रविवार, 19 अप्रैल 2020

जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार को निर्णायक रूप से कम कर सकता है पुनर्वनीकरण

जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार को निर्णायक रूप से कम कर सकता है पुनर्वनीकरण

'We can restore one trillion trees -this will powerfully slow down climate change 'TOI ,April 18,2020,TIMES EVOKE,P10

एक पेड़ हज़ार नियामत। पेड़ों का उपकार कहाँ तक गिनिए गिनाइयेगा -नामुमकिन है -साफ़ हवा पानी  खाद्य दवा से लेकर जीवन हर ज़रूरियात को पूरा करते हैं वृक्ष। उपजाऊ मिट्टी को बांधे रहकर ऊपरी परतों को ढृढ़ता से रोके रहते हैं तरुवर। हज़ारों हज़ार प्रजातियों (सूक्ष्म जीव ,फफूंदी से लेकर मनुष्य तक )को टेका दिए रहते हैं वृक्ष। ज़मीं मुहैया करवाते हैं सूक्ष्म जीवों को पनपने की।हमारे उपभोग के लिए वृक्ष वायुमंडल से कार्बनडाइऑक्साइड और सूरज की रौशनी लेकर बदले में हमें प्राण वायु ऑक्सीजन प्रदान करते हैं।

 कार्बन का अभिग्रहण इनके द्वारा लगातार होता रहता है कार्बन के ये बड़े सिंक हैं। जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार को थामने में इनके द्वारा कार्बन कैप्चर  कार्बन का अभिग्रहण बड़ा एहम है।
सहजीवन ,सिम्बिओटिक लिविंग, लिविंग टुगेदर ,आर्ट आफ लिविंग  के मानी सिखलाने में वृक्ष हमारे गुरु हैं वैसे भी ये पृथ्वी  के वरिष्ठ नागरिक हैं जो यहां  पर चालीस करोड़ बरसों से आबाद हैं। हमें इस ग्रह पर आये दस करोड़ बरस ही हुए हैं। सूक्षजीवों फफूंद आदि के साथ इनका परस्पर संवर्धित  जीवन यापन काबिले  तारीफ़ ही नहीं अनुकरणीय भी है। वृक्ष जिस कार्बन का अभिग्रहण वायमंडल से करते हैं उसका बहुलांश मिट्टी  में  दाखिल हो जाता है इसी पर सूक्ष्मजीव बसर करते हैं।जहां फफूंद वृक्षों की जड़ों  जल और अन्य पुष्टिकर तत्व मुहैया करवाते हैं वहीँ वृक्ष शानदार  शुगर (शक्कर )इन्हें प्रतिदान में हासिल करवाते हैं। सूर्य की अपार ऊर्जा उसकी शानदार रौशनी लेकर ये कार्बन का अभिग्रहण हमारे आसपास मौजूद कार्बनडाइआक्साइड से करते हैं    इसी की मदद से पादप  शुगर तैयार करते हैं।

विज्ञानिओं ने पता लगाया है इस समय हमारी पृथ्वी पर तकरीबन तीस ख़राब तरुवर (3 triilion trees on earth as of now )मौजूद हैं। सभ्यता के पींग भरने से पहले यह आंकड़ा इससे दो गुना था। वर्तमान में तकरीबन हर साल दस अरब वृक्ष कम हो रहें हैं एक तरफ ये अमूल्य नुकसानी जैव -विविधता का  सफाया कर रही है तो दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन की वजह भी बन रही है।

नाउम्मीद होने की कोई वजह नहीं है  विज्ञानियों ने पता लगाया है निम्नीकृत हो चुकी भूमि का ऐसा बड़ा इलाका मौजूद है जिस पर दस ख़राब वृक्ष -रोपण मुमकिन है ,जरूरत हमारी पहल की है। इस ज़मीन का खेती के लिए इस्तेमाल नहीं हो रहा है न ही यह बिल्डर्स रीयल्टर्स के काम आ रही है यहां वनों का विकास होने पर वृक्ष सीधे सीधे १०० -२०० गीगा टंस कार्बन वायुमंडल से सोख लेंगे।इससे एक तरफ जैव -विविधता सप्राण होगी दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार भी थमेगी नहीं तो कमतर ज़रूर हो जायेगी। इस शती  के  अंत के कार्बनएमिशन  के लक्ष्य पेरिस समझौते के अनुरूप रहें तभी बात बने।

संयुक्त राष्ट्र ट्रिलियन ट्री केम्पेन एक महायज्ञ है जिसमें अमीर गरीब तमाम देशों को आहुति डालनी चाहिए। सार्स -कोव -२ के दौरान इस दिशा में पहल करने में अब देरी नहीं करनी चाहिए जबकि जीवन की क्षण भंगुरता को उजागर करने में भी वृक्ष किसी कोरोना से पीछे नहीं है हमारे भावजगत को भी आलोड़ित करते हैं पेड़ :

तरुवर बोला पात से सुनो पात एक बात ,
या जग या ही रीत है एक आवत एक जात। 

पत्ता टूटा डार से ले गई पवन उड़ाय ,
अब के बिछड़े कब मिलें दूर पड़ेगे  जाय।
सन्दर्भ -सामिग्री :https://timesofindia.indiatimes.com/the-tree-of-our-lives/articleshow/75211584.cms

प्रस्तुति सर्वथा मौलिक एवं अन्यत्र अप्रकाशित है।
वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
२४५ /२ ,विक्रम विहार ,शंकर विहार कॉम्प्लेक्स ,दिल्ली छावनी -११० ०१०

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