एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय
साम दाम दंड भेद का इस्तेमाल करते हुए बेगम ममता ने बंगाल के सभी वर्गों को अपने तरीके से हांकने का प्रयास किया। नतीजा हम सबके सामने हैं आज ये भ्रांत धारणाओं से ग्रस्त राजनीति की धंधेबाज़ को बूथों पर पहुँच कर मतदाताओं को धमकाना डराना पड़ रहा है।
अब पछताये होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत
बेगम वक्त रहते सभी वर्गों आस्था के लोगों का आदर करतीं सही फैसले लेती दुर्गा पूजा पर मुहर्रम पर तरजीह न देती तो ये दिन न देखना पड़ता।
दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम।
तीस फीसद मुस्लिम भाई बहनों के बूते बेगम ने दस साला खेला खेला आखिर में खेला ही श्रृद्धा - विहीन धर्मच्युत बेगम को मार गया।
अब मंदिर मंदिर चंडी पाठ करत फिरत हैं ,शांडिल्य गोत्री होने की कसमें खावें हैं पूर्व में एक शहज़ादे का जनेऊ भी खूब प्रदर्शन में आया था -नतीजा क्या हुआ हम सबको मालूम है। बेगम ममता के साथ इससे अलग और हो भी क्या सकता था नंदीग्राम ही नहीं अन्यत्र भी तृण मूल कांग्रेस हार रही है।
जिसके बीच में रात उसकी क्या बात अब दो मई दूर नहीं।
सुरूरे-शब की नहीं सुबह का खुमार हूँ मैं,
~
निकल चुकी है जो गुलशन से वह बहार हूँ मैं।
1.सुरूरे-शब-; रात का चढ़ता हुआ नशा
बेगम समझ सब गईं हैं नशा -ए -सत्ता टूट रहा है फिर भी ज़िद पे कायम हैं। बाज़ी हाथ से निकल चुकी है।
बेगम ममता :ना खुदा ही मिला ना विसाले सनम, ना इधर के रहे ना उधर के
आज पश्चिम बंगाल में सिंगुर की तबाह जनता रो रो कर यही कह रही हैं "ना खुदा ही मिला ना विसाले सनम ना इधर के रहे ना उधर के" I ममता बनर्जी ने अपनी राजनीती के चक्कर में यहाँ के सारे लोगो को तबाह और बर्बाद कर दिया और आज लोग खाने के लाले पड़े हैं I बड़े बुजुर्ग बड़ी बड़ी लाइनों में घंटो खड़े रहे हैं 1-2 किलो चावल के लिए अपनी जमील लुटा कर I
अपने १० साल के कुशाशन में ममता जी ने आज तक एक भी कारखाना नहीं खोल पाया तो रोजगार कहा से देगी I ऐसे में युवा बेकार हो कर दर दर भटक रहे हैं I कोई काम ना होने के कारण चंद रुपयों के लिए आज TMC पार्टी का झंडा ढोने को मजबूर हैं I
अपने १० साल के कुशाशन में ममता जी ने आज तक एक भी कारखाना नहीं खोल पाया तो रोजगार कहा से देगी I ऐसे में युवा बेकार हो कर दर दर भटक रहे हैं I कोई काम ना होने के कारण चंद रुपयों के लिए आज TMC पार्टी का झंडा ढोने को मजबूर हैं I
न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम न इधर के हुए न उधर के हुए
रहे दिल में हमारे ये रंज-ओ-अलम न इधर के हुए न उधर के हुए (अज्ञात )
1 टिप्पणी:
सही आकलन है । वैसे राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है ।
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