सोमवार, 13 अप्रैल 2009

शब्द की शक्तियां ?

ब्रह्म कहा गया है शब्द को .अभिधा ,लक्षणा,और व्यंजना शब्द की ज्ञात शक्तियां हैं .मसलन काने को काना कहने का चलन नहीं है ,नेत्र हीन ,ज्योति हीन ही कहा जाता है.सूरदास कहना और बात है ,और ये कहना :अरे साहिब आप का क्या कहना ,आप तो सब को एक ही दृष्टि से देख ते हैं बिल्कुल अलग बात है .संधर्भ है नरेंद्र मोदी जी का हालिया बयान :कांग्रेस १२५ साल की बुडिया के समान है .प्रियंका का पलटवार :मैं आप को बुढ़िया नज़र आती हूँ ,संधर्भ से कटा हुआ है ,इसका अर्थ होगा :प्रियंका ही कांग्रेस हैं ,जो वो नहीं है .कभी देवकांत बरुआ ने कहा था :इंदिरा इस इंडिया .पहला कथन आत्म स्लाघा है ,आत्म रति है ,अपने मुह मियाँ मिठ्ठू बनना है तो दूसरा तलुवे चाटना है चमचा गिरी है ,भांड पण है ,राज निति मैं अब या तो विदूषकों का डेरा है ,चारणहैं ,या फिर अर्थ का अनर्थ करने समझ ने वाले ,विग्य लोग कहाँ गए अटल बिहारी सरीखे ?हरी प्रसाद जी कुछ और ही समझ गए :आडवाणी और अटलजी को हिंद महासागर मैं फिकवाने की पेशकश कर रहें हैं .ऐसे गोबर गणेशों का हम क्या करें कोई हमें बतलाये ?

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