गजल : देश की तस्वीर धुंधली हो गई
-डॉ. वागीश मेहता नन्द लाल ,
भाव सहचर्य(सहचर )वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
देश की तस्वीर धुंधली हो गई ,
वोट का चेहरा खिला ,उजला गया।
(१)
मंद बुद्धि मेमना हुंकार ऐसी मारता ,
हौसला भी 'सिंह 'का ,गश खा गया।
(२)
'मौन ' जब मोहने लगा वक्ताओं को ,
गूंगा खुद दर्पण हुआ हरषा गया।
(३ )
दाल चावल मुफ्त में मिलने लगे ,
दोस्तों मौसम चुनावी आ गया।
(४ )
देखते ही देखते बम धर गया ,
सेकुलर कम्युनल मुद्दा छा गया।
(5)
मौन मोहन जब से वक्ता हो गया ,
गूंगा खुद दर्पण हुआ इतरा गया।
(5)
मौन मोहन जब से वक्ता हो गया ,
गूंगा खुद दर्पण हुआ इतरा गया।
प्रस्तुति :वीरुभाई
10 टिप्पणियां:
are waah ......sundar ....
बढियां
बुरे हाल हैं शर्मा जी।
सही कहा वीरेन्द्र जी ... वास्तव में यही हालात बन चुके हैं
आपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल 20/10/2013, रविवार ‘ब्लॉग प्रसारण’ http://blogprasaran.blogspot.in/ पर भी ... कृपया पधारें ..
सुन्दर और सटीक |
नई पोस्ट महिषासुर बध (भाग तीन)
हालात का सही जायजा ...
चुनावी मौसम तो आ गया ... राम राम जी ...
सुन्दर ....
बहुत बढ़िया वीरेंदर जी
सशक्त रचना..
उम्दा है
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