योग के संदर्भ में प्राण क्या है ?
ऑक्सीजन से भी सूक्ष्म तत्व है प्राण। सर्वव्यापी है यह जीवन प्रदायिनी -ऊर्जा .हमारी काया का भी यह एक महत तत्व है। शरीर के
हर अंग की चेतना है यह प्राण।आंगिक संचालन यही "प्राण "करता है। शरीर में जो भी कुछ होता है उसे सक्रीय बनाए रखने वाला यह
प्राण ही है। रोगप्रतिरक्षण क्षमता यही मुहैया करवाता है।
इन्द्रियों को ऊर्जित यही प्राण किए रहता है।
हमारी जीवन शैली Pranic forces को असरग्रस्त करती है। हमारे कर्म (हमारी हरेक करनी ),निद्रा,खुराक ,हमारा सोच -विचार एन्द्रिक गतिविधि सब के सब इस प्राण तत्व को प्रभावित करते हैं।अविचारित(बे -तरतीब ) अस्तव्यस्त जीवन शैली इस प्राण ऊर्जा का क्षरण करती है। नतीजा होता है
"pranic blocage ".यही वजह है समय कुसमय हम बे -दमी का ,अनुभव करते हैं। इसके भंडारों का रीतना ही
मह्त्वपूर अंगों और
पेशियों के रोगों का कारण बनता है।
प्राणायाम की बहुविध प्रणालियाँ इसका पोषण करती हैं। शरीर में इसके पांच कोशों में संतुलन रखने में सहायक सिद्ध होती हैं.
prana :in yoga ,the use of inhalation ,holding the breadth
,and exhalation according to particular patterns and time
,and exhalation according to particular patterns and time
periods.
in Hinduism ,breath or breathing is referred to as pran .
Prana (प्राण, prāṇa) is the Sanskrit word for "life force"; in yoga, Oriental medicine, and martial arts, the term refers to a cosmic energy believed to come from the sun and connecting the elements of the universe. The universal principle of energy or force, responsible for the body's life, heat and maintenance, prana is the sum total of all energy that is manifest in the universe. This life energy, prana (प्राण) has been vividly invoked and described in Vedas. In Ayurveda, tantra and Tibetan medicine "praṇā vāyu" is the basic vāyu (wind, air) from which all the other vāyus arise.
In Yoga, the three main channels of praṇā vāyu are the Ida, the Pingala and the Sushumna. Ida relates to the right side of the brain, and the left side of the body, terminating at the left nostril and pingala to the left side of the brain and the right side of the body, terminating at the right nostril. In some practices, alternate nostril breathing balances the praṇā vāyu that flows within the body. In most ancient texts, the total number of nadis in the human body is stated to be 72,000. When praṇā vāyu enters a period of uplifted, intensified activity, the Yogic tradition refers to it asPranotthana.[1]
Praṇā vāyu is the basic vāyu from which all the other vāyus arise.
Vāyu | Responsibility |
---|---|
Prāṇa | Beating of the heart and breathing. Prana enters the body through the breath and is sent to every cell through the circulatory system.[citation needed] |
Apāna | elimination of waste products from the body through the lungs and excretory systems |
Uḍāna | sound production through the vocal apparatus, as in speaking, singing, laughing, and crying. Also it represents the conscious energy required to produce the vocal sounds corresponding to the intent of the being. Hence Samyama on udana gives the higher centers total control over the body. |
Samāna | the digestion of food and cell metabolism (i.e. the repair and manufacture of new cells and growth). Samana also includes the heat regulating processes of the body. Auras are projections of this current. By meditational practices one can see auras of light around every being.[citation needed] Yogis who do special practises on samana can produce a blazing aura at will.[citation needed] |
Vyāna | the expansion and contraction processes of the body, e.g. the voluntary muscular system[citation needed] |
नाच्यो बहुत गोपाल ,अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल
-सूरदास
अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल ,
काम क्रोध को पहरि चोलना ,
कंठ विषयन की माल ,
अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल।
महामोह के नूपुर बाज़त ,
निंदा सबद रसाल ,
भरम भयो ,मन भयो पखावज़,
चलतअ असंगति चाल ,
अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल।
तृष्णा नाद करत घट भीतर ,
नाना विधि दै ताल ,
माया को कटि फैंटा बांध्यो ,
लोभ तिलक दियो भाल ,
अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल।
कोटिक कला काछी बिखराई ,
जल थल सुधि नहीं काल ,
सूरदास की सबै अविद्या ,
दूर करो नन्द लाल ,
अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल।
सूरदास के आखिरी दिनों की रचना है यह प्रपत्ती मार्ग से ताल्लुक रखता है यह पद।
सूरदास कहते हैं :हे मेरे आराध्य ,मेरे परमात्मा अब मैं इस संसार के आवागमन के चक्कर में बहुत नांच लिया। इस जन्म मरण चक्र से अब मुझे मुक्त कर दो। जीव रूप में मैंने बहुत कष्ट उठाया है। अब अपने चरणों में रखके मुझे संसार के बंधनों से मुक्त करो।
काम क्रोध के वस्त्र धारण किये थे मैंने। ये वृत्तियाँ ही मेरी पहचान बन गईं। इन्द्रियों के विषयों में ही मैं आसक्त रहा। अर्थ और काम बस इसी से शोभित हुआ। संसार में मेरी बाहरी वृत्तियाँ ही प्रगट होती रहीं। इन्हीं की कंठी पहने रहा मैं।
जैसे संगीत की गोष्ठी होती है उसमें नूपुर बांधके नर्तक नर्तकी नाचते हैं ऐसे ही महामोह के नूपुर मेरे पैरों की गति बनकर मुझे नचाते रहे। मोह ही मेरे जीवन का आकर्षण बना रहा। जहां -जहां मेरा मोह था बस वहीँ वहीँ की मैंने बात सुनी। लोगों की निंदा ही मुझे रसीले गीतों सी लगी।
मन संसार के भ्रम में पड़कर पखावज की तरह बजता रहा। मैं उसी संगीत में डूबा रहा उसे ही नाद समझ बैठा। मन बुरी चाल ही चलता रहा। मेरे लिए मन की आवाज़ ही पखावज हो गई।
जैसे नाद पर संगीत लहरियां चलती हैं उसी प्रकार तृष्णा की ध्वनि को ही मैंने संगीत का नाद समझ लिया। तृष्णा का नाद ही मेरे भीतर बजता रहा। अनेक प्रकार की तालें (संगी साथी )मुझे विपथ गामी बनाते रहे। संगी साथियों ने मिलकर मेरे मोह की गति को तृष्णा के नाद को बढ़ाया। अपनी कमर में मैंने माया का फैंटा बांध लिया और लोभ का तिलक माथे पर लगा लिया। आचरण में लोभ को ही शीर्ष पर (सर्वोपरि )रखा।
अनेक प्रकार की कलाएं निर्मित करके मैंने लोगों को दिखलाई। नट बनके मैंने लोगों को दिखलाया। कोटिक कलाओं का स्वांग रचा। संसार में मैं इतना रम गया मुझे दिशाओं का भी ज्ञान नहीं रहा। अपने सुखों में ही डूबा रहा मैं। मुझे दिशा भ्रम हो गया।
मेरी सारी अविद्याएँ कृष्ण अब तुम दूर करो।
सुने इन बंदिशों को और डूबें भक्ति रससागर में।
10 टिप्पणियां:
वीरू भाई जिंदाबाद !!
बहुत सुंदर प्रस्तुति .
इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-17/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -26 पर.
आप भी पधारें, सादर ....
जय हो..बहुत दिनो बाद आ पाया, खूब आनंद आया। सूरदास जी के पदों की सुंदर व्याख्या..वाह!
प्राण पर आपकी जानकारी अच्छी है.
बहुत ही सुन्दर सर जी ,अनुभूतिपरक व्याख्या
शारीरिक क्रियाओं की वैज्ञानिक व्याख्या
सूर दास जी की रचना का इतना विस्तृत वर्णन ... मज़ा अ गया जी ... राम राम जी ...
प्राणायाम का इसी लिए इतना महत्व है..सूरदास के पद का अति सुंदर भावार्थ !
बढ़िया प्रस्तुति।।
नई कड़ियाँ : अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस (International Poverty Eradication Day)
लोकनायक जयप्रकाश नारायण
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