जिस तरह भारत में कन्या भ्रूण हत्या के चलते लड़कियाँ गायब होती रहीं हैं और आज हरियाण जैसे राज्यों में मध्य
प्रदेश एवं इतर गरीब राज्यों से उन्हें दहेज़ देकर ब्याहता बनाकर लाया जा रहा है उसी प्रकार गौ मांस के बेहद के निर्यात के चलते जल्दी ही भारतीय गाय का नाम लुप्त प्राय : प्राणियों की सूची में आ सकता है। भारतीय गाय Red Data Book में जगह बना सकती है। यदि हम आज और अभी भी न चेते तो ऐसा होने से रोका न जा सकेगा।
यहां कुछ गौ मांस प्रेमी सेकुलर तर्क उठाते हैं कि विलुप्तप्राय : (Endangered )किसी पशु-पक्षी को तब घोषित किया जाता है जब उसका होना एक ख़ास संख्या पर चला आये। इस तर्क से इसलिए सहमत नहीं हुआ जा सकता क्योंकि घी दूध भारतीय खुराक का एक अनिवार्य अंग रहा है ,घी दूध जुटाने के साधन कईओं के पास नहीं हैं ये दीगर बात है। लेकिन सही पोषण के लिए खुराक में गाय शुद्ध देसी घी और दूध सभी को चाहिए।
गाय के परम्परागत घी में (दूध से प्राप्त दही को मथने के बाद प्राप्त मख्खन को गरमा पिघला कर तैयार किये गए घी में )
हार्ट फ्रेंडली तत्व पाये गए हैं जो न सिर्फ दिल का दोस्त समझी गई खून में घुली एक प्रकार की चर्बी HDL Cholesterol को बढ़ाते हैं खतरनाक समझी गई चर्बी को काम भी करते हैं।
निरंतर बढ़ती फैलती आबादी के लिए दूध दही की कौन बात कहे तिलहन और दलहन भी पर्याप्त नहीं है। इसलिए गौ मांस का गुज़िस्तान बरसों में बढ़ता चला आया निर्यात अब चिंता का सबब बनने लगा है। भारतीय गौ का संरक्षण उसकी नस्ल को बचाये रखना आज ज़रूरी हो गया है।
भारत में हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने गौ हत्या और गौ मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाके पहला कदम सही दिशा में रख दिया है। अपने हिस्से का जो दूध दे चुकीं हैं उन गायों को गौ शाला में रखने के लिए केंद्र सरकार आर्थिक सहायता मुहैया करवा रही है यह इसी दिशा में उठा एक और कदम हैं।जो गायें अपने हिस्से का चारा खा चुकीं हैं ,दूध दे चुकीं हैं उनका भरण पोषण आज भी करते रहना अलाभकारी किसी विध नहीं है। अभी उन्हें अपने हस्से का गोबर देना बाकी है।
जिस गाय को हम माता कहते हैं जो कृष्ण (गोविन्द )को अति प्रिय रहीं हैं तथा जिनका अपशिष्ट तक उपयोगी है। गौ मूत्र और गोबर अपने औषधीय गुणों के लिए सदियों से जाने गए हैं। जिनके गोबर से चालित गोबर गैस संयंत्र वैकल्पिक ईंधन मुहैया करवाते आ रहें हैं और जो गौ हमारे कृषि तंत्र की रीढ़ कही गई है उसी को आज चंद सेकुलर किस्म के प्राणी खाने पर हज़म कर जाने पर आमादा दीखते हैं और अपने आपको सारस्वत ब्राह्मण भी कहलवाने में गौरवान्वित होतें हैं तब सोचा जाना चाहिए क्यों गिरीश कर्नाड जैसे लोग गौ मांस भक्षण करने वालों की हिमायत में निकल आएं हैं।
प्रतिबन्ध चंद राज्य सरकारों ने गौ हत्या और गौ मांस की बिक्री पर लगाया है गौ मांस खाने पर नहीं लगाया है। खाइये आप शौक से जर्सी खाइये संकर गाय है। शूकर के जीवन खंड (जींस )भी लिए हुए है। भारतीय गाय को रहम की आवश्यकता है। उसे छोड़ दीजिये।
भारतीय गाय के संरक्षण की फौरी आवश्यकता है। कहीं यह कृष्ण के किस्सों तक ही सिमटके न रह जाए। असली खतरा यही है।
प्रासंगिक होगा भारतीय गाय के पक्ष में कुछ बहुश्रुत और देखे परखे तथ्य प्रस्तुत करना।
(१) गाय का गोबर एक बेहतरीन निर्जीवाणुक पदार्थ है। पूजन सामिग्री के बतौर आज भी उसका प्रयोग किया जाता है जिस भूमि पर गाय के गोबर का लेप किया जाता है लीपा जाता है जिस भूमि को उसके गिर्द जीवाणु ,विषाणु ,परजीवी भूलकर भी नहीं मंडराते।
(२)गौ के ऊपर आप सिर्फ दस मिनिट हाथ फिराइये उसके गले के नीचे की चमड़ी को दुलराइये आपका बढ़ा हुआ ब्लड प्रेशर थोड़ा कम ज़रूर हो जाएगा।
(३)गाय की सानी कीजिये ,सेवा कीजिये फिर देखिये उसका दुलार झांकिए उसकी आँखों से उमड़ते नेह को। एक माँ दिखाई देगी आपको।
कुलमिलाकर किस्सा ये है कि वैश्विक वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य कितना भी गाय की सामाजिक स्वास्थ्यगत उपयोगिता के पक्ष में खड़ा हो जाए -पतनाला वहीँ गिरेगा। ये सेकुलरभट्ट भारत राष्ट्र और भारत के जन मन की आस्था के प्रतीकों पर चोट करने से बाज़ नहीं आयेंगे। जो जन मन की आस्था ,राष्ट्र की अस्मिता पर चोट करे यहां वही सेकुलर कहा जाता है। कल को यदि जन मन की आस्था केंद्र शूकर हो जाए तो ये उसका भक्षण करने में भी नहीं चूकेंगे और यदि जेहादी मानसिकता के डर से बेकन या हेम न भी खा पाएं तो राष्ट्रवादी हिंदूधारा के ,भारत धर्मी समाज के इन प्रतीकों को ध्वस्त करने के लिए ये आत्म हत्या भी कर लेंगे।
जयश्रीकृष्णा।
http://www.dnaindia.com/india/report-maharashtra-writer-girish-karnad-joins-protest-against-ban-on-beef-2076246
well as all Brahmins like us and the Hindu community at large. This is direct provocation," he said. On the other hand, some saffron outfits brought stay on the protest from the court. However, it was too late as the meat was already consumed.
प्रदेश एवं इतर गरीब राज्यों से उन्हें दहेज़ देकर ब्याहता बनाकर लाया जा रहा है उसी प्रकार गौ मांस के बेहद के निर्यात के चलते जल्दी ही भारतीय गाय का नाम लुप्त प्राय : प्राणियों की सूची में आ सकता है। भारतीय गाय Red Data Book में जगह बना सकती है। यदि हम आज और अभी भी न चेते तो ऐसा होने से रोका न जा सकेगा।
यहां कुछ गौ मांस प्रेमी सेकुलर तर्क उठाते हैं कि विलुप्तप्राय : (Endangered )किसी पशु-पक्षी को तब घोषित किया जाता है जब उसका होना एक ख़ास संख्या पर चला आये। इस तर्क से इसलिए सहमत नहीं हुआ जा सकता क्योंकि घी दूध भारतीय खुराक का एक अनिवार्य अंग रहा है ,घी दूध जुटाने के साधन कईओं के पास नहीं हैं ये दीगर बात है। लेकिन सही पोषण के लिए खुराक में गाय शुद्ध देसी घी और दूध सभी को चाहिए।
गाय के परम्परागत घी में (दूध से प्राप्त दही को मथने के बाद प्राप्त मख्खन को गरमा पिघला कर तैयार किये गए घी में )
हार्ट फ्रेंडली तत्व पाये गए हैं जो न सिर्फ दिल का दोस्त समझी गई खून में घुली एक प्रकार की चर्बी HDL Cholesterol को बढ़ाते हैं खतरनाक समझी गई चर्बी को काम भी करते हैं।
निरंतर बढ़ती फैलती आबादी के लिए दूध दही की कौन बात कहे तिलहन और दलहन भी पर्याप्त नहीं है। इसलिए गौ मांस का गुज़िस्तान बरसों में बढ़ता चला आया निर्यात अब चिंता का सबब बनने लगा है। भारतीय गौ का संरक्षण उसकी नस्ल को बचाये रखना आज ज़रूरी हो गया है।
भारत में हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने गौ हत्या और गौ मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाके पहला कदम सही दिशा में रख दिया है। अपने हिस्से का जो दूध दे चुकीं हैं उन गायों को गौ शाला में रखने के लिए केंद्र सरकार आर्थिक सहायता मुहैया करवा रही है यह इसी दिशा में उठा एक और कदम हैं।जो गायें अपने हिस्से का चारा खा चुकीं हैं ,दूध दे चुकीं हैं उनका भरण पोषण आज भी करते रहना अलाभकारी किसी विध नहीं है। अभी उन्हें अपने हस्से का गोबर देना बाकी है।
जिस गाय को हम माता कहते हैं जो कृष्ण (गोविन्द )को अति प्रिय रहीं हैं तथा जिनका अपशिष्ट तक उपयोगी है। गौ मूत्र और गोबर अपने औषधीय गुणों के लिए सदियों से जाने गए हैं। जिनके गोबर से चालित गोबर गैस संयंत्र वैकल्पिक ईंधन मुहैया करवाते आ रहें हैं और जो गौ हमारे कृषि तंत्र की रीढ़ कही गई है उसी को आज चंद सेकुलर किस्म के प्राणी खाने पर हज़म कर जाने पर आमादा दीखते हैं और अपने आपको सारस्वत ब्राह्मण भी कहलवाने में गौरवान्वित होतें हैं तब सोचा जाना चाहिए क्यों गिरीश कर्नाड जैसे लोग गौ मांस भक्षण करने वालों की हिमायत में निकल आएं हैं।
प्रतिबन्ध चंद राज्य सरकारों ने गौ हत्या और गौ मांस की बिक्री पर लगाया है गौ मांस खाने पर नहीं लगाया है। खाइये आप शौक से जर्सी खाइये संकर गाय है। शूकर के जीवन खंड (जींस )भी लिए हुए है। भारतीय गाय को रहम की आवश्यकता है। उसे छोड़ दीजिये।
भारतीय गाय के संरक्षण की फौरी आवश्यकता है। कहीं यह कृष्ण के किस्सों तक ही सिमटके न रह जाए। असली खतरा यही है।
प्रासंगिक होगा भारतीय गाय के पक्ष में कुछ बहुश्रुत और देखे परखे तथ्य प्रस्तुत करना।
(१) गाय का गोबर एक बेहतरीन निर्जीवाणुक पदार्थ है। पूजन सामिग्री के बतौर आज भी उसका प्रयोग किया जाता है जिस भूमि पर गाय के गोबर का लेप किया जाता है लीपा जाता है जिस भूमि को उसके गिर्द जीवाणु ,विषाणु ,परजीवी भूलकर भी नहीं मंडराते।
(२)गौ के ऊपर आप सिर्फ दस मिनिट हाथ फिराइये उसके गले के नीचे की चमड़ी को दुलराइये आपका बढ़ा हुआ ब्लड प्रेशर थोड़ा कम ज़रूर हो जाएगा।
(३)गाय की सानी कीजिये ,सेवा कीजिये फिर देखिये उसका दुलार झांकिए उसकी आँखों से उमड़ते नेह को। एक माँ दिखाई देगी आपको।
कुलमिलाकर किस्सा ये है कि वैश्विक वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य कितना भी गाय की सामाजिक स्वास्थ्यगत उपयोगिता के पक्ष में खड़ा हो जाए -पतनाला वहीँ गिरेगा। ये सेकुलरभट्ट भारत राष्ट्र और भारत के जन मन की आस्था के प्रतीकों पर चोट करने से बाज़ नहीं आयेंगे। जो जन मन की आस्था ,राष्ट्र की अस्मिता पर चोट करे यहां वही सेकुलर कहा जाता है। कल को यदि जन मन की आस्था केंद्र शूकर हो जाए तो ये उसका भक्षण करने में भी नहीं चूकेंगे और यदि जेहादी मानसिकता के डर से बेकन या हेम न भी खा पाएं तो राष्ट्रवादी हिंदूधारा के ,भारत धर्मी समाज के इन प्रतीकों को ध्वस्त करने के लिए ये आत्म हत्या भी कर लेंगे।
जयश्रीकृष्णा।
http://www.dnaindia.com/india/report-maharashtra-writer-girish-karnad-joins-protest-against-ban-on-beef-2076246
Maharashtra: Writer
Girish Karnad joins
protest against ban
on beef
Calling ban on beef as an act that was against the diverse food culture of our society, Left wing body Democratic Youth Federation of India and Dalit outfits on Thursday held a beef eating programme in Bengaluru that was attended by Jnanpith awardee Girish Karnad.
The event was organised in protest against the ban on beef in different parts of the country and also supported and attended another famous Kannada writer Dr K Marulasiddappa. Protesters criticised thebeef ban as an attempt to encroach upon the choice of food and against the diverse food culture of Indian society.
(11 Apr) Bengaluru : Noted playwright Girish Karnad stirred a controversy on Thursday, April 9, by joining the Democratic Youth Federation of India (DYFI) activists who had organized a protest here against the beef ban in Maharashtra. The protesters cooked beef biryani on the spot and consumed it. Though Karnad did not eat the biryani, he said that the government had no right to steal the rights of a section of people. "The act of banning beef eating is the provocation. I may or may not eat beef but I will stand by the right of others for whom the meat is a crucial source of affordable nutrition. It's about people's right to food and their right to life," Karnad told reporters. This prompted National Spokesperson of Akhila Bharath Hindu Mahasabha M Vasudevarao Kashyapa, who also claimed to be relative of Karnad to file a case of religious incitement against him. "I have great respect for Karnad, the artiste. But by doing this he has brought great shame to our family as
Amid a row over Maharashtra government's decision to ban beef in the state, playwright Girish Karnad hit out at the government. He has called the ban a cultural aggression.
http://blogs.discovermagazine.com/d-brief/2015/01/02/red-meat-cancer-immune/#.VTPvERz3-iw
http://blogs.discovermagazine.com/d-brief/2015/01/02/red-meat-cancer-immune/#.VTPvERz3-iw
Red Meat Increases
Cancer Risk Because
of Toxic Immune
Response
Consumption of red meat has long been linked to the development of certain types of cancer. Now scientists believe they’ve found the culprit behind red meat’s carcinogenic effects.
A new study reports that a sugar molecule found in the flesh of beef, lamb and pork could be triggering an immune response in humans that causes inflammation, which ultimately contributes to tumor growth. Long-term exposure to this sugar in mice caused a five-fold increase in their chances of developing cancer.
Not So Sweet Sugar
Humans are the only carnivores that face an increased risk of cancer as a result of eating red meat, but no one really knew why. Although there’s an abundance of theories attempting to explain red meat’s ill effects, concrete evidence is still in short supply.
Researchers decided to focus on a single sugar molecule, called Neu5Gc, that has been found in high levels in cancerous tissues but isn’t produced by the human body – indicating that it comes from our diet. Neu5Gc is naturally produced in most mammals, but humans are the exception.
When researchers measured the amount of Neu5Gc in various foods, they found that red meat had especially high levels. Beef, bison, pork and lamb had the greatest amount of the sugar. Poultry, fish (with the exception of caviar), vegetables and fruits lacked Neu5Gc.
Testing Neu5Gc
Researchers suspected that the immune system could be to blame, launching antibodies against the sugar whenever humans ate it. That could cause chronic inflammation, a known contributor to cancer.
So researchers bred “humanized” mice that lacked the ability to produce Neu5Gc. They fed them the mouse equivalent of red meat, mouse chow enriched with Neu5Gc, for 12 weeks. The mice also received regular injections of Neu5Gc antibodies to mimic what happens in the human body.
And indeed, scientists found that the mice developed five times as many tumors as humanized mice fed a normal diet. The liver was the most common spot for tumors to develop, and biopsies of the tumors found Neu5Gc in them. Humans, by contrast, tend to develop cancer of the colon as a result of red meat-heavy diets. Researchers published their results in the journal
2 टिप्पणियां:
गौ भारतीय संस्कृति और जीवन का एक अभिन्न अंग है. गौ संरक्षण को किसी धर्म के आईने से न देख कर भारतीय जन जीवन का एक हिस्सा समझें. बहुत सटीक और सारगर्भित प्रस्तुति.
आपने एक अहम सवाल उठाया है. वाकई ये चिंतन का विषय है. बढ़िया पोस्ट.
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