श्रीमदभगवद गीता अध्याय चार :श्लोक (२१-२४ )
कर्म करता हुआ भी पाप (अर्थात कर्म के बंधन )को प्राप्त नहीं होता है।
मदभगवद गीता अध्याय चार :श्लोक (२२ )
निराशीर यतचित्तात्मा ,त्यक्तसर्वपरिग्रह :
शारीरं केवलम कर्म ,कुर्वन नाप्नोति किल्बिषम।
nirashir yata-chittatma tyakta -sarva -parigrahah
shariram kevalam karma kurvan napnoti kilbisham
nirashih -free from expectations ; yata -controlled ; chitta -atma -mind and intellect ;
tyakta -having abandoned ; sarva-all ; parigrahah-the sense of ownership ; shariram -
bodily ; kevalam -only ; karma -actions ; kurvan-performing ; na -never ; apnoti -
incurs ; kilbisham -sin.
जो आशा रहित है ,जिसके मन और इन्द्रियाँ वश में हैं ,जिसने सब प्रकार के स्वामित्व का परित्याग कर दिया है ,ऐसा मनुष्य शरीर से
कर्म करता हुआ भी पाप (अर्थात कर्म के बंधन )को प्राप्त नहीं होता है।
हमारे इस लौकिक जीवन में भी ऐसा हिंसा कर्म जो हमारे द्वारा आकस्मिक तौर पर हो जाता है उसे सजा के योग्य क़ानून भी नहीं मानता है।मान लीजिये आप ट्रेफिक रूल्स का पूर्ण पालन करते हुए सावधानी पूर्वक सही लेन
में सही रफ़्तार से गाडी चला रहे हैं और कोई अचानक आप की गाडी के आगे आके दुर्घटनाग्रस्त हो दम तोड़ दे तब आपको इसकी लिए दोषी नहीं माना जाएगा बशर्ते ये सिद्ध कर दिया जाए कि इसके लिए आप दोषी नहीं हैं ,इस दुर्घटना में आपकी कैसी भी (इरादतन ,गैर -इरादतन )सहभागिता नहीं है.
असल बात है आपका इरादा आपकी नीयत आपके मन में क्या था उस वक्त कर्म उतना एहम नहीं है। रहस्य साधक संत (mystics )जो दिव्यचेतना के संग कार्य करते हैं उनके सब पाप कट जाते हैं क्योंकि उनका मन किसी व्यक्ति ,वस्तु या पदार्थ में न तो अटका ही हुआ रहता है और न कर्म करते समय वह कर्ता भाव से ग्रस्त होतें हैं।
मदभगवद गीता अध्याय चार :श्लोक (२२ )
यदृच्छालाभसंतुष्ट -ो द्वन्द्वातीतो विमत्सर :
सम : सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते।
यदृच्छाला -अपने आप जो कुछ भी प्राप्त होता है ; लाभ -अभीष्ट वास्तु का पाना ,मिलना ,वृद्धि होना प्राप्ति में ;संतुष्ट : -तुष्ट ; अतीता -किसी चीज़ के पार चले जाना ,उससे ऊपर उठ जाना ; विमत्सर : -ईर्ष्या से मुक्त ; सम : संतुलन बनाए रखना सामाजिक ,रागात्मक (संवेगात्मक )और बौद्धिक आवेगों में ,सिद्धौ -कामयाबी में ; असिद्धौ -असफलता ; च -और ; कृत्वा -कर्म करना ,निर्दिष्ट नीति से कुछ करने वाला ,निष्पादक , अपि -भी ; न -कभी भी नहीं ;निबध्यते -बंधना ,आबद्ध होना।
अपने आप जो कुछ भी प्राप्त हो ,उसमें संतुष्ट रहने वाला ,द्वंद्वों से अतीत ,ईर्ष्या से रहित तथा
सफलता और असफलता में समभाव वाला कर्मयोगी कर्म करता हुआ भी कर्म के बंधनों से नहीं
बंधता है।
जिस प्रकार एक ही सिक्के के दो पहलु ,दो पार्श्व होतें हैं वैसे ही भगवान् ने इस संसार में द्वैत की सृष्टि की है इस जगत में दिन और रात ,मीठा और खठ्ठा ,गर्म और ठंडा (सर्दी और गर्मी ),बरसात और सूखा दोनों हैं। एक ही झाड़ी में खूबसूरत गुलाब हैं और कांटे भी वहीँ हैं।जीवन भी अपने साथ सुख और दुःख ,ख़ुशी और हताशा ,विजय पराजय ,प्रसिद्धि और बदनामी दोनों लिए आता है।लीला पुरुष भगवान् राम भी इसके अपवाद कहाँ रहे हैं राज्याभिषेक से एक दिन पूर्व उन्हें वनवास मिला था।
इस संसार में रहते हुए व्यक्ति इस द्वैत से बच नहीं सकता है।सब कुछ सकारात्मक ही होता रहे यह संभव ही नहीं है। सुखद बातें हों दुःख न आये ये कैसे हो सकता है। सवाल यह है हम इस द्वैत से कैसे पेश आयें ?
हर हाल में सामाजिक ,रागात्मक संवेगात्मक ,बौद्धिक परिश्थितियों में संतुलन और समभाव बनाए रहना है। ऐसा तभी होगा जब हम फल के प्रति निरासक्त हो जायेंगे। बस कर्म करते रहेंगे फल की चिंता छोड़। हर काम जब हम भगवान् की ख़ुशी के लिए करेंगे तब उसका अच्छा -बुरा फल भी हम प्रभु इच्छा मान कर स्वीकार करेंगे। जेहि बिधि राखे राम।
श्रीमदभगवद गीता अध्याय चार :श्लोक (२३ -२४ )
गतसंगस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतस:
यज्ञायाचरत : कर्म समग्रं प्रविलीयते।
गत -संगस्य -भौतिक साधनों (पदार्थ )से निरासक्त ; मुक्तस्य -जो मुक्त हो गया है ,निरासक्त हो गया है उस से सम्बंधित ; गयाना अवस्थिता -दिव्य ज्ञान में जो अवस्थित है,प्राप्त हो चुका है ईश्वर ज्ञान को ; चेतस : जिसका ज्ञान ,दिव्यजानकारी ,प्रबोध ; यज्ञाया -परमात्मा को अर्पित ,जिसने अपने आप को होम कर दिया है ,अचरत : -निष्पादित करना ,कर्म-एक्शन ,कार्य ; समग्रं -परिपूर्ण रूप से ; प्रविलीयते -जो मुक्त हो गए हैं। हो चुकें हैं।
जिसकी ममता तथा आसक्ति सर्वथा मिट चुकी है ,जिसका चित्त ज्ञान
में स्थित है ,ऐसे परोपकारी मनुष्य के कर्म के सभी बंधन विलीन हो जाते
हैं।
They are released from the bondage of material attachments
and their intellect is established in divine knowledge
.Since they perform all actions as a sacrifice (to God ),they
8 टिप्पणियां:
अध्यात्म के गहरे पक्ष
गहन विषय की सहज व्याख्या, आभार.
रामराम.
आपकी सहज व्याख्या की प्रस्तुति कल गुरुवार (03-10-2013) को "ब्लॉग प्रसारण : अंक 135" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
लौकिक जीवन का दिव्य ज्ञान ...
आभार ।
जानने योग्य विचार ....
गहन विषय की सहज व्याख्या.
अभिनव गीता भाष्य
jivn me utaarne yogy batten ....
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