सोमवार, 15 जून 2009

नेशनल कैब .

वो दिनभर खट ता है .हिंदुस्तान के किसी शहर में भी आप को रिक्शा खीचता मिल जाएगा .नाम ?रिक्शावाला ,और क्या ?रिक्शा भी उसका अपना नहीं किराए का है .सबकी शक्लें यकसां हैं .लेकिन ये रिक्शा जुदा है ,नेशनल कैब है ये बाबु ,पीत वरनी है ये रिकशा ,खुला खुला सा ,मॉल एरिया में फैले संग्रहालयों की सैर कराता है .ये एरिया वाशिगटन डीसी का है .रिक्शे वाला उतना उदास नहीं है .मौज मस्ती का मंज़र है ,कुछ लोग यूनी साईकल पर सवार सर पट दौर रहें हैं ,कुछ खुली डबल देककर की खुली छत पर .लोगों का व्यवस्थित रेला इधर से उधर ,उधर से बारहा इधर आ जा रहा है .नेशनल कैब गिनती के हैं ,सैर भी महंगी होगी .यहाँ श्रम की कीमत है ,आदर है ,श्रमिक का सर भी उतना ही ऊंचा है .

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