शनिवार, 12 मई 2018

कहीं फ़िर किसी बदनसीब को कहना न पड़े - कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़न के लिए , दो गज़ ज़मीं भी न मिली कु -ए -यार में।

नमस् से बना है नमाज़ जबकि वन्दे का भी वही अर्थ है जो नमस् का है, लेकिन वन्दे -मातरम कहने से हमारे माशूक को परहेज़ है 

'ख़ुद - आ ' करते -करते मुद्द्त हो गई 'ख़ुदा' ख़ुद तो तब आये  जब मन में हो ,हृदय गह्वर में हो। ध्यान का कोई कॉन्सेप्ट (अवधारणा ),विचार ,तस्सवुर ही नहीं है इस्लाम में ,अरूप है अल्लाह (ख़ुदा ) भले उसके निन्यानवें (९९ )नाम हों ,कबीर ,अकबर ,अर्रहमान , अर-रहीम  ,अलमलिक,अस्सलाम ,...... (https://99namesofallah.name/)

परमात्मा अनंत कोटि अवतार लेता है ,ध्यान हो उसका लौ लगी हो उससे , उसकी। मन में हो वह। सब में बस वो ही दिखे -

तू -तू करते 'तू' हुआ मुझ में रही न 'मैं '

लागी छूटे न अब तो सनम। ...

 शीशाए दिल में छिपी तस्वीरें यार  ,

जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली। .... 

तुम मेरे पास होते हो गोया जब कोई दूसरा नहीं होता। .... 

मुद्दा है सड़कों पर नमाज़ पढ़ने का।  .... 

जिस जगह नमाज़ पढ़ ली वो जगह मस्ज़िद  हो गई पाकीज़ा हो गई। मस्जिद किसी इमारत का नाम नहीं हैं। 

मस्जिदें कम हैं ,औलाद पैदा कम करो ,

सुपुर्दे ख़ाक के लिए भी जगह चाहिए।

हिन्दुस्तान को कब्रिस्तान बनाना है तो खूब पैदा करो बच्चे। .... 

हम दो ,हमारे दो ,सबके दो। ... तुम्हारे भी हमारे भी। .... 

शव , मुर्दे और ख़ाक होने के बीच एक बटन दबाने भर का वक्फा है ,फ़ासला है। 

कहीं फ़िर किसी बदनसीब को कहना न पड़े -

कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़न के लिए ,

दो गज़ ज़मीं भी न मिली कु -ए -यार में। 

वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा )

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