ख्वाहिश थी मिरि ,
कभी मेरे लिए
तेरी आँख से
एक कतरा क़तरा निकले
भीग जाऊँ मैं
इस क़दर उसमें
कि समंदर भी
उथला निकले ।
छोटी नज़्म कहें या क्षणिका बेहद खूबसूरत ख्याल है।
क्षेपक :
ख्वाइश थी मिरि ,
मौत बन तू आये ,
बादे मर्ग ,
तेरे साथ रहूं।
विशेष :बादे मर्ग= मौत के बाद।
छोटी बहर की अतिथि नज़्म :संगीता स्वरूप गीत
सहभावी -सहभागी :वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा )
1 टिप्पणी:
शुक्रिया वीरेंद्र जी ।
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