गुरुवार, 25 अगस्त 2011

संसद की प्रासंगिकता क्या है ?

अन्ना जी का जीवन देश की नैतिक शक्ति का जीवन है जिसे हर हाल बचाना ज़रूरी है .सरकार का क्या है एक जायेगी दूसरी आ जायेगी लेकिन दूसरे "अन्ना जी कहाँ से लाइयेगा "?
और फिर ऐसी संसद की प्रासंगिकता ही क्या है जिसने गत ६४ सालों में एक "प्रति -समाज" की स्थापना की है समाज को खंड खंड विखंडित करके ,टुकडा टुकडा तोड़कर ।जिसमें औरत की अस्मत के लूटेरे हैं ,समाज को बाँट कर लड़ाने वाले धूर्त हैं .
मनमोहन जी गोल मोल भाषा न बोलें?कौन सी "स्टेंडिंग कमेटी "की बात कर रहें हैं ,जहां महोदय कथित सशक्त जन लोक पाल बिल के साथ ,एक प्रति -जन -पाल बिल भी भिजवाना चाहतें है ?संसद क्या" सिटिंग कमेटी" है जिसके ऊपर एक स्टेंडिंग कमेटी बैठी है .अ-संवैधानिक "नेशनल एडवाइज़री कमेटी"विराजमान है जहां जाकर जी हुजूरी करतें हैं .नहीं चाहिए हमें ऐसी संसद जहां पहले भी डाकू चुनके आते थे ,आज भी पैसा बंटवा कर सांसद खरीदार आतें हैं .डाकू विराजमान हैं .चारा -किंग हैं .अखाड़े बाज़ और अपहरण माफिया किंग्स हैं ।
आप लोग चुनकर आयें हैं ?वोटोक्रेसी को आप लोग प्रजा तंत्र कहतें हैं ?
क्या करेंगें हम ऐसे "मौसेरे भाइयों की नैतिक शक्ति विहीन संसद का"?

समय सीमा तय करें मनमोहन ,सीधी बात करें ,गोल -गोल वृत्त में देश की मेधा और आम जन को न घुमाएं नचायें ।
"अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल ".बारी अब तेरी है .

11 टिप्‍पणियां:

SANDEEP PANWAR ने कहा…

कानूनी मान्यताप्राप्त डकैत कहे तो ज्यादा अच्छा रहेगा?

रेखा ने कहा…

साफ -साफ बात करने की आदत तो अब रही नहीं है न .......बेशर्म है सरकार

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ये पतन बहुत धीरे धीरे पर हमारे समाज में हुवा है ... पता नहीं क्यों १००० वर्षों की गुलामी से कुछ सीख नहीं पाए हैं हम ... गी दी पी ग्रोथ तो तरक्की मानने की कला बहुत आसानी से पिछले ६४ वर्षों से हमारी रगों में उतारी गयी है ...

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

Sir ji ...... sahi baat likhi hai aapne!


saare ke saare GhaaGH0 (घाघ) hain.

Bharat Bhushan ने कहा…

आपके चारों कमेंट्स से आपके भीतर की पीड़ा छलकती है.
इन घटनाओं पर बुद्धिजीवी/वामपंथियों की सोच अलग दिखती है. अन्ना हज़ारे बहुत महत्वपूर्ण हैं परंतु भ्रष्टाचार का मुद्दा और भी महत्वपूर्ण है.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जागरुकता बढ़ेगी तो संसद का स्वरूप भी बदलेगा।

SM ने कहा…

yes they should fix time limit
agree with you

डॉ टी एस दराल ने कहा…

लगता है अक्ल आ रही है सरकार को धीरे धीरे ।

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

सुन्दर और सामयिक

मनोज कुमार ने कहा…

देखें अब कौन सी चाल चली जा रही है।

Asha Joglekar ने कहा…

ye samay nikaloo chalen hain sarkar kee.