थाल विच तिंनि वसतू पईओ सतु संतोखु वीचारो।
अम्रित नामु ठाकुर का पइओ जिसका सभसु अधारो।
जे को खावै जे को भुंचै तिसका होइ उधारो।
गुरु साहिब ने मुदावेणी में आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के वर्ण्य -विषय का उपदेश किया है।
'इनका कथन है कि इसमें सत्य ,सन्तोष और चिंतन का संकलन हुआ है। (सत्य -अकाल पुरुष की संज्ञा ,संतोष -जीवन जीने की कला ,विचार या चिंतन -आत्मा ,परमात्मा और सृष्टि संबंधी दार्शनिक चर्चा ). यदि कोई जीव प्रभु -सत्ता में विश्वास उसके नाम -स्मरण के आश्रय इन तीनों महत् तत्वों का भोग करे अर्थात इनकी गहनता को पहचाने तो उसका उद्धार हो सकता है। '
आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब मुक्तात्मा गुरुओं ,सच्चे सन्त -महात्माओं की वाणी और भाटों की गुरु -प्रशस्तियों का संकलन है। संत महात्मा सदैव सबके लिए समान होते हैं ; वे 'सत्य' के साधक एवं प्रचारक होते हैं ,इसीलिए उनकी वाणी सार्वलौकिक और सर्वकालीन होती है। उनके वचन युग -युगान्तर में अटल सत्य होते हैं। अतः आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में संकलित वाणी 'सत्य की वाणी 'है।
संत महात्माओं की वाणी गुरु ग्रन्थ साहिब में संग्रह करने के दो कारण हो सकते हैं -एक स्वयं गुरु साहिब अपने से पूर्व हुए सन्त -महात्माओं की वाणियों का पाठ किया करते थे ,उपदेश रूप में इन्हें अपने शिष्यों को सुनाते एवं इनकी व्याख्या उन्हें समझाते थे। दूसरे ,गुरूजी ने इन वाणियों में गुरु परम्परा की विचारधारा की पुष्टि होती अनुभव की।
आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब मध्यकालीन संतों की वाणी का अमूल्य संकलन है ,जिसमें सम्पादक श्री गुरु अर्जुन देव जी ने विग्रह और विघटन के युग में व्यापक भारतीय दृष्टि से प्रादेशिक ,भाषायी ,वर्गीय अथवा जातीय वृत्तों -घेरों से परे एक समान मंच की स्थापना की। वाणीकारों की समयावधि बारहवीं से सत्रहवीं शती ईसवी तक ,लगभग ५०० वर्षों की थी -वे इतने दीर्घकाल की सर्वांगीण परि-स्थितियों के भुक्त -भोगी एवं अध्यात्म अनुभवी महापुरुष थे।
अम्रित नामु ठाकुर का पइओ जिसका सभसु अधारो।
जे को खावै जे को भुंचै तिसका होइ उधारो।
गुरु साहिब ने मुदावेणी में आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के वर्ण्य -विषय का उपदेश किया है।
'इनका कथन है कि इसमें सत्य ,सन्तोष और चिंतन का संकलन हुआ है। (सत्य -अकाल पुरुष की संज्ञा ,संतोष -जीवन जीने की कला ,विचार या चिंतन -आत्मा ,परमात्मा और सृष्टि संबंधी दार्शनिक चर्चा ). यदि कोई जीव प्रभु -सत्ता में विश्वास उसके नाम -स्मरण के आश्रय इन तीनों महत् तत्वों का भोग करे अर्थात इनकी गहनता को पहचाने तो उसका उद्धार हो सकता है। '
आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब मुक्तात्मा गुरुओं ,सच्चे सन्त -महात्माओं की वाणी और भाटों की गुरु -प्रशस्तियों का संकलन है। संत महात्मा सदैव सबके लिए समान होते हैं ; वे 'सत्य' के साधक एवं प्रचारक होते हैं ,इसीलिए उनकी वाणी सार्वलौकिक और सर्वकालीन होती है। उनके वचन युग -युगान्तर में अटल सत्य होते हैं। अतः आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में संकलित वाणी 'सत्य की वाणी 'है।
संत महात्माओं की वाणी गुरु ग्रन्थ साहिब में संग्रह करने के दो कारण हो सकते हैं -एक स्वयं गुरु साहिब अपने से पूर्व हुए सन्त -महात्माओं की वाणियों का पाठ किया करते थे ,उपदेश रूप में इन्हें अपने शिष्यों को सुनाते एवं इनकी व्याख्या उन्हें समझाते थे। दूसरे ,गुरूजी ने इन वाणियों में गुरु परम्परा की विचारधारा की पुष्टि होती अनुभव की।
आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब मध्यकालीन संतों की वाणी का अमूल्य संकलन है ,जिसमें सम्पादक श्री गुरु अर्जुन देव जी ने विग्रह और विघटन के युग में व्यापक भारतीय दृष्टि से प्रादेशिक ,भाषायी ,वर्गीय अथवा जातीय वृत्तों -घेरों से परे एक समान मंच की स्थापना की। वाणीकारों की समयावधि बारहवीं से सत्रहवीं शती ईसवी तक ,लगभग ५०० वर्षों की थी -वे इतने दीर्घकाल की सर्वांगीण परि-स्थितियों के भुक्त -भोगी एवं अध्यात्म अनुभवी महापुरुष थे।
1 टिप्पणी:
सादर नमन वंदन !
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