मंगलवार, 14 अगस्त 2012

क्या है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा की बुनियाद ?


क्या है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा की बुनियाद ?

यह चिकित्सा व्यवस्था इस वैज्ञानिक तथ्य पर आधारित है कि हमारा स्नायुविक तंत्र (नर्वस सिस्टम )हमारी काया की हरेक कोशिका ,ऊतक ,प्रत्येक अंग और कायिक प्रणाली को नियंत्रित करता है .

हमारे कायिक तंत्र में शरीक है हमारा मस्तिष्क ,मेरु रज्जू (स्पाइनल कोर्ड ),तथा लाखों -लाख तंत्रिकाएं (नर्व्ज़ ,नसें ,स्नायु ).

जहां हमारे दिमाग को एक सुरक्षा कवच हमारी खोपड़ी या इस्कल मुहैया करवाता है वहीँ रीढ़ रज्जू की हिफाज़त के लिए 24 चल (गतिशील ,हरकत करती रहने वाली )अस्थियाँ (मौजूद )हैं .

हमारी रोज़ -मर्रा की कई गतिविधियाँ ऐसी हैं जो इन मेरु -अश्थियों को   अपनी सामान्य जगह (स्थिति ,पोजीशन )से हटा देतीं हैं .यही विचलन या विस्थापन ,अस्थियों का अपनी जगह छोड़ कर हटना स्नायुविक तंत्र के काम में प्रकार्य में खलल डालता है .नतीजा होता है बीमारी ,खराब सेहत .

काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा का काम हमारे इसी खराब हो गए स्नायुविक प्रकार्य की दुरुस्ती है .कहाँ खराबी है इसका पता लगाकर इस गडबडी को धीरे धीरे दूर करके ,नर्वस सिस्टम के प्रकार्य को आइन्दा खराब होने से रोकने के बचावी उपाय भी किये जातें हैं काइरोप्रेक्टर द्वारा .

पहला काम होता है रीढ़ के उन हिस्सों का पता लगाना जो अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहे थे .इसके बाद स्पाइनल  अडजस्टमेंट (रीढ़ की हड्डियों का परस्पर पुनर -समायोजन ) किया जाता है .आपकी उम्र ,उस समय की स्थिति ,आपकी जीवन शैली तथा आपकी और सिर्फ आपकी विशिष्ठ  रीढ़ सम्बन्धी समस्या की देख भाल और बेहतर रख रखाव की रणनीति तैयार की जाती  है .

Specific adjustments

 इलाज़ की शुरुआत ख़ास काइरोप्रेक्टिक एडजस्टमेंट से होती है .सैंकड़ों तरीके काइरोप्रेक्टर के पास सुनिश्चित दिशा में नियंत्रित दाब डालने के असर ग्रस्त रीढ़ के हिस्सों पर आजमाए जातें हैं ताकि जड़ होते जा रहे रीढ़ के जोड़ों को दोबारा हरकत में लाया जा सके .दोबारा उन्हें अपने मूल स्थान पर जहां से वह हट गए हैं समायोजित किया जा सके .इस एवज "कुइक थ्रस्ट "यकायक तेज़ धक्का देकर दाब डालने की तरकीब ,धीमा और नियत दाब भी काम में लाया जाता है .

कुछ काइरोप्रेक्टर सारा समायोजन हाथों से ही करते हैं ,कुछ ख़ास किस्म से तैयार की गई मेजों और उपकरणों का भी इस्तेमाल करते हैं .ये विशेष टेबिल अनेक लीवरों से लैस रहतीं हैं .

कभी स्पाइन के सिर्फ एक ही हिस्से को एडजस्ट किया जाता है ,तो कभी पूरी रीढ़ का ही समायोजन किया जाता है .कई मर्तबा मरीज़ की अपनी काया के वजन का ही एडजस्टमेंट में इस्तेमाल किया जाता है .हरेक कायरोप्रेक्टिक चिकित्सक की अपनी प्राथमिकता और चयन होता है जो उसके विशेष प्रशिक्षण ,तजुर्बे से ताल्लुक रखता है .मरीज़ की ख़ास समस्या के मद्दे नजर ही रणनीति तैयार करनी पड़ती है .कुछ समायोजनों में तड़ाक -तड़ाक की धीमी आवाज़ भी सुनाई दे सकती है .

यह फैंट पोपिंग साउंड गैस और तरल के अपना स्थान बदलने से एडजस्टमेंट के दौरान पैदा होती है .इन आवाजों की तीव्रता या तेज़ी का कोई विशेष अर्थ नहीं होता है .हर मरीज़ में इन आवाजों का आयाम (शोर )अलग मात्रा में मिलेगा .सबकी काया अलग और विशिष्ठ है यहाँ .

Other procedures

आइस ,हीट,मसल और सोफ्ट टिशु पुनर्वास चिकित्सा (Ice ,Heat ,muscle ,soft tissue rehabilitation therapy ) भी काम में ली जातीं हैं .पोषक तत्वों ,पुष्टिकर खुराख ,व्यायाम जो मरीज़ को खुद घर पे करना है ,तथा कुछ और प्रोसीज़र्स (तरीकों ,तरकीबों ,प्राविधियों )का भी सहारा लिया जाता है .

Chiropractic care is safe

एस्पिरीन ,मसल रिलेक्सर्स तथा बेक सर्जरी से कहीं बेहतर और सुरक्षित ,पार्श्व प्रभाव से रहित है काइरोप्रेक्टिक एडजस्टमेंट .अनेकों शोध अध्ययनों से इस चिकित्सा की कारगरता और निरापदता प्रमाणित हो चुकी है .परम्परा गत चिकित्सा तरकीबों तकनीकों के बरक्स  इस चिकित्सा व्यवस्था ने अपनी एक साख बना ली है .

लाखों लाख लोग रीढ़ समायोजन ,स्पाइनल एडजस्टमेंट का दिनरात फायदा उठा  रहें  हैं .कमोबेश  संतुष्ट  हैं इस प्रणाली   से .

an accomplished profession

आज काइरोप्रेक्टिक चिकित्सक ख़ास पढ़ाई किए रहता है .अन्य चिकित्सकों की तरह इसे ग्रेजुएशन  तो करना ही पड़ता है .चार साला उत्तर स्नातक पाठ्यक्रम   भी पूरा करना पड़ता है .प्रेक्टिस शुरु करने से पहले नेशनल बोर्ड एग्जामिनेशन में उत्तीर्ण होना पड़ता है .बाद इसके लाइसेंस प्राप्त करना पड़ता है जिसके कायदे कानूनों में किसी किस्म की कोई ढील नहीं दी जा सकती .

नवीनतर शोध से बा -वास्ता ,बा -खबर रहने के लिए इन्हें अनेक सेमीनार अटेंड करने पडतें हैं .विज्ञान विमर्श और व्यावसायिक जर्नल पढने ज़रूरी होतें हैं .इनके काम का बा -कायदा औडिट होता है हर साल .

diagnostic  imaging

मरीज़ के कायिक परीक्षण के बाद ज़रुरत के मुताबिक़ एक्स रे तथा दूसरे नैदानिक परीक्षणों ,रोग नैदानिक इमेजिंग आदि का भी सहारा लिया जाता है .इससे रीढ़ में आये विरूपणों का सटीक पता चल जाता है .इसी रोग निदान के बाद विशेष काइरोप्रेक्टिक कार्यक्रम तैयार किया जाता है .

a  team work approach

काइरोप्रेक्टर के क्लिनिक में आने का मतलब ही यह है कि आप एक विशेष साझेदारी में शामिल होने जा रहें हैं .आपका वर्तमान स्वास्थ्य आपकी आदतों ,जीवन शैली ,आपके तमाम क्रिया -कलापों अब तक जिए गए जीवन की तमाम परिश्तिथियों का ज़मा जोड़ है .आपके व्यतीत के बारे में कुछ ख़ास नहीं किया जा सकता लेकिन काइरोप्रेक्टर आपके भविष्य का नियामक हो सकता है .आप सेहत के सही मायने यहाँ आकर समझ सकतें हैं .काइरोप्रेक्टर की हिदायतें भविष्य  नै दिशाएँ ,नए आयाम दे सकतीं हैं .

9 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

एक नायब विधि से चिकित्सा की जानकारी आपने दी है। भविष्य में यह काफ़ी लाभप्रद होने वाला है।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

अच्छी जानकारी मिली चिकित्सा विधि पर

ZEAL ने कहा…

great post Sir ..Thanks.

Sanju ने कहा…

Very nice post.....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.

***HAPPY INDEPENDENCE DAY***

दिगम्बर नासवा ने कहा…

रीड से जुडी है ज्यादातर बीमारियों की जड़ ...
इस चिकित्सा विद्या पे अच्छी जानकारी डी है आपने ..
कहीं ऐसा तो नहीं प्राचीन मसाज या एकुप्रेषर भी इसी चिकित्सा को ध्यान में रख के बने हों ...
राम राम जी ...

SM ने कहा…

अच्छी जानकारी

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वीरू भाई का अंदाज
कुछ अलग निराला है
बहुत उम्दा विषय
लाकर दे जाते हैं
जिनपर हमारे दिमाग
पर पड़ा एक ताला है!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

तभी कहते हैं कि जीवनशैली ही सब रोगों की जड़ होती है।

Rajesh Kumari ने कहा…

चिकित्सा विधि पर विशेष जानकारी देती लाभप्रद पोस्ट हार्दिक आभार