शरीर तो पहले ही जड़ है। मरता कौन है फिर ?क्या मृत्यु एक इल्यूज़न है ?माया है ,जो है नहीं और दिखाई पड़ती है ?
मन के बाहर कुछ भी नहीं हैं ,यह संसार मन के बाहर ही है वह भी तभी तक जब तक उसे आत्मा का आशीर्वाद प्राप्त है।
आशीर्वाद मिलना बंद हुआ कि जगत अदृश्य हो जाएगा।
स्वप्न अल्पकालिक होता है जानकार कहतें हैं बा -मुश्किल स्वप्न की अवधि डेढ़ दो मिनिट ही होती है। स्वप्न अवस्था का
मन ही स्वप्न की सृष्टि करता है। स्वप्न का विषय भी वही होता है ,स्वप्न देखने की प्रक्रिया भी वही होता है।जागते ही नींद
टूटते ही यह स्वप्नावस्था का प्रपंच गायब हो जाता है। स्वप्न अवस्था का मन भी।
आत्मा के शरीर से बाहर जाते ही जागृत अवस्था का मन भी गायब हो जाता है।
जागृत अवस्था भी यह स्थूल शरीर भी जागृत अवस्था का प्रपंच है बस इसकी अवधि ज्यादा है कोई सत्तर -अस्सी बरस
बस।
इसी तरह यह जगत भी दीर्घ अवधि का एक स्वप्न मात्र है जो हम अपने आस पास देखते हैं। ट्रांज़ेक्शनल रियलिटी है
बस। एब्सॉल्यूट रियलिटी नहीं है इसीलिए माया है।
मृत्यु जीवन का विनियमन है जैसे आप लाइब्रेरी का पुराना कार्ड रिन्यू करा लेते हैं। वैसे ही मृत्यु पुराने शरीर को रिन्यू
कर देती है। हमारी अधूरी अनभोगी रह गईं वासनाओं के अनुरूप। बस इतना भर।
जय श्रीकृष्णा।
मन के बाहर कुछ भी नहीं हैं ,यह संसार मन के बाहर ही है वह भी तभी तक जब तक उसे आत्मा का आशीर्वाद प्राप्त है।
आशीर्वाद मिलना बंद हुआ कि जगत अदृश्य हो जाएगा।
स्वप्न अल्पकालिक होता है जानकार कहतें हैं बा -मुश्किल स्वप्न की अवधि डेढ़ दो मिनिट ही होती है। स्वप्न अवस्था का
मन ही स्वप्न की सृष्टि करता है। स्वप्न का विषय भी वही होता है ,स्वप्न देखने की प्रक्रिया भी वही होता है।जागते ही नींद
टूटते ही यह स्वप्नावस्था का प्रपंच गायब हो जाता है। स्वप्न अवस्था का मन भी।
आत्मा के शरीर से बाहर जाते ही जागृत अवस्था का मन भी गायब हो जाता है।
जागृत अवस्था भी यह स्थूल शरीर भी जागृत अवस्था का प्रपंच है बस इसकी अवधि ज्यादा है कोई सत्तर -अस्सी बरस
बस।
इसी तरह यह जगत भी दीर्घ अवधि का एक स्वप्न मात्र है जो हम अपने आस पास देखते हैं। ट्रांज़ेक्शनल रियलिटी है
बस। एब्सॉल्यूट रियलिटी नहीं है इसीलिए माया है।
मृत्यु जीवन का विनियमन है जैसे आप लाइब्रेरी का पुराना कार्ड रिन्यू करा लेते हैं। वैसे ही मृत्यु पुराने शरीर को रिन्यू
कर देती है। हमारी अधूरी अनभोगी रह गईं वासनाओं के अनुरूप। बस इतना भर।
जय श्रीकृष्णा।
1 टिप्पणी:
ये भी इल्यूजन है की माया भी है या नहीं ... या ये एक बाईलोजिकल प्रोसेस है ... पर आत्मा तत्व तो कुछ न कुछ है ... फिर क्या है ... कुछ पता नहीं ...
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