शनिवार, 27 जुलाई 2013

कर्मों का खाता (दूसरा भाग )

कर्मों का खाता (दूसरा भाग )

आप स्वभाव वश बारहा किसी का दिल दुखाकर यह नहीं कह सकते -आई एम सोरी .यह व्यवहार परपीड़क

 का धीरे धीरे आपका स्वभाव ही बन जाता ही .हिसाब किताब  बन जाता है इसका भी आपकी आत्मा में .याद

रहे कर्मों का विधान एक प्रतिध्वनि की तरह है जब आप किसी की कमजोरियों को देखके उनका बखान करते

हैं (भले अपने आप को बहुत अक्ल मंद समझते हों ,हो सकता है हों भी )यह व्यर्थ यह कचरा ये रागरंग निंदा

रस की जुगाली आपके पास लौटके ज़रूर आती है . कल कोई और आपकी इससे भी बड़ी अवमानना करेगा

सुनिश्चित मानिए इसे ,यही तो कर्मों का विधान कहता है .

ELEVATED ACTIONS 

बाप कहते हैं मैं अब तुम्हें अपने निज आत्म स्वरूप में बने रहना टिके रहना समझाता हूँ .तुम ऐसा होने पर एक निरपेक्ष प्रेक्षक (दृष्टा )बन जाते हो तुम्हारे पवित्रता के आत्म सम्मान के मूल संस्कार प्रगट होने लगते हैं कार्य कारण सम्बन्ध को अब तुम साक्षी भाव से देखने लगते हो .ऐसा होने पर तुम विकार रुपी बिच्छुओं को देख समझ उनके डंक निकालने लगते हो डंक निकाल  उनसे खेलने भी लगते हो कोई कर्मेंद्रीय  अब आपको बहका बरगला नहीं सकती .माया का सूक्ष्म रूप भी अब आपको छू नहीं सकता है .अब तुम खुद को  औरों को सही रूप में देख सकते हो .लेकिन याद रहे अपना खुद का हाकिम बनना है किसी और को जज़ नहीं करना है .

बाप कहते हैं मीठे बच्चे कुछ भी करने से पहले दृष्टा बन जाओ पहले तौलो स्थिति के बारे में सोचो उसका आकलन करो  फिर कुछ  करो .यह कार्य तुम्हारा श्री मत के अनुरूप होगा क्योंकि तुमने विचार लिया है श्री मत क्या कहती है इस बाबत .अब अपनी अंत :चेतना (अन्तश्चेतना ,अंत :करण)की आवाज़ सुनना तुम्हारी आदत बन जाती है .आत्मा को कर्म करते हुए भी अब अपना बुनियादी शान्ति आनंद और प्रेम स्वरूप याद रहता है .

तुम्हारे कर्मों की गति ऐसा होने पर सहज ही रूपांतरित हो जाती हैऊर्ध्वगामी बन जाती है   .एक तरफ तुम्हारा प्रकाश स्वरूप(पवित्र ज्योति बिंदु स्वरूप ) जागृत हो जाता है दूसरी तरफ अपने पूर्व जन्मों के कर्मों के बोझ से भी तुम अब हलके हो जाते हो .

इसीको कहते हैं जीवन मुक्ति कर्म करते हुए कर्म की मार से बचे रहना .श्रेश्ठाचारी बनना .कर्म का फलसफा समझ आ जाये तो मेरे बच्चों तुम हर प्रकार के भय ,प्रायश्चित और सज़ा से बच जाओ .जब कुछ हो जाता है तो लोग कहते हैं ईश्वर की मर्जी .लेकिन तुम ऐसा नहीं कहोगे क्योंकि तुम जानते हो यह ड्रामा में था ड्रामा की नूंध है गुंथा हुआ था यह कर्म भोग नाटक में .तुम्हारे कर्मों के खाते में दर्ज़ था .सब अपने कर्मों के अनुसार ही सुख दुःख भोगते हैं ."मैं "कभी किसी को दुःख नहीं देता हूँ .

मैं तुम्हें मार्ग बतलाता हूँ पुरुषार्थ के बारे में  .प्रालब्ध बतलाता हूँ कर्मों का .मेरा काम ही हर पतित को पावन बनाना है .जो कुछ भी अच्छा बुरा तुम्हारे साथ हो चुका है वह उस अनादी नाटक में था जो चलता ही रहता है अनवरत .यहाँ कोई अल्पविराम (ब्रेक )लेने की बात ही नहीं करता .


ॐ शान्ति 

(ज़ारी )


3 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

कर्म का विधान समझाता हुआ ज्ञानवर्धक आलेख ...!!
आभार ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज रविवार (28-07-2013) को त्वरित चर्चा डबल मज़ा चर्चा मंच पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Asha Joglekar ने कहा…

ज्ञानवर्धक लेख ।