गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

यजुर्वेद में आया है यह मंत्र -शैव इसे शौक से भजते गाते हैं आरती रूप में। कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेंद्रहारं , सदावसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि

यजुर्वेद में आया है यह मंत्र -शैव इसे शौक से भजते गाते हैं आरती रूप में। 

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेंद्रहारं ,

सदावसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि। 

त्रिदेवों में एक ,देवो  में देव ,देवादिदेव ,शंकर ,रूद्र , भोलेनाथ,नीलकंठ ,महादेव ,पशुपतिनाथ सर्वाधिक लोकप्रिय लोकश्रुत हिन्दू देवता हैं। आकस्मिक नहीं हैं भारत में सबसे ज्यादा शिव मंदिर हैं। शिव का पूरा परिवार परम् पूज्य है। सेकुलर है यहां पूर्ण सामंजस्य है समरसता है। निर्वैर हैं यहां चूहा -सर्प -मोर - नंदी और बाघ में जबकि फ़ूड चेन में सर्प का भोजन चूहा और मोर का आहार सर्प बनता है। बाघ या शेर तो फिर शेर है नंदी को कहाँ छोड़ेगा। शिव परिवार में सब समरस हैं।प्रेमिल हैं।  

शिव मृत्यु का देवता है यमराज इन्हीं से आदेश लेते हैं। तांडव नृत्य सृष्टि का महाविस्फोटीय आगाज़ भी है अंजाम भी .

It is a dance of creation .  

संहार और रचना रचनान्तर का देवता है शिव। शिव सबसे बड़े वैष्णव है राम भक्त हैं । शिव का अर्थ ही है मांगलिक मंगल शुभ। सभी जीवों के रक्षक संरक्षक रूप आप पशुपतिनाथ है। पशु का एक अर्थ जीव होता है। पापेश्वर हैं शिव सदैव ही जीवों के लिए  कल्याणकारी हैं। शुभ करता शंकर कहलाते हैं आप। 

शुभंकर  है शिव। त्रिपुरारी हैं त्रिपुर राक्षस (आतंकी और आतंकवाद )दोनों का वध करने वाले हैं। जीव के  दैहिक ,सूक्ष्म ,कारणिक तीन शरीर हैं ग्रॉस ,सटल ,कौजल ,तीनों से मुक्त कर अंतिम मृत्यु प्रदान करते हैं शिव ,इसके बाद जन्म नहीं लेना पड़ता।मोहमाया ममता लोभ सबका नाश करते हैं शिव।  जीव के लिए आतंक रचते आतंकी हैं।  

शिव के स्वरूप लावण्य को रेखांकित करता है ये यजुर्वेदीय मन्त्र शिव विवाह के समय स्वयं महाविष्णु इसे गाते हैं। आनंदातिरेक  अनुभूति करता है शैव इसमें अवगाहन कर स्वेत कमल पुष्प अनघ शिव स्तुति से। शिव के रूप लावण्य का प्रतीक हैं पंक्तियाँ :कर्पूरगौरं

महज़ शमशान वासी नहीं हैं शिव विमुक्तेश्वर भी हैं ,परम वैरागी हैं। कपूर की तरह कांतिमान हैं शिव करुणा के मूर्त रूप हैं ,करुणा का आप मानवीकरण हैं। करुणा के सगुन रूप हैं। 

जिस सर्प से सब भय खाते हैं आप उसे कंठहार बनाते हैं लंगोट रूप (कोपीन ) भी उसी को धारण करते हैं। जीवों के हृदय के गह्वर में कमलरूप आप सदा विराजते हैं जीवों की आत्मा आप ही हैं। जिसे कलुष छू नहीं सकता जो पवित्र है सांसारिकता से ,संसार की कीच से परे है। ऐसे शिव की  जिनकी अर्धांगिनी देवी पार्वती हैं  हम वंदना करते हैं गुण -गायन  करते हैं शैलपुत्री संग। यही भाव सार है इस मंत्र का। 

Karpoor Gauram Karunavataram with lyrics | कर्पूर गौरव करुणावतारम | Shiv Mantra

https://www.youtube.com/watch?v=3nATsNWJbmA   

1 टिप्पणी:

Meena Bhardwaj ने कहा…

अद्भुत सृजन । शिव मंत्र को सरल शब्दावली में परिभाषित कर पटल पर सुसज्जित करने हेतु आभार ।