शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

मन क्या है ? एक रटंतू तोता , एक शाखा मृग - इस से उस डाल पे कूदता ,फांदता ,......

मन क्या है ?

एक रटंतू तोता ,

एक शाखा मृग -

इस से उस डाल पे कूदता ,फांदता ,

मौक़ा देखते ही फल खा लेता है ,

फिर वृक्ष किसी का भी हो। 

ज़ाहिर है मन एक चोट्टा है ,

सिर्फ धन ही नहीं रूप भी हरता है ,

हरता क्या है हार जाता है खुद ही खुद से।  

अदना सा मन दिन रात पिटता है ,

पीटता है खुद को ,अपनों को ,

बुद्धि के अक्षय भंडार को ताक पे रख ,

मन खुद के हाथों गिरवीं पड़ा है। 

खुद को अपना असल अस्तित्व समझे है ,

जबकि मन से पर (श्रेष्ठ )बुद्धि है ,

बुद्धि से पर इसका 'असल मैं' है ,

वह जो इसका मालिक है ,

रीअल सेल्फ है ,

ये मन तो -

फेंटम सेल्फ है ,फाल्स ईगो है ,

अहंकार  है ,गोस्ट है 

अपने असल अस्तित्व का। 

वह जो इसका मालिक है,

उस चैतन्य समुन्दर को ये भुलाए बैठा है।

विशेष :हमारे सारे दुखों की जड़ ये मन ही है ऐसा नहीं है ,बल्कि ये मान बूझ बैठना है कि हम ये मन ही हैं। जबकि हम तो मन के स्वामी है। हम इसे एक स्विच की भाँति  आन आफ कर सकें। बस इतना हो जाए। जब ज़रूरत हो इससे काम लें फिर उपराम (उदासीन )हो जाएं ,अनगढ ,अन -आब्ज़र्व्ड मन बड़ा दुःख देता है बुद्धि को भी ये बहका लेता है। सारथि (स्वामी )तमाशबीन बन जाता है ,ऐसे में।

कालबद्ध है हमारा मन या तो यह अतीत में रहता है या भविष्य में। टाइमलेस नहीं हो पाता। टाइमलेस होने का मतलब है वर्तमान में रहना। 

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

प्रेम ,आनंद - असीम ,प्रशांत होने का मतलब ,

खुद से जुड़ना है अंदर से ,

अ -मन होना है ,धनात्मक होना है .

मन की गुलामी से मुक्त होना है .जो अभी सुख है अभी दुःख है जिसका विपरीत भाव है ,वह मायिक आवरण है प्रेम नहीं है .