साधो रचना राम बनाई।
इकि बिनसै एक असथिरु मानै ,अचरजु लखिओ न जाई। रहाउ।
काम क्रोध मोह बसि प्रानी हरि मूरति बिसराई।
झूठा तनु साचा करि मानिओ जिउ सुपना रैनाई।
जो दीसै सो सगल बिनासै जिउ बादर की छाई।
जन नानक जगु जानियो मिथिआ ,
रहिओ राम सरनाई।
हे सन्तजनो ! परमात्मा ने (जगत की यह आश्चर्यजनक )रचना रच दी है (कि )एक मनुष्य (तो )मरता है(पर )दूसरा मनुष्य (उसे मरता देखकर अपने आपको )सदा टिके रहनेवाला समझता है। यह एक आश्चर्यजनक तमाशा है जो व्यक्त नहीं किया जा सकता।
(युधिष्ठिर से भी यक्ष ने यह प्रश्न किया था : किं आश्चर्य -संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है -कहा युधिष्ठिर ने -हर क्षण सैंकड़ों मनुष्य मृत्यु के मुख में जा रहे हैं फिर भी व्यक्ति समझता है वह स्वयं कभी नहीं मरेगा ).
मनुष्य काम क्रोध और मोह के वशीभूत होता है और परमात्मा के अस्तित्व को भुलाये रखता है। यह शरीर सदा साथ रहनेवाला नहीं हैं लेकिन मनुष्य इसे सत्य स्वरूप समझता है ;जैसे रात के वक्त स्वप्न (आता है और मनुष्य इसे सत्य -स्वरूप समझता है ).
(हे संतजनो !)जैसे बादल की छाया (सदा एक स्थान पर टिकी नहीं रहती ,वैसे ही )जो कुछ दृष्टिगोचर होता है ,वह सब नष्ट हो जाता है। हे दास नानक !(जिस मनुष्य ने )जगत को नाशवान (नाशमान ) समझ लिया है ,वह (सत्यस्वरूप ) परमात्मा की शरण लिए रहता है।
इकि बिनसै एक असथिरु मानै ,अचरजु लखिओ न जाई। रहाउ।
काम क्रोध मोह बसि प्रानी हरि मूरति बिसराई।
झूठा तनु साचा करि मानिओ जिउ सुपना रैनाई।
जो दीसै सो सगल बिनासै जिउ बादर की छाई।
जन नानक जगु जानियो मिथिआ ,
रहिओ राम सरनाई।
हे सन्तजनो ! परमात्मा ने (जगत की यह आश्चर्यजनक )रचना रच दी है (कि )एक मनुष्य (तो )मरता है(पर )दूसरा मनुष्य (उसे मरता देखकर अपने आपको )सदा टिके रहनेवाला समझता है। यह एक आश्चर्यजनक तमाशा है जो व्यक्त नहीं किया जा सकता।
(युधिष्ठिर से भी यक्ष ने यह प्रश्न किया था : किं आश्चर्य -संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है -कहा युधिष्ठिर ने -हर क्षण सैंकड़ों मनुष्य मृत्यु के मुख में जा रहे हैं फिर भी व्यक्ति समझता है वह स्वयं कभी नहीं मरेगा ).
मनुष्य काम क्रोध और मोह के वशीभूत होता है और परमात्मा के अस्तित्व को भुलाये रखता है। यह शरीर सदा साथ रहनेवाला नहीं हैं लेकिन मनुष्य इसे सत्य स्वरूप समझता है ;जैसे रात के वक्त स्वप्न (आता है और मनुष्य इसे सत्य -स्वरूप समझता है ).
(हे संतजनो !)जैसे बादल की छाया (सदा एक स्थान पर टिकी नहीं रहती ,वैसे ही )जो कुछ दृष्टिगोचर होता है ,वह सब नष्ट हो जाता है। हे दास नानक !(जिस मनुष्य ने )जगत को नाशवान (नाशमान ) समझ लिया है ,वह (सत्यस्वरूप ) परमात्मा की शरण लिए रहता है।
2 टिप्पणियां:
ज्ञान से परिपूर्ण पोस्ट ... बहुत सुन्दर ....
काश मानव यह सत्य समझ पाता...बहुत सुन्दर और सारगर्भित प्रस्तुति...
एक टिप्पणी भेजें