न था कुछ तो खुदा था ,कुछ न होता तो खुदा होता ,
डुबोया मुझको होने ने ,न होता मैं तो क्या होता।
डुबोया मुझको होने ने ,न होता मैं तो क्या होता।
Duboyaa Mujh Ko Hone Ne, Na Hota Main To Kya Hota...
Translation:
1. When there was nothing, then God existed; if nothing existed, then God would exist.
2. 'being' drowned me; if I did not exist, then what would I be?
1. When there was nothing, then God existed; if nothing existed, then God would exist.
2. 'being' drowned me; if I did not exist, then what would I be?
Meaning:
With what excellence he's given nonexistence priority over existence-- it's beyond praise. He says that when the world had not been born, then there was only the Lord himself. If this world of possibilities had not been engendered, then too there would have been only the Lord himself. Thus my existence, as it manifested itself, established me as a separate body, and that other body, having taken shape, ruined me. If I had not been born, and did not exist, then just think, what would I have been! That is, I would have been God.
With what excellence he's given nonexistence priority over existence-- it's beyond praise. He says that when the world had not been born, then there was only the Lord himself. If this world of possibilities had not been engendered, then too there would have been only the Lord himself. Thus my existence, as it manifested itself, established me as a separate body, and that other body, having taken shape, ruined me. If I had not been born, and did not exist, then just think, what would I have been! That is, I would have been God.
बतलाते चलें आपको ये ग़ालिब साहब का आखिरी शैर था ,इस दौर तक आते आते वो ग़ालिब गायब हो चुका था जो कहता था -
हैं और भी दुनिया में सुखनबर बहुत अच्छे ,
कहते हैं के ग़ालिब का है अंदाज़े बयान और।
यानी अपने को श्रेष्ठ क्या उस दौर का सर्वश्रेष्ठ ,चोटी का, शीर्ष शायर मानने का दम्भ साफ़ दिखलाई देता है इस शैर में।
(सुखनबर -कवि ,शायर ,तमाम किस्म के लिखाड़ियों के लिए प्रयुक्त होता है। )
उम्र के अंतिम पड़ाव तक आते आते वह ग़ालिब मर चुका था। उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ ,वह अस्तित्व और केवल अस्तित्व यानी इज़्नेस ,प्रेज़ेन्स (प्रीज़ेन्ट ),बीइंग होने को जान गए थे ,खुदा और बन्दे के बीच में यह अहम भाव आईनैस ,ही सबसे बड़ी रुकावट है।ये समय से बंधा अतीत ,भविष्य में भटकता मन ,जिसे फाल्स ईगो ने रचा है सबसे बड़ी बाधा हमारे अर्थ-पूर्ण अस्तित्व यानी बीइंग और माइंड जेनरेटिड फाल्स ईगो के बीच।
तमाम गर्वोक्तियाँ अनकोंशश माइंड की ,फाल्स ईगो की उपज हैं। हर लिख्खाड़ मशहूरी चाहता है। मैं बहुत बड़ा लिखाड़ी हूँ ,खिलाड़ी हूँ ,बिग बोस ,बिग -बी हूँ। इसका नुक्सान यह है आदमी क्लॉक टाइम की गिरिफ्त के आगे बीइंग तक नहीं पहुँच पाटा पाता जो समय मुक्त है।
मन हमारे अवचेतन मन की पैदावार है ,फसल है ,हमारी एब्सेंस की खबर है। मन अतीत और भविष्य में ही पनाह ढूंढता है। बीइंग की ,प्रीजेंस की अनदेखी करता है। जबकि भविष्य तो इसी अवचेतन से पैदा माइंड का प्रोजेक्शन मात्र है और भविष्य जब भी घटित होगा ,नाउ में ही घटित होगा। और अतीत वह तो हमारी याददाश्त का अल्पांश (ट्रेस आफ अवर मेमोरी )मात्र है ,उसे भी नाउ में रिट्रीवल के तहत जी हाँ नाउ में ही होना आना पड़ता है।
उम्र के आखिरी पड़ाव में ग़ालिब समझ गए थे नाउ (प्रेजेंट ,मोमेंट ,बीइंग )ही हमारा अस्तित्व है। मन तो हमारा नौकर है ,हम अपना मन नहीं हैं मन के मालिक हैं। तमाम कर्मेन्द्रियां ,ज्ञानेन्द्रियाँ ,मन और अहंकार के साथ बुद्धि को भी बहका लेतीं हैं ,बुद्धि रुपी सारथी की लगाम पर मन कब्जा कर लेता है। मन हमेशा या तो अतीत में होता या भविष्य में सुकून ढूंढता है ,सपने सच होने का नखलिस्तान बुनता है।
तमाम शास्त्रों ने शरीर को झुठलाया है मुंह खोलकर कहा है -यु आर नाट योर बॉडी। जबकि शरीर हमारे होने की सबसे बाहरी परत है।पहला सच है। इसे समझने के बाद ही अंदर की यात्रा शुरू होगी।
इनर बॉडी यानी अंदर की यात्रा करते ही मन गायब हो जाता है। आप सिर्फ अपने साँसों की धौंकनी में हर सांस की आवाजाही पे ध्यान टिकाइये मन वाष्प बनके उड़ जाएगा। शेष जो बचेगा वह आपका बीइंग होगा।
बीइंग समय शून्य है। हमेशा है और हमेशा रहेगा। अतीत और वर्तमान समय से बंधे हुए हैं।बीइंग ही आप हैं ब्रह्म है ,परमात्मा है।
1 टिप्पणी:
सर जी राम राम। मन हमेशा या तो अतीत में होता या भविष्य में सुकून ढूंढता है ,सपने सच होने का नखलिस्तान बुनता है। क्या बात है? बहुत सही कहा आपने।
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