गुरुवार, 22 सितंबर 2016

निद्रा आलस भोग भय , ए पशु पुरख समान , नरन ज्ञान निज अधिकता , ज्ञान बिना पशु जान।

बलिहारी उस दुःख को ,जो पल पल नाम जपाय।

 निद्रा आलस भोग भय ,

ए  पशु पुरख समान ,

नरन ज्ञान निज अधिकता ,

ज्ञान बिना पशु जान।

दो पैरों वाले भी पशु होते है। सिर्फ चार पैरों वाले ही पशु नहीं होते।

जो पीछे रह गया ,समझ के स्तर पर पिछड़ गया पशु है। जो मन के स्तर पर जी रहे हैं वह मनुष्य हैं जो तन के स्तर पर ही जी रहे हैं वह निरे पशु हैं।

ए हो मन आरसी, कोई गुरमुख देखे

आरसी माने शीशा।

अज क़ज़ा आइना ,चीनी शिकस्त ,(अब मेरी मौत निश्चित है ,मुझसे ये चीनी आइना टूट गया जो बेशकीमती था ).

खूब सुद ,सामान खुद बीनी शिकस्त।

बहुत मुद्दत हो गई ,अपना मन नहीं देखा ,मैं तो रात दिन अपना तन ही देखती थी।

संसार पदारथ  है गुरु शबद  है परमात्मा परम चेतना है।संसार देखने का विषय है ,गुरु श्रवण का और परमात्मा अनुभव का विषय है। अनुभव की आँख गुरु को सुनकर खुलती है। परमात्मा और गुरु शक्ति हैं व्यक्ति  नहीं। जो व्यापक है वह व्यक्ति नहीं है शक्ति है। जो सदा संग नहीं है वह परमात्मा नहीं है। शब्द के रूप में गुरु सदा संग है। अपने व्यापकत्व  के कारण परमात्मा सदैव ही हमारे संग है। हम अपने घर से परिवार से वतन से दूर जा सकते हैं परमात्मा से नहीं वह तो सदा हमारे साथ है।

https://www.youtube.com/watch?v=iN_EhVNTqm8

ਮਨ ਅਤੇ ਤਨ man atte tan .sant singh Maskeen ji new katha

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