिसकी शिनाख्त भी नहीं हो सकी थी १.५ किलोमीटर दूरी से गुज़र जाए .यदि ऐसा न होता तो इस अनचीन्हें पिंड से स्टेशन की भयानक टक्कर हो जाती .
आप जानतें हैं हज़ारों -हज़ार छोटे बड़े पिंड आज उपग्रहों की तमाम कशाओं में आवारा घूम रहें हैं ,इनपर २४/७ नजर रखनी पडती है .

युवा दिखने के लिए ...

फोरगेट प्लास्टिक सर्जरी ,इंस्टेंट आई -लिफ्ट टू रेस्टोर यूथफुल लुक (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २७ ,२०१० )
क्या है इंस्टेंट आई -लिफ्ट ?
यह एक अढ़ेसिव (गोंद की तरह चिपकने ,चस्पा हो सकने वाली ) स्ट्रिप है .जिसे आई सीक्रेट्स कम्पनी की एक टीम ने तैयार किया है .यह पलकों के ऊपर चढ़ती अतिरिक्त चमड़ी को उदासीन बनाकर आँख को एक बार फिर से जवान बना देती है ।
एक महीने का खर्चा है इस स्ट्रिप का मात्र ३० पोंड ।
दी आई सिक्रेट स्ट्रिप वर्क्स बाई जेंटली पुशिंग दी आई -लिड एंड हुड ऑफ़ एक्सेस स्किन एबव दी आई टू दी बेक ऑफ़ दी आई सोकिट ,दस गिविंग दी आई दी एपियीरियेंस ऑफ़ फुल्ली ओपन एंड सपोर्तिद .बारह घंटे तक आँख की यही रंगत (नूर )बरकरार रखती है यह स्ट्रिप .
जो लोग थके मांदे दिखतें हैं या पलकों के ऊपर उग आई अतिरिक्त त्वचा (स्किन )से आजिज़ आ चुकें हैं ,यह स्ट्रिप अतिरिक्त खाल को न्युत्रेलाइज़ कर देती है .बराबर कर देती है ,उदासीन बना देती है ,और आँख एक बार फिर अपनी कुदरती यूथफुल लुक इख्तियार कर लेती है ।
स्तेमाल के बाद इसे आई मेक अप रिमूवर से आसानी से उतारा जा सकता है ।
व्हेन पोज़ीशंड करेक्त्ली ,इट एड्स सपोर्ट टू दी ड्रुपिंग आई -लिड -स्किन ,एंड रिवील्स मोर ऑफ़ दी आई लिड ।
अंकों को कहा जाता है :विंडो टू दी सोल .दिल की जुबां भी कहा गया है आँखों को .आँखें ही तो दीवाना बना देतीं हैं आदमी को .

बेटरी ऐसी जो साल्ट -शेकर में से निकल जाए ....

अमरीकी साइंसदान दुनिया भर की अबतक की लघुत्तम बेटरी बना लेने के बहुत नज़दीक पहुँच गए हैं .यह बेटरी साल्ट -शेकर में से गुज़र जायेगी .नै पीढ़ी की यह लीथियम -आयन बेटरी केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ,लासेंजिलीज़ के रिसर्चर तैयार कर रहें हैं .इसका स्तेमाल टाइनी माइक्रो (किसी भी माप का दस लाखवां भाग )तथा नेनो स्केल (किसी भी माप का अरबवां हिस्सा )इलेक्त्रोनी तथा यांत्रिक दिवाइसिज़ को ऊर्जित करने (पावर देने ,चार्ज करने में )किया जा सकेगा .बालू कण सी महीन यह बेटरी जिसे अगली पीढ़ी की बेटरी कहा जा रहा है ,किस विध रची -गढ़ी जा रही है ।?
टू रीच दिस गोल जेन चेंग एंड कुलीग्स आर कोटिंग वेळ -आर्डरड माइक्रो -पिलर्स आर नेनो -वायर्स -फेब्रिकेटिद टू मेक्सिमाइज़ दी सर्फेस टू वोल्यूम रेशियो ,एंड दस दी पुटेंशियल एनर्जी डेंसिटी -विद इलेक्ट्रो -लाईट ,दी कंदक्तिव मेटीरियल देत एलाउज़ करेंट टू फ्लो .

आई ट्रेकर कार आपको झपकी नहीं लेने देगी ड्राइविंग के दौरान ...

साइंसदानों ने एक ऐसी आई -ट्रेकिंग कार तैयार कर ली है जो उनींदा होते ड्राइवर को चौकन्ना (सचेत )कर देगी .इसे तैयार किया है जर्मनी के फ्रान्होफर इंस्टिट्यूट फॉर मीडिया टेक्नोलोजी ,इल्मेनाऊ ने .सेन्सर्स इसके अन्दर ही समाहित किये गये हैं (बिल्ट इन सेन्सर्स से लैस है ये कार ).ड्राइवर की आई -लिड (पलक झपकते ) बंद होते ही यह एक अलार्म बजा देगी .इसीलिए इसे आई -ट्रेकर कहा जा रहा है .इसकी कीमत भी ऐसी ही दिवाईसिज़ के दसवें हिस्से के बराबर रखी गई है .परम्परा गत प्रणालियों में हर आदमी की, जिसकी लाइन ऑफ़ विज़न दर्ज़ की जाती है को काफी तैयारी करनी पडती है .समय लगता है इसमें .हर चेहरा ,दो जोड़ी आँखे ,सिर सबका अलग अलग होता है ।
यह तो एक छोटा सा मोड्यूलर सिस्टम है जिसका अपना हार्ड -वेयर ,प्रोग्रेम्स हैं ऑन बोर्ड .लाइन ऑफ़ विज़न इसमें ड्राइवर की आपसे आप कम्प्युट होकर कैमरे में दर्ज़ हो जाती है .
आई ट्रेकर में कमसे कम दो कैमरे रहतें हैं जो छवियों को स्टीरियो -स्कोपिकाली दर्ज़ करते चलतें हैं .आँख की पुतली और लाइन ऑफ़ विज़न का पूरा -पूरा हिसाब ,अवस्थिति स्पेस में मालूम रहती है .यानी डेफ्थ का भी बोध रहता है .यह सारी सूचना एक मानक इंटर -फेस के ज़रिये संदर्भित डिवाइस तक पहुंचा दी जाती है .इस डिवाइस को सीधे -सीधे कार के 'ट्रिप -कंप्यूटर 'से जोड़ दिया जाता है .यहडिवाइस जो कैमरा साथ लिए रहती है वह एक सेकिंड में २०० इमेज़िज़ दर्ज़ करता चलता है .बस ड्राइवर दायें देखे या बाएं या सामने हर सूरत उसका लान ऑफ़ विज़न कैद होता चलता है कैमरे में झपकी लगी घंटी बजी ,दुर्घटना टली.
अब

पानी और विस्फोटक तरल (Explosives)का फर्क बतलाने वाली X -ray -mashinen.

Now ,एअरपोर्ट स्केनर्स कैन रिवील व्हाट इज इनसाइड बोटिल्स .(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २६ ,२०१० )।
अब उड़ान के दरमियान आप अपनी ड्रिंक्स साथ ले जा सकेंगें .साइंसदानों ने एक ऐसी एक्स -रे मशीन ईज़ाद करली है जो पेय -पदार्थों तथा विस्फोटक तरल -पदार्थों के बीच विभेद कर सकती है .इंग्लैंड की डरहम यूनिवर्सिटी के साइंसदानों ने एक ऐसा स्केनर तैयार कर लिया है जो पानी और विस्फोटक तरल -पदार्थों में अंतर कर सकता है .इतना ही नहीं यह डिवाइस बार -कोड की भी शिनाख्त कर पता लगा सकती है ,इसके साथ कोई छेड़ -छाड़ तो नहीं की गई है .इस मशीन को योरोपीय यूनियन की मंजूरी मिल चुकी है तथा इसका स्तेमाल हवाई -अड्डों पर किया जा सकेगा .अप्रेल २०११ में यह हवाई -अड्डों पर दिखलाईभी देने लगेगी ।
२००६ में हेंड -लगेज में किसी भी प्रकार का तरल ले जाने पर प्रति -बंध लग गया था .इसी साल तरल के रूप में विस्फोटक पदार्थ पकड़ा गया था ।
बेहद संवेदी है यह एक्स -रे मशीन जो इस लघुतर तरंग की अलग अलग लम्बाई (वेवलेंग्थ )में फर्क कर सकती है .जहां परम्परा गत मशीन ब्लेक एंड वाईट में दिखलाती है किसी वस्तु को यह उसकी रंगीन छवि (अलग अलग वेवलेंग्थ )प्रस्तुत करती है .वेव -लेंग्थ का मतलब रंग ही होता है .लम्बी लाल छोटी नीली होती है .बार -कोड को बाखूबी बांचती है यह मशीन .टेम्परिंग इसकी तेज़ निगाह से बच नहीं सकती .

वे टू सेफ मदरहुड .(सुरक्षित मातृत्व के लिए ).

वे टू सेफ मदरहुड ।
भारत में हर साल ७०,००० महिलायें प्रसव के दौरान मर जाती हैं .इनमे से ७०%को बचाया जा सकता है ,बा -शर्ते ये महिलाए स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच में आ जाएँ .स्वास्थ्य सेवायें इनके घर -दुआरे आ जाएँ .प्रसव -पूर्व नियमित जांच की सुविधा इन्हें मयस्सर हो .फोलिक एसिड और आयरन की गोलियां गर्भ -काल में मिलती रहें ।
जोर्डन की राजकुमारी तथा सुरक्षित मातृत्व की पैरोकार सारा (सरह )ज़इड का यही कहना है ।
बेशक 'वाईट रिबन एलाएंस' तथा' संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष' ,कई अन्य भारत में सुरक्षित मातृत्व को पुख्ता करने की दिशा में कार्य -रत हैं ।
गत सितम्बर मॉस में ही इस सांझा फोरम ने एक डोक्यु -मेन -टरी दिल्ली वासियों को 'स्टोरीज़ ऑफ़ मदर्स सेव्ड 'दिखलाने की पहल है .इस दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है .स्त्री -सशक्ति -करण की दुहाई देने वाली सरकार इस दिशा में पहल करे तो बात बने .

क्या है डीप वैन थ्रोम -योसिस यानी 'डी वी टी '?

लम्बी दूरी की थकाऊ उड़ान की कीमत अकसर टांगों और हमारी जंघाओं को चुकानी पडती है .लम्बी दूरी उड़ान के दौरान काल्फ़ जैसी डीप वैन्स(निचली शिराओं में )खून का थक्का बनने लगता है .साथ में बेहद का दर्द और सोजिश (इन्फ्लेमेशन )बस यही है 'डीप वैन थ्रोम -योसिस'के लक्षण .
डी वी टी का समाधान भी सीधा सरल है .हर एक घंटे के बाद प्लेन में एक सिरे से दूसरे तक मटरगश्ती कीजिये .टांग लटकाए बैठे मत रहिये .खूब पानी पीजिये (हाई -डरै -टिड रखिये शरीर को .).हो सके तो पैरों को एलीवेटिड रखिये कैसे भी ।
आजकल फ्लाईट के दौरान पहने जाने वाले विशेष मौजे (शोक्स )भी उपलब्ध हैं ।

'स्चोल्ल ,स फ्लाईट शोक्स 'ख़ास ग्रेज्युएतिद कम्प्रेशन होजरी से तैयार किये गए हैं .ये रक्त प्रवाह को टांगों की और मोड़ कर दिल तक ले जातें हैं .इस एवज लेग्स पर दवाब (प्रेशर )डालते हैं ये शोक्स (मोर एट दी एन्किल दें एट दी नी टू फेसिलिटेट अप्वर्ड्स स्क्वीज़िंग )दस रिद्युसिंग दी रिस्क ऑफ़ डी वी टी .

शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010

इस दुनिया से ऊबे और उकताए लोग ,क्या करतें हैं खाए -पीये -अघाए लोग .

नासा मुल्लिंग वन -वे मेनिड मार्स -मिशन (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २९ ,२०१० )।
यह खबर आपको होलीवुड की किसी विज्ञान -गल्प पर आधारित फिल्म सी लग सकती है .लेकिन नासा गभीरता से चंद अन्तरिक्ष -यात्रियों को हमेशा -हमेशा के लिए मंगल -ग्रह पर जाने के लिए उकसा रहा है .यकीन मानिए यदि ऐसा हो गया और इन यात्रियों के साथ कुछ ऐसा -वैसा हो गया तो किसी कोर्ट -कचेहरी में नासा के खिलाफ कोई मुकदमा भी नहीं ठोक सकेगा ।
दरअसल इस ग्रह (पृथ्वी )पर जीवन के अनुकूल व्यवस्था को ,प्राकृतिक तत्वों को अपने आपको कायनात का नियंता समझने मानने वाले इतना रौंद चुकें हैं ,अब इन तत्वों की तात्विकता ही विनष्ट हो चुकी है .लेकिन इनके धत कर्म रुकने का नाम नहीं ले रहें हैं .पृथ्वी के संशाधनों को लूट -खसोटने के बाद अब इनकी गिद्ध दृष्टि मंगल पर आ टिकी है ॥
इस दुनिया से ऊबे और उकताए एक और जीवन जीने को आतुर अति -महत्वकांक्षी लोग इसके लिए तैयार भी हो जायेंगें .उन्हें लगता है एक और जीवन उनकी बाट जोह रहा है ।
हंड्रेड ईयर्स स्टार -शिप प्रोजेक्ट के तहत इस पर काम भी शुरू हो चुका है . रिसर्च टीम को जो तमाम संभावनाओं को तौल रही है नासा से एक लाख डॉलर की अतिरिक्त अनुदान राशि भी मिल चुकी है .बकौल पीट वारडन,डायरेक्टर एमिस रिसर्च सेंटर दस लाख पोंड की अनुदान राशि पहले ही मिल चुकी है .शेष भरपाई 'खाए -पीये -अघाए 'लोग कर देंगें . ये सीमाओं का अति -क्रमण कर संभावनाओं में जीने वाले लोग हैं .इन्हें मालूम होगा इन्हें भेजने का जिम्मा भर अमरीका की अन्तरिक्ष संस्था नासा का होगा .देर -सबेर इन्हें अपने पैरों पर ही खडा होना होगा .पृथ्वी से रसद नहीं भेजी जायेगी ।
इन्हें मंगल को अपना उपनिवेश बना लेने की ताकमें रहना होगा २४/७ .हर -पल -छिन।
ये नए सिकंदर होंगे इस दौर के .इन्होने ने मंगल का अमंगल अभी तक महसूस नहीं किया .यथार्थ की टक्कर जब सपनो से होती है तो सपनों के निशाँ भी नहीं रहते .फिर भी ऐसे संभावित मंगल यात्रियों के प्रति हमारी शुभ -कामनाएं हैं .

ब्रेन -अटेक ,एक विहंगम दृष्टि .

भारत में तकरीबन दस लाख मामले ब्रेन -अटेक के सामने आतें हैं जिनमे से १०२,००० चल बसतें हैं .दुर्भाग्य यह भी है 'स्ट्रोक '(मस्तिष्क आघात या सेरीब्रल -वैस्क्युलर -एक्सिडेन्ट्स ) के लगभग उतने ही मामले सामने आतें हैं जितने की हार्ट अटेक (दिल के दौरे )के लेकिन अकसर इस के लक्षणों की शिनाख्त में आम जन से चूक हो जाती है और नतीजा जान लेवा भी सिद्ध हो सकता है ।
जबकि फिलवक्त एंटी -प्लेटलेट ट्रीट -मेंट्स के अलावा ,क्लोट बस्टर्स नए से नए (थक्का घोलने वाली दवाएं ),इंट्रा -आर्टीरियल 'आर टी पी ए इन्जेक्संस 'थक्के के स्थान पर लगा दिए जाते हैं .'पेनुम्ब्रा 'जैसी यांत्रिक -प्राविधियाँ (मिकेनिकल डि -वाइसिज़) भी आ गईं हैं फिरभी रोग के बारे में जानकारी और इलाज़ के बारे में इत्तल्ला उतनी नहीं है .आइये पहले जाने क्या है 'स्ट्रोक 'या आघात (मस्तिस्क आघात )?
आम भाषा में इसे दिमागी दौरा या फिर ब्रेन -अटेक भी कह दिया जाता है .इसमें दिमाग को खून मुहैया करवाने वाली ब्लड वेसिल्स (नालियां ,रक्त -वाहिकाएं )अवरुद्ध हो जाती हैं .दिमाग तक खून नहीं पहुँच पाता है .नतीज़न दिमागी कोशायें ऑक्सीजन के अभाव में मरने लगतीं हैं (खून में ऑक्सीजन भी तो घुली रहती है ).
दिमाग के किस हिस्से में यह घटित हुआ है ,कितनी दिमागी कोशायें असर ग्रस्त हुईं हैं उसी के अनुरूप कुछ ख़ास काम जो शरीर सामान्यतया करता रहता है प्रभावित होतें हैं .मसलन बोल -चाल (संभाषण या स्पीच ),शरीर के अंगों का संचालन (मूवमेंट ,मोटर एक्शन ),याददाश्त आदि .सब कुछ इस पर निर्भर करता है दिमाग का दायाँ हिस्सा असर ग्रस्त हुआ है या बायाँ ।
क्या है इसके आम लक्षण ?
(१)अचेतन हो जाना यानी लोस ऑफ़ कोंशश- नेस (२)सुन्नी (नंब -नेस )एंड वीकनेस इन दी फेस ,आर्म आर लेग .(३)संभ्रम (गफलत या कन्फ्यूज़न )(४)बोलने और कुछ भी समझ पाने में परेशानी(५)बीनाई में दिक्कत ,प्रोब्लेम्स इन विज़न ,(६)घुमेर या चक्कर आना यानी डिज़ी -नेस (७)लोस ऑफ़ बेलेंस एंड कोर्डिनेशन ,डगमगाना ,संतुलन कायम न रख पाना .(८)सर -दर्द और वमन यानी उलटी आना ।
असर ग्रस्त व्यक्ति से हंसने को कहिये देखिये क्या चेहरे का एक हिस्सा ड्रुप करता है .मरीज़ को दोनों बाजू रेज़ करने को कहिये .क्या एक बाजू नीचे को झुक जाता है .बार -बार एक ही वाक्य बुलवाइए मरीज़ से क्या वह साफ़ बोल पा रहा है या सिलेबिल्स अस्पष्ट हैं .स्पीच स्लर्द है .इनमे से किन्हीं भी सिम्पटम्स का मौजूद रहना होना न्युरोलोजिकल इमरजेंसी है आपद काल है ।
याद रखिये ,टाइम इज गोल्ड ,एक -एक पल कीमती है .तकरीबन दिमाग की १९ लाख कोशायें (न्युरोंस ,दिमाग की एकल कोशा को ही न्यूरोन कहतें हैं )स्ट्रोक के दौरान एक मिनिट में मर जाती हैं .चार से साढ़े चार घंटे का समय बेहद कीमती है जीवन और मृत्यु इसी के बीच तय हो जानी है ले देकर इसे ६ घंटे तक बढाया जा सकता है .आदर्श स्थिति तो यह है मरीज़ को स्ट्रोक के बाद पहले तीन घंटों में ही माहिरों की चिकित्सा मिल जाए .इसके बाद मरीज़ के जीवन की गुणवत्ता के साथ समझौता करना पड़ सकता है ,इलाज़ मिलने पर भी ।
भ्रस्ट जीवन शैली के चलते अब स्ट्रोक की औसत उम्र तेज़ी से घटरही है .लेट थर्तीज़ का छोडिये मैंने खुद एक स्ट्रोक के युवा विक्टिम (३० )की तामार्दारी की है .बारहा उसे न्यूरोलोजिस्ट के पास रिव्यू के लिए ले जाता रहा हूँ .६ माह हो चुके इलाज़ अभी भी ज़ारी है .महिलायें भी अब इसकी जद में आ रहीं हैं .

बुढापे को १२ साल आगे खिसका सकता है नियमित वातापेक्षी व्यायाम ...

"१२" (दी नंबर ऑफ़ ईयर्स बाई व्हिच रेग्युलर एक्सरसाइज़ कैन डिले एजिंग ).सोर्सअ :दी ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ स्पोर्ट्स मेडिसन ।
खेल -कूद चिकीत्सा से ताल्लुक रखने वाली एक पत्रिका (ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ स्पोर्ट्स मेडिसन )के मुताबिक़ रोजाना ऐसा व्यायाम करते रहने से जिसमे ऑक्सीजन की भरपूर खपत होती है हमारी अपनी जैविक घड़ी की सुइयों को रोका भी जा सकता है ।
इस एवज़ नियमित साइकिल भी चलाई जा सकती है ,जोगगिंग भी (तेज़ टहल कदमी )भी .बेहतरीन हृद -वाहिकीय (कार्डियो-वैस्क्युलर एक्सर -साइज़ )कसरत में शुमार किया जाता है दोनों को ही .दोनों ही किस्म की ये कसरतें पेशीय - ताकत के कम होने को लगाम देतीं हैं .अलावा इसके उम्र के साथ कम होजाने वाली ऑक्सीजन खपत को भी कम होने से रोकने में मददगार सिद्ध होतीं हैं यह एरोबिक -एक्सर -साइज़िज़।
बोनस के रूप में त्वचा की चमक को ,कुल मिलाकर नूर को बनाए रहती है नियमित वाता -पेक्षी कसरत .क्योंकि रक्त संचरण में सुधार के साथ -साथ चमड़ी तक ज्यादा ऑक्सीजन आपूर्ति होती रहती है इन कसरतों के चलते .

bas do बात baadaam के baare में ...

आम के आम गुठलियों के दाम .यकीन मानिए बादाम का छिलका बादाम से भी ज्यादा गुणकारी है .जहां बादाम प्रोटीन जैसे पोषक तत्वों से भरपूर है ,एकल असंत्रिप्त वसा का बेहतरीन स्रोत है ,वहीँ बादाम का छिलका खाद्य रेशों का प्रमुख स्रोत है .यह एंटी -ओक्सिदेंट्स से भी भरपूर है ,जो शरीर को 'ओक्सिदेशन ' से होने वाली नुकसानी से फ्री -रेडिकल्स से भी बचाए रहता है .और यह भी महज़ मिथ है ,बादाम खाने से वजन बढ़ता है .तथ्य इसके विपरीत है ,स्वाद कलिकाओं को तृप्त कर देता है बादाम का स्वाद .अनाप शनाप जंक फ़ूड खाने का ऐसे में अन्दर से दिल ही नहीं करता है और इससे वेट मेनेजमेंट में मदद ही मिलती है ।

एक मुठ्ठी बादाम रोज़ खाए जा सकतें हैं ,लेकिन मुठ्ठी भरते वक्त लालच मत कीजिये जितने आजायें ठीक .क्योंकि बादाम (केलिफोर्नियाई बादाम )में कोलेस्ट्रोल है ही नहीं ,संतृप्त वसाएं भी बहुत कम हैं .दिल के स्वास्थ्य के लिए ,हेल्दी कोलेस्ट्रोल लेविल बनाए रखना ज़रूरी है .और बादाम इसमें मदद -गार है ,यह एल डी एल कोलेस्ट्रोल के खून में स्तर को कम रखने तथा एच डी एल कोलेस्ट्रोल को बढाए रखने में सहायक हो सकता है .पहला दिल का दुश्मन दूसरा दोश्त है .

बहुत धीरे -धीरे ही बढ़ता है इसीलिए शिनाख्त हो भी सकती है अग्नाशय -कैंसर की .

पेन -क्रिए -टिक कैंसर ग्रोज़ स्लोली ,कैन बी डि -टेक -टिड अर्ली (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २९,२०१० )।
अग्नाशय का कैंसर बहुत धीरे -धीरे बढ़ता है इसीलिए इसे पनपने में सालों से लेकर दशकों तक का समय लग सकता है ,इस अन्वेषण से ही यह भी पता चला है जल्दी रोग -निदान के बाद जल्दी ही इस जान -लेवा बेहद के खतरनाक किस्म कैंसर से छुटकारा भी मिल सकता है ,पुख्ता इलाज़ हो सकता है समय से इसका ।फिलवक्त
इस खतरनाक किस्म के कैंसर से रोग निदान के पांच सालों के अन्दर ही इसके ९५ %पीड़ित मर जातें हैं .साइंसदानों ने इस किस्म के ट्यूमर की आनुवंशिक -पुरातात्विक पड़ताल की है .
बेशक यह ट्यूमर जंगल की आग की तरह तेज़ी से नहीं फैलता बढ़ता है लेकिन इसकी कछुवा चाल के चलते ही जब तक रोग -के लक्षण प्रकट होतें हैं बहुत नुक्सान हो चुका होता है ,रोग बेहद बढ़ चुका होता है .कई चरण पार कर आखिरी की ओर बढ़ चुका होता हाई .शुरूआती बीस सालों में ही इसकी पड़ताल हो जाए तो इसकी मार से आदमी बच जाए ।
जोहन्स होपकिंस यूनिवर्सिटी ,बाल्टीमोर के रिसर्चरों ने इस अध्ययन को आगे बढाया है .बकौल उनके इसी अवधि में इसकी पड़ताल भी हो सकती है .पड़ताल के बाद सर्जरी कारगर भी हो सकती है ,शर्तिया तौर पर ।
रिसर्चरों ने अपने अध्ययन के लिए मरीज़ की इस कैंसर से मौत होते ही टिश्यु सेम्पिल शव -परीक्षण के दौरान जुटाएं हैं .तीन ऐसे मरीजों से भी नमूने जुटाए गए जिनकी जान बचाने के लिए ट्यूमर को सर्जरी करके निकाल दिया गया था ।
ट्यूमर्स में होने वाले म्युटेसंस का स्तेमाल रिसर्चरों ने एक आणविक -घड़ी के रूप में किया .इससे ट्यूमर्स के विकासकी टोहलेने में मदद मिली है .वास्तव में डी एन ए में होने वाले उत्परिवर्तन एक ख़ास दर से होतें हैं इनका आकलन किया जा सकता है .साइंसदानों को पहले से ही यह खबर थी अग्नाशय कैंसर में कौन से उत्परिवर्तन संपन्न होतें हैं .विज्ञान पत्रिका (साप्ताहिक )'नेचर 'में इस स्टडी का पूरा ब्योरा छपा है .

अफ़्रीकी ,योरोपीय और एशियाई लोगों के जीनोम की तुलना के लिए नै तकनीकी विकसित की गई ...

योरोप ,एशिया जीनोम्स मेप्ड (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २९ ,२०१० )।
अमरीकी रिसर्चरों ने पहली मर्तबा एक ऐसी तकनीकी विकसित कर ली है जिससे योरोप ,एशिया और अफ़्रीकी महाद्वीप के लोगों की पूरी जींस सिक्युवेंसिंग (आनुवंशिक -क्रम) तथा जीवन -इकाइयों के पूरे खाके का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है .इस एवज इन महाद्वीपों के १७९लोगों के जीनोम्स की अति -शक्ति -शाली तेज़ी से काम करने वाले कम्प्यूटरों की मदद से न सिर्फ पड़ताल की गई ,गहन विश्लेसन से आवर्ती डी एन ए क्रम (रेप्तितिव डी एन ए सिक्युवेंसिज़ )का भी पता लगाया गया .इससे इन महाद्वीप के रहने वालों में आनुवंशिक विविधता (जेनेटिक -वेरिएशंस )का भी पता चलसकता है .बहुत काम का सिद्ध हो सकता है यह अन्वेषण ।
अति -सूक्ष्म जीन -वैविध्य मानव -जाति की बहु -रंगी विविधता की पड़ताल का मौक़ा दे सकता है .मानवीय विकास और दिमाग के उत्तरोत्तर विकास की खबर भी ले सकता है .

सैंकड़ों दोषपूर्ण जींस लिए बैठें हैं हम लोग .

'वी हेव हंड्रेड्स ऑफ़ फ्लाड जींस '(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २९ ,२०१० )।
एक अध्ययन के मुताबिक़ हम मनुष्यों में कोई सौ जींस ऐसे हैं जो डाय -बिटीज़ और कैंसर जैसी बीमारियों की वजह बनतेंहैं .अलावा इसके तकरीबन ३०० ऐसे दोषपूर्ण जींस भी होतें हैं जो एक दम से नाकारा होतें हैं (काम नहीं करते जरा भी ,नॉन -फंक्शनल बने रहतें हैं )।
अंतर -राष्ट्रीय साइंसदानों की एक टीम ने '१००० जीनोम्स प्रोजेक्ट 'के तहत व्यक्ति और व्यक्ति के बीच बहुत सूक्ष्म आनुवंशिक अंतर की पड़ताल गहन अध्ययन विश्लेसन के बाद की है .

सस्ते नजर के चश्मों से बचिए.....

चीप रीडिंग ग्लासिज़ मे डेमेज आई -साईट (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २९ ,२०१० )।
एक नए अध्ययन के अनुसार पैसे बचाने के चक्कर में सस्ते नजर के चश्मे खरीदना दीर्घावधि मे आपकी नजर को (बीनाई और आँख )दोनों को नुकसान पहुंचा सकता है ।
बेशक तथाकथित 'रेडी रीडर्स 'हाई -स्ट्रीट' शोप्स से सिर्फ एक पोंड खर्च करके आप खरीद लेते हैं लेकिन इसी के साथ आप सिरदर्द ,आई -स्ट्रेंन ,ब्लर्ड-विज़न भी खरीद लेते हैं .धुंधला दिखलाई देना शुरू हो सकता है आपको ।
प्रोडक्ट टेस्टिंग चेरिटी संस्था 'व्हिच ' ने यही नतीजे निकाले हैं .उपभोक्ता की खबरदारी के लिए इनका नोटिस लेना कितना ज़रूरी है इसे अलग से बताने की ज़रुरत नहीं है ।
तकरीबन दस बरस पहले बाज़ार पर एक दम से छा गए थे ये नजर के चश्मे (रीडिंग ग्लासिज़ ).तब इन्हें नजर को बचाने वाला एक सहज सुलभ उपाय समझा गया था .मुश्किलात से निकालने वाला भी ।
लाखों लाख लोग आज भी इन नजर के चश्मों को खरीदे जा रहे हैं .भारतीय बाज़ारों में भी एक मर्तबा ये चीनी चश्मे छा गए थे जिन्हें मात्र १०० -१२५ रुपया खर्च करके आज भी खरीदा जा सकता है ।
विदेशों में इनकी कीमत १०० पोंड्स तक या उससे भी ज्यादा पडती है .यहाँ तोभारत में ऑप्टो -मीत्रिस्ट रिफ्रेक्सन (बीनाई की जांच )भी निश्शुल्क कर देता है .विदेशों में यह सब कुछ बहुत महंगा है ।
ऊपर से चश्मे खो जाना ,टूट जाना एक आम बात है ।
डेली मेल के अनुसार सात हाई -स्ट्रीट चैन से उठाए गए १४ जोड़ी नजर के चश्मों की पड़ताल के बाद इनमे से सात को कोई न कोई परेशानी खडा करने वाला पाया गया .समस्या लिए हुए थे ये रीडिंग- ग्लासिज़ .

गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

स्वाद अभिग्राही लंग्स में भी होतें हैं ,दमे का समाधान इन्हीं में छिपा है ....

टेस्ट रिसेप्टर्स इन लंग्स होल्ड्स की तू एस्मा (अस्थमा )क्युओर ?(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २५ ,२०१० )।
अमरीकी साइंसदानों ने स्वाद -अभिग्राहियों के हमारे फेफड़ों में भी मौजूद होने की इत्तल्ला दी है .जैसी स्वाद कलिकाएँ ,स्वाद -अभिग्राही हमारी ज़बान में होतीं हैं लंग्स में उनकी शिनाख्त होना दमे के इलाज़ को नए आयाम दे सकता है .ये अभिग्राही एयर -वेज़ के फैलाव और सिक्डाव(कोंट्रेक्सन और रिलेकसेसन )का विनियमन कर सकतें हैं ।
मेरिलैंड विश्विद्यालय के रिसर्चरों के मुताबिक़ दमा के मरीजों में यही स्मूथ मसल एयर -वेज़ या तो बेहद टाईट हो जातें हैं या फिर सिकुड़ जातें हैं .नतीजा होता है ,सांस में रुकावट ,साँय-साँय की आवाज़ (व्हीज़िंग एंड शोर्ट- ब्रीदिंग )।
ब्रोंकस को समझना होगा आगे बढ़ने से पहले .एनी वन ऑफ़ दी सिस्टम ऑफ़ ट्यूब्स व्हिच मेक अप दी मेनब्रान्चिज़ ऑफ़ दी विंड -पाइप थ्रू व्हिच एयर पासिज़ इन एंड आउट ऑफ़ दी लंग्स इस काल्ड ब्रोंकस .इसी के स्मूथ मसल्स पर कार्य -शील टेस्ट रिसेप्टर्स का मिलना एक बड़ी खबर है .ये अभी ग्राही बिलकुल स्वाद अभिग्राहियों (टेस्ट रिसेप्टर्स ऑन टंग से ही हैं ).फर्क सिर्फ इतना सा है ज़बान के अभि -ग्राहीस्वाद कलिकाओं (टेस्ट बड्स )में संग्रहित रहतें हैं , जो दिमाग को स्वाद की खबर देतें हैं ,लेकिन लंग्स में मौजूद अभिग्राही बड्स में जमा नहीं होतें हैं ,न ही दिमाग को सन्देश भेजतें हैं .अलबत्ता यह उन चीज़ों के प्रति (उन पदार्थों के प्रति )प्रतिकिरिया करतें हैं जो तीखे होतें हैं स्वाद और गंध में .बस यही यौगिक एयर -वेज़ को खोल देतें हैं .एस्मा के मरीज़ में यही एयर -वेज़ ही तो अवरुद्ध हो जातें हैं .

कैसी आज़ादी चाहिए इन्हें ?

डेमोक्रेसीज़ वे .दी नीद टू प्रोटेक्ट फ्री स्पीच (दूसरा सम्पादकीय ,टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २८ अंक ),हाल्फ स्टोरीज़, हाल्फ ट्रू-थस.दी मासिज़ नीड टू नो एनादर कश्मीर नारेटिव हेक्लार्स ,मूव एसाइड(आलेख ,हिन्दुस्तान टाइम्स ,अक्टूबर २८ ,२०१० )।
उक्त सम्पादकीय तथा आलेख की अनुगूंज हमारे दिलो -दिमाग पर अभी बाकी है .इसी को आपके साथ सांझा कर रहा हूँ ?
आज़ादी की (अभि- व्यक्ति की आज़ादी तो सबको मिली ही हुई है ) मांग इनदिनों रक्त रंगी बराबर कर रहें हैं .पूछा जा सकता है -कैसी आजादी चाहिए इन्हें ?
'छत्तीस सिंघपुरा में सिखों को कतार में खड़ा करके ज़िबह करने की आज़ादी या हिन्दुओं को घाटी से बेदखल करने की आज़ादी जिसका पहले ही भरपूर उपयोग हो चुका है ।
मज़हबी कट्टरता (मध्य -कालीन )क्या आज़ादी है ?भारत सरकार क्या हाथ पे हाथ धरे बैठी रहे ?प्रधान मंत्री देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलामानों का बतलाते रहें .ऑस्ट्रेलिया में पकडे गए एक डॉ .की गिरफ्तारी पर जिसपर आतंकी होने का शक था ,रात भर बे -चैनी में करवटें बदालतें रहें ?।
इसके बावजूद भारत सरकार को चंद पत्रकार थिन-स्किंड कहते समझते रहें .यानी तौहीन आपकी होती रहे ,आपकी बे -सिर -पैर की आलोचना होती रहे ,आप खामोश रहें ।
पूछा यह भी जा सकता है -'क्या भारत सरकार को थिक -स्किंड होना चाहिए (गेंडे की खाल वाला )'?
हमारा यह भी मानना है जो कुछ कश्मीर में कहा जा रहा है वह वहां भी गलत है .किसने कह दिया ,वह सही है ?सम्पादकीय में यह कैसे मान लिया गया ,कश्मीर में कहा गया प्रलाप सही है .वह वहां भी गलत है ,दिल्ली में भी .कश्मीर सेमीनार ,कश्मीर विमर्श के नाम पर रक्त -रंगी कैसा फसाद करना चाहतें हैं ?
हिन्दुस्तान टाइम्स में अग्र- लेख लिखने वाले महाशय प्रदीप मैगज़ीन से पूछा जा सकता है .आपको वह जूता दिखलाई नहीं दिया जो जिलानी साहिब की ओर फैंका गया .सौभाग्य जूते का उन्हें लगा नहीं वरना जूता भी ना -पाक हो जाता ।आप कहना चाह रहें हैं,अरुंधती घाटी से बेदखल किये गए हिन्दुओं के हक़ हुकूक की बात कर रहीं थीं .
क्या मार्क्स- वाद की बौद्धिक गुलामी करना आज़ादी है ?अरुंधती ओर इतर रक्त -रंगी लेफ्टियों से पूछा जा सकता है .भारत को गाली देने से अब दूसरा बुकर नहीं मिलेगा .काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती है ।
सम्पादकीय लिखने वालों को हम बत्लादें हमारा राजनीतिक तंत्र बोदा नहीं है .हमने पहले भी मुकाबला किया है .खालिस्तान ,बोडो -लैंड ,गोरखा -लैंड जैसे आन्दोलनों की आग को बारहा हमने बुझाया है ।
आन्दोलन दक्षिण से भी उठते रहें हैं लेकिन द्रविण आन्दोलन के सूत्र धार हिन्दुस्तान की मुख्य धारा में एक स्थान चाहते थे,हिन्दुस्तान से अलगाव नहीं . .कश्मीर की लड़ाई धर्मांध लोगों की लड़ाई है .इससे उस तरह से नहीं निपटा जा सकता .हिन्दुओं को घाटी से निकलने वाली दृष्टि अलग है .क्या कश्मीर हिन्दुस्तान में नहीं है ?औरयदि है तो आज़ादी किसको किससे चाहिए ?

दिल -ओ -दिमाग पर बरपा हो जाता है प्यार का नशा ........

"लव इज किर्येतिद एट फस्ट साईट "लेकिन प्रेम पलता पनपता कहाँ हैं दिल में या दिमाग में या दिल -ओ -दिमाग दोनों पे बरपा होता है ?साइंसदानों के मुताबिक़ एक प्रोटीन का अणु हैजो प्रथम दर्शन के प्रेम को परवान चढ़ाता है और बस कोई गा उठता है ,'मिलते ही आँखें दिल हुआ दीवाना किसी का ,अफ़साना मेरा बन गया ,अफ़साना किसी का .'और यह भी चुप चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है पहली मुलाक़ात है, जी, पहली मुलाक़ात है '.इस प्रोटीन का नाम है 'नर्व ग्रोथ फेक्टर 'दिमागी कोशाओं (ब्रेन सेल्स ,यानी न्युरोंस ) को बनाये रखने में इस प्रोटीन का बड़ा हाथ होता है .
आखिर दो व्यक्तियों के बीच में केमिस्ट्री होती ही क्यों है ?क्या वजह बनती है इस सोसल केमिस्ट्री की यह राज विज्ञानियों ने आंज ही लिया है .फिर प्रेम और प्रेम के आवेग में अंतर होता है .किसी का प्रेम अथाह ,प्रगाढ़ होता है ,तो किसी का प्रेम होता भर है आवेग उतना नहीं रहता है .क्यों ?
सेक्स्युअल मेडिसन में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक़ दिमाग के अलग अलग हिस्से प्रेम की प्रगाढ़ता के अनुरूप सक्रीय होते हैं रोशन होते हैं एक्टिवेट होते हैं .रूमानी प्रेम में दिमाग के डोपा -मिनर -जिक -सब्कोर्तिकल तंत्र में प्रिय पात्र को देखते ही सक्रियता बढ़ जाती है ।
'दिल तुझे दिया था रखने को तूने दिल को जलाके रख दिया ,किस्मत ने देकर प्यार मुझे मेरा दिल तडफा के रख दिया ' के साथ अब दिमाग की भी चिंता कीजिये ।
'जब दिल ही टूट गया 'के आगे दिमाग की सोचिये .स्य्राचुसे विश्वविद्यालय के रिसर्चरों के मुताबिक़ प्रेम दिल और दिमाग दोनों से किया जाता है दोनों की भागेदारी होती है प्रेम में ।
साइंसदानों के मुताबिक़ जब आप अपने प्रियतम को देखते हैं तब एक साथ दिमाग के १२ हिस्से मिलके काम करने लगते हैं ।
'सत्य ही रहता नहीं यह ध्यान तुम कविता कुसुम या कामिनी हो 'दिल -ओ -दिमाग दोनों से रीझते हैं आप .एक सेकिंड के पांचवें हिस्से में हो जाता है प्यार (लव एत फस्ट साईट इसे ही कहा जाता है ).कोई प्रेम करने निकलता नहीं है प्रेम बस हो जाता है ।
डोपामिन ,ऑक्सीटोसिन,एड्रीनेलिन और वैसो -प्रेसिं का सैलाब होने लगता है "उन "का दीदार होते ही .प्रेमोन्माद ,प्रेमातिरेक ,आनंदानुभूति ,सुखानुभूति यही दिमागी रसायन करवाते हैं .इन्ही का सारा खेला है जिसे हम प्रेम कहतें हैं .दिमाग में ही उपजता है प्रेम ,बदनाम दिल होता है .

विनाश की कगार पर खडा है प्रजातियों का पांचवां हिस्सा ...

फिफ्थ ऑफ़ दी वर्ल्ड स्पीशीज फेसिंग एक्स -टिंक -सन :स्टडी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २८ ,२०१० ,नै दिल्ली संस्करण पृष्ठ २१ )।
एक नवीन रिसर्च ने चेताया है ,विश्व की कुल प्रजातियों का पांचवां हिस्सा विलुप्त -प्राय हो चुका है ।
साइंसदानों की अंतर -राष्ट्रीय बिरादरी ने एक भूमंडलीय खतरे की ओर इशारा करते हुए बतलाया है औसतन ५० प्रजातियाँ स्तनपाइयों ,पक्षियों ,रेप -टा -इल्स (रेंगने वाले जीवों की ),जल -थल चरों यानी उभयचरों की (एम्फीबियंस )हर साल विनाश के कगार पर पहुँच रही हैं ।
बेशक पर्बतीय गुरिल्ला की दुःख -गाथा ,दुर्दशा ,बंगाल टाइगर्स (बाघों ) की दास्ताने -दर्द के किस्से आम हो जातें हैं लेकिन इनके अलावा लाखों ऐसी प्रजातियाँ हैं जिनके सामने अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है ।जिनकी चर्चा भी नहीं होती .
रेड डाटा बुक में उन प्रजातियों को जगह मिलती है जिनके लुप्त प्राय होने का ख़तरा मौजूद है .इंटर्नेशनल यूनियन फॉर दी कंज़र्वेशन ऑफ़ नेचर ऐसी ही प्रजातियों के आंकडें जुटाती है .इन्हीं की पड़ताल से पता चला है ,दुनियाभर के २० फीसद रीड -धारी (कशेरुकी ,वर्टिब्रेट्स)प्राणियों ,२५ फीसद स्तनपाइयों (मेमल्स ),१३ फीसद पक्षियों तथा २२% रेप -टा-इल्स (सरी-सृपों ),४१ फीसद उभय -चरों के आगे आज अस्तित्व का विकत संकट पैदा हो चुका है .

बुधवार, 27 अक्टूबर 2010

डिमेंशिया के खतरे को दोहरा करती है स्मोकिंग .....

स्मोकिंग डबल्स दी रिस्क ऑफ़ डिमेंशिया .पफिंग टू पेक्स ए डे अप्स चान्सिज़ ऑफ़ अल्ज़ाइमर्स बाई १५७%(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २७ ,२०१० ,पृष्ठ २३ ,नै -दिल्ली संस्करण )।
जीवन सौपान के मध्यकाल (३५-४० )की उम्र में धूम्रपान की लत आइन्दा दो दशको में अल्ज़ाइमर्स तथा डिमेंशिया के खतरे का वजन दोगुना बढा सकती है .धूम्रपान से ग्रस्त लाखों लोग हर साल कैंसर तथा हृद रोगों की गिरिफ्त में आकर मर जातें हैं ।
उक्त निष्कर्ष निकालते हुए कैसर पेर्मनेंते ,ओक्लेंद (केलिफोर्निया )के साइंस दानों ने आर्काइव्स ऑफ़ इन्टरनल मेडिसन में लिखा है :सभी नस्लों में जीवन सौपान के बीचों -बीच धुआंदार ,बे -हिसाब धूम्रपान करने वाले औरत और मर्द अपने लिए अल्ज़ाऐमर्स और वेस्क्युलर डिमेंशिया का ख़तरा दोगुना बढा लेते हैं ।
रिसर्चरों के मुताबिक़ स्मोकिंग, कैंसर और हृद -रोगों की भी वजह बनती है .उम्र दराज़ होने पर यह जन जीवन को और भी ज्यादा असर ग्रस्त करती है जबकि अल्ज़ाइमर्स का ख़तरा वैसे ही बना रहता है .(बुढापे का ही तो रोग है .न्युरोलिजिकल डि -जेंरेतिव दीजीज़ अल्ज़ाइमर्स ।)
माहिरों की टीम ने एक हेल्थ प्लान के तहत जुटाए गये पचास और साठ के पेटे में आ चुके २११२३ लोगों से सम्बद्ध आंकड़ों का विश्लेषण किया है .२० सालो से भी ज्यादा अवधि तक इनके स्वास्थ्य पर नजर रखने से पता चला इनमे से २५ फीसद (५३६७ ) लोग किसी न किसी प्रकार के डिमेंशिया की चपेट में आ गए ,११३६ अल्ज़ाइमर्स की ।
बुढापे को नाकारा ,पर -आश्रित ,याददाश्त को ले उड़ने (शोर्ट टर्म मेमोरी ) वाला लाइलाज रोग अल्ज़ाइमर्स फिलवक्त दो करोड़ साठ लाख लोगों को अपनी लपेट में लिए हुए है ।
दिन भर में दो पेकिट्स से ज्यादा सिगरेट्स धुयें में उड़ाने वाले लोगों के लिए अल्ज़ाइमर्स और वैस्क्युलर डिमेंशिया का ख़तरा और भी ज्यादा बढ़ जाता है .ऐसा नहीं है ,इससे कम पीने वाले पाक -सेहत रह जाते हैं ।
दो पेकिट्स से ज्यादा रोज़ धुयें में उड़ाने वालों के लिए डिमेंशिया का ११४ % तथा अल्ज़ाऐमर्स का १५७ और वैस्क्युलर डिमेंशिया का ख़तरा १७२ फीसद बढ़ जाता है ।
दिमागी स्वास्थ्य को धूम्रपान कैसे असरग्रस्त करता है इसका अध्ययन इसलिए नहीं हो सका है बे-हिसाब धूम्रपान करने वाले हेवी स्मोकर्स दूसरी रोगात्मक वजहों से पहले ही मर जातें हैं .अलबत्ता दिमाग सिगरेट के प्रति संवेदी ज़रूर है ।
विश्व -स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ पचास लाख लोग हर साल सिगरेट से पैदा दिल की बीमारियों ,दिल का दौरा और आघात (सेरिब्रल -वैस्क्युलर एक्सिदेंट्ससे मर जाते हैं .

कुछ लोग नींद लेने के बाद भी थके मांदे बने रहतें हैं .क्यों ?

कुछ लोग पूरी नींद लेने के बाद भी थके -हारे दिखलाई देते हैं तो कुछ और चंद घंटों की नींद के बाद तरोताजा .आखिर क्या है राज इसका ?आनुवंशिक वजहें बतलाई जा रहीं हैं इसकी .दोष दिया जा रहा है चंद जीवन इकाइयों को जींस को .जिन्हें "स्लीपिनेस जींस "कहा जा रहा है ।
साइंसदानों ने एक ऐसी ही जीन का पता लगाया है जो आपके तरो -ताज़ा उठकर नए दिन के स्वागत में जुट जाने या दुबारा सो जाने की खबर देती है ।
साइंसदानों के मुताबिक़ इसी जीन की वजह से कुछ लोग लगातार दो दिन तक दस दस घंटा सोने के बाद भी कई लोग बेदम नजर आते हैं .किसी भी वजह से कम नींद ले पाने के बाद इनका और भी बुरा हाल होता है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-टायर्ड ?ब्लेम इट aअन "स्लीपिनेस "जीन :(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २७ ,२०१० )

अब गर्भ -निरोधी टिकिया की जगह जेल ...

कोंट्रा -सेप्टिवजेल टू टेक ओवर पिल :(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २७ ,२०१० )।
ओरल कोंट्रा -सेप्टिवपिल खाने से कई महिलाएं अवांछित पार्श्व -प्रभावों के भय से छिटकती रहीं हैं .उन्हीं के लिए अब तैयार किया गया है एक कोंट्रा -सेप्टिव जेल जिसे स्तेमाल के बाद आसानी से पौछा -साफ़ किया जा सकता है .ट्रायल्स के दौरान अब तक इसके कोई पार्श्व -प्रभाव भी सामने नहीं आये हैं ।(ज़ाहिर है जांघ की दराज़ यानी योनी के अन्दर ही इसे चुपड़ना है .).
यहाँ भी खेल सारा हारमोनों की एक सुनिश्चित मात्रा (हारमोंस डोज़ )का है .जो आसानी से त्वचा (चमड़ी )ज़ज्ब कर लेती है ।
न्यू -योर्क,स पोप्युलेशन कोंसिल रिसर्च सेंटर ने इस जेल के ट्रायल्स संपन्न किये हैं .इसे ९९ %कामयाब पाया गया है .

क्या बहाने बाज़ी करती हैं बिस्तर में कुछ औरतें या ....?

क्या है हाइपो -एक्टिव -सेक्स्युअल डिजायर डिस -ऑर्डर ?
बिस्तरमें सेक्स के प्रति अरुचि ,आनाकानी करना ज़रूरी नहीं है हमबिस्तर की उपेक्षा ही हो .यह हाइपो -एक्टिव -सेक्स्युअल -डिस -ऑर्डर भी हो सकता है ऐसा साइंसदानों का अभिमत है ।हो सकता है इस अरुचि के जैव -वैज्ञानिक कारण मौजूद हों ।
साइंसदानों के मुताबिक़ सेक्स में अरुचि दिखाने वाली(लो लिबिडो ) महिलाओं के दिमाग की कार्य-शैली सेक्स में बराबर की भागेदारी करने वाली (हेल्दी सेक्स -ड्राइव ,हाई -लिबिडो )महिलाओं से जुदा होती है ।
लो लिबिडो महिलाओं के दिमाग की कुछ कोशाओं (ब्रेन सेल्स ) तक यौन -पूर्व क्रीडा के संवेगात्मक क्षणों में भी पूरा रक्त नहीं पहुँच पाता है ।
आखिर पुरुष लिंगोथ्थान (इरेक्शन ) औरमहिला योनी का फैलाव शिश्न और योनी की तरफ पूरीऔर अतिरिक्त रक्ता -पूर्ती का ही तो नतीज़ा होता है ।
सेक्स लाईज़ इन दी ब्रेन -सेल्स ।
अपने निषकर्ष तक पहुँचने के लिए माहिरों ने लो -लिबिडो महिलाओं के दिमाग की तुलना नोर्मल सेक्स ड्राइव महिलाओं से की .लो -सेक्स -ड्राइव महिलाओं को "हाइपो -सेक्स्युअल -डिजायर डिस -ऑर्डर" से ग्रस्त पाया गया ।ये वो महिलायें थीं जिनके दिमाग की कुछ कोशिकाओं तक रागात्मक लम्हों में भी पूरा रक्त नहीं पहुच रहा था .
वायने स्टेट यूनिवर्सिटी (देत्रोइत ) के मिचेल दिअमोंद ने माहिरों की टीम की अगुवाई की .आपने उस समय तमाम महिलाओं के ब्रेन स्केन्स लिए जिस दरमियाँ इन्हें इरोटिक फिल्म्स दिखलाई गईं थीं .मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग की गई सभी प्रतियोगियों की ।
हाई -लिबिडो महिलाओं के दिमाग के कुछ खास हिस्सों तक रक्तापूर्ति शानदार तरीके से हुई ,लो -लिबिडो महिलाएं इस अतिरिक्त आपूर्ति से वंचित रहीं ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-व्हाई वोमेन फेक हेड -एक्स इन बेड (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २७ ,२०१० ,नै -दिल्ली संस्करण ,पृष्ठ २३ ).

थूकने की आज़ादी ....

इफ फ्रीडम फेल .व्हेन विल "आज़ादी "नो लोंगर बी ए टाबू वर्ड इन इंडिया ,स नेशनल वोकेबिलरी?
टाइम्स ऑफ़ इंडिया में जग सुरैया के उदगार पढ़े ।
दिल किया पूछा जाए समझा जाए आखिर "आज़ादी "के मायने क्या हैं ?
क्या लोगों को नंगा रहने की आज़ादी चाहिए ?हिन्दुस्तान में बोलने की आज़ादी है .थूकने की ज़हर उगलने की आज़ादी किसी को भी कैसे दी जा सकती है ।
एक वृत्तांत हमें याद आरहा है .एक आदमी डंडा घुमा रहा था .अधाधुंध बिना इधर उधर देखे .डंडा एक आदमी की नाक पर लगा .आदमी ने उसकी ठुकाईकर दी .तो ज़नाब जहाँ दूसरे आदमी की नाक है वहां se आपकी आज़ादी ख़त्म होती है ।दूसरे की भावना को आहत करना आज़ादी कैसे हो सकती है .
असहमतों की एक सरदार हैं अरुंधती रॉय .उन्हें थूकने का मौलिक अधिकार और आज़ादी चाहिए .भारत को गाली देने से विदेशी शक्तियां खुश होकर उन्हें पुरूस्कार दे देतीं हैं .यही राजनीति है पुरुस्कारों की ।
अरुंधती रॉय और गीलानी साहिब एक ही जुबान बोल रहें हैं .contrarian -इन -चीफ अरुंधती एक हाथ और आगे निकल गईं हैं .गीलानी साहिब पूर्ण आज़ादी चाहते हैं कश्मीर के लिए जबकि उन्हें कश्मीर से दिल्ली आकर थूकने की आज़ादी भारत सरकार ने दी हुई है .अरुंधती कहतीं हैं कश्मीर का कभी भारत में विलय हुआ ही नहीं था .कश्मीर को आज़ाद करो .ये लोग शब्दों के मिज़ाइल भारत की राजनीतिक काया पर लगातार दाग रहें हैं .गीलानियों के मुताबिक़ कश्मीर में गृह -युद्ध ज़ारी है .ये आई एस आई समर्थित पल्लवित और पोषित मोहरे और कैसी आज़ादी भारत से चाहतें हैं ?थूकने और नंगा होने की ।
जग सुरैया लिखतें हैं /लिखतीं हैं आज़ादी के विमर्श पर पाबंदी लगी तो आधा भारत अन्दर हो जाएगा .इनके तो नाम में ही संभ्रम है .कन्फ्यूज़न है . जुग हैं ये या जग .जग तो पानी पीने रखने के काम आता है .जग जगती को कहतें हैं .ऊपर से यह सुरैया भी हैं हमें नहीं पता तीन ज्ञात लिंगों में से इनका कौन सा है ?और कैसा विमर्श चाहिए इन्हें आज़ादी के ऊपर ?

मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010

Nature and Nurture both .ef

Researchers have found those men who are brought up in the company of more siblings as sisters are found to be less sexy .Even though their heterosexuality remains intact but they are less aggressive .Those brought up in the company of more brothers as siblings are more butch .They are more macho .The mannerisms ,body language ,their way of behaving and speaking ,the way they carry themselves in the society is docile .Even though every male carries a female (in terms of hormones )and a female a male within .The dominant character in a male is manlike and in a female feminine .Even though a male is an XY individual and a female an XX ,but a person is just not merely the sum of their jenes and or chromosomes .Nurture also plays a role even in shaping the behaviour of a person .
The ratio of male to female in a family influences sexual behaviour of a male .By corollary of a state .An skewed ratio creates problems .A case in point is Haryana where brides are alien to the state .
Reference material :Men raised with women less sexy :The Times of India ,october25 ,2010 .

नेचर और नर्चर का एक आयाम यह भी है ......

मेन रेज्ड विद वोमेन लेस सेक्सी :(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २५ ,२०१० )।

रिसर्चर्स ने पता लगाया है वह पुरुष जो ज्यादा बहिनों के बीच में बड़े होतें हैं ,कम सेक्सी पाए जाते हैं .अध्ययन के मुताबिक़ बहुत सारी बहिनों के बीच जिनकी परवरिश होती है उनमे बेशक उनका विषमलिंगी स्वभाव असरग्रस्त नहीं होता है लेकिन उनकी देहिक -भाषा ,स्वभावगत विलक्षण -ताएँ ,उठ -बैठ ,कुलमिलाकर आदतें मेनारिज्म उतनी पुर्षोचित नहीं रह जाती है ,स्तरें भाव(फेमिनिटी ) आजाता है .बरक्स उन मर्दों के जिनकी परवरिश पुरुष प्रभुत्व वाले माहौल में होती है .यानी नर्चर (परवरिश )स्वभाव और हाव -भाव ,आदतों को प्रभावित करती ही है .नेचर और नर्चर का विवाद पुराना है .दोनों के अपने अपने आयाम हैं .प्रकटीकरण हैं .आदमी सिर्फ अपने जीवन -खण्डों (जींस )का ज़मा जोड़ नहीं है .परवरिश और माहौल भी स्वभाव को ढालते हैं .मेनारिज्म को बदल देते हैं .यूं पुरुषों में इस्त्रें भाव और महिलाओं में पुरुषोचित गुण - धर्म भी होते ही हैंसवाल उनके प्रभुत्व का है .

सालमोनेला बेक्टीरिया बचाएगा कैंसर से ...

फ़ूड पोइजनिंग के लिए कुख्यात सालमोनेला जीवाणु का स्तेमाल आइन्दा कैंसर के माहिर कैंसर से बचाव में कर सकेंगें .ग्लासगो विश्वविद्यालय के माहिरों की एक टीम ने आश्वश्त किया है आइन्दा सालमोनेला जीवाणु की एक विशेष किस्म का टीके के रूप में स्तेमाल कैंसर मरीजों पर किया जा सकेगा .बाद इसके इन्हें एंटी -बायटिक दवाएं दी जायेंगी ताकि किसी भी अवशेषी जीवाणु का सफाया पूरी तरह किया जा सके ।
वास्तव में इस जीवाणु में एक ऐसी प्रोटीन का पता लगाया गया है जो कोशामे होने वाली एक प्रक्रिया को उलट देती है नतीज़न कोषाएं मरने लगतीं हैं .बस यही कारगरता कैंसर कोशाओं का खात्मा कर देगी .प्रोटीन की इसी खूबी का दोहन किया जाएगा .

हार्ट बाई पास की कामयाबी के लिए .....

स्कोर्पियन स्टिंग फॉर हार्ट बाई -पास (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २५ ,२०१० )
अकसर डबल या ट्रिपिल वेसिल डिजीज में बाई पास ग्राफ्टिंग की जाती है लेकिन ग्राफ्ट की गई धमनी दोबारा अवरुद्ध भी हो जाती है .इसकी वजह बनती हैं नै कोशायें जो ब्लड वेसिल्स में उग आतीं हैं .यही धमनी को अवरुद्ध कर ग्राफ्ट को नाकारा बना देती हैं ।
अब रिसर्चरों ने केन्द्रीय अमरीका में पाए जाने वाले एक बिछ्च्हू "बार्क -स्कोर्पियन " के डंक से "मर्गा-तोक्सिन "निकाली है जो ग्राफ्ट को कामयाब बनाने का आश्वाशन देती है .देर -सवेर इसका स्तेमाल बाई पास ग्राफ्ट लगवा चुके मरीजों पर किया जाएगा .

मर्दों के बरक्स औरतों के दीर्घजीवी होने का सच ....

सेल्स हेल्प वोमेन आउट- लिव मेन(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २६ ,२०१० )।
न्यू -कासल विश्वविद्यालय के ज़रा -विज्ञान के माहिर प्रोफ़ेसर टॉम किर्क्वूद के अनुसार औरतों की बनिस्पत मर्दों की "राम नाम सत्य है "जल्दी हो जाती है .मेन आर मोर दिस्पोज़ेबिल देन वोमेन .
भूमंडलीय स्तर पर औरतों की उत्तरजीविता (लोंजेविती )मर्दों से ज्यादा बनी हुई है तो इसके आनुवंशिक कारण मौजूद हैं ।
औरतों की कोशायें आनुवंशिक तौर पर ऐसा सोफ्ट वेयर लिए हैं जो जल्दी से इनका क्षय नहीं होने देता .मर्दों की कोशिकाएं को आनुवंशिक तौर पर इतना बढ़िया प्रोग्रेम जन्मना नहीं मिला है .यही वजह है औरतों की औसत आयु दुनिया भर में मर्दों से अपेक्षाकृत ज्यादा बनी हुई है .

गाली देने का पुरूस्कार ...

भारत भी अजीब मुल्क है यहाँ क़ानून का शासन राहुल के कजिन वरुण फ़िरोज़ गांधी पर तो लागू होताहै गिलानी और अरुंधती रॉय पर नहीं .कुछ लोग इस देश को "दारुल इस्लाम "बनाना चाहते हैं .घाटी में रहने वाले बमुश्किल ४-५ फीसद लोग ही इन अलगाववादियों के साथ हैं. उनकी रहनुमाई का दम भरने वाले कई गिलानी यहाँ आई एस आई की ताकत पर पल रहें हैं इन टुकड़ खोरों के साथ जम्मू कश्मीर लद्दाख क्षेत्र से न जम्मू और लद्दाख इनके साथ हैं न घाटी के गूज़र मुसलमान (बकरवाल )इनके साथ हैं .फिर भी भारत सरकार को यह लगातार खौफ के साए में रखतें हैं .सरकार तो आप जानतें हैं वोट की मारी है .क़ानून का शासन इन पर लागू करने का साहस खो चुकी है .भले दिल्ली पोलिस की लीगल सेल गीलानियों और अरुंधती रॉय के हालिया बयानों को देश द्रोह और लोगों को साफ़ -साफ़ भारत सरकार के खिलाफ बगावत करने वाला बतला रही है .लेकिन इस देश में तो पत्ता भी राजनीति से पूछ के हिलता है .आइये देखें किसने क्या कहा दिल्ली आकर ।
गिलानी साहिब फर्मातें हैं "हम पूर्ण आज़ादी चाहतें हैं .हमारा भारत से क्या वास्ता ।
अरुन्धाती रॉय कहतीं हैं ,कश्मीर भारत का हिस्सा कभी नहीं रहा .भारत को कश्मीर को आज़ाद कर देना चाहिए .
आइये दो बात बुकर और ऐसे ही अवार्डों पर भी हो जाए .इन पुरुस्कारों की अपनी एक राजनीति है .गाली दो हिन्दुस्तान को पुरूस्कार पाओ ।
गनीमत है एक प्रखर राष्ट्रवादी आरिफ मोहम्मद साहिब भी मुसलमान की हैसियत से इस ज़मावड़ेमें शामिल थे आमंत्रित .वो न तब चुके थे जब राजीवजी के नेत्रिर्त्व वाली केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को ठेंगा दिखाकर बुनियाद परस्त ,गैर -तरक्की -पसंद लोगों के आगे माथा टेका था .शाह्बानू को गुज़ारा भत्ता देने से महरूम रखवाया था .आपने गिलानी साहिब और इस देश के तमाम गीलानियों को आइना दिखलाते हुए क्या कहा -"गिलानी साहिब को आज़ादी मिली हुई है तभी कश्मीर से दिल्ली आये हैं आज़ादी से आज़ादी लेना गुलामी का वरण करना है .
भारत का आमजन इन हालातों से बहुत दुखी है .सरकार राष्ट्रवादी लोगों पर क़ानून का शासन लागू करती है .दुश्शासनों को आज़ादी है जो माँ -भारती का चीड हरण कर रहें हैं .वोट की मारी सरकार चुप है .जगमोहन होते तो क़ानून का शासन जम्मू कश्मीर लद्दाख क्षेत्र में चलता .फिलवक्त तो राज्य और केंद्र सरकार दोनों लीद कर रहीं हैं .उमर अब्दुल्ला तो बौखलाहट की हद तक पहुँच चुके हैं .अरुंधती की थूक चाट रहें हैं .यही भारत को गाली देने वाले सम्मानित होतें हैं .विदेशी सरज़मी से आने वाले पुरुस्कारों की यही हकीकत है ।
आई एस आई द्वारा भारत की राजनीतिक काया पर प्रत्यारोपित जेहादियों को समझना चाहिए .कश्मीर अब अलग इकाई के रूप में पनप नहीं सकता .टुकडा टुकडा आर्थिक रूप से तबाह हो चुके पाकिस्तान की राह पर उसे जाना है या आर्थिक रूप से विकसते भारत के साथ कदम ताल करना है .

सोमवार, 25 अक्टूबर 2010

पेड न्यूज़ की लीला .....(ज़ारी )

आखिर सशुल्क समाचार यानी पेड न्यूज़ का पूरा मतलब क्या है ?
इस आलेख में गलती से सशुल्क -समाचार की जगह सशुक्ल समाचार छप गया है .गलती के लिए मैं खेद व्यक्त करता हूँ ।
सशुल्क -समाचार विज्ञापन और सही खबर के बीच की एक नै विधा है "जानर"हैजो हमारे रहनुमाओं को बहुत रास आ रही है. पत्रकारिता के निगमिकृत होने का खमियाजा पब्लिक भुगत रही है .अब हालत यह है ,पैसा दो खबर छपवाओ .सशुल्क समाचार खबर के आवरण में एक प्रकार का विज्ञापन है .विज्ञापन को लेख यहाँ तक की सम्पादकीय के रूप मेप्रस्तुत करने का कौशल है ।
नहीं पूज्य कोई आलंबन ,फिर भी हैं इतने वन्दीजन ,
देखा अजब तमाशा यारों ,पूरा शहर धिं -ढोर -ची ,
शब्द ढोल के हुए मिरासी ,पूरा शहर धिं -ढोर -ची .

पेड न्यूज़ को सशुल्क समाचार पढ़ें ,सशुक्ल नहीं ...

क्या है पेड न्यूज़ यानी सशुल्क -समाचार में गलती से सशुक्ल छप गया है .शुद्ध रूप है -सशुल्क ।

इस दौर की हकीकत है ,सशुल्क समाचार जो सही खबर और विज्ञापन के बीच की कड़ी है .

एक ग्रह जिस पर दो बार सूर्यास्त होता है ....

स्टार वार -टाइप प्लेनेट विद डबल सनसेट फाउंड (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २५ ,२०१० ,नै -दिल्ली संस्करण ।)
खगोल विज्ञान के माहिरों ने एक विशाल ग्रह का पता लगाया है जिसके एक नहीं दो -दो पेरेंट स्टार्स हैं .दो सूरज हैं .दो पिता हैं .विज्ञान गल्प "स्टार वार्स -ए न्यू होप "पर आधारित होलीवुड फिल्म में "ततूइने " ऐसी ही कल्पना है ।
माहिरों की एक अंतर -राष्ट्रीय टीम ने इस विशाल गैसीय प्लेनेट की शिनाख्त की है .यह प्राइमरी स्टार एच आर ७१६२ के गिर्द परिक्रमा रत है .जो खुद बाइनरी -स्टार सिस्टम का एक सितारा है .जो लारा तारा -समूह (कोंस्टिलेसन)में ४९ प्रकाश वर्ष की दूरी पर है .जुडवा -सितारा निकाय (बाई -नरिस्टार सिस्टम के दोनों सितारे एक साँझा गुरुत्व केंद्र के गिर्द घूमते हैं ।)
एस्ट्रो -मीट्रि -प्रणाली से इस विशाल ग्रह की खोज की गई है .इसं पद्धति में सितारे पर देर तक रेडिओ -दूरबीने नजर टिकाये रहतीं हैं .कोई एक दिन के प्रेक्षण का नतीजा नाहिंन हैं यह खोज .लाइव साइंस ने इसकी पूरी रिपोर्ट प्रकाशित की है ।
यह अकेला ऐसा ग्रह नहीं है जिसका सम्बन्ध एक साथ दो -दो सितारों से है .ज़ाहिर है स्टार वार्स के "ततूइने "की तरह इस ग्रह पर भी एक दिन में दो बार सूर्यास्त होता है ।
इस ग्रह का ठीक - ठीक पता तब चला जब माहिरों ने इसमें आवधिक बदलाव दर्ज़ किये .पता चला एक और सूरज इसे बेतहाशा अपनी तरफ और खींच रहा है .जो जुड़वां निकाय का दूसरा सितारा है.

कांग्रेसी चिरकुट .......

अभी हाल ही में एक कोंग्रेसी प्रवक्ता ने राहुल बाबा की तुलना जय -प्रकाश नारायणजी से की हैं .पूर्व में लालूजी राजकुमार की तुलना गांधीजी से भी कर चुके हैं .वह लालूजी के अच्छे दिन थे .राहुल भारत -दौरे पर थे .लालूजी का आशय साफ़ था .राहुल बाबा आप लाठी और लंगोटी पहन कर भारत -यात्रा पर निकलिए,प्रधानमन्त्री ,मैं ,बनूंगा ।
मोहन प्रकाशजी क्या चाहते हैं हमें नहीं मालूम .बहर -सूरत इन तमाम चिरकुटों को निम्न पंक्तियाँ समर्पित हैं ।
कोंग्रेस में चहुँ और है संतों की भरमार ,
क्या दिल्ली क्या मुंबई -जयपुर ,
चमके कई हज़ार ।
नेता तो दो चार हैं ,एक है राजकुमार ,कोंग्रेस में चहुँ और है चमचों की भरमार ।
सहभावी :डॉ नन्द लाल मेहता वागीश .

जानिये क्या हैं "सशुक्ल समाचार "?

सशुक्ल समाचार यानी पेड़ न्यू -ज क्या हैं ?
यह विज्ञापन और सही खबर के बीच की विधा है जो नेताओं को बहुत रास आती है । यह खबर के आवरण में एक प्रकार का विज्ञापन है .अंग्रेजी में हम इसे " पैड न्यूज़ " कहतें हैं ।अखबार और पत्र पत्र-पत्रिकाओं ,इलेक्ट्रोनिक मीडिया में सशुल्क आलेख ,वार्ताएं भुगतान करने वाले के अनुकूल माहौल रच्तें हैं .सशुल्क समाचारों का फायदा उठाने वाले कुछ संस्थान भी हो सकतें हैं ,राजनीतिक दल भी .दरअसल यह सशुल्क समाचार छदम विज्ञापन ही होतें हैं ,पैसा दो और खबर छपवाओ ।आर्टिकिल का मुखौटा लिए होतें हैं यह आलेख आप चाहें तो इन्हें "एडवरतोरीअल " भी कह सकतें हैं . होते भी यह एडवर्टोरियल ही हैं .जनता -जनार्दन को बरगलाने गलत फीडबेक देते हैं यह तमाम आलेख और वार्ताएं .धोखा धडी है यह जनता के साथ रीडर्स और व्यूअर्स के साथ ।
इन आर्तिकिल्स की एवज विस्तृत मीडिया को किया गया भुगतान एक तरफ टेक्स -चोरी है ,दूसरी तरफ पार्टी -खर्चों में भी इन्हें शुमार नहीं किया जाता .मत -दाताओं के लिए यह घोर चिंता का विषय है .मीडिया खुद एक पार्टी विशेष का पक्षधर बन मत -दाताओं ,कर -दाताओं को प्रभावित करता है .सशुल्क समाचार और आलेखों की लीला अपरम्पार है .संसद में पूछे जाने वाले सवाल सशुल्क न्यू -ज का विकृत चेहरा प्रस्तुत करतें हैं . इसी स्थिति पर कटाक्ष करती कुछ पंक्तियाँ हैं मेरेमित्र और सहयोगी रहे डॉ नन्द लाल मेहता वागीश की -
नहीं पूज्य कोई आलंबन ,फिर भी इतने हैं वंदी -जन ,
देखा अजब तमाशा यारों ,पूरा शहर ढ- इन -ढोर- ची ,
शब्द ढोल के हुए मिरासी ,पूरा शहर dhin-ढोर -ची .

रविवार, 24 अक्टूबर 2010

आखिर मेमोरी बेक अप टेक्नोलोजी के निहितार्थ क्या हैं ?

इन दिनों माहिर मेमोरी बेक अप टेक्नोलजी पर कामकर रहें हैं .इन धुरंधरों में डॉक्टरेट की १७ बार मानद उपाधि हासिल कर चुके राय्मोंद कुर्ज्वेइल भी शामिल है .नेनो -रोबोट्स रक्त प्रवाह में शामिल करवा कर किसी की भी याददाशत और संवेदनाओं को दर्ज़ किया जा सकता है .याददाश्त -क्षय को थामाभी जा सकता है .यहाँ ख़तरा यह है संवेदनाओं की चोरी हो सकती है इन्हें कोई भी पढ़ सकता है .ब्रेन वाश भी कर सकता है .आखिर आदमी उस एहसास को भूलना चाहता है जिसने उसे तरसाया है .अच्छे अनुभव याद रह जातें हैं .भूलने की शिफत आदमी को ताकत देती है .दुःख दर्दों से आदमी मुक्त हो जाता है .फिर हर चीज़ छीजती है उम्र के साथ .फ़ालतू चीज़ों की खुद -बा -खुद छटनी होती चलती है ।आदमी सिर्फ याददाश्त नहीं है .याद रखना भूलना आदमियत है .भूलने से आदमी बिखरता नहीं है ,मुक्त होता है दर्दीले अनुभवों से .
ह्यूमेन -मशीन -इंटर फेस में मशीन का बेहद का दखल कहीं आदमी को रोबो बनाके ही न छोइड दे .संवेदनाएं तो पहले ही मर रहीं हैं .उन्हें ऑक्सीजन देने का फायदा ।
बेशक नेनो -बोट्स टेक्नोलोजी द्वारा मेमोरी को धार दार बनाना ,छीज़ंन याददाश्त की रोकना कई न्यूरो -डि -जेंरेटिव -डी -जीज़ का समाधान प्रस्तुत कर सकता है .लेकिन फलना फूलन मुरझाना जीवन का क्रम है उसमे दखल जीवन को ही बेमजा कर देगा .

ये आई- कू मर्द कौन हैं ?

हू आर आई -कू मेन ?
आजकल जापानी मर्द बीवी की डिलीवरी होने पर मेटरनिटी लीव ले रहें हैं ताकि नवजात शिशु की बेहतर तरीके से देखभाल की जा सके .इन्हें ही "हाई -कू मेन "कहा जा रहा है ।
जापानी भाषा का एक शब्द है इकु -जी (आई के यु -जे आई ).इसका अर्थ है बच्चा का पालन पोषण करना .देख भाल परवरिश ,संभाल रखना करना .इसी से व्युत्पन्न हुआ है "आई -कू "जापान में अब खासी संख्या में पुरुष बच्चों की परवरिश का जिम्मा आगे बढ़कर लेरहें हैं .नवजातों की चौबीसों घंटा चौकसी उन्हें भा लुभा रही है .घरेलू काम काज की ओरउन्मुख हो रहा है जापानी मर्द .इस कदम को सरकारी संरक्षण भी मिल रहा है प्रोत्साहन भी ,ताकि घर -बाहर के काज में एक बेहतर संतुलन और तालमेल बना रहे .इससे जापान की गिरती आबादी का गिरना तो रुकेगा ही .आबादी बढ़ेगी भी कालान्तर में .इससे पहले जापानी मर्द बेहद व्यवसाय -सचेत (करीयर कोंशस )रहा आया है .अब यह रिवाज़ बदल रहा है .रोल बदल रहें हैं औरत मर्द के ?

कम करती है लो डोज़ एस्पिरिन की कोलन कैंसर का ख़तरा ..

एक अध्ययन के मुताबिक़ जो लोग दीर्घावधि तक एस्पिरिन की "लो डोज़ "लेते रहतें हैं उनके लिए कोलो -रेक्टल के जोखिम का वजन एक चौथाई तथा इससे मौत के खतरे का वजन घटकर एकतिहाई ही रह जाता है ।
विज्ञान पत्रिका लांसेट में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है .आप जानते हैं एस्पिरिन की अपेक्षाकृत कमतर मात्रा उन लोगों को चिकित्सक बराबर तजवीज़ कर रहें हैं जिन्हें दिल के दौरे तथा आघात (सेरिब्रल वैस्क्युलर स्ट्रोक ) का ख़तरा बना रहता है ।
इसी प्रकार से एस्पिरिन की ज्यादा मात्रा कोलन (बड़ी आंत) तथा रेक्टम (जहां मल ज़मा रहता है ,निकासी से पूर्व )के कैंसरों से बचाव में कारगर पाई गई है ।
बेशक अध्ययनों से यह भी पुष्ट हुआ है एस्पिरिन की बड़ी खुराकें रक्त स्राव की वजहभी बनती हैं।
एस्पिरिन का हृद -सम्वाह्कीय असर (कार्डियो -वैस्क्युलर इम्पेक्ट )का पता लगाने के लिए रिसर्चरों ने चार अलग अलग अध्ययनों की पड़ताल की है .एस्पिरिन लेने वालों के लिए बिला शक कैंसर केखतरे का वजन २४ % तथा इससे मौत का जोखिम ३५ % कम हुआ .आखिरी नतीजा अवांछित प्रभावों के ऊपर लाभ को तरजीह देता नजर आया है .

क्या वाहियात बात है ......

अगली मर्तबा अब जब भी आपको वाइन पीने का जी मचले ,तलबगार हों आपवाइन के (रेड या वाईट ) इसे अपनी बुद्धिमत्ता का परिचायक मानिए .एक नवीन अध्ययन का यही फलसफा है ।
इस अध्ययन के तहत इंटेलिजेंस का जायजा तमाम प्रतियोगियों का १६ साल की उम्र से पहले लिया गया .अब जैसे जैसे अध्ययन में भाग लेने वाले प्रतियोगी बड़े होते गये (उम्र दराज़ हुए )इनकी पीने की आदत का बराबर जायजा लिया गया ।
बुद्धिमत्ता में जो बच्चे आगे थे वह अकसर शराब (शराब कामतलब यहाँ वाइन से ही लें )भी ज्यादा बार लेते देखे गए .पीते भी अपेक्षाकृत ज्यादा थे .बरक्स इंटेलिजेंस में पिछाड़ियों से ।
क्या वाहियात बात है,भले यह एक रिसर्च रिपोर्ट है लेकिन इससे गलत सन्देश भी जा सकता है ।
एक किस्सा सुनातें हैं .हमने धुआंधार तरीके से तकरीबन बीस सालों तक बीडी सिगरेट पीने के बादयह बीमारी छोड़ दी .अब हम बतौर एक्स -स्मोकर लोगों को धूम्रपान(स्मोकिंग ) के नुक्सानात बताने समझाने लगे ।
लोगों के इंटर -व्यू लिए .भाई साहिब कैसे यह बुरी लत लग गई .एक साथी कहने लगे आइन्स्टाइन सिगार और पाइप पीते थे .साधू ,फ़कीर ,दार्शनिक ऐसा ही करते हैं .मैंने कहा आइन्स्टाइन सिगार भी पीते थे लेकिन हर सिगार पीने वाला आइन्स्टाइन नहीं होता है .हमें डर है इस रिसर्च रिपोर्ट कागलत सन्देश न जाए .इसीलिए यह किस्सा सुनाया .युवा भीड़ पहले ही drunko -reksia से जूझ रही है ।

मैराथन में दमखम बनाए रखने का फार्मूला ?

लम्बी दौड़ के धावक कठोर अभ्यास केबाद भी दौड़ के दौरान दमखम खो देतें हैं वजह होती है कार्बो -हाई -ड्रेट्स के भण्डार का दौड़ संपन्न होने से पहले ही चुकजाना."इसे ही हिटिंग दी वाल " कहा जाता है ।
माहिरों ने अब एक फार्मूला ईजाद करने का दावा किया जो २६.२ मील लम्बी मैराथन के दौरान धावक का दमखम बनाए रखने में विधाई भूमिका निभा सकता है .आइये देखतें हैं क्या है यह फार्मूला ?
हारवर्ड -एम् आई टी ऑफ़ हेल्थ साइंसिज़एंड टेक्नालोजी के माहिरों के अनुसार ४०%धावकोंको इसी स्थिति से दो चार होना पड़ता है .यकृत (लीवर )और धावक के लेग -मसल में संचित कार्बो -हाई -ड्रेट्स के भण्डार चुकजाते हैं ।
इससे बचने के लिए धावकों को तीन चीज़ों का इल्म होना चाहिए ।
(१)धावक का वजन कितना है .(२)लक्षित समय दौड़ का क्या है .(३)मैक्सिमम ऑक्सीजन इंटेक केपेसिटी धावक की कितनी है ।
यही फिटनेस नापने का पैमाना है .एरोबिक केपेसिटी को वी ओ -२ मेक्स भी कहा जाता है .ऑक्सीजन की खपत से ताल्लुक है कुल मिलाकर इसका ।
यानी कुल मिलाकर शरीर पेशियों कोकितनी ऑक्सीजन मुहैया करवा सकता है दौड़ के दौरान ।
वातापेक्षी व्यायाम के दौरान (एरोबिक एक्सरसाइज़ के दरमियान )धावक ऑक्सीजन की कितनी खपत करता है ।वी ओ -२ का सही जायजा मानव चक्की पर चल कर लिया जाता है .मैक्सिमम एफर्ट बतलाती है यह ।
एरोबिक केपेसिटी का अंदाजा लगाने का साधारण सा सूत्र है ,अधिकतम हार्ट रेट को रेस्तिंग हार्ट रेट से तकसीम (डिवाइड )कर १५ से ज़राब (मालती -प्लाई या गुना )कर दिया जाए .
To find your maximumheart rate ,sabtract your age in years from 220 beats per minute .This number will give you the number of calories required to be consumed befor the race by the runner .अधिकतम हार्ट रेट का पता लगाने के लिए अपनी उम्र को (एज इन ईयर्स )को २२० (बीट्स पर मिनिट )में से घटा दीजिये .प्राप्त संख्या आप को बतला देगी कितनी केलोरीज़ चाहिए आपको लक्षित रेस को पूरा करने में .दौड़ से पहले इतनी केलोरीज़ ले लें .

शनिवार, 23 अक्टूबर 2010

डिप्रेसन से निजात के लिए जींस का टिका .

नाव ,ए "जीन जेब "फॉर डिप्रेसन (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २३ ,२०१० )।
अवसाद रोधी दवाएं सभी पर अपना असर नहीं दिखा पातीं हैं .अलावा इसके इनके अवांछित पार्श्व प्रभाव भी सामने आतें हैं .ऐसे ही लोगों के लिए अब माहिरों ने "जींस का टीका" ) तैयार कर लिया है .यह अवसाद से बुरी तरह ग्रस्त ,क्रोनिक पेशेंट्स को भी अवसाद से राहत दिलवा सकता है ।
अमरीकी रिसर्चरों के मुताबिक़ एक दिमागी प्रोटीन की कमी -बेशी डिप्रेसन की वजह बनती है .पी -११ नाम की यह प्रोटीन दिमागी रसायनों का विनियमन करती है ,रेग्युलेट करती है ,न्यूरो -ट्रांस -मीटर्स को ।
विज्ञान पत्रिका "साइंस ट्रांस -लेश्नल मेडिसन "में प्रकाशित एक अधययन के मुताबिक़ जिन चूहों में इस प्रोटीन का अभाव था उन्हें जीन -सुइयां लगाने के बाद दिमाग यह प्रोटीन सामान्य तरीके से तैयार करने लगा तथा चूहे अवसाद से बाहर आ गए .अखबार डेली मेल ने भी इस रपट को प्रकाशित किया है .

परिवारों में चलने वाला रोग है -"सेक्सो -मैनिया "....

सेक्सो -मैनिया लिंक्ड तू जींस (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २३ ,२०१० ,पृष्ठ २१ ,नै -दिल्ली संस्करण )।
गहन निद्रा की अवस्था में यौन रत होने की अनोखी हरकत का नाम है "सेक्सो -मैनिया ".आप जानते हैं कुछ लोग सोते सोते चलते भी हैं (स्लीप वाकिंग करतें हैं ).तो कुछ नींद में उठकर फ्रिज से चीज़े निकाल कर चट कर जातें हैं . विक्टोरिया विश्व वि९दायल्य के माहिरों की एक टीम ने पहली मर्तबा इस डिस -ऑर्डर का पता एक एक बाप और उसके पुत्र में लगाया है .इससे ऐसा आभास होता है "सेक्सो -मैनिया "परिवारों में चलने वाला एक खानदानी रोग है .इसकी आनुवंशिक वजहें हो सकती हैं ।
माहिर इस अध्ययन के नतीजे क्राइस्ट -चर्च में होने वाली ऑस्ट्रेलिया -एशिया स्लीप कोंफरेंस में प्रस्तुत करेंगे .

एनोरेक्सिया -नर्वोसा के बाद अब ड्रनको -रेक्सिया ......

ईटिंग डिस -ऑर्डर्स की अभिनव -कड़ी के रूप में अब एनोरेक्सिया -नर्वोसा और एनोरेक्सिया बुलीमिया के बाद "ड्र -नकों- रेक्सिया "आ धमका है .ज्यादातर किशोर -किशोरिया ,युवा भीड़ पीनेऔर सिर्फ बे -हिसाब पीने की वजह से खाने को मुल्तवी रखतें हैं .कहीं फ़ूड केलोरीज़ उन्हें मुटिया न दे । फ़ूड केलोरीज़ का स्थान यह एम्प्टी एल्कोहल केलोरीज़ को दे रहें हैं .बस इसी विकसित होती युवाओं की एक दम से नै -लत का नाम है "ड्र -नकों -रेक्सिया "(ड्रिंक्स +एनोरेक्सिया ).
इस लत के पनपने के लिए कोलिज एक आदर्श जगह बनते जा रहें हैं .पीयर -ग्रुप का दवाब और फेड जो करादे सो कम .यह नतीजे हैं उस अध्ययन के जो टेक्साज़ विश्व -विद्यालय के स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ (जन स्वास्थ्य स्कूल ) नोर्थ टेक्साज़ विश्वविद्यालय के स्वास्थ्य विज्ञान केंद्र के माहिरों ने मिलकर निकाले हैं .पता चला गत दशाब्दी के सिर पर युवाओं में लोकप्रिय होती बेहिसाब शराब पीने की लत (बिंज ड्रिंकिंग )का सेहरा बांधा जा सकता है .इस एवज कई छात्रों से खुली बातचीत की गई (प्रभु -चावला की सीधी बात की तरह ).छात्रों का यह भी कहना है वह ऐसे कई और छात्रों को हमजोलियों को जानतें हैं जो ड्रिंक की ,बिंज ड्रिंकिंग की चाहत में लंच और डिनर दोनों से छिटकते हैं ,दबा कर शराब पीते हैं और छ्ह्राहरे भी बने रहतें हैं .

कुछ युवा बिंज ड्रिंकिंग के बाद बिंज ईटिंग भी करते हैं दबा कर जंक फ़ूड भाकोस्तें नहीं और इसके बाद विरेचक (दस्तावर चीजों )का सेवन करतें हैं .जैसे एनोरेक्सिया -बुलीमिया के म्मारे वोमिट करते हैं यह दस्त करतें हैं .मनो -विज्ञानियों के अनुसार ड्र -नकों -रेक्सिया की वजह लत (एडिक्सन )है .

जंक फ़ूड भकोसने वाले पिताओं से मिलती है बेटे -बेटियों को डाय -बिटीज़ -बितीज़

डाय -बिटीज़ लिंक्ड टू डेड्स बींजिंग ऑन जंक फ़ूड (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २२ ,२०१० )।
चिकनाई से लदी -फदी- सनी खुराक लेने वाले मर्दों की संतानों को आगे चलकर डाय -बिटीज़ की सौगात मिलने का ख़तरा बढ़ जाता है .यह नतीजा है इस दिशा में हुए आब तक के पहले अध्ययन काहै जिसके तहत चूहों के एक असमूह को तब तक हाई -फैट-फ़ूड दिया गया जब तक वह मोटापा रोग की गिरिफ्त में न आ गए .ज़ाहिर है इन पर रोज़ -बा -रोज़ निगाह रखी गई .इसके बाद सामान्यवजन की मादा चुहियों के साथ संतान प्राप्ति के लिए इन्हें रखा गया ।
इनके नन्नों को एक दम से स्वस्थ खुराक दी गई .बावजूद इसके आगे चलकर इनमे "इम्पैयार्ड ग्लूकोज़ टोलरेंस एंड इंसुलिन प्रोडक्सन "पाया गया .डाय -बिटीज़ पूर्व के लक्षण फादर से संतानों में सहज़ ही चले आये .फैसला आप पर है आप अपनी होने वाली संतानों को नी -रोगी काया देखना चाहते हैं या जीवन शैली रोगों के साथ ज़िंदा .

मलेरिया से मर रहा है ग्रामीण भारत .........

भारत ,युनाईतिदकिंडम और कनाडा के साइंसदानों की माने तो मलेरिया से ग्रामीण अंचल के लोग बगैर रोग निदान के घरों में ज्यादा मर रहें हैं .मरने वालों की संख्या विश्व -स्वास्थ्य -संगठन द्वारा सुझाए आंकड़ों से १३ गुना तथा मलेरिया उन्मूलन से जुड़े सेहत के झंडाबरदारों द्वारा ज़ारी आंकड़ों से २०० गुना ज्यादा है ।
इस नतीजे तक पहुँचने के लिए वर्बल ऑटोप्सीका सहारा लिया गया है .२००१ -२००३ में हुई १२२,००० लोगों की मौत की घर घर जाकर इस तरीके में पड़ताल की गई है .तीमारदारों से मौत से पहले मरने वाले के सारे लक्षणों (तेज़ ज्वर ,सर दर्द ,बदन दर्द ,शीत ,जूडी ,मलेरिया से जुड़े अन्य सिम्पटम्स का रिकार्ड बातचीत के आधार पर तैयार किया गया .गहन विश्लेसन के बाद ही मौत कासर्वाधिक संभावित कारण तय किया गया .बेहद के तेज़ ज्वर से मरने वाले ग्रामीण भाई अकसर गलत रोग निदान की वजह से मारे जातें हैं .सामुदायिक चिकित्सा केन्द्रों का नाकारा -पन (होना ना होना ) इसकी बड़ी वजह बनता है .बगैर रोग निदान के बंद घरों में रोगी प्राण छोड़ जाता है ।
एक दो नहीं ६६७१ जगहों पर (आंचलिक भारत के ) पर माहिरों की यह टीम पहुंची है ,तकलीफ उठाकर ।
अध्ययन "मिलियन डेथ स्टडी" का हिस्सा रहा है .सेम्पिल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के तहत सभी मौतों की (२००१ -२०१३ ) पड़ताल की गई है .प्रोफ़ेसर प्रभात झा ने अन्य कई और माहिरों के साथ इस अध्ययन का संचालन किया है ।
अध्ययन के मुताबिक़ संशोधित आंकड़ों की माने तो दुनिया भर में दस लाख से ज्यादा नौनिहाल मलेरिया से मर रहें हैं इनमे से बहुलांश ५ बरस की आयु तक भी नहीं पहुँच पाताहै .
मजेदार बात यह है हमारा काबिल स्वास्थ्य मंत्रालय खुद आंकड़े न जुटा कर विश्व -स्वास्थ्य संगठन द्वारा ज़ारी आंकड़ों पर ही भरोसा करता है जो कई मर्तबा गलत भी होतें हैं (एच आई वी एड्स के मामले में ऐसा हो चुका है ।).

हकीकत यह है भारत में १-७० साला लोगों की कुल सालाना मौतों में मलेरिया की हिस्सेदारी ४% बनी हुई है .आबादी के आलोक में आप खुद हिसाब लगालें मरने वालों की संख्या इस चार फीसद के हिसाब से ही कितनी बैठती है ।
ग्लोबी स्तर पर दस लाख से ज्यादा लोग मलेरिया से मर जाते हैं .भूमंडलीय स्तर पर ही हर आधे मिनिट के बाद एक बच्चा मलेरिया के काम आ जाता है .मलेरिया पर सालाना २०००मिलियन डॉलर खर्च हो रहा है ।
बात साफ़ है :मच्छर भी रहेंगे मलेरिया भी ,महानगरों की कोख से पैदा गंदगी के टापू इसे हवा देते रहेंगे .और हम ऐसे ही विकास का ढोल पीटते रहेंगे .आर्थिक वृद्धि की दर मनमोहन के चिरकुट हाइप
करते रहेंगे ।
सन्दर्भ -सामिग्री :न्यू फिगर्स टेक मलेरिया टोल तो ओवर १० लाख (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २२ ,२०१० ,नै -दिल्ली संस्करण ,पृष्ठ १९ )./महा -मारी मलेरिया /सम्पादकीय ,नव भारत टाइम्स ,नै- दिल्ली,.अक्टूबर २२ ,२०१० बी)

शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010

मुख मैथुन मर्दों में कैंसर ख़तरा बढाता है .

ओरल सेक्स अप्स कैंसर रिस्क इन मेन(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २२ ,२०१० ,पृष्ठ २३ ,नै दिल्ली संस्करण )।
ह्यूमेन पेपिलोमा वायरस औरतों में गर्भाशय -ग्रीवा (गर्भाशय -गर्दन ,सर्विक्स ) कैंसर की वजह बनता है .इधर यही एच पी वी योरोपीय मर्दों में हेड और नेक कैंसरों की वजह बन रहा है .वजह योनी -चूषण बन रहा है (औरतें भी मर्दों की तरह मुख -मैथुनी होतीं हैं ,शुक्रिया कीजिये ब्लू फिल्म्स का )।
ओरल सेक्स के अलावा उम्र से पहले सेक्स्युँली एक्टिव होना ,किशोर -सेक्स ,एक से ज्यादा यौन -संगियों का साथ ,मुख मैथुन "ओरो -फेरिन्जीयल स्क्वामस सेल कैंसर्स (कंठ ,टोंसिल्स ,बेस -ऑफ़ दी टंग,नर्म तालू ) को बढ़ावा दे रहा है .हेड और नेक कैंसर की गिरिफ्त में ८५ % मर्द और १५ % औरतें आ रहीं हैं .उक्त निष्कर्ष जार्ज -टाउन विश्विद्यालय के रिसर्चरों ने निकाले हैं ।
ओरो -फेरिन्जियल :इट इज दी पार्ट ऑफ़ दी थ्रोट देत इज लोकेटिड बिलो दी सोफ्ट पालितeनद अबव दी लेरिंक्स .

मानावाधिकार -वादी (ज़ारी )

सो ,वह नंगम -नाथों की विरासत में अपनी ओर से इजाफा कर रहा है .यह तो मानवाधिकार का एक छोटा सा पहलू है .पहलू तो और भी हैं .आतंकवादियों के मानवाधिकार हैं .सेना और पुलिस तो नौकरी में हैं .फिर आत्म -रक्षा के अधिकार काक्या मतलब ?रक्षा तो क़ानून करेगा .जान कोई क़ानून से बड़ी होती है क्या ?आतंकवादियों की बातअलग है .भले ही वह पूजा स्थलों पर हमला करते फिरें ,सैंकड़ों की जान ले लें पर उन पर गोली चलाने से पहले यह तो पूछा ही जा सकता है ,कहीं वह भारतीय नागरिक तो नहीं हैं ?बिना पूछे उनकी गोली का ज़वाब देना तो मानवाधिकारों का उल्लंघन है .सरासर अन्याय है .आखिर मानावाधिकारवादी जाएँ भी कहाँ -कहाँ !एक जान को सौ -सौ सांसत !मस्लेकई हैं .समाज में अल्प -संख्यक हैं .होने को तो बहु -संख्यक भी हैं .पर ,समाज तो अल्प -संख्यकों से चलता है न !मानावाधिकार तोउन्ही के होतें हैं न !बहु -संख्यक भी मानव होते हैं क्या ?वे तो भीड़ हैं .मानव होना होता तो अल्प -संख्यक न हो जाते !अब बहु -संख्यक होकर भी समरसता और समानता की बात करते हैं .समान नागरिक संहिता चाहते हैं .कैसी खतरनाक साज़िश है !यह तो बुर्जुआ सोच है .देश को बांटना चाहते हैं .आखिर समरसता और समानता का क्या औचित्य है ?अल्प -संख्यक ,अल्प -संख्यक हैं और बहु -संख्यक ,बहु -संख्यक हैं .द्वंद्वात्मक संघर्ष तो ज़रूरी है न !संघर्ष ही रुक गया तो समाज तरक्की कैसे करेगा ?समाज तरक्की करता रहे ,इसकी चिंता तो मानवाधिकार - वादियों को करनी पडती हैं न !बराबर मानव -धिक्कार ज़ारी रहे तभी तोमानावाधिकार की बात उठेगी .बात उठेगी तो दूर तक जायेगी .मानवाधिकार का हनन ही न हो ,ऐसी व्यवस्था किस काम की ?ऐसे में मानवाधिकारवादी क्या करेगा ?लंगर से पेट भरेगा ?फिर मानवाधिकार की घुट्टी किसे पिलाएगा ?इसलिए मामला न भी हो तो भी सेंत -मेंट में बनाओ .न बने तो बनता हुआ दिखाओ .किसी एक को पीडिता सिद्ध करो !फिर उसका पीड़ा -हरण करो .पहले बलात्कृता थी ,अब तुम दैहिक साक्षात्कार करो .ऐसा लगे ,तुम मानवधिकार के सबसे बड़े पैरोकार हो.काम भले ही मानव -धिक्कार के करो पर काला कोट पहन कर बहस मानवाधिकार पर करो .चैनल पर इंटर -व्यू दो .सब सुनेंगें ,सब देखेंगे .माहौल बनेगा तोरोमांच भी पैदा होगा .फिर देखना जो नहीं भी हुआ ,वह मुद्दा बनेगा .मानवाधिकार की रक्षा के लिए तो यह ज़रूरी है .विषय ही न होगा तो इबारत कैसे लिखी जायेगी ? माल कैसे बिकेगा ?औरगर माल ही नहीं बिका तो इंसानियत को चाटोगे क्या ?ले -दे कर मानावाधिकार कामुद्दा भी हाथ से जाता रहेगा .फिर खाली बैठ कर मर्सिया पढ़ना !अधिकार और धिक्कार दोनों के परम साधक ,हे मानवाधिकार -वादी !सच - मुच तुम महा -धन्य हो !
प्रस्तुति एवं सहभाव :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

व्यंग्य -विडंबन :मानवाधिकार -वादी .

व्यंग्यकार :डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,शब्दालोक -१२१८ सेक्टर -४ ,अर्बन एस्टेट ,गुरगांव -१२२-००१ ।
आमंत्रित लेखों की कड़ी का एक संग्रहणीय व्यंग्य -लेख ।
वह मानवाधिकार -वादी है और वह भी भारत का .मानावाधिकार बाहर के हैं और वादी घर का है .अब चिंता किस बात की ?जब चाहे घर के मोहरे को पिटवा सकता है .घर की बातघर में ही रहे यह कूप मंडूकता है .परले दर्जे की संकीर्णता है .इससे मुक्त होना होगा .चौधर हमेशा बाहर की अच्छी .यही तो जय -चंद और मीरजाफर ने किया था .बाहर की चौधर को दावत दी थी .इसलिए तो वह इतिहास पुरुष हैं .साम्प्रदायिक लोग इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर रहें हैं .साफ़ चरित्र हीनता का मामला बनता हैं .इतिहास पुरुषों की श्रृंखला में गुरु तेगबहादुर और शिवाजी का नाम .ऐसी हिमाकत !हमारे अंगना में तुम्हारा क्या काम है ?अंगना जब हमारा है तो मर्जी भी हमारी है .हम चाहे नाचें ,चाहे नंगे हों .तुम कौन होते हो ठुमका लगाने वाले ?एक तो चंद लोगों के गुरु -वुरु थे और दूसरे शिवानी के पूजक थे .दोनों साम्प्रदायिक थे ,और दुस्साहस इतना इतिहास श्रृंखला श्रृंखला में स्थान चाहते हैं .कैसा सितम है !यह अन्याय तो हम न होने देंगें .इतना भी नहीं जानते ,श्रृंखला तो मानवाधिकार -वादियों की होती है ,लाल सलामी देने वालों की होती है .विश्वास न हो तो आसफअली रोड और बहादुरशाह जफर मार्ग के आसपास देख लीजिये .हाथ कंगन को आरसी क्या ?सब जगह मानव श्रृंखलाएं बन रहीं हैं .मानवाधिकार के हक़ में हाथ में हाथ पकडे बौद्धिक गुलाम चल रहें हैं .कर्ण भेदी नारे उछल रहें हैं .कमसे कम अपने आकाओं के कानों तक तो आवाज़ पहुंचनी ही चाहिए .फिर मीडिया वाले भी तो हैं .वरना क्या फायदा ?आका खुश न होंगें तो पर्दा न उठ जाएगा !फिर पापी पेट का भी तो सवाल है न !जब केंद्र ही कमज़ोर हो तो बाकी प्रदेश क्या कर लेंगें ?पेट भरा रहेगा तो केंद्र भी मजबूत होगा .अन्यथा लोकतंत्र कमज़ोर न पड़ जाएगा ।
पता नहीं हम भारतीय कब चेतेंगें .एक तो बेरोज़गारी ,तिस पर उद्योग -धंधे भी मंदी चल रहें हैं .ऐसे में मानवाधिकार यदि फल फूल रहा है तो प्रगति विरोधियों का जी हलकान क्यों हो रहा है ?दरअसल साम्प्रदायिक चाह्तेही नहीं ,देश उन्नति करे .उन्नति करे भी तो कैसे ,इस देश में ढंग से मानवाधिकारों की रक्षा तक तो होती नहीं और उधर विदेशों में तो न जाने किस -किस अधिकार की रक्षा हो रही है .सब के सभी अधिकार सुरक्षित हैं .नंगा होने का पैदायशी हक़ है .निर्बंध अधिकार है .पर्दा बे -पर्दा दोनों एक -से हैं .कहीं कोई नेपथ्य नहीं .नुक्कड़ नाटक है .खुला रंग मंच है .पर भारत में इस पैदाइशी मानवाधिकार पर भीकुछ लोग हल्ला मचातें हैं .यह सब फासिस्ट हैं .कला पर बंदिश लगाते हैं .लोकतंत्र का गला घोंटतें हैं .यह तो भला हो उन नामवर महाभट्ट -ओं का जो फिल्म क्षेत्र क्षेत्रमे ही सही अभिव्यक्ति की आज़ादी की मशाल थामे हुए हैं .खुद कब्र की और बढ़ रहे हैं पर पैदाइशी मानवाधिकार की रक्षा के लिए जी -जान एक किये हुए हैं .आखिर ऐसा क्या करंगें क्यों न ?जिस्म अपना है ,जिस्म पर अधिकार भी अपना है.मानावाधिकार का यही तो पहला पाठ है .व्यक्ति भी स्वतन्त्र और अभिव्यक्ति भी स्व -तंत्र .मानावाधिकारों का यह कैसा भव्य कलात्मक बोध है .नंगम नाथों की कैसी शानदार विरासत है !!(ज़ारी ....)

सितारों से आगे जहां और भी हैं ........

सितारों से आगे जहां और भी हैं ,तेरे सामने इम्तिहान और भी हैं ।
हमारे ब्रह्माण्ड की मानिंद और भी यूनिवर्स हैं ,प्रेक्षिनीय(ओब्ज़र्वेबिल )सृष्टि से परे समान्तर सृष्टिया और भी हैं ,अंध -शीत पदार्थ(कोल्ड डार्क मैटर ) ,अबूझ किस्म का पदार्थ ,अतिरिक्त विमायें (एक्स्ट्रा -डाय -मेंसंस ) भी हैं ये तमाम बातें जिज्ञासा के धरातल को फोड़ कर यथार्थ की ज़मीन हासिल कर सकतें हैं .हो सकता है अगले बरस तक इनमे से कुछ की टोह मिलने के साथ ही एक नै फिजिक्स (अभिनव -भौतिकी ) ज्ञात नियमों में संशोधन की गुंजाइश पैदा कर दे .यह सारी प्रत्याशा सृष्टि -विज्ञानियों के दिलो -दिमाग पर बरपा हैं तो इसकी वजह लार्ज हेड्रोंन कोलाई -डर(योरोपियन न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर,जिनेवा के निकट ) बना हुआ है .अधिक से अधिकतर ऊर्जा के साथ परस्पर कणों की टक्कर से पैदा अल्प -काली अभिनव कण "यूनिवर्स की एक्स्ट्रा बिट्स "की खबर कभी भी आइन्दा दे सकतें हैं ।
पानी केरा बुदबुदा अस मानस की जात ,देखत ही बूझ जाएगा ज्यों तारा परभात .लेकिन इस अल्प काल के पलांश में ही सब कुछ कंप्यूटर की गणना में ले लिया जाएगा ।सृष्टि के अबूझ रहस्यों का पर्दा खुल जाएगा इस पलांश के भी महा -पलांश में .
सृष्टि के उदगम की टोह में निशिवासर जुटे भौतिकी -विद सर्न(सी ई आर एन यानी योरोपियन न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर ) के तत्वाधान में बहु -चर्चित महा -मशीन (लार्ज -पारिकिल कोलाई -डर ) में चल रहे प्रयोगों से बेहद आशान्वित हैं .जहां महा -ऊर्जा वांन कणों की सीधी टक्कर हो रही है .

गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010

बाद दोपहर जोरू के साथ तकरार से बचें ....

क्योंकि जोरू के साथ बाद दोपहर की तकरार में ,शह और मात के खेल में हार मर्द के पाले में होगी .औरतों के लिए भी मर्दों से फरमाइश करने का अनुकूल वक्त शाम ६ बजे के बाद शुरू होता है .ज्यादा संभावना इस बातकी की बनी रहती है इस पहर (वेला )आपकी बात मान ली जायेगी .कमसे कम उस पर तवज्जो ज़रूर दी जायेगी ।
उक्त निष्कर्ष बायर दवा कम्पनी ने एक हजार से ज्यादा औरत मर्दों पर संपन्न एक अध्ययन से निकाले हैं ।
८६ %से ज्यादा औरत -मर्द अपने मूड के "हाई "या "लो "दिमागी पीक और ट्राफ़ से वाकिफ रहतें हैं .कब वह बायो --रिदम के साथ ताल में रहतें हैं कब बे -ताले हो जाते हैं यह भी बा -खूबी जानते पहचानते हैं .बस यही इत्तला तो सर -का -डियन रिदम की कुंजी है .प्राप्य और अप्राप्य की ,खोने और पाने की है .उपलब्धि -अनुपलब्धि की है .इसे जानिये ,आजमाइए .

तेंदुए को चक्मई रंगत कैसे प्राप्त हुई ?

हाउ लोप-अर्ड गोट इट्स स्पोट्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २१ ,२०१० ,न्यू -देल्ही संस्करण )।
तेंदुआ बिल्ली -परिवार का एक बड़े डील डौल वाला जंगली हिंस्र जानवर है.इसका चरम कोट पीले -कथ्थई रंग का होता है जिस पर काले रंग के स्पोट्स (धब्बे )रहतें हैं .अफ्रिका और दक्षिण एशिया इसका प्राकृत आवास है ।
सवाल यह है इसे अपना चकमा देने वाला लुक (आवरण )मिला कैसे और कहाँ से ?इस विषय में रुडयार्ड किपलिंग की एक बालगल्प (बाल -कथा ) के अनुसार तेंदुआ एक भूरा -पीलापन रंगी बिल्ली जैसा जीव था .शिकार के वक्त इसे इसका प्रे (शिकार के रूप में जिसे खाया जाना है वह जानवर ) दूर से ही देख लेता था .केमाफ्लेजिंग नहीं कर पाता था इसका आवरण .भला हो उस इथियोपियाई का जिसने इसके आवरण को चकमा देने आसानी से नजर ना आने वाला बना दिया .अपनी आवासीय पृष्ठ भूमि में अब यह आसानी से जंगली प्राणियों को जिन्हें यह अपना शिकार बनाता था नजर ही नहीं आता था ।
इसके चरम कोट पर तरतीबी से पैट्रन उकेर दिए इस शख्श ने ।
ब्रिस्टल विश्व -विद्यालय के प्रायोगिक मनो -विदों ने इस बात की पड़ताल की है कैसे इसकी रंगत इसे इसके परिवेश में घुला -मिला -गुमा देती है .माहिरों की इस टीम ने इस एवज फेलिड्स (शेर ,बाघ ,बिल्ली परिवार के प्राणी )की ३७ प्रजातियों की छवियों का विस्तृत अध्ययन विश्लेसन किया .इनके चरमकोट के पेचीला पैट्रन को गणितीय फार्मूलों में अभिव्यक्त किया .अब इन इमेज़िज़ की तुलना इनके प्राकृत आवासों से जुटाए गये आंकड़ों से की गई जिसमे इनके व्यवहार का भी ब्योरा था .इन आवासों में पहाड़ ,जंगल घास के मैदान ,चट्टानी इलाकों का इनके व्यवहार और शिकार पर निकलने के हर पहर ,निशि -दिन पलछिन की पूरी जानकारी थी ।
पता चला इनमे से जो फेलिड्स बंद आवासों (क्लोस्द हेबिटेट ,घने जंगल) में रहते थे उनके चरम कोट पर बहुत ही पेचीला और अव्यवस्थित पैट्रन थे जो उष्ण कतिबंधों में इनके लिए शिकार को चकमा देने में सहायक रहें हैं ।
पूमा (कूगार्स ) खुले आवासों में रहने वाला प्राणी है .इनका चरम कोट सीधा -साधा बिना किसी पैट्रन के रहा है ।
लेपर्ड दोनों के बीच की कड़ी है .सीधे -साधे व्यवस्थित पैट्रन वाले इसके स्पोट्स इसे वृहद् घास के मैदानों में छिपने में मदद देते रहें हैं .घने पेड़ों की शाखाओं में भी यह छिपकर सो सका है इन्हीं व्यवस्थित स्पोट्स की बदौलत ।
प्रकृति की अनोखी माया है कहीं धूप कहीं छाया है इसकी काया पर .इसका चक्मई आवरण शानदार आवासीय अनुकूलन का नतीजा है .

कैंसर के खतरे के वजन को बढ़ाती है हारमोन चिकित्सा .

हारमोन थिय्रेपी अप्स कैंसर रिस्क :(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २१ ,२०१० )।
एक ताजातरीन अमरीकी अध्ययन के अनुसार रजोनिवृत्ति को प्राप्त होचुकी वह महिलाए जो मिश्र -हारमोन चिकित्सा लेती हैं उनके लिए ऐसे ब्रेस्ट कैंसर के खतरे का वजन बहुत ज्यादा हो जाता है जो कई चरण पार कर आगे बढ़ चुका होता है यहाँ तक की इस स्थिति में महिला की मृत्यु भी हो जाती है ।
वोमेंज़ हेल्थ इनिशिएटिव नामक उस नामचीन नैदानिक परीक्षण का विश्लेसन रिसर्चरों ने प्रस्तुत किया है जिसे अनुदान की तमाम राशि संघीय सरकार से प्राप्त हुई थी .२००२ में यह अध्ययन इसीलिए निलंबित कर दिया गया था क्योंकि तब तक प्राप्त आंकड़ों से यह सिद्ध हो गया था ,इस्ट्रोजन के साथ -साथ प्रोजेस्टिन हामोन मिश्र चिकित्सा लेने वाली महिलाओं के लिए स्तनं कैंसर का ख़तरा बहुत बढ़ जाता है .

गुज़रे ज़माने की बाट होके रह जायेंगें चश्मे नजर के .

लेज़र शल्य का दायरा अब निकट दृष्टि (शोर्ट -शाईतिद नेस )दोष से आगे निकल कर प्रेस्बायोपिया और दूरदृष्टि दोष तक विस्तृत हो गया है .उम्र दराज़ लोगों का रोग है प्रेस्बायोपिया जिसमे आँखको सामान्य दूरी से पुस्तक को पढने में तकलीफ होती है .यह दूरी है एक फूट या २५ सेंटी -मीटर जिसे नोर्मल डिस्टेंस ऑफ़ डिस -टिंक्त विज़न भी कहाजाता है .दर असल इस स्थिति में आँख अपने फोकस को कम ज्यादा नहीं कर पाती है .खासकर पास की चीज़ों को देखने की क्षमता छीजने लगती है .ऐसे में आँख अपना कर्वेचर (लेंस की गोलाई ,घुमाव )नहीं बढा पाती है ।
आई लेंस की इलास्टिसिटी भी कम रह जाती है .यही है प्रेस्बायोपिया ।
लेज़र सर्जरी का स्तेमाल एक दिन रीडिंग ग्लासिज़ को भी गैर -ज़रूरी बना सकता है .इतनी संभावनाएं छिपीं हैं लेज़र सर्जरी में .आँख का लेंस जैसे जैसे कठोर पड़ता जाता है as the stiffening ऑफ़ the eye लेंस takes place zooming in on close objects gets more and more difficult ।
The laser technique re- engineers the eye ball either by cutting slits ,into which tiny lenses can be fitted or by altering the shape ऑफ़ its outer layer .

बुधवार, 20 अक्टूबर 2010

क्या है फोटो -डायनेमिक थिय्रेपी ?

केलिफोर्निया विश्व विद्यालय ,इर्वाइन कैम्पस के साइंसदान इन दिनों लाईट -एमिटिंग डायोड्स का स्तेमाल कैंसर लीश्जन ठीककर लेने में,कैंसर घाव दुरुस्त करने की जुगत में है .यहीं है फोटो -डायनेमिक -थिय्रेपी .इस प्राविधि में ऐसे रसायन ट्यूमर तक सुइंयों द्वारा पहुंचाए जाते है जो प्रकाश संवेदी होते हैं .यह प्रकाश को ज़ज्ब कर लेतें हैं .अब प्रकाश से आलोकित करने पर यानी इन पर प्रकाश डालने पर यह प्रकाश ऊर्जा से ही ऑक्सीजन रेडिकल्स (ऑक्सीजन मूलक )बना डालते हैं .यही रेडिकल्स कैंसर सेल्स का खात्मा कर डालते हैं . ईसा -फेज़ियल और लंग कैंसर के इलाज़ केलिए फोटो -डायनमिक थिय्रेपी को अमरीकी खाद्य एवं दवा संस्था ऍफ़ डी ए की मंज़ूरी मिल गई है . ईसा -फेज़िय्ल भोजन नली (फ़ूड पाइप ) से ताल्लुक रखता है .

हेंड सेट की ही तरह अब फर्टिलिटी डिवाइस भी ....

केम्ब्रिज विश्व विद्यालय के पूर्व छात्रों ने एक ऐसी प्राविधि विकसित कर ली है जो इन -वीट्रो -फार -टी -लाइज़ेसन की तरह ही कारगर सिद्ध होगी .हर पांचवां दंपति इन दिनों किसी ना किसी तरह की फ़र-टी -लिटी समस्या से दो चार हो रहा हैं उसके लिए राहत लेकर आई है यह डिवाइस जो शरीर के तापमान में होने वाली फेर बदल के आधार पर औरत के अधिकतम प्रजनन क्षम काल की खबर देती है । .
इसे दुओ -फ़र -टी -लिटी सिस्टम कहा जा रहा है .इसे फ़र -टी -लिटी की दुनिया का साटेलाईट(सेटेलाईट ) नेविगेसन कहा जा रहा है .वर्तमान में इसकी कीमत है ४९५ पोंड्सहै .इसमें एक सेनसर लगा है जिसे बगल में फिट कर दिया जाता है .एक रीडर रात भर में २० ,०० ० ,बार तापमान का जायजा दर्ज़ करता चलता है.बस यही चाबी है फ़र -टी -लिटी की ।
कुछ बरस पहले अखिल भारतीय आयुर -विज्ञान के साइंसदानों ने एक बिंदिया बनाई थी .ओव्युलेसन होने पर यह बिंदी लाल से नीली हो जाती थी .कारण होता था तापमान का बढना डिम्ब क्षय के वक्त .

स्टेम सेल जेब और नी रिप्लेसमेंट ....

ब्रितानी साइंसदानों ने कलम कोशाओं को बस एक पखवाड़े में ही लेब दिश में कोंड्रो -साईट (कार्टिलेज सेल )में तब्दील करने की ऐसी तरकीब निकाल ली है जो ना सिर्फ घुटना और नितम्ब बदलकी आधुनिक शल्य -चिकित्सा को गैर ज़रूरी बनादेगी कलम -कोशा सुइंयों की मदद से ओर्थो -आर्थ -राइटिस का समाधान भी कर लेगी .इस रोगात्मक स्तिथि में उपास्थियाँ ही नाकारा हो जाती हैं .झुकना ,घुटनों के बल बैठना नामुमकिन हो जाता है .ऊंक्डून बैठकर भारतीय शैली के शौच -घर(रेस्ट रूम )का स्तेमाल मुमकिन नहीं रह जाता है .
बस कलम कोशा की सुइंयाँ असर ग्रस्त जोड़ों में लगाईं जायेंगीं और जोड़ों की टूट फूट की भरपाई हो जायेगी .युवा खिलाड़ी जो बेतरह चोटिल हो जातें हैं उन्हें घुटना -बदल और नितम्ब बदली के सदमे से बचाया जा सकेगा .किसी प्रकार का नैतिक संकट भी कलम कोशाओं को लेकर नहीं रह जाएगा जिन्हें वर्तमान में भ्रूण से जुटाया जाता है .आइन्दा दस सालों में यह सुइयां एनीमल परीक्षण के बाद मयस्सर हो सकती हैं .और तब नी एंड हिप -रिप्लेसमेंट थिय्रेपी इतिहास बनके रह जायेगी .

कलम कोशाओं का टीका ........

aaindaa दस सालों में ही कलम कोशाओं का टीका घुटना aur nitaamb badalne vaali shalay chikitsaa ko gair zaroori bnaa saktaa है .isse ostiyoporosis के मरीजों को बड़ी राहत मिल सकती है जिसमे उपास्थियाँ नाकारा हो जाती हैं .आखिर झुकने घुटनों के बल बैठने में सारा कमाल इन कार्तिलेज़िज़ का ही तो होता है ।
britaani saainsdaanon ne stem sels(कलम कोशाओं )se chondrocyte (cartilage cells ) taiyaar kar lene ki ek naayaab tarkeeb dhoondh nikaali है .bas do saptaah में ही leb dish में stem cells chondrocytes में tabdeel हो jaatin हैं .aise में inhen sirinj में bharkar sidhe- sidhe jodon tak pahunchaayaa jaa saktaa है aur ek kudrati mahaul में jodon ki toot foot theek hosakti है .घुटना aur nitamb badal shaly chikitsaa itihaas ki cheez banke arh jaayegai .albattaa abhi enimal stdeez honi हैं .lekin kul milaakar aaindaa दस सालों mke ही कलम कोशाओं का टीका baazaar में aa saktaa है . Stem cell jab may make knee replacemnet history .

डार्क चोकलेट और कोलेस्ट्रोल ......

डार्क चोकलेट्स इन दिनों रेड वाइन की तरह चर्चित है .सन्दर्भ है कोलेस्ट्रोल .आइये देखतें हैं इस बारे में क्या कहतें हैं माहिर .हल विश्व - विद्यालय (यु के )के रिसर्चरों के अनुसार डार्क चोकलेट्स में मौजूद रसायन "पोलिफिनोल "कुछ मधुमेह से ग्रस्त रोगियों में कोलेस्ट्रोल को थोड़ा सा कामकरने में सहायक रहा है .बढा हुआ कोलेस्ट्रोल ,खून में घुली हुई अतिरिक्त चर्बी ,हृद रोगों के जोखिम को बढा देती है .मधुमेह के रोगियों में इसका जोखिम बना रहता है .पूर्व में संपन्न अध्ययनों से भी कोकोआ बीन्स में पाया जाने वाला यह रसायन जिससे डार्क चोकलेट तैयार की जाती है हृद रोगों के खतरे के वजन को कम करने वाला बतलाया गया है ।
संदर्भित ब्रिटानी अध्ययन में जीवन शैली रोग सेकेंडरी डाय-बिटीज़ से ग्रस्त १२ स्वयंसेवियों में से कुछ को पोलिफिनोल्स से संवर्धित चोकलेट्स मुहैया करवाई गई पूरे १६ सप्ताह तक ।
इनका कुल कोलेस्ट्रोल थोड़ा कम दर्ज़ हुआ ,एच डी एल कोलेस्ट्रोल (हार्ट फ्रेंडली कोलेस्ट्रोल )में थोड़ा इजाफा भी दर्ज़ हुआ .निष्कर्ष निकाला गया यह, इसका मतलब दिल के हमले (हार्ट अटेक) का वजन भी कम हुआ .अध्ययन के मुखिया प्रोफ़ेसर एटकिन दो हाथ आगे निकल कर यह भी सुझाव देते नजर आयें हैं क्यों ना सेकेंडरी डाय -बिटीज़ के साथ जी रहे लोगों की खुराक का हिस्सा डार्क चोकलेट को भी बनाया जाए .बा -शर्ते उसमे कोकोआ की लोडिंग हो ।
दूसरी और डाय -बेतिक्सयु , यु . के., माहिरों ने चिंता व्यक्त की है ."लोग बेहद चोकलेट खाने लगेंगें .आखिर कोकोआ से लदी चोकलेट बार्स में भी वसा और शक्कर का डेरा तो होगाही " ।
ऐसे में नुकसानी ही ज्यादा होगी ।
हमारा मानना है केलोरीज़ का अपना गणित है रोज़ -बा -रोज़ वाइन पीने से (फिर रेड हो या वाईट )वजन तो बढेगा हीउसकेसाथ मोटापे का क्या कीजे ? . यही किस्सा तो चोकलेट का भी है .

मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010

Skinny women on TV bad for health .

A new study has suggested repetitive exsposure to images of thin women alters brain function and increases our likelines to develop eating disorders.Scientists have identified sudden, unexpected changes in the brain function of healthy ,body confident women when they view certain female figure .
Beware of zero size .The result will be anorexia nervosa,elemental deficiencies .Anorexia nervosa is a psychiatric illness in which the patients starve themselves or use other techniques ,such as vomitting or taking laxatives ,to induce weight loss and observe the so called ZERO SIZE .The anorexia patients think they are overweight when they are not .

Variety in meals key to long life .

Conventional wisdom has taught us to take a variety of foods .(chhattis vyanjanon ki paramparagat Thali ,food containing 36 eatables .).
Antioxidents ,Wholegrains and essential fatty acids are the key to a healthy living.They cut the risk of top killers (diseases ) including heart diseases ,Alzheimer's and diabetes says a new study .The same phrase is often repeated and confirmed in one study after the other .
A widely varied diet was responsible for boosting health."Zayka India ka ".
"sone ki thali me bhojan parosa ,khaave gauri kaa yaar ,balm tarse ,rang barse "/"chhatis bhoj sone aur chandi ki thaliyon me parose jaate the .
A variety of food was served in Silver and Gold utensils .our folk songs tell the about the rich food (Healthy food )consumed by Indians with an active routine .

'Night milk ' helps improve sleep .

Jaggery and hot milk takes away all the days fatigue, was the preaching of Dadaji. Now science confirms this conventional knowledge. This oral communication travels from generations.
A german company has patented its product - 'night milk' taken from cows, which help improve sleep. Munich-based firm Milchkristalle said that it says contain high levels of 'sleep hormone' melatonin. Melatonin helps regulate the sleep-wake cycle by causing drowsiness and lowing the body temperature.
Melatonin: It is a hormone derived from serotonin and secreted by the pineal gland that produces changes in the skin colour of vertebrates, reptiles and amphibians and is important in regulating biorhythms.
It is a hormone produced by the pineal gland in darkness but not in bright light .Melatonin receptors in the brain ,in a nucleus immediately above the the optic chaism ,react to this hormone and synchronize the nucleus to the 24 hr day -night rhythm ,thus informing the brain when it is day when it is night .It is a derivative of serotonin ,with which it works to regulate the sleep cycle and is being used experimentally to treat jet lag ,SAD ,and insomnia in shift workers and the elderly .