मंगलवार, 7 मई 2013

क्या परमात्मा घट घट वासी है?


क्या परमात्मा घट घट वासी है?

इस सृष्टि के प्रत्येक कण में जिसमें एक अनुमान के अनुसार Ten to the

power 82 protons  (एक के आगे 8  २ बिंदी जड़ दो ),इतने ही इलेक्ट्रोन तथा टेन टू सेविनटी नाइन न्युट्रोन हैं

क्या


उसका वास है ?

इस सृष्टि में दस खरब (टेन टू टुवेल्व )नीहारिकाएं हैं तथा एक नीहारिका(Galaxy ) में ही औसतन २ ० ० अरब

सितारें


               12                                                     २ ३
(2 x 10  )      होतें हैं .इस प्रकार सृष्टि में कुल  १ ०           सितारे हो जातें हैं .क्या इन सब में भी ईश्वर है ?

गीता में तो कहा गया है परमपुरुष परमात्मा सितारों के पार ब्रह्मलोक का वासी है .कल्प में एक ही बार उसका

ब्रह्मा तन में(साधारण मनुष्य तन में )अवतरण होता है .फिर वह कण कण वासी कैसे हो गया ?

कह दिया गया मोकू  कहाँ ढूंढें रे बंदे मैं तो तेरे भेष में ......


हर मनुष्य में उसका होना बतलाया गया है .घट घट वासी कह दिया गया उसे .बेशक हर हृदय उसे याद कर

सकता है कहीं से भी .हम उससे कनेक्ट हो सकते हैं उसे याद कर सकते हैं लेकिन वह सृष्टि के प्रत्येक कण में

नहीं हो सकता .हो सकता तो अपने होने की खबर देता .अपना आभास कराता .

जहां आग होती है वहां धुंआ होता है ताप होती है .एक अगरबत्ती सारे वातावरण को सुवासित कर देती है

परमात्मा की शीतलता का एहसास फिर हम हर जगह क्यों नहीं करते ?

हर शहर में कोई मनोरोगी विक्षिप्त अवस्था में नग्न अर्द्ध नग्न मिल जाता है अजीबो गरीब हरकत करते क्या

वह परमात्मा कहलायेगा ?

राम सिंह जिसने तिहाड़ जेल में आत्म ह्त्या कर ली क्या परमात्मा था .वह तो पापात्मा ही कहलायेगा

.पुण्यवान को आपकहतें हैं पुण्यात्मा .

क्या आपने कभी पाप परमात्मा ,पुण्य परमात्मा शब्द प्रयोग सुना है ? नहीं न .इससे सिद्ध होता है परमात्मा

कण कण में नहीं है .

भले कबीर ने राम भक्ति में डूब कह दिया -

लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल ,

लाली देखन मैं गई ,मैं भी हो गई लाल .

भक्ति भाव का उदगार है यह .भाव है यह यथार्थ नहीं रूपक है यथार्थ का .

यदि परमात्मा कण कण में व्याप्त होता तब आत्मा के शरीर छोड़ जाने पर हम काया (शव )को क्यों जलाते हैं

?क्यों उसे मिट्टी कहके जल्दी निकालते हैं घर से .

इससे सिद्ध होता है परमात्मा का प्राकृत आवास हम मनुष्य आत्माओं के आवास से अलग है .वह हमारे अंदर

नहीं है .

न ही वह कच्छप अवतार है न मत्स्य अवतार है .ये सब भक्ति मार्ग के मिथक हैं .पञ्च भूतों की पूजा कर्म

काण्ड है तात्विकता नहीं है इस पूजा में .इसका कोई प्राप्य भी नहीं है .यहाँ आशय सिर्फ इतना तो हो सकता है

यह हमारी धरती  के कुदरती सीमित साधन हैं हम इन्हें स्वच्छ रखें .प्रदूषित न करें .वृक्ष की पूजा का  यह तो

मतलब



हो सकता है हम वृक्ष लगाएं .वृक्ष माफिया न बनें .वृक्ष हमारे पारितंत्र को स्वच्छ रखतें हैं लेकिन इनकी पूजा

से प्राप्य  कुछ भी नहीं है .

परमात्मा का वृक्ष में वास नहीं है होता तो इतने बड़े पैमाने पर जंगलात न काटे जाते .

यदि परमात्मा कण कण में है तो फिर प्रत्याहार क्यों ?क्यों हर तरफ से ध्यान हटाकर (धारणा )सिर्फ एक

परमात्मा में

लगाना इतना मुश्किल क्यों हो रहा है .फिर तो कहीं भी ध्यान लगा लो .हर तरफ परमात्मा है उसकी 'कण कण

में

व्याप्त' अवधारणा के अनुसार .





11 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अपने आप को द्वंद की स्थिति में देखना ... कुछ नया परिभाषित करना ... या ... पुराने में प्रतिविश्वास देखना ... जो भी है एक धरातल से ऊपर उठकर लिखी पोस्ट है ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

विचार का आना और जाना, इसी में ईश्वर होने के प्रारम्भिक संकेत छिपे हैं।

Anita ने कहा…

संत जन कहते हैं परमात्मा सूक्ष्म से अति सूक्ष्म है, पदार्थ के छोटे से छोटे कण से भी सूक्ष्म...उसे काटा नहीं जा सकता, जलाया नहीं जा सकता..वह सबका आधार है..

Madan Mohan Saxena ने कहा…

God is everywhere.

Unknown ने कहा…

सरजी, यह बेहद गंभीर और दार्शनिक
विषय है ,सत्तामूलक अस्तित्ववाद और
लौकिकता से पारलौकिकता की तरफ
उन्मुख होती बेहतरीन प्रस्तुति

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

भक्ति मार्ग से लेकर, आईंस्टाईन की थ्योरी सहित आपने बडे ही सूक्षम रूप से तत्व निरूपण करते हुये प्रकृति की रक्षा करने का संदेश भी दे दिया, बहुत ही उच्च कोटि की पोस्ट. शुभकामनाएं.

रामराम.

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

बेहद दार्शनिक ,विचारणीय और गंभीर
प्रस्तुति ,लौकिकता और पार- लौकिकता की गूढ़ प्रस्तुति

Ayodhya Prasad ने कहा…

बहुत बढ़िया पोस्ट ..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुंदर विचारणीय प्रस्तुति,,,

RECENT POST: नूतनता और उर्वरा,

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही गुढ़ और सार्थक प्रस्तुति,आभार.

virendra sharma ने कहा…

Madan Saxena ने कहा…
God is everywhere.

7 मई 2013 3:14 pm
मदन सक्सेना भाई !परमात्मा सब जगह है का मतलब यह हुआ वह एक साथ परमधाम में भी है

और यहाँ वहां सब जगह भी है .उसकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता बोले तो उसका काम पत्ते

हिलाना है ?पत्ते तो हवा हिलाती है .हवा बंद होती है तो पत्ता भी नहीं हिलता .अगर सब काम

उसकी ही मर्जी से हो रहे हैं तब यह भी मानना पड़ेगा यह सारा भ्रष्ट आचरण /भ्रष्टाचार /दुराचार /

रोड रेज उसी की मर्जी से हो रहा है .

यह भाई साहब कर्म फल है इस या उस जन्म का .आत्मा पे चौरासी जन्मों का बोझा है खोट चढ़ी है न जाने अपने अपने पिछले किस जन्म का पाप आज सदाचारी भी भुगत रहें हैं .और धंधे बाज़ किसी पूर्व जन्म के सुकर्म की फसल काट रहें हैं लेकिन इस जन्म का वि -कर्म भी भुगतना पड़ेगा .खाली तिहाड़ जाने से वह चुकता नहीं होगा .
परमात्मा सब जगह होता तो लोगों को क्या उसका भान नहीं होता .उसकी दिव्यता के स्पर्श सहित हम ये धत कर्म करते जो आज कर रहें हैं ?

कहीं स्वच्छता होती है वहां अन्दर से मन नहीं करता आप उस जगह को थूक के गंदा करें .मूत्र त्याग करें वहां .आपकी बुद्धि में आयेगा ही नहीं जहां गन्दगी होगी आप फट थूक देंगे .तो भला जहां परमात्मा के दिव्यप्रकाश की शीतलता होगी वहां अपराध हो ही कैसे सकता है ?.अत :परमात्मा सब जगह नहीं है सब जगह से उसे याद ज़रूर किया जा सकता है उससे कनेक्ट हुआ जा सकता है .एक कण एक साथ दो स्थान नहीं घेर सकता .

A particle can not occupy two places (spaces )simultaneously .

ॐ शान्ति .