गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते येन जातानि जीवन्ति यत्प्रयन्त्यभिसंविशन्ति। (तैत्तीरीय उपनिषद ३. १. १ ) जन्माद्यस्य यत: .(वेदान्त दर्शन ) "God is He ,Who has created this world ."

क्या आप जानते हैं आप कौन हैं ?


बच्चो!हमारा शरीर कोशिकाओं का बना है लेकिन हरेक सात साल के बाद हमारे शरीर की सारी कोशाएं (कोशिकाएं ,Human Cells 

)बदल 

जाती हैं। हमारा शरीर लगातार बदल रहा है आकार में भी। आपके घर में जो एल्बम है उसमें आपके मम्मी -पापा की भी अनेक फोटों 

होंगीं, बचपन की किशोरावस्था की ,जब पढ़ते थे तब की,उनकी शादी की और ताज़ा तस्वीरें भी कुछ तो होंगी । आप उनमें साफ़ एक 

बदलाव देखते होंगें। दादा जी की तस्वीरों में ये बदलाव और भी ज्यादा साफ़ दिखाई देता होगा। लेकिन एक ऐसी चीज़ भी है हमारे अन्दर 

जो कभी बदलती नहीं है। वह आदमी के जीवन के हर चरण में हर स्टेज में एक जैसी रहती है और वह है व्यक्ति की चेतना ,चेतन ऊर्जा 

(Non -material energy )इसे दिव्यशक्ति भी कहा जाता है। यह सनातन है। सदा रही है आपके साथ जनम जनम से युगों -युगों से यही 

आपके काम करने की शक्ति है। हाथ पैरों में यही चेतना है। 

उम्र के साथ शरीर जर्जर क्षीणकाय होता जाता है और एक दिन इस दिव्य ऊर्जा को संभालने में असमर्थ हो जाता है तब यह चेतन ऊर्जा 

,जीवन ऊर्जा ,लाइफ़ फ़ोर्स (Life force )शरीर को छोड़ जाती है। शरीर और जीवन ऊर्जा के इस अलगाव को ही मृत्यु कहते हैं।

इस जीवन ऊर्जा को ही आत्मा कहा जाता है। शरीर इसके कपड़े  हैं। जैसे आप अपने पुराने वस्त्रों को छोड़ नए ले लेते हो ये आत्मा भी ले 

लेती है। यही उसका नया जन्म होता है। यह दिव्य ऊर्जा हमेशा हमेशा जीव के साथ रहती है। रही है और रहेगी। मृत्यु शरीर की होती है।

 आत्मा कभी नहीं मरती है। इसे दूसरा शरीर मिल जाता है अच्छे बुरे कर्मों 

के हिसाब से।

बच्चो !क्या आप जानते हैं ,आत्मा का पिता  कौन है ?


आत्मा का पिता परमात्मा है दोनों दिव्य ऊर्जा हैं सनातन काल से इन दोनों का अस्तित्व बना हुआ है।  जब बच्चा माँ के गर्भ में आता 

है तब फिमेल एग (ओवम ,Ovam )तथा पिता के शुक्र (sperm ,spermatozoon ,plural spermatozoa )से उसका शरीर  बनता है।

आत्मा बाहर से आने वाली दिव्य ऊर्जा है जो परमात्मा का अंश है।परमात्मा भेजता है इसे व्यक्ति के पूर्व जन्मों  के कर्मों के हिसाब 


से।


परमात्मा ने ही ये दुनिया बनाई है। उसी के अन्दर ये सारा विश्व समाहित है ये दस खरब (one thousand  billion   

)नीहारिकाएं(galaxies ) इनमें से हरेक में एक ख़रब सितारे (one  hundred billion  stars  ). सब परमात्मा में ही स्थित हैं। जब यह 

सृष्टि नष्ट होती है सब कुछ परमात्मा में ही समा जाता है। 

वेदों के इस श्लोक का यही अर्थ है :


यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते येन जातानि जीवन्ति 

यत्प्रयन्त्यभिसंविशन्ति। (तैत्तीरीय उपनिषद ३. १. १ )

जन्माद्यस्य यत:  .(वेदान्त दर्शन )

"God is He ,Who has created this world ."

3 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

ईश्वर के बारे में कोई भी चर्चा ऐसी ही परिभाषाओं से प्रारम्भ हो..लोग स्वतः ही उसे परिभाषित कर असिद्ध कर देते हैं।

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

आत्मा ,परमात्मा ,ईश्वर ,अल्लाह ,गॉड सब मनुष्य के वुद्धि के परिधि में है ,वास्तविक परम शक्ति शायद इस परिधि से बाहर है ,तभी आजतक ईश्वर का स्वरुप का पता नहीं लगा l केवल कल्पना के आधार पर सब टिका हुआ है l
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दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत आसानी से आत्मा, यानी ऊर्जा का परमात्मा से संबंध ओर जीवन चक्र को स्पष्ट कर दिया ...
राम राम जी ...