कविवर गिरधर की कुंडलियां : भावार्थ सहित
(१ )
जानो नहीं जिस गाँव में, कहा बूझनो नाम ।
तिन सखान की क्या कथा, जिनसो नहिं कुछ काम ॥
जिनसो नहिं कुछ काम, करे जो उनकी चरचा ।
राग द्वेष पुनि क्रोध बोध में तिनका परचा ॥
कह गिरिधर कविराय होइ जिन संग मिलि खानो।
ताकी पूछो जात बरन कुल क्या है जानो ॥
भावसार :अर्थात:
गिरिधर कविराज कहते हैं कि जिस जगह से तुम्हें कोई लेना देना नहीं हैं उसके बारे में क्यूँ पूछते हो, ऐसे लोगों की बातें भी क्यूँ करते हो जिनसे तुम्हारा कोई संबंध नहीं | जिनसे हमें कोई लेना देना नहीं होता उनकी बातें जो लोग करते हैं उनके बीच दुश्मनी हो जाती हैं | सौद्देश्य ही लोगों से मतलब रखो |
जिस बाग़ के आम नहीं खाना उसके पेड़ क्या गिनना।
(२ )
बीती ताहिं बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ।
जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देइ॥
ताही में चित देइ, बात जोई बनि आवै।
दुर्जन हंसे न कोइ, चित्त मैं खता न पावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय यहै करु मन परतीती।
आगे को सुख समुझि, होइ बीती सो बीती॥
भावसार :कविराज गिरिधर कहते हैं कि जो बीत गया उसे जाने दो, बस आगे की सोच, जो हो सकता हैंउसी में अपना मन लगा अगर जिसमे मन लगता है वही करेगा तो सफल जरुर होगा | और ऐसे में कोई हँसेगा नहीं इसलिए कविवर कहते हैं जो मन कहे वही करो बस आगे का देखो पीछे जो गया उसे बीत जाने दो |
बीत गई सो बात गई ,हो ली सो हो ली
(३ )
गुनके गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय ।
जैसे कागा-कोकिला, शब्द सुनै सब कोय ।
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबे सुहावन ।
दोऊ को इक रंग, काग सब भये अपावन ॥
कह गिरिधर कविराय, सुनौ हो ठाकुर मन के ।
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुनके ॥
अर्थात
जिन में गुण होते हैं उनकी हज़ारों की भीड़ में भी पूछ होती हैं और जिनमें गुण नहीं होते उनको कोई नही पूछता | जैसे कोयल और कौए दोनों की आवाज तो सब सुनते हैं लेकिन सभी को कोकिला की आवाज ही अच्छी लगती है | दोनों समान दीखते हैं एक ही रंग के हैं लेकिन कौआ सभी को अपवित्र लगता हैं इसलिए कवि गिरिधर कहते हैं कि बिना गुण को कोई नहीं लेता,गुणों के सहस्त्र ग्राहक होते हैं |
कांव कांव करता है कौवा ,लगता है कानों को हौवा ,
चुगली करती मैना रानी ,दूर -दूर तक है बदनामी ,
इसीलिए तुम जितना बोलो ,कम बोलो और मीठा बोलो।
कागा काको धन हरे ,कोयल काकू देत ,
मीठे बैन सुनाय के सबको मन हर लेय।
(४ )
दौलत पाय न कीजिए, सपनेहु अभिमान।
चंचल जल दिन चारिको, ठाउं न रहत निदान॥
ठाउं न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै।
मीठे बचन सुनाय, विनय सबहि की कीजै॥
कह ‘गिरिधर कविराय अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निसिदिन चारि, रहत सबहि के दौलत॥
अर्थात
केवल दौलत पाने के लिए ही कार्यं मत करो ना उसका कोई अभिमान करो। दौलत चंचल जल के समान है जो कहीं नहीं टिकता वैसे ही लक्ष्मी चंचला है ,एक जगह नहीं टिकती चार दिन के लिए ही है | इस जीवन में जीते हुए भगवान का नाम लो, अच्छी वाणी बोलो और सभी से विनम्रता पूर्वक बोलो ,प्रेम करो | कवि कहते हैं कि पैसा बस चार दिन का है ,बाकी रहता है बना रहता है सभी के साथ व्यवहार ,प्रेम भाव वही सच्ची दौलत है
(५ )
झूठा मीठे वचन कहि, ॠण उधार ले जाय।
लेत परम सुख उपजै, लैके दियो न जाय॥
लैके दियो न जाय, ऊँच अरु नीच बतावै।
ॠण उधार की रीति, मांगते मारन धावै॥
कह गिरिधर कविराय, जानी रह मन में रूठा।
बहुत दिना हो जाय, कहै तेरो कागज झूठा॥
अर्थात
जो व्यक्ति झूठा होता है वो हमेशा मीठे वचन बोलता है चिकनी चुपड़ी बात कर आपसे उधार ले जाता है उसे लेने पर अत्यंत सुख महसूस होता हैं लेकिन देने का वो नाम नहीं लेता |उधार लेकर लौटाना भूल ही जाता है वो हमेशा अच्छे व्यक्ति को बुरा कहता है | उधार का लेकर जीना ही उसकी नीति है जिस पर मरते दम तक वो कायम रहता है। यह अपने मन में रख लो कि बहुत दिन बीत जाने पर जब तुम उधार लेने जाओगे तो वो मुँह पर बोल देगा कि उधार लिया इसका तुम्हारे पास क्या सुबूत है ?आपको ही झूठा साबित कर देगा।
(६ )
लाठी में गुण बहुत हैं सदा राखिये संग ,
गहरी नदी नारी जहां ,तहाँ बचावै अंग।
तहाँ बचावै अंग झपटि कुत्ता कहँ मारै ,
दुश्मन दावागीर ,होएं तिनहुँ को झारै .
कह गिरधर कविराय सुनो हो धूर बाठी ,
सब हथियारन छाड़ि ,हाथ मँह लीजै लाठी।
भावसार :यहां लाठी का सहज सुलभ अस्त्र के रूप में बखान है। पैदल पहले लोग एक से दूसरे स्थान को जाते थे। यात्रा को निरापद रखने के लिए लाठी का गुणगायन किया है रास्ते की बाधाओं नदी नालों को इसकी मदद से सहज से पार पाया जा सकता है। मार्ग में कोई चोर उचक्का लुटेरा पीछे लग जाए तो उससे सहज ही निपटा जा सकता है। भाग खड़ा होवेगा वह लाठी देखके।
सीधी सच्ची सहज बोधगम्य भाषा में कविवर लाठी की उपयोगिता रेखांकित करते हैं आज भी हरियाणा एवं कई अन्य राज्यों के प्रौढ़ और युवा लाठी लेकर चलते हैं। सुरक्षा कवच है लाठी।
(७ )
कमरी थोड़े दाम की , बहुतै आवै काम ,
खासा मलमल वाफ्ता , राखै मान।
उनकर राखै मान ,बंद जहँ आड़े आवै ,
बकुचा बाँधे मोट ,राति को झारि बिछावै।
कह गिरधर कविराय ,मिलत है थोरे दमरी
सब दिन राखै साथ ,बड़ी मर्यादा कमरी।
(दमड़ी-पहले प्रचलित एक सिक्का ) ,
भावसार :यहां कंबल की लोकजीवन में उपयोगिता बतलाई गई है यह सहज सस्ता बहुउद्देश्यक साधन है जो व्यक्ति का मान भी बढ़ाता है ,आड़े वक्त साजो सामान की गठरी इसी में बाँध लो रात्रि को झाड़ पौंछकर बिछावन का काम ले लो। यहां लोकजीवन के सारल्य का चित्रण हुआ है।
(८)
साईं सब संसार में ,मतलब का व्यवहार ,
जब लग पैसा गांठ में ,तब लग ताको यार।
तब लग ताको यार ,यार संग ही संग डोले ,
पैसा रहे न पास ,यार मुख से नहिं बोले।
कह गिरधर कविराय, जगत सब लेखा भाई ,
करत बेगरजी प्रीति ,यार बिरला कोई साईं।
भाव सार :कहावत मतलबी यार किसके खाये पीये खिसके।
सब प्यार की बातें करते हैं पर करना आता प्यार नहीं ,
है मतलब की दुनिया सारी ,
यहां कोई किसी का यार नहीं ,
किसी को सच्चा प्यार नहीं।
कविवर गिरधर खबरदार करते हुए पते की बात कहते हैं ,सीख देते हैं -यही दुनिया का ,यहां का चलन है ,रीति है। बनी के(अच्छे दिनों के ,खुशहाली ,मालीहालत )के सब साथी हैं ,निस्वार्थ प्रेम बिरले ही कोई खुदा का बन्दा करता है।
(९ )
रहिये लटपट काटि दिन ,बरु घामे माँ सोय,
छाहँ न बाकी बैठिये ,जो तरु पतरो होय.
जा तरु पतरो होय,एक दिन धोखा देहैं ,
जा दिन बहे बयार ,टूटि तब जर से जैहैं।
कह गिरधर कविराय छाहँ मोटे की गहिये ,
पाती सब झरि जाय ,तऊ छाया में रहिये।
भावसार :कविवर सबल की शरण जाने की सघन वृक्ष का आश्रय लेने की बात करते हैं जो आंधी तूफ़ान से बचा सकता है ,जिसकी जड़ें गहरी नहीं है ऐसा निर्बल वृक्ष तो अपनी ही हिफाज़त कर ले यह बहुत है आपको क्या सुरक्षा मुहैया करवाएगा ? घाम धूप में चलना भला कमज़ोर वृक्ष की छाया में न बैठो।
विशेष :अलबत्ता जब गर्जन मेघों का तांडव हो ,बिजली रह रह के चमकती हो तब किसी भी पेड़ आश्रय न लें।
(१० )
पानी बाढ़ै नाव में घर में बाढ़े दाम ,
दोऊ हाथ उलीचिये ,यही सयानो काम।
यही सयानो काम,राम को सुमिरन कीजै ,
पर -स्वारथ के काज ,शीश आगे धर दीजै।
कह गिरधर कविराय ,बड़ेन की याही बानी ,
चलिए चाल सुचाल ,राखिये अपना पानी।
भावसार :कविवर कहते हैं -परहित सरिस धर्म नहीं भाई ,औरों के काम आओ संकट में ,अच्छे वक्त में भी राम का नाम लो।
घर धन -धान्य से परिपूर्ण हो जाए तो इसे सहेजें ना ,मुक्त कंठ से ज़रुरत मंदों के काम में इसे लगाएं। फलदार वृक्ष ही
झुकता है ऐश्वर्य प्राप्त होने पर विनम्र रहो ,बिछ जाओ औरों के काम के लिए पहल करो ,यही बड़े बूढ़ों की सीख है।अच्छे
काम कीजिये इसी में आपका मान सम्मान है।अपने लिए जीये तो क्या जीये ...... |
https://www.youtube.com/watch?v=WMmtE70IgLY
विशेष :गिरधर जान मन के कवि हैं मानव मन के अंतर् भावों को जानते हैं नीति वचन है उनका पूर्वा काव्य अनुभव प्रसूत है। अवधि ,पंजाबी और सहज सरल भाषा आपका वैशिष्ठ्य है।
गिरिधर कविराय जी ने अपनी कुंडलियाँ में लाठी और कम्बल के प्रति आदरभाव ,मौकापरस्ती ,सबल का सहारा ,समय के अनुसार कार्य का महत्व आदि बातों को लेकर बड़ी ही मार्मिक ढंग से बात कही है
कृपया यहां भी पधारें :https://www.hindikunj.com/2017/09/giridhar-ki-kundaliya.html#:~:text=%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82%20%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%8F%20.-,%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%81%20%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B5%20%2F%20%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B2%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B5,%E0%A4%A2%E0%A4%82%E0%A4%97%20%E0%A4%B8%E0%A5%87%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4%20%E0%A4%95
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