जब हम अन्दर से शांत होतें हैं .मन से भी विचार सरणी से भी .अपनी पूर्व
धारणाओं से ,संवेगों से जब हम यह
सोचना छोड़ देते हैं इससे अच्छा तो मुझे मालूम है यह क्या बताये जा रहा
है ,यह बात ऐसे नहीं ऐसे है और
इससे बेहतर तो इस बात (विषय )को मैं जानता हूँ तब हम दूसरे की बात
को ग्रहण न करके अपनी बुद्धि को
अपने में ही फंसाए रहते हैं .दूसरे की बात सुन ही नहीं रहे होते हैं .हम भूल
जाते हैं :दूसरे की बात पूरी सुनना
मनो
योग से सुनना ,ध्यान से सुनना
प्रेम का ही स्वरूप है .
Listening is an act of love .
मालूम हो हम जितना समय सूचनाओं ,विचारों के आदान प्रदान ,संपर्क
और संचार बोले तो कम्युनिकेशन में लगाते हैं उसमें अधिकतम हिस्सा
श्रवण (Listening )का ही होता है .(हर तरह के संचार में लगाए गए कुल
समय का ४ ५ %).
जब हम सामने वाले की बात ध्यान से पूरी तवज्जो से सुनते हैं तब हम
अपने अनजाने ही उसका दर्द कम कर देते हैं .हल्का महसूस करने लगता
है वह व्यक्ति इसलिए की वह अपने स्वमान ,अपने में (In his true
elements )लौट आता है खुद से ही उसका टूटा हुआ संपर्क दोबारा जुड़
जाता है .
He
now connects with himself .वास्तव में आप उसे कुछ नहीं देते .सिर्फ
उसकी भाव -शान्ति करते हैं .और वह व्यक्ति खुद से जुड़ जाता है उसे
अपना आपा अच्छा लगने लगता है उसका खोया हुआ आत्म विश्वास
लौटने लगता है .
सुख हमें भी मिलता है .
लेकिन होता क्या है ?
Most of the time while listening to others we are either assuming
and or judgmental .We are not listening him .We are waiting to
react .We forget when our emotions are involved listening
efficiency suffers.So it is necessary to remain quite and manage our
own reactivity .It is also necessary to help others to express their
feelings .It is also necessary to shift from "I understand " to "Help
me to understand ".
हद तो यह होती है हम सुनना नहीं चाहते अपनी कहना चाहते हैं .जबकि -
Listening is a way of being light ,lovely and living .
Listening is a
skill .
Genuinely listening to each other can be the greatest gift and healing we can give to another (self ).
Are you listening from the soul ?
हाँ ! असली सुनना वही है जब आपका मन निर्संकल्प हो .निर्विचार हो
.आप न्यूट्रल होकर सुनें .आपकी बुद्धि कहीं और न टहल रही हो .
यथार्थ में दूसरे को सुनने में हम जितना समय बिताते हैं उसमें से ७ ५ %
समय भाग में तो हम सुन ही नहीं रहे होते हैं .
जबकि सीखने की प्रक्रिया ,लर्निंग में श्रवण की हिस्सेदारी अधिकतम
होती
है .अंतर -राष्ट्रीय श्रवण संस्था (International listening association )के
अनुसार :
सीखने की प्रक्रिया में श्रवण ,बातचीत ,पढ़कर सीखने ,लिखकर सीखने की
हिस्सेदारी क्रमश :४ ० % ,३ ५ % ,१ ६ % ,९ % पाई गई है .
हमारी बच्चे हमारे पास आते हैं हम उनकी भी कहाँ सुन पाते हैं .हमारे पास
समय नहीं है उनकी बात सुनने का .ऐसा करके हम अपने अनजाने ही एक
गलत परम्परा की नींव रख रहे होते हैं .जब ये बच्चे बड़े हो जाते हैं ये अपने
बच्चों की भी नहीं सुनते हैं .
We tend to duplicate ,throughout our lives , the relationship patterns experienced in our early years.
Your listening will promote others to listen .
If you judge people you have no time to love them .
Multitasking reduces the quality of listening .
जब कोई हमारे पास आकर अपनी बात कहता है हम कुछ कर रहे होते है
.हम काम करते करते ही कहते हैं :हाँ क्या बात है बोलो .उसकी तरफ देखते
भी नहीं .उसे आश्वश्त ही नहीं करते ,हम उसकी सुन रहे हैं .क्योंकि हमारा
ध्यान कहीं और होता है और आँखें उस काम में अटकी होती हैं जो हम उस
समय कर रहे होते हैं .
न हम उसकी आँखों में देखतें हैं न उसकी बात देहिक मुद्राओं से सुनते हैं
.सिर्फ कान से सुनना सुनना नहीं होता .दूसरे की सुनने का मतलब है
उससे कनेक्ट होना .उसे यह लगना भी चाहिए आपके लिए वह महत्वपूर्ण
है आप उसकी बात सुन रहे हैं .
यहाँ हर कोई अपनी कहना चाहता है .एक मिथ यह बन गया है :
Only speaking represents power .Listening connotes weakness.
Listening means to lay aside your own views and values in order to
enter another's world.
Listening is persuasion to understanding :
Listen for understanding , not agreement,disagreement or belief or
belief .When motivation in communicating is to WIN the discussion or change the other person , you are doomed to fail .
Listening through the perspective of being Persecutor ,Rescuer , or a Victim rather than "I'm ok -You 're ok " reduces the quality /effectiveness of listening .
Undesirable patterns can be changed through awareness and practice .
Om Shanti .
ॐ शान्ति
धारणाओं से ,संवेगों से जब हम यह
सोचना छोड़ देते हैं इससे अच्छा तो मुझे मालूम है यह क्या बताये जा रहा
है ,यह बात ऐसे नहीं ऐसे है और
इससे बेहतर तो इस बात (विषय )को मैं जानता हूँ तब हम दूसरे की बात
को ग्रहण न करके अपनी बुद्धि को
अपने में ही फंसाए रहते हैं .दूसरे की बात सुन ही नहीं रहे होते हैं .हम भूल
जाते हैं :दूसरे की बात पूरी सुनना
मनो
योग से सुनना ,ध्यान से सुनना
प्रेम का ही स्वरूप है .
Listening is an act of love .
मालूम हो हम जितना समय सूचनाओं ,विचारों के आदान प्रदान ,संपर्क
और संचार बोले तो कम्युनिकेशन में लगाते हैं उसमें अधिकतम हिस्सा
श्रवण (Listening )का ही होता है .(हर तरह के संचार में लगाए गए कुल
समय का ४ ५ %).
जब हम सामने वाले की बात ध्यान से पूरी तवज्जो से सुनते हैं तब हम
अपने अनजाने ही उसका दर्द कम कर देते हैं .हल्का महसूस करने लगता
है वह व्यक्ति इसलिए की वह अपने स्वमान ,अपने में (In his true
elements )लौट आता है खुद से ही उसका टूटा हुआ संपर्क दोबारा जुड़
जाता है .
He
now connects with himself .वास्तव में आप उसे कुछ नहीं देते .सिर्फ
उसकी भाव -शान्ति करते हैं .और वह व्यक्ति खुद से जुड़ जाता है उसे
अपना आपा अच्छा लगने लगता है उसका खोया हुआ आत्म विश्वास
लौटने लगता है .
सुख हमें भी मिलता है .
लेकिन होता क्या है ?
Most of the time while listening to others we are either assuming
and or judgmental .We are not listening him .We are waiting to
react .We forget when our emotions are involved listening
efficiency suffers.So it is necessary to remain quite and manage our
own reactivity .It is also necessary to help others to express their
feelings .It is also necessary to shift from "I understand " to "Help
me to understand ".
हद तो यह होती है हम सुनना नहीं चाहते अपनी कहना चाहते हैं .जबकि -
Listening is a way of being light ,lovely and living .
Listening is a
skill .
Genuinely listening to each other can be the greatest gift and healing we can give to another (self ).
Are you listening from the soul ?
हाँ ! असली सुनना वही है जब आपका मन निर्संकल्प हो .निर्विचार हो
.आप न्यूट्रल होकर सुनें .आपकी बुद्धि कहीं और न टहल रही हो .
यथार्थ में दूसरे को सुनने में हम जितना समय बिताते हैं उसमें से ७ ५ %
समय भाग में तो हम सुन ही नहीं रहे होते हैं .
जबकि सीखने की प्रक्रिया ,लर्निंग में श्रवण की हिस्सेदारी अधिकतम
होती
है .अंतर -राष्ट्रीय श्रवण संस्था (International listening association )के
अनुसार :
सीखने की प्रक्रिया में श्रवण ,बातचीत ,पढ़कर सीखने ,लिखकर सीखने की
हिस्सेदारी क्रमश :४ ० % ,३ ५ % ,१ ६ % ,९ % पाई गई है .
हमारी बच्चे हमारे पास आते हैं हम उनकी भी कहाँ सुन पाते हैं .हमारे पास
समय नहीं है उनकी बात सुनने का .ऐसा करके हम अपने अनजाने ही एक
गलत परम्परा की नींव रख रहे होते हैं .जब ये बच्चे बड़े हो जाते हैं ये अपने
बच्चों की भी नहीं सुनते हैं .
We tend to duplicate ,throughout our lives , the relationship patterns experienced in our early years.
Your listening will promote others to listen .
If you judge people you have no time to love them .
Multitasking reduces the quality of listening .
जब कोई हमारे पास आकर अपनी बात कहता है हम कुछ कर रहे होते है
.हम काम करते करते ही कहते हैं :हाँ क्या बात है बोलो .उसकी तरफ देखते
भी नहीं .उसे आश्वश्त ही नहीं करते ,हम उसकी सुन रहे हैं .क्योंकि हमारा
ध्यान कहीं और होता है और आँखें उस काम में अटकी होती हैं जो हम उस
समय कर रहे होते हैं .
न हम उसकी आँखों में देखतें हैं न उसकी बात देहिक मुद्राओं से सुनते हैं
.सिर्फ कान से सुनना सुनना नहीं होता .दूसरे की सुनने का मतलब है
उससे कनेक्ट होना .उसे यह लगना भी चाहिए आपके लिए वह महत्वपूर्ण
है आप उसकी बात सुन रहे हैं .
यहाँ हर कोई अपनी कहना चाहता है .एक मिथ यह बन गया है :
Only speaking represents power .Listening connotes weakness.
Listening means to lay aside your own views and values in order to
enter another's world.
Listening is persuasion to understanding :
Listen for understanding , not agreement,disagreement or belief or
belief .When motivation in communicating is to WIN the discussion or change the other person , you are doomed to fail .
Listening through the perspective of being Persecutor ,Rescuer , or a Victim rather than "I'm ok -You 're ok " reduces the quality /effectiveness of listening .
Undesirable patterns can be changed through awareness and practice .
Om Shanti .
ॐ शान्ति
9 टिप्पणियां:
सर जी ,चक्षु द्वार को खोलती बेहतरीन प्रस्तुति
True listening is a very humane act ,truely ....!!
सर जी ,बहुत खूब, योग से सुनना ध्यान से सुनना प्रेम का ही स्वरूप है -निश्चित रूप में
किसी की बातों को सुनने से सुनाने वाले का दर्द कम हो जाता है ..... यह बहुत ज़रूरी है की किसी की बात को सुनते हुये कहने वाले को लगे कि उसकी बात सुनी जा रही है .... आपने बहुत अच्छे से ये बात समझाई है .... आभार
आपको पढना सुखद है वीरू भाई ..
.एकदम सही कहा आपने .सार्थक व् उपयोगी जानकारी हेतु आभार बहुत सुन्दर प्रस्तुति आभार इमदाद-ए-आशनाई कहते हैं मर्द सारे आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -5.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN हर दौर पर उम्र में कैसर हैं मर्द सारे ,
बहुत ही जरूरी विषय को आपने आसानी से हल कर दिया, मानवीय भावनाओं को समझने के लिये बेहतरीन पोस्ट.
रामराम.
जी -
सुन्दर
प्रस्तुति-
आभार आदरणीय-
listening is also an art. only a good listener can be a good thinker .
nice post . thanks .
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