रविवार, 31 जुलाई 2016

नुस्खे :(नुसखें दादी माँ के )(Kitchen Remedies):

नुस्खे :

(नुसखें दादी माँ के )(Kitchen Remedies):

खजूर से तैयार की गई मिश्री (Palm Candy )थोड़ी सी लें ,अंदाज़े से (१५ -२५ ग्राम )और इसे पचास से ७५ ग्राम भिन्डी (Okra ,Lady Finger )के साथ उबाल कर ठंडा करके नियमित कमसे काम (महीना  -बीस दिन ) या और ज्यादा दिनों तक नियमित पीएं। 

It is a sort of an Internal dialysis for Kidney Health and Urinary Tract Infection .

आज़माकर देख लें,यक़ीन आ जाएगा। 

जयश्रीकृष्ण ! 


मल खाने का इतना ही शौक था तो खुद चढ़ जाते मेमन की जगह फांसी पर

Virendra Sharma shared a memory.
1 hr
झझा उरझि सुरझि नही जाना ,रहियो झझकि नाही परवाना ,
कत झखि झखि अउरन समझावा ,झगरु कीए झगरउ ही पावा।
जिस मनुष्य ने (चर्चाओं में पड़कर निकम्मी )उलझनों में ही फंसना सीखा
,उलझनों में से निकलने की विधि न सीखी ,वह (सारी उम्र )भयभीत ही रहा ,
उसका जीवन स्वीकृत न हो सका।
वादविवाद कर -करके ,तर्क ,वितंडा खड़ा करके दूसरों को सीख देने का क्या
लाभ ?
चर्चा (तर्क पंडित बनके )करते हुए अपने आपको तो केवल मात्र चर्चा करने
,उलझने -उलझाने ,व्यर्थ की बहस करने की आदत ही पड़ गई।
विशेष: जीवन तर्क के सहारे नहीं चलता ,तर्क की अपनी सीमाएं हैं ,जहां तर्क
चुक जाता है ,जीवन वही से शुरू होता है।
1 Year Ago
See Your Memories
देश में इन दिनों जिन्नाओं को पैदा करने के हालात बनाये जा रहें हैं। जिन्नाओं की खेती के लिए बेशक उर्वरक ज़मीन कांग्रेस ने गत ६७ सालों में खाद पानी डालकर तैयार की है। देश साफ़ साफ़ राष्ट्रद्रोही और राष्ट्रवादी तत्वों में बँट चुका है।एक तरफ परम्परा गत भारत धर्मी समाज के लोग हैं तो दूसरी ओर कट्टर मज़हबी और खुलेआम पाकिस्तान परस्त मार्क्सवाद के बौद्धिक टट्टू और गुलाम वंशी सोनिया मायनो के अबौद्धिक चाटुकार। न्यायपालिका का देश के सर्वोच्च न्यायालय का खुला अपमान कर रहें हैं कुछ अबुआज़मी ,ओवैसी नुमा लोग, कलाम के दोनों मर्तबा राष्ट्रपति बन ने में विरोध के स्वर मुखर करने वाले रक्तरंगी ,बौद्धिकगुलाम -लेफ्टिए तथा कुछ चैनल। 

चैनलों पे मुठ्ठी बाँध कर बोलने वाली कुछ मोतरमाएं कुछ ऐसे बात कर रहीं हैं जैसे वे भारत तो क्या अमरीका को भी देख लेंगी। 

सवाल ये है... सवाल .ये है .....जबकि सवाल एक ही है मेमन की फांसी का विरोध करने वालों की लिस्ट बनाई जाए और इनके घर से एक -एक आदमी की शहादत ली जाए ,

मल खाने का इतना ही शौक था तो 

खुद चढ़ जाते मेमन की जगह फांसी पर।
मत भूलों बौद्धिक भकुओं वो दहशदगर्द जिन्होनें बामयान की कलात्मक बौद्ध प्रतिमाओं को भी नहीं छोड़ा वो जब आयेंगे तो उनके निशाने पे आप भी होंगें वो शक्ल देखकर वार नहीं करेंगे।
इन दिनों जो कुछ चंद चैनलिये प्रायोजित कर रहें हैं आग्रहमूलक सवाल पूछ रहे हैं याकूब की फांसी को लेकर वह सीधे सीधे जनहित याचिका का मामला बनता है और वह जमालो जो हुश हुश करके ४४ सांसदों से संसद में हंगामा करवाती है चुप है। वो जो प्रेसक्लब में जाकर संसद से पारित एक प्रस्ताव की कापी फाड़कर कहता है ये सब बकवास है ला -पता है।इन्हें बस एक ही चिंता है जमीन हड़पु जीजू को कैसे बचाया जाए देश जाए भाड़ में।
इसीलिए तो संसद में हंगामा ज़ारी है।

शनिवार, 30 जुलाई 2016

महफ़िल में तेरी लौटके फिर आगया हूँ मैं , शायद मुझे निकलाकर ,पछता रहें हों आप

महफ़िल में तेरी लौटके फिर आगया हूँ मैं ,

शायद मुझे निकलाकर ,पछता रहें हों आप।

Thank you America ,away from home ,you are another home for me .I love you America ,and the people

here in from the core of my heart .

झगरु कीए झगरउ ही पावा

झझा उरझि सुरझि नही जाना ,रहियो झझकि नाही परवाना ,

कत झखि झखि अउरन समझावा ,झगरु कीए झगरउ ही पावा।  

जिस मनुष्य ने (चर्चाओं में पड़कर निकम्मी )उलझनों में ही फंसना सीखा 

,उलझनों में से निकलने की विधि न सीखी ,वह (सारी उम्र )भयभीत ही रहा , 

उसका जीवन स्वीकृत न हो सका। 

वादविवाद कर -करके ,तर्क ,वितंडा खड़ा करके दूसरों को सीख देने का क्या 

लाभ ?

चर्चा (तर्क पंडित बनके )करते हुए अपने आपको तो केवल मात्र चर्चा करने 

,उलझने -उलझाने ,व्यर्थ की बहस करने की आदत ही पड़ गई। 

विशेष: जीवन तर्क के सहारे नहीं चलता ,तर्क की अपनी सीमाएं हैं ,जहां तर्क 

चुक जाता है ,जीवन वही से शुरू होता है। 


गुरुवार, 28 जुलाई 2016

जिस प्यारे सिउ नेहू ,तिस आगे भरि चली ऐ , धिगु जीवन संसार ,ताके पाछे जीवणा , धिगु जीवन संसार

जिस प्यारे सिउ नेहू ,तिस आगे भरि चली ऐ ,

धिगु जीवन संसार ,ताके पाछे जीवणा ,

धिगु जीवन संसार।

            -------गुरु श्रीअगंद साहब

जिससे हमारा प्रेम है उसके सामने शरीर छोड़ना ही जीवन का श्रेयस है (उसी में जीवन का कल्याण है ),उसके बाद जीना निष्फल है धिक्कार है ऐसे जीवन को।

https://www.youtube.com/watch?v=popB4l_42dk


बुधवार, 27 जुलाई 2016

माया ममता मोहिनी ,जिन बिन दंता जग खाया , मनमुख खादे ,गुरमुख उबरै ,जिन राम नाम चित लाया

माया ममता मोहिनी ,जिन बिन  दंता जग खाया ,

मनमुख खादे ,गुरमुख उबरै ,जिन राम नाम चित लाया। 

 दंतहीन माया और ममता रूपा मोहिनी सारे जग को खा गई ,वे जो आत्महीन थे ,जिनका कोई गुरु न था ,कोई गुरु -परम्परा नहीं थी ,जो मन की सुनते करते थे ,मनमुख थे उन्हें माया -ममता खा गई। जो गुरुमत पर चलते थे ,गुरु की सुनते थे जिनके हृदय श्री राम बसै ,जिनका चित्त प्रभु का ही स्मरण करता था वे जीवन मुक्त हो गए। माया उनका कुछ न बिगाड़ सकी.माया के कुटुंब में भले रहो लेकिन उदास (निरपेक्ष ,बेलाग )होकर।उदासीन होकर। भागना कहीं नहीं है माया के साथ हमारा लेनदेन हो ,transaction हो ,मोह नहीं।  

जो आत्म -हीन आत्मा -हंता हैं  ,मानवबम हैं ,क़त्ल और गारद ही मचाये रहते -करते हैं ,वहीँ की वहीँ अटके हुए हैं जहां चौदह वीं शती में थे वे आपस में ही मार काट मचाये हुए हैं। 

कई आस्थाएं ,विश्वास  वहीँ अटके हुए हैं जहां मोहम्मद साहब के समय थे ,कई मायावतियां मनमुखि ,सुमुखियाँ गुरु -विहीन,दिशाहीना , आत्महीन वहीँ अटकी हुईं हैं ,संसद में आज उनकी ही अनुगूंज सुनाई देती है। 

जेहाद गुरु मुखी होना है अवगुणों के खिलाफ जंग हैं मन का सुख ,मन की गुलामी नहीं हैं। मनमानी नहीं है ,भटकाव नहीं है त्याग है अवगुणों का। 

जै-श्रीकृष्ण !


गुरुवार, 21 जुलाई 2016

प्राणी तू आया लाहा लैण ,लैगा कित कुफ़कड़ै , मुकदी चली रेन।

प्राणी तू आया लाहा लैण ,लैगा कित कुफ़कड़ै ,

मुकदी चली रेन।

ओ जीवात्मा तेरा मिशन प्रभ- नाव (प्रभु के नाम की )कमाई करना था ,तू किन व्यर्थ बातों में उलझ गया जबकि जीवन रुपी रैन वैसे ही कटती ,चुकती जाती है जैसे छिद्रिल घट (सुराख दार घड़े )से चूता -रिसता पानी।

सो क्यों मंदा आँखियै ,जित जमै राजाँ (राजे -महाराज जिसने जने हैं  ,पैदा किये हैं ,उस माता को ,औरत जात को ,नारी को ,क्यों छोटा आँकते  हो , क्यों बुरा कहते हो ,क्यों पैर की जूती समझते हो ।

चेतना है तो चैत लै ,निसदिन में प्राणी ,

खिनखिन (पल -छिन ,हर -पल, पलांश) में ओध(तेरी आयु ) बिहात (बीत रही है )है,

फूटै घट जो पानी।

अभी भी चेत जा ,तेरी आयु निरन्तर रीते होते घड़े सी  घट -बीत रही है।

राम बोले ,रामा बोले ,राम बिना कोई बोले रे।

सबमें से वही  बोल रहा है  ,वह वाणी की भी वाणी है। हर मुख का सम्भाषण है।

घर की नार सगल हित जास्यो ,रहत सगल संग लागी ,

प्रेत प्रेत कर भागी।

भावार्थ :कबीर कहते हैं वही घर की नार,तेरी औरत जिसके सारे हित तुझसे जुड़े थे ,प्राणी जब तू शरीर छोड़ गया ,प्रेत -प्रेत कहकर भागी। उसे भी जल्दी है ,शव को घर से बाहर निकालने की ,मिट्टी को ठिकाने लगाने की।

मन फूला फूला फिरै ,जगत में झूठा नाता रे ,

जब तक जीवै माता रोवै ,बहन रोये दस मासा रे ,

(और )तेरह दिन तक तिरिया रोवे ,फेर करै ,घर वासा से।

कबीर कहते हैं जीव जब तू काया छोड़ गया -तेरे जाने के बाद तेरी माँ जीवन भर रोई ,बहन दस मास तक और तेरी भगिनी ,तेरी स्त्री (तेरी औरत )सिर्फ तेरह दिन तक। इसके बाद उसने दूसरा घर बसा लिया। किस भरम में था,  रे तू ।


तूं किआ लपटावहि मूरख मना ,सुत मीत कुटंब अरु बनिता

तूं किआ लपटावहि मूरख मना ,सुत मीत कुटंब अरु बनिता

इन ते कहहु तुम कवन सनाथा।

हे मूर्ख मना ,हे निर्बुद्ध तू क्यों लिपटता है -पुत्र ,मित्र ,परिवार और स्त्री से। बता इनसे कौन सा सुख मिला है।

अनिक उपावी रोगु न जाइ ,रोग मिटै हरि अवखधु लाइ।

अनेक यत्नों से रोग नहीं जाता। एक हरि के नाम की दवा (औषधि )खाने से रोग चला जाता है।

घट घट मे हरजू बसै ,कहयो पुकार.

(तुझमें राम मुझमें राम ,सबमें राम समाया रे ,कोई नहीं है पराया रे भैया )

राम बोले रामा बोले ,राम बिना कोई बोले रे।

वारी आप्पो अपणी ,सब को ही आई वारी है ,

जिसके जी प्राण है ,क्यों साहिब मनुहो विसारी है।

(दुनिया दो दिन का है मेला सबकी बारी आनी ,उसे (रब को )याद रख क्यों बिसराये बैठा है प्राणि ,ये प्राण भी उसी से है जिसे भूले बैठा है। )

जब हम होते तब तूं नाहीं ,अब तूँ हीं मैं नाहीं।

(जब मैं था तब गुरु नहीं ,अब गुरु है मैं नाहिं ,प्रेम गली अति सांकरी तामें दो  समाई ,अहम और गुरु से मिलन साथ साथ नहीं होते )
.
दाते दात रखी हाथ अपने।

उसकी अहैतुकी कृपा उसकी मर्जी पर है।

His Causeless Mercy depends upon him whom to shower and select ,only He knows and decides.









मंगलवार, 19 जुलाई 2016

ता कउ बिघनु न लागै कोइ ,जा कै रिदै बसै हरि सोइ

ता कउ बिघनु न लागै कोइ ,जा कै रिदै बसै  हरि सोइ 

भावार्थ : उसे कोई आपदा (आफत ,मुसीबत ,विघ्न -बाधा )नहीं छू सकती जिसके मन में हरि का नाम बसता है। 

जिनके हृदय  (हृद्य )  हरि नाम बसै ,तिन और को नाम लियो न लियो ,

जिन मातु पिता की सेवा की ,उन तीरथ धाम कियो न कियो 

एक आस राखहु मन माहि माहि ,सरब रोग नानक मिटि जाहि। 

सिर्फ एक की आशा मन में रखो ,फिर सारे रोग नाश हो जायेंगे। 



Jinke Hriday Shri Ram Base-Mukesh

  • 7 years ago
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Jinke Hriday Shri Ram Basey Bhajan Singer: Mukesh Year-1976 Music- Murli Manohar Swarup Lyrics: Deepak(?) Used to hear ...

सोमवार, 18 जुलाई 2016

निरगुनु आपि सरगुनु भी ओही

निरगुनु आपि सरगुनु भी ओही 

शक्ल वाला और न शक्ल वाला आप (वो ही एक मालिक )ही है। 

सगुण -निर्गुण का साकार रूप है और निर्गुण -सगुण का निराकार रूप है। 

महाकवि पीपा कहते हैं :

सगुण मीठो खाँड़ सो ,निर्गुण कड़वो नीम ,

जाको गुरु जो परस दे ताहि प्रेम सो जीम। 

वही निर्गुण है वही है सगुण। 


निर्गुण का भावार्थ है जो अनन्त गुणों का आगार होते हुए भी ,गुणों की खान 

होते हुए भी गुणों से पार है। कोई गुण जिसे बाँध नहीं सके। माया (ये 

त्रिगुणात्मक सृष्टि ,सतो -रजो -तमो गुणी जो जीव को भरमाती है जिसकी 

नौकरानी है। उसके सामने आने से कतराती है। वही ब्रह्म है ,परमात्मा है 

,भगवान है। ).हम सभी माया द्वारा भ्रमित  हैं। 

ब्रह्म सर्वत्र व्याप्त है। परमात्मा का वास हमारा हृदय है ,भगवान  वही  भी वही  

है पूर्ण ऐश्वर्य-संपन्न। 



जो अस्थाई है निरन्तर परिवर्तनशील है अभी है कल नहीं है, वही माया है। जो 

Immutable अपरिवर्तनशील ,सनातन है स्थाई है वही पारब्रह्म है ,आत्मा है। 

हमारा सच्चिदानंद स्वरूप है यह शरीर माया है परिवर्तित Mutable है।  

तब्दील  होता रहता है निरन्तर। जब जर्जर हो जाता है आत्मा इसे छोड़कर 

कायांतरण काया बदल लेता है। 

सर्व -धर्मां परित्यज्य मां एकं शरणम् व्रज। अहम् त्वां सर्व पापेभ्य : मोक्षयिष्यामि मा शुच :

सारा जीवन (ता -उम्र ,उम्र दराज होने के बाद भी )हम सम्बन्धों से आशा (अपेक्षा )किये रहते है। जो जैसा है उसे वैसा ही सहज स्वाभाविक रूप स्वीकार नहीं कर पाते। डिनायल मोड में जीवन व्यर्थ कर लेते है।

दूसरी गलती सैदव ही (24x7x365),पल प्रतिपल निर्णायक की भूमिका बनाए रहते हैं ,हरेक के बारे में अपना वर्डिक्ट (Judgemental )देते रहते हैं निरंतर अनथक।

We are hypocritical about our dear ones ,condemnatory about our contacts ,relatives and friends .

हमारे विषाद (अवसाद )की ये दो बड़ी वजहें हैं। आज पूरी दुनिया अवसाद (अनमने पन ,सेल्फ रिजेक्शन ,खुद को बे -मानी समझना ,यूज़लेस क्रीचर समझना )के लपेटे में हैं।

श्रीमद्भगवदगीता अवसाद से आनंद की ओर यात्रा है। पहले अध्याय का नाम ही है :श्री अर्जुन विषाद योग। लेकिन यह विषाद ,ये खिन्नता मामूली नहीं है ,ये अवसाद ही अंततया अर्जुन को श्रीकृष्ण से मिलाता है।

उसे खुद से अपने स्वरूप में ,परमात्मा के भिन्नांश से मिलवाता है। श्रीकृष्ण के विराट रूप का कृष्ण प्रदत्त दिव्यचक्षुओं से साक्षात्कार करवाता है। पूर्ण शरणागति को प्राप्त करता है अर्जुन।

भक्त को चाहिए ,हम गृहस्थियों (ग्राहस्थ्य )को चाहिए अर्जुन की तरह अपने मन को उस एक रूप पर केंद्रित करें जो अर्जुन के समक्ष था (वह कृष्ण जो दोनों हाथों से वंशी धारण किये हुए हैं ,सुन्दर मुखवाले तथा अपने बालों  में मोरपंख धारण किए हुए साँवले रूप में हैं।जिनका अर्चा विग्रह हर मंदिर में। 

सर्व -धर्मां परित्यज्य  मां एकं शरणम् व्रज।

अहम् त्वां सर्व पापेभ्य : मोक्षयिष्यामि मा शुच :

समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ। मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूंगा। डरो मत।


रविवार, 17 जुलाई 2016

मन रे तू काहे न धीर धरे ,वो निर्मोही मोह न जाने

मन रे तू काहे न धीर धरे ,वो निर्मोही मोह न जाने

जिनका मोह करे।

इस जीवन की चढ़ती -ढ़लती  धूप को किसने बांधा ,

रंग पे किसने पहरे डाले ,रूप को किसने बांधा ,

काहे ये जतन करे।

उतना ही उपकार समझ कोई ,जितना साथ निभा दे ,

जनम  मरण का मेल  है सपना ,ये सपना बिसरा दे ,

 कोई न संग मरे।

मन रे तू काहे न धीर धरे ,वो निर्मोही मोह न जाने जिनका मोह करे ,

मन रे तू काहे न धीर धरे।

Chitralekha - Mann Re Tu Kaahe Na Dheer Dhare - Mohd.Rafi

  • 5 years ago
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Film - Chitralekha 1964, MD - Roshan, Lyricist - Sahir Ludhianvi, Singer - Mohd.Rafi Mann Re Tu Kaahe Na Dheer Dhare Woh ...






प्रभ की द्रिसटि महा सुखु होइ , हरि रसु पावै बिरला कोइ।

प्रभ की द्रिसटि महा  सुखु होइ ,

हरि रसु  पावै बिरला कोइ। 

मालिक की कृपा दृष्टि से बड़ा सुख है। 

इस हरि रस को कोई विरला (बिरला ) ही पाता है। 

He showers his causeless mercy on rare of the rarest .

जिन चाखिआ से जन त्रिपताने ,

पूरन पुरख नही(नहीं )  डोलाने। 

जिन्होनें (भक्ति रस )चखा है वे तृप्त हो गए हैं। 

वह पुरुष (उनके चित्त ,उनके  मन )कभी डोलते नहीं हैं। 

They remain focused are ever  satiated with love. 

"श्याम रंग में रंगी चुनरिआ अब रंग दूजो भावे  न ,

जिन नैनं में श्याम बसै हैं ,और दूसरों आवे  न। "

सुभर भरे प्रेम रस रंगि ,

उपजै चाउ साध कै संगि। 

(वे )प्रभु के आनंद से लबालब भरे हुए हैं। 

साध संगत करके यह चाव प्रगट होता है।

एक घड़ी आधी  घड़ी ,आधी की पुनि आध ,

तुलसी संगत साध की काटे कोटि अपराध।  

शनिवार, 16 जुलाई 2016

Ved Vyakhyan Swami Avdgeshanandji Ke Sath

https://www.youtube.com/watch?v=zgV9bO9fRrA

Swami Avdheshanand ji Giri ke Sath Sakshatkar

शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

धनवंता होई करि गरबावै , तृण (त्रिण )समान कछु संगि न जावै।

धनवंता होई करि गरबावै ,

तृण (त्रिण )समान कछु संगि न जावै। 

धनवाला होकर गुमान करता है तिनक (तिनके )जितना भी ,तनिक भी कुछ साथ नहीं जाता। 

आपस कउ करमवन्तु कहावै , जनमि मरै बहु जोनि भ्रमावे।

आपस कउ करमवन्तु कहावै ,

जनमि मरै बहु जोनि भ्रमावे। 

जो अपने आपको करने वाला कहता कहाता है वह जन्मता मरता और योनियों में फिरता है। 

पुनरपि  जन्मं पुनरपि मरणं ,

पुनरपि जननी  पुनरपि शरणम। 

https://www.youtube.com/watch?v=D8slUawzmPc

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

बडे बडे अहंकारीआ , नानक गरबि गले।

बडे बडे अहंकारीआ ,

नानक गरबि गले। 

जो बड़े से बड़े अहंकारा वाले हैं ,अभिमानी हैं वह अहंकार में ही गल गए हैं। 

शनिवार, 9 जुलाई 2016

सगल पुरख महि पुरखु प्रधानु , साधसँग जा का मिटै ,अभिमानु।

सगल पुरख महि पुरखु प्रधानु ,

साधसँग जा का मिटै ,अभिमानु। 

सब मनुष्यों से वह बड़ा मनुष्य है ,साध संगत (अच्छी सोहबत गुर्मुखों की ,गुरमुख ,गुरु की मानने वाले के संग ) के संग रहकर जिसका अभिमान मिट  गया है।

आपस कउ जो जाणै नीचा ,

सोऊ गनीये सभ ते ऊंचा। 

जो अपने आपको (खुद को )सबसे तुच्छ ,नीचे जाने ,बतलाये ,वह सबसे बड़ा गिना जाता है। 

हउ मैला मलु कबहु न धोवै अहंकारी मैल कभी नहीं धौ सकता।

हउ मैला मलु कबहु न धोवै 

अहंकारी मैल कभी नहीं धौ सकता। 

गुरुवार, 7 जुलाई 2016

जे रत्तु लगे कापड़ा ,जामा होइ पलीत , जे रत्तु पीवी मानसा ,तिन का क्यों निर्मल चीत।

जे रत्तु लगे कापड़ा ,जामा होइ पलीत ,

जे रत्तु पीवी मानसा ,तिन का क्यों निर्मल चीत। 

करुणा के सागर गुरुनानक देव इस साखी (शबद )में जीव हिंसा पर ,किसी भी प्रकार के मांस भक्षण पर ,सामिष आहार पर दो टूक हुकुम देते हैं -

मात्र रक्त का धब्बा लगने पर कपड़ा (वस्त्र )दूषित हो जाता है। जो मानस रक्त पीते हैं किसी भी प्रकार का मांस भक्षण करते हैं उनका चित्त कैसे निर्मल रह सकता है। उनका  अंदर(चित्त ) बाहर (शरीर) दोनों  अपवित्र हो जाता  हैं। ऐसे में जगजीवन गुसाईं उन्हें क्योंकर मिले। 

कबीर दास भी कुछ ऐसे ही भाव अभि -व्यक्त करते हैं :

बकरी पाती खात है ,ताकी काढी ख़ाल ,

जे नर बकरी खात हैं ,तिनको कौन हवाल। 

माटी कहे कुम्हार से तू क्या रूंधे (रौंदे )मोह ,

एक दिन ऐसा होएगा ,मैं रूँधुंगी (रौंदूंगी )तोह। 

कबीरा तेरी झौंपड़ी ,गल कटियन के पास ,

करेंगे सो भरेंगे ,तू क्यों भयो उदास। 

कार्मिक थ्योरी ,कर्म का सिद्धांत भी यही है -आज जिसे तुम काट रहे हो कष्ट दे रहे हो आगे वह भी ऐसा ही करेगा। 

सनातन धर्म का मूल है -दया ,प्राणि  मात्र के प्रति दया, करूणा , प्रेम। 

साचु कहों सुन लेहु सभै ,

जिन प्रेम कीओ ,

तिन ही प्रभु पाइयो 

अहिंसा परमोधर्म :

बुधवार, 6 जुलाई 2016

आगिआ भई अकाल की तभी चलाइउ पंथ , सभ सिखन को हुकम है ,गुरु मानओ ग्रंथ , गुरु ग्रंथ जी मानिऐ प्रगट गुरां की देह।

आगिआ भई अकाल की तभी चलाइउ पंथ ,

सभ सिखन को हुकम है ,गुरु मानओ ग्रंथ ,

गुरु ग्रंथ जी मानिऐ प्रगट गुरां की देह। 

गुरुओं की प्रत्यक्ष देह है ,हाजर -नाजर साहिब श्री गुरु ग्रन्थ साहिब। साध संगतजी ,चित्त में ध्यान रखने वाली बात है कि श्री गुरु गोबिंद सिंह साहिब सारी मनुष्यता का मुख श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की ओर कर रहे हैं। साधसंगत जी ,उस समय वे हमें किसके साथ जोड़ रहे हैं ?हमें किसका पल्लू पकड़ा रहे हैं ?किसके चरण कमलों में हमने सौंप रहे हैं ?उन्होंने हमें गुरु ग्रन्थ साहिब के चरण कमलों में सौंप दिया है। 

मंगलवार, 5 जुलाई 2016

अहं आत्मान्तरो बाह्यो अनावृत : सर्व -देहिनाम , यथा भूतानि भूतेषु बहिर अंत : स्वयं तथा।

अहं आत्मान्तरो बाह्यो अनावृत : सर्व -देहिनाम ,

यथा भूतानि भूतेषु बहिर अंत : स्वयं तथा। 

just as material elements are situated  within and outside all material bodies ,in the same way ,I am also present within everything as the Supersoul and outside of everything in My all-pervading feature .

Commentary :It is said that the Lord is situated within the hearts of all living beings .While considering this ,one might imagine that the Lord has separated Himself into innumerable different identities .In this verse ,however the Lord explains that His existence cannot be infringed upon by some mere material conditions .He remains unchanging in spite of displaying so many manifestations .Just as the material elements are situated both within and without all material bodies ,so the Lord is all -pervading.