सोमवार, 3 नवंबर 2014

य: ,सर्वत्र ,अनभिस्नेह :,तत् तत् ,प्राप्य ,शुभाशुभम् , न ,अभिनन्दति ,न द्वेष्टि ,तस्य ,प्रज्ञा ,प्रतिष्ठिता

य: ,सर्वत्र ,अनभिस्नेह :,तत् तत् ,प्राप्य ,शुभाशुभम् ,

न ,अभिनन्दति ,न द्वेष्टि ,तस्य ,प्रज्ञा ,प्रतिष्ठिता। 

                                           (श्रीमद् भगवद् गीता २. ५७ )

य:=जो पुरुष ,सर्वत्र =सब जगह; अनभिस्नेह = स्नेहरहित हुआ ,तत् 

तत=उस ,उस ;न =,न ,नहीं ;अभिनन्दति =प्रसन्न होता है और 

शुभाशुभम् ,=शुभ या अशुभ वस्तु को ,प्राप्य =प्राप्त होकर ,न =न ,

अभिनन्दति=प्रसन्न होता है , न =न ,द्वेष्टि =द्वेष करता है ,तस्य 

=उसकी ,प्रज्ञा =बुद्धि ,प्रतिष्ठिता =स्थिर है। 

जिसे किसी भी वस्तु से  आसक्ति न हो ,जो शुभ को प्राप्त कर प्रसन्न न 

हो ,और अशुभ से द्वेष न करे ,उसकी बुद्धि स्थिर है। 

one who remains unattached under all conditions ,and is neither 

delighted by good fortune nor dejected by tribulation ,he is a sage 

 with perfect knowledge.

Rudyard Kipling ,a famous British poet , has encapsulated the essence of this verse on Sthita pragya (Sage of steady intelligence )in his famous poem "If".Here are a few lines from this poem :

If you can dream -and not make dreams your master ;

If you can think -and not make thoughts your aim ,

If you can meet with Triumph and Disaster 

And treat those two impostors just the same .....

If neither foes nor loving friends can hurt you ,

If all men count with you , but none too much :

If you can fill the unforgiving minute 

With sixty seconds ' worth of distance run ,

Yours is the Earth and everything that's in it ,

And -which is more -you 'll be a Man , my son !

The popularity of this poem shows the natural urge in people to 

reach the state of enlightenment ,which Shree  Krishna describes to 

Arjun.One may wonder how an English poet expressed the same 

state of enlightenment that is described by the Supreme Lord .The 

fact is that the urge for enlightenment is the intrinsic nature of the 

soul .Hence knowingly or unknowingly ,everyone craves for it , in 

all cultures around the world .Shree Krishna is describing it here , 

in response to Arjun's question.

राहगीर फिल्म के इस गीत पर भी गौर करें जिसे लिखा है 

गीतकार गुलज़ार साहब ने :

जन्म से बंजारा हूँ बंधू ,जन्म जन्म बंजारा ,

कहीं कोई घर न घाट न अँगनारा। (२)

जहां कहीं ठहर गया दिल हमने डाले डेरे ,

साथ कहीं नमकीन मिली तो मीठे साँझ सवेरे हो (२),

कभी 

नगरी छोड़ी साहिल छोड़ा, लिया मंझधारा ,बंधू रे ,(२)

कहीं कोई घर न घाट न अँगनारा। 

सोच ने जब करवट बदली शौक  ने पर फैलाये ,

मन आशियाँ के तिनके सारे डाल से उड़ाए 

कभी रिश्ते तोड़े ,नाते तोड़े ,छोड़ा  कुलकिनारा ,बंधू रे (२)

कहीं कोई घर न घाट न अँगनारा। 


Hemant Kumar - Janam Se Banjara Hoon Bandhu - Raghir (1969)

Singer: Hemant Kumar - Film: Raghir (1969)


Janam se banjara hoon bandhu - Hemant Kumar


https://www.youtube.com/watch?v=xFH0f-GwV1o




1 टिप्पणी:

Anita ने कहा…

सही कहा है मुक्त होने की इच्छा सबके भीतर है..सबके भीतर ही वह परमात्मा स्वयं है जो अपनी ओर खींच रहा है