सोमवार, 7 सितंबर 2015

पूछा जा सकता है फिर गर्भिणी क्या पढ़े और सुने ,तुलसीकृत विनयपत्रिका और रामचरितमानस का श्रवण और पारायण करे





हमारी शख्शियत केवल हमारे जीवन खण्डों ,जींस का जमा जोड़ ही नहीं गर्भ के अंदर और बाहर का परिवेश भी है।


कमसे कम गर्भिणी माताओं को एकता कपूराना (एकता कपूर शैली के) सीरियल नहीं देखने चाहिए। महाराणाप्रताप जब गर्भ में थे उनकी माता ने सम्पूर्ण बाल्मीकि रामायण का श्रवण किया  श्रोत्रिय ब्राह्मण को बुलवाकर निरंतर  पाठ करवाया।शिवाजी जब गर्भ में थे उनकी माता ने महाभारत  की सम्पूर्ण कथा सुनी इसीलिए वीर शिवाजी जैसा अद्भुत पराक्रमी युद्ध नीति में प्रवीण बालक पैदा हुआ। गर्भकाल बालक के निर्माण का काल है।संस्कार इसी अवधि में पड़  जाते हैं।प्रह्लाद में ये संस्कार इसी गर्भावधि में पड़  गए थे। ब्रह्मऋषि  नारद जी की कुटिया में वे गर्भकाल में रहीं थीं क्योंकि स्वर्गका महाराजा इंद्र उनका अपहरण कर लाया था। ताकि हिरण्यकशिपु का वंश ही आगे न बढ़ सके जिसने देवताओं से राड़ ठान ली थी त्रिलोक को प्रकम्पित कर रखा था।

(चक्रवर्ती सम्राट )राजा परीक्षित को इसी गर्भावधि में उत्तरा के गर्भ में अपनी योगमाया से प्रविष्ठ हो श्रीकृष्ण ने बचाया था।

 कृष्णद्वैपायन व्यास जी के पुत्र माँ के गर्भ से बाहर ही नहीं आना चाहते थे। 

शुक रूप में स्वयं शिवजी के मुख से इन्होनें भागवत कथा सुनी थी जबकि माता पार्वती को कथा सुनते सुनते नींद आ गई थी उस समय हुंकारा इसी शुक ने भरा था। क्योंकि शंकर भगवान यही चाहते थे कि पार्वती कथा के दरमियान लगातार बीच बीच में हुंकारा भर्ती रहें। जब शिवजी को पता चला की एक अपात्र कथा का श्रवण कर वहां से चला गया तब शिव के गणों ने  इस माया शुक का पीछा किया जो सत्यवती (व्यास जी की पत्नी )के मुख में घुस गया।जो उस वक्त मुंह खोले सो रहीं थीं। 

गर्भकाल गर्भस्थ की पहली पाठशाला है इस दरमियान एकताकपूराना धारावाहिक सुनने देखने के  क्या परिणाम सामने आयेंगे   इसका क्या सही सही अनुमान लगाया जा सकता है ?  

पूछा जा सकता है फिर गर्भिणी क्या पढ़े और सुने ,तुलसीकृत विनयपत्रिका और रामचरितमानस का श्रवण और पारायण करे। विनयशील संतानें ही पैदा होवेंगी क्योंकि हमारी शख्शियत केवल हमारे जीवन खण्डों ,जींस का जमा जोड़ ही नहीं गर्भ के अंदर  और बाहर का परिवेश भी है। 

संदर्भ :  

https://www.youtube.com/watch?v=V0_umGOCHUk

Shrimad Bhagwat Katha by Shri Rajendra Das Ji Maharaj (Muzaffarpur) Day 04


by Sacred Discourse    


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