शनिवार, 22 नवंबर 2008

कमुनिस्ट कदापि भारतीय न भवति

लेफ्टिए कुछ भी हो सकते हैं, रूस समर्थक भी हो सकते हैं और चीन समर्थक भी। थेन्मेइन चौक पर जब सैंकडों गणतंत्र समर्थकों को टंक से रोंदा जाता है तब यह लाल चीन का जैकारा बोलते हैं। जब १९६२ में इसी चीन ने हमारी सीमाओं पर हमला किया तो इन्होने फट कहा "मुक्ति सेना" आई है, इसका स्वागत होना चाहिए। इन मुखबिरों की राष्ट्रीयता इतिहास में बाकायदा दर्ज है। आज यह राष्ट्रीयता पर जब कलम चलाते हैं सशस्त्र सेनाओं पर निशाना साधते हुए कहता हैं " हिंदूवादी आतंक, आतंक न भवति" तब यही उक्ति याद आती है कमुनिस्ट कदापि भारतीय न भवति, इन रख्तरंगी और भैंसे में एक ही अन्तर है : भैसा लाल कपड़ा देख कर भड़कता है यह केसरिया ।

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