बुधवार, 14 अप्रैल 2021

'ऐं 'बीज मंत्र की महत्ता :इस बीज मंत्र की महत्ता जानकर ही भारतीय मनीषियों ने नवजात शिशु की जिह्वा पर अष्टगंध में मधु मिलाकर 'ऐं ' लिखने की व्यवस्था दी है , जिससे बालक की वाणी और विद्या का विकास होता है। इससे ही मनुष्य जीवन सार्थक बनता है।

ऐं (सरस्वती बीज):बीज मंत्र की महत्ता 

इसका अर्थ है- जगन्माता सरस्वती मेरे दुख दूर करें। इस बीज मंत्र के जप से मां 

सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है और विद्या, कला के क्षेत्र में व्यक्ति दिन दूनी रात 

चौगुनी तरक्की करता चला जाता है।

आद्या शक्ति भगवती दुर्गा के नाना स्वरूप ,मुद्राएं और ध्यान विधियां हैं। इसमें माँ 

 सरस्वती ,महालक्ष्मी और महाकाली विशेष प्रसिद्ध  हैं ,जो क्रमश : चित् सत् और 

आनंद रूपिणी हैं।   

हालांकि यह स्वरूप और क्रिया भेद ही है। वस्तुत : वह परम सत्ता एक ही है। इनका 

नर्वाण मंत्र  : 

'ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे'सर्वार्थ सिद्धिदाता है। यहां हम उनके बीजाक्षर मंत्र 'ऐं 'की महत्ता विवेचित करते हैं। यह उनके महा सरस्वती रूप का मंत्र है ,जिसमें सृष्टि समाहित है। ऋक ,यजु और साम वेदों

 के प्रथम अक्षर को मिला देने से 'ऐं' बन जाता है ,जो अनुस्वार रहित सरस्वती का बीज मंत्र है। 

अनुस्वार सब वर्णों पर मुकुट मणि है ,जिसके योग से इसकी महिमा वर्णातीत हो जाती है। यह 'राम' 

के म का चिन्ह रूप है। गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है कि अक्षरों में मैं अकार हूँ। इस प्रकार 

'ऐं ' बीज मंत्र में राम और कृष्ण समाहित हैं। 

देवी भागवद में इस  बीज मंत्र की महिमा पर ब्राह्मण बालक उतथ्य की कथा आई है , जिसके 

अनुसार अनपढ़ होने के कारण उसे घर से निकाल दिया गया था। वह वन में रहकर सत्यव्रती होकर 

तप करने लगा। एक दिन एक व्याध के शर से विद्ध हुआ शूकर उसकी कुटिया में आ गया। करुणा 

से द्रवित उतथ्य चिल्ला उठा ' ऐ ऐ ' .माता सरस्वती ने इसे अपने बीज मंत्र 


'ऐं 'का अनुस्वार रहित जप मान लिया और सिद्ध हो गईं। इससे उतथ्य महान विद्वान और कवि हो गया 

. जब व्याध आया और शूकर का पता पूछा तो वह कहा , '  जो देखता है यानी नेत्र वह बोल नहीं सकता और जो बोल सकता है यानी मुख उसने देखा नहीं। 'इस प्रकार सारस्वत सिद्धि होने से उस वन्य जीव

 और सत्य दोनों की रक्षा हो गई। 

इस बीज मंत्र की महत्ता जानकर ही  भारतीय मनीषियों ने नवजात शिशु की   जिह्वा पर अष्टगंध में मधु मिलाकर  'ऐं ' लिखने की व्यवस्था दी है , जिससे बालक की वाणी और विद्या का विकास होता है।

  इससे ही मनुष्य जीवन सार्थक बनता है। 

                             ---------------रघोत्तम शुक्ल 

सन्दर्भ -सामिग्री :

(१ )ऊर्जा ( दैनिक जागरण १३ अप्रैल २०२१ ),

(२ )गूगल सर्च बीजमंत्र 

 

 
 

कोई टिप्पणी नहीं: