शनिवार, 25 अगस्त 2012

आखिरकार सियाटिका से भी राहत मिल जाती है .घबराइये नहीं .

गृधसी नाड़ी और टांगों का दर्द (Sciatica & Leg Pain)

सुष्मना  ,पिंगला और इड़ा हमारे शरीर की तीन प्रधान नाड़ियाँ है लेकिन नसों का एक पूरा नेटवर्क है हमारी काया में इनमें से सबसे लम्बी नस को हम नाड़ी कहने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहें हैं .यही सबसे लम्बी और बड़ी (दीर्घतमा ) नस (नाड़ी )है :गृधसी या सियाटिका .हमारी कमर  के निचले भाग में पांच छोटी छोटी नसों के संधि स्थल से इसका आगाज़ होता है और इसका अंजाम पैर के अगूंठों पर जाके होता है .यानी नितम्ब के,हिप्स के , जहां जोड़ हैं वहां से चलती है यह और वाया हमारे श्रोणी क्षेत्र (Pelvis),जांघ (जंघा ) के  पिछले  हिस्से ,से होते हुए घुटनों पिंडलियों से होती अगूंठों तक जाती है यह अकेली नस ,तंत्रिका या नाड़ी(माफ़ कीजिए इसे नाड़ी कहने की छूट आपसे ले चुका हूँ ).

क्या है   गृधसी की रोगात्मक स्थिति ?

What Is Siatica ?

इस दीर्घतमा नाड़ी की सोजिश एक ऐसी रोगात्मक स्थिति पैदा करती है जिसका हश्र होता है बेहद की असह पीड़ा में .दर्द की लहर नाड़ी के शुरु से आखिरी छोर  तक लपलपाती आगे तक जाती  .लेकिन यह लहर कमर की तरफ भी ऐसे ही  जा सकती है .आयुर्वेद के हिसाब से यह "वात नाड़ी" है जो "वात तत्व" के बढ़ जाने पर सूज कर सक्रीय हो जाती है .शरीर में वात बढ़ने से  गृधसी रोग होता है .योग चूडामणि में भी दस बड़ी नाड़ियों का ज़िक्र है .७२,००० छोटी छोटी रेखाओं सी फैली नसों का भी  ज़िक्र है .जिनमें दस बड़ी नाड़ी यहाँ बतलाई गईं हैं .

इस असह पीड़ा के अलावा सुइयों की चुभन ,जलन और शरीर के इन हिस्सों की चमड़ी में एक चुभन के अलावा झुनझुनी भी चढ़ सकती है कील की चुभन भी पैदा होती है .लग सकता है इन हिस्सों में कीड़े मकोड़े रेंग रहें हैं ,छूने पर दर्द कर सकता है ये हिस्सा ,एक दम से संवेदनशील हो जाता है .इसके ठीक   विपरीत टांग सुन्न भी हो सकती है .सुन्ना सा लग सकता है टांग में (पिंडलियों और एडी के बीच का हिस्सा सुन्न भी पड़ सकता है ).

मामला तब और भी जटिल हो जाता है और इस मर्ज़ के लक्षण कुछ और  उग्र जब कुछ लोगों में यह दर्द टांगों के अगले भाग को या पार्श्व को भी अपनी चपेट में लेने लगता है ,नितम्बों में भी होने लगता है  जबकि अकसर यह टांगों  या जंघा के पिछले हिस्से तक ही सीमित रहता है .

कुछ में यह दर्द दोनों टांगों में आजाता है इसे तब कहतें हैं -दुतरफा  गृधसी(bilateral sciatica).

Like A Knife 

बेशक तीर क्या तलवार की माफिक काटता है यह पैन .लेकिन इसकी किस्म सर्वथा यकसां नहीं रहती .लपलपाता स्पन्द सा होने के बाद यह शमित भी हो जाता है .घंटों क्या दिनों नहीं लौटेगा .और कभी चाक़ू की नोंक सा काटेगा असरग्रस्त  हिस्से को . बहुत ही कष्ट प्रद और गंभीर ,उग्र अवस्था में इसमें प्रतिवर्ती क्रिया (रिफ्लेक्सिज़ ) भी क्षीण होने लगती है ,ऐसा होने पर आप एकाएक हरकत में नहीं आ पाते .

पिंडली की पेशियों का भी अप विकास हो सकता है .कमज़ोर पड़ सकती है यह पेशी .अच्छी नींद सियाटिका से ग्रस्त लोगों में एक खाब बनके रह जाती है .

चलना फिरना ,झुकना मुड़ना दिक्कत का काम हो जाता है बैठना ,उठना भी मुहाल हो जाता है .सबसे ज्यादा अक्षमता का एहसास उन लोगों को होता है जो कमर के निचले  दर्द के साथ सियाटिका से भी परेशान रहतें हैं .सब दर्दों का दादा होता है यह दर्द .

गृदधी समस्या की वजूहातें (Causes Of Sciatica):-

अनेक  वजूहातें  होती  हैं इस समस्या की .

(१)रीढ़ का सही सलामत न होना अस्वाभाविक रोग पैदा करने वाली स्थिति में होना ,साथ में डिस्क का बहि:सरण  बाहर की ओर निकलने की कोशिश करता होना ,यही बहि :सरण इस सबसे बड़ी नाड़ी के लिए दाह उत्पादक साबित होता है प्रदाह कारक और विक्षोभ पैदा करता है ,उत्तेजित कर देता है सियाटिका को .बस लपलपाने लगती है सियाटिका .

(२)दुर्घटना और चोटील होने पर यहाँ तक, प्रसव भी इसके उत्तेजन और इर्रिटेशन की वजह बन जाता है .कारण होता है रीढ़ के संरेखण में बिखराव आना ,मिसएलाइनमेंट आजाना रीढ़ में .

(३) मधुमेह के बहुत आगे बढ़ चुके मामलों में भी यहाँ तक की आर्थ -राइटिस  ,कब्जी और ट्यूमर्स भी इसकी वजह बनते देखे गएँ हैं .

(४ )कुछ विटामिनों की कमीबेशी भी .

क्या समाधान है अंग्रेजी चिकित्सा व्यवस्था एलोपैथी के पास सियाटिका का ?

आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था भी जैसा कि हर मामले में होता है यहाँ भी सियाटिका के लक्षणों का इलाज़ करती है .इस एवज दर्द नाशियों के अलावा मसल रिलेक्सर्स का भी इस्तेमाल किया जाता है विकलांग चिकित्सा सम्बन्धी युक्तियों यानी अस्थियों या मांसपेशियों की क्षति और रोगों की चिकित्सा में इस्तेमाल होने वाली युक्तियों को भी आजमाया जाता है यथा ट्रेक्शन और फिजिकल चिकित्सा .

ट्रेक्शन या अंग -कर्षण टूटी हुई हड्डी को जोड़ने का एक ढंग है जिसमें विशेष उपकरणों से हड्डी को धीमे -धीमे खींचकर अपनी  जगह ज़माया जाता है .

अकसर दर्द  नाशियों से काबू नहीं ही आता है यह लपलपाता फड़कता दर्द सियाटिका इसलिए संभावना यही रहती है कि ऐसे मरीजों पर ओपीओइड्स  आजमाए जाएं .

ओपीओइड्स अपने असर में मार्फीन जैसे ही होतें हैं वैसे इन पदार्थों में (ओपीओइड्स में ) ओपियम मौजूद रहता है जो दिमाग में कुदरती तौर पर पैदा होता है .

Opium is a brownish gummy extract from the unripe seed pods of the opium poppy that contains several highly addictive narcotic alkaloid substances , e.g .morphine  and codeine .It is something that has a stupefying ,numbing ,or sleep inducing effect .

आराम आता है ,आ सकता है ,तब जब दर्द नाशी सीधे सीधे सुइयों के जरिये नर्व रूट्स तक पहुंचाए जाते हैं .यहाँ इन पर निर्भरता पैदा होने का जोखिम तो पैदा हो  ही जाता है .अति उग्र और पेचीला मामलों में   - 

ओर्थ्रपीडइक सर्जरी भी करनी पड़ती है .हालाकि बरसों तक सियाटिका से आजिज़ आचुके लोगों को मुकम्मल आराम करना ,बेड रेस्ट भी बतलाया जाता  है लेकिन कहीं से भी पुष्ट नहीं हुआ है कि यह कारगर रहता है कमर के निचले हिस्से में दर्द और सियाटिका के मामलों में .

क्या किया जाता है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा के तहत ?

काइरोप्रेक्टिक केयर से सियाटिका के अनेक  मामलों में जादुई असर होते देखा गया है .सियाटिका और टांग में दर्द से तंग आये लोगों ने इसे ट्रेक्शन और दर्द नाशियों  से बेहतर और कारगर  उपाय बतलाया है .अकसर इस चिकित्सा व्यवस्था को लेने के बाद कितनों को ही सर्जरी की ज़रुरत नहीं पड़ी है .

एक अध्ययन नोर्वे में किया गया था जिसमें  सभी ४४ कर्मी ऐसे थे जिन्हें सियाटिका के उग्र रूप लेने पर अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था .यहाँ मौजूद काइरोप्रेक्टर ने इन्हें रीढ़ समायोजन ,मुनासिब स्पाइनल एडजस्टमेंट मुहैया करवाया इनमें  से ९१% औसतन २१.१ दिन के बाद ही काम पर लौट गए .आंशिक तौर पर नहीं परिपूर्ण रोजाना का पूरा निर्धारित काम ये करने  लगे ,शेष भी अंश कालिक समय के लिए काम पे चले गए .

अध्ययन में औसतन हरेक मरीज़ ७२ दिनों के लिए सामान्य नहीं रह  पाया था  , अक्षम पाया गया इस अवधि के लिए .जबकि काइरोप्रेक्टिक केयर से  काम पे लौटने का समय सिर्फ २१ दिन ही घटके रह गया था .ज़ाहिर है यह अवधि भी ७०% कमतर हुई थी .

एक नियंत्रित अध्ययन (कंट्रोल्ड स्टडी )में चार रणनीतियां अपनाई गईं .

(१) रीढ़ की देखभाल (स्पाइनल केयर )

(२)अंग कर्षण 

(३)और (४)में दो तरह के इंजेक्शन आजमाए गए 

स्पाइनल केयर लेने वाले समूह को अधिकतम स्वास्थ्य लाभ पहुंचा .अंग कर्षण समूह के तो बहुत सारे लोगों को सर्जरी की नौबत आ गई ,करवानी पड़ी .

एक और अध्ययन में २०-६५ साला ऐसे बीस मरीजों को शामिल किया गया जिनकी टांग में कमर के निचले हिस्से से सम्बद्ध दर्द था .इन्हें तीन वर्गों में रखा गया जिन्हें ,मेडिकल केयर ,काइरोप्रेक्टिक केयर ,या फिर स्टीरोइड्स  के इंजेक्शन दिए गए .

१२ सप्ताह की देखभाल के बाद जो लाभ काइरोप्रेक्टिक वर्ग के लोगों को मिला था उससे ज़रा सा भी ज्यादा  अन्य दो वर्गों के लोगों को नहीं मिला .जबकि काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा में कोई दवा तो दी ही नहीं जाती है ,बिना दवाओं के होता है यह इलाज़ .

काइरोप्रेक्टिक देखभाल का लाभ सबसे ज्यादा उन मरीजों को मिलते देखा गया है जो तकलीफ शुरु होते ही काइरोप्रेक्टिक केयर लेने की पहल करते हैं .दुर्भाग्य यह है इधर बाकी सब कुछ आजमाने के बाद ही लोगबाग आतें हैं .

फिर भी शानदार नतीजे मिलते देखे जातें हैं इस चिकित्सा देखभाल के तहत आने वालों में .

एक और अध्ययन में ऐसे ३,१३६ मरीजों को शामिल किया गया जो लोवर बेक पैन और सियाटिका पैन की गिरिफ्त में  थे और पूर्व में फिजियो थिरेपी और ड्रग थिरेपी आजमा चुके थे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ था .

इन सभी को काइरोप्रेक्टिक देख भाल के तहत रखा गया .

दो साल के बाद इनकी पुन : जांच और अध्ययन के बाद पता चला ५०.४% को शानदार तरीके से आराम पहुंचा था ,लपलपाते दर्द के दौरे लौट के नहीं आये ,३४.४ %के मामलों  में रिलेप्सिज़ देखने में आये ,लेकिन आगे और देखभाल मिलने के बाद इन्हें भी और फायदा पहुंचा जबकि १५.२ % के मामले में कोई उल्लेख्य सुधार नहीं आया .

 Neurogenic Claudication 

टांगों  में  दर्द की  एक वजह स्पाइनल नर्व (रीढ़ तंत्रिका )को पहुचने वाली क्षति भी बनती है ,यदि क्षति उस तंत्रिका को उठानी पड़ी हो जो टांगों तक जाती है . चिकित्सा शब्दावली में इसी स्थिति को कहा जाता है neurogenic claudication .

यहाँ न्यूरोजेनिक का अर्थ  है  जिसने तंत्रिका ऊतक से उत्तेजन प्राप्त किया हो या जो नर्वस सिस्टम  से पैदा हुआ हो .जबकि क्लौडीकेसन का अर्थ है लंगडा के चलना ऐसी लंगडाहट जिसकी वजह टांगों की पेशी  को होने वाली रक्तापूर्ति की कमी बनी हो .

ज़ाहिर है इस स्थिति में मरीज़ देर तक चल नहीं सकता और उसे बीच बीच में थोड़ा सा ही चल लेने के बाद ही रुकना पड़ता है .

इसके लक्षणों में दर्द के अलावा तंत्रिका संवेदन (जलन और तंत्रिका उत्तेजन )बनता है   जो चलने के  फ़ौरन बाद शुरु होता है और आराम करने पर चला भी जाता है .मांसपेशी में ऐसे में ऐंठन भी हो सकती है ,दर्द और सुन्नी भी ,पिंडलियों में थकान होगी ,पैर ,जंघा ,और नितम्बों में भी यह थकान फैलेगी .बेशक इस समस्या का एक समाधान शल्य चिकित्सा है लेकिन इससे पहले एक मर्तबा रीढ़ की देखभाल करने वाले काइरोप्रेक्टर के पास भी जाना चाहिए .फिर चाहे आप जाएँ आधुनिक चिकित्सा की शरण में .

सारांश 

सभी सियाटिका से तंग आये लोगों को काइरोप्रेक्टर के पास जांच के लिए जाना चाहिए .ताकि यह जाना जा सके कहीं इसकी वजह स्पाइनल subluxations (रीढ़ में आया विरूपण तो नहीं बन रहा है ).subluxation ही रीढ़ में विरूपण पैदा करता है रीढ़ की हड्डियों के परस्पर संरेखण में विचलन (विक्षोभ )पैदा करता है .डिस्क और तंत्रिका पर दवाब बनाता है .सारी काया को स्ट्रेस में ले आता है .
 जो भी वजह रही हो आपके मामले में सियाटिका की रीढ़ समायोजन से ,स्पाइनल एडजस्टमेंट से सब कुछ सुधर जाता है .तंत्रिकाओं से दवाब हट  जाता है .रीढ़ का खोया हुआ संतुलन बरकरार हो जाता है .हमारी काया की तमाम पेशियाँ ,ग्रंथियां और ऊतक फिर से काम करने लगते हैं संतुलित तरीके से . आखिरकार सियाटिका से भी राहत मिल जाती है .घबराइये नहीं . 

11 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

प्राचीन काल से लेकर आज तक का सार |
एहतियात और उपचार |
आभार ||

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

bahut hi achhi jankari...

Satish Saxena ने कहा…

अमूल्य जानकारी हमेशा की तरह , आपका आभार वीरू भाई !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आपकी पोस्टें पढ़ते रहेंगे, तो तकलीफ नहीं होगी।

Sanju ने कहा…

nice presentation....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.

Arvind Mishra ने कहा…

कायरोप्रैक्टिक समग्र

shalini rastogi ने कहा…

इस जानकारी का हिंदी में अनुवाद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!

virendra sharma ने कहा…

शुक्रिया शालिनी जी आप लोगों से ही इस लेखन का सार है ,वरना सब बेकार है हिंदी जनप्रिय सेहत विज्ञान के लिए एक जगह बने इससे बड़ी बात हमारे देश समाज और परिवार के लिए क्या हो सकती है लोग हिंदी पढ़ें उससे अनुराग रखें इसी के लिए तो यह सारी ज़द्दोज़हद है .आप जैसे लोगों के प्रोत्साहन और संलग्नता से ही यह मिहीम आगे बढ़ेगी .

virendra sharma ने कहा…

शुक्रिया शालिनी जी आप लोगों से ही इस लेखन का सार है ,वरना सब बेकार है हिंदी जनप्रिय सेहत विज्ञान के लिए एक जगह बने इससे बड़ी बात हमारे देश समाज और परिवार के लिए क्या हो सकती है लोग हिंदी पढ़ें उससे अनुराग रखें इसी के लिए तो यह सारी ज़द्दोज़हद है .आप जैसे लोगों के प्रोत्साहन और संलग्नता से ही यह मुहिम आगे बढ़ेगी .

SACCHAI ने कहा…

उम्दा जानकारी ...एक उपयुक्त जानकारी जो हर किसी के लिए महत्वपूर्ण है
आपका बहुत बहुत आभार इस बेहतरीन पोस्ट के लिए

http://eksacchai.blogspot.com

rbsoni ने कहा…

काईरोप्रैक्टिक क्या है एवं कहाँ सुविधा मिल सकती है रामबाबू सोनी