बुधवार, 3 जुलाई 2013

मैं ज्योतिर्लिन्गम हूँ :ब्रह्मा मुख कमल से शिवभगवान उवाच

मैं ज्योतिर्लिन्गम हूँ .मेरा अप भ्रंश रूप शिवलिंग कहलाता है वही मेरा प्रतीक चिन्ह है .मैं परम ज्योति (प्रकाश )हूँ .ईसा ने भी यही कहा है -God is light .

ब्रह्मा -विष्णु -महेश का भी रचता मैं ही हूँ मेरी ही रचना है यह त्रिमूर्ति .

गुरुनानक देव ने भी यही कहा -एक हू ओंकार निराकार .काबा में भी मैं ही हूँ मेरा ही वृहद् स्वरूप वह संग -ए -असवद (पवित्र पत्थर )है वृहद् आकार का वह शिव लिंग ही है .मुसलमान इस पवित्र पत्थर के बोसे लेते हैं .रामेश्वरम में राम चन्द्र (चन्द्र वंशी राजा राम )मुझे ही पूजते हैं .गोपेश्वर (मथुरा स्थित मंदिर )में कृष्ण मुझे ही पूजते हैं .सर्वत्र मेरा ही गायन है .

मैं  आनंद का, प्रेम का, शान्ति का ,सागर हूँ .कर्तव्य बोध से मैं भी बंधा हूँ .अभी यह कायनात विकारों में आ चुकी है सर्वत्र विकारों का ही राज्य है .पांच विकार नर के पांच नारी के बना रहे हैं दशानन .सर्वत्र इसी माया रावण का राज्य है .मनमोहन तो निमित्त मात्र हैं .शिव रात्रि मेरा ही गायन है .जब सर्वत्र विकार ही विकार होतें हैं .मेरा अवतरण होने पर विकार रुपी भूत भगा खड़े होते हैं .मैं कालों का भी काल अकाल हूँ .

मेरा साधारण मनुष्य तन मैं अवतरण हो चुका है जिन लोगों ने मुझे पहचान लिया है वह मेरे साथ इस मैली हो चुकी सृष्टि के सफाई अभियान में लग चुकें हैं .योग बल से पवित्रता के संकल्प से अपना स्वभाव संस्कार बदल रहें हैं .शुभ वाइब्रेशन प्रकृति के पांच तत्वों को भी दे रहें हैं .इधर विकार भी चरम पर हैं .मैं किसी को दुःख नहीं देता हूँ .सब अपना कर्मबंध भोग रहे हैं .हिसाब किताब तो चुक्तु होना ही है .या तो धर्मराज से सज़ा खाके या फिर पवित्र होकर .समय -चक्र फिर से शुरू होना है सम्पूर्ण पवित्रता का .अभी तो सब अपवित्र बन पड़े हैं इसीलिए यह विनाश के बादल मंडरा रहे हैं यहाँ वहां .उत्तराखंड तो रिहर्सल है .टेलर है फिल्म तो अभी आनी है .विनाश और नव -निर्माण की यही कहानी है .

एक बात और मनुष्य मात्र मेरा अंश नहीं है मेरा वंश है मेरी ही genealogy है मैं कण कण मैं नहीं हूँ .सूरज चाँद सितारों से परे, परे से भी परे ,ज्ञात सृष्टि की सीमा ,क्वासर्स से भी परे मैं ब्रह्म लोक ,परमधाम ,मुक्ति धाम ,का वासी हूँ वही सब  आत्माओं का भी मूल वतन है .नेचुरल हेबिटाट है कुदरती आवास है .वहीँ से मैं आता हूँ -यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ......यहाँ भारत में ही मेरा अवतरण होता है यहीं सुखधाम स्वर्ग होता है यहीं फिर रौरव नरक होता है काल का पहिया ऐसे ही घूमता रहता है जिसका जैसा पुरुषार्थ उसका वैसा प्रारब्ध कर्म भोग कर्म फल .मैं तो अ-करता हूँ अभोक्ता ,अजन्मा हूँ .


तुम खुद को शिवोहम कहते हो फिर मुझे ढूंढते भी हो .आत्मा सो परमात्मा कहने वाले महात्मा को बतलाओ -भाई तू तो महान आत्मा है फिर एक साथ परमात्मा कैसे हो सकता है फिर काहे गाते हो -आत्मा और परमात्मा अलग रहे बहु काल ,सुन्दर  मेला तब लगा ,जब सतगुरु मिला दलाल .तो भाई आत्मा अलग है परमात्मा अलग है .वह तो है ही सर्व आत्माओं का बाप .फिर आत्मा (पुत्र )अपना ही बाप (परमात्मा )कैसे हो सकता है . अलग है .आत्मा ब्रह्म तत्व में लीन  नहीं हो सकती है .ब्रह्म तत्व तो छटा महत तत्व है रिहाइश की जगह है आवास है तुम  सब आत्माओं का .

ॐ शान्ति . 

एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :


जिज्ञासा! जिज्ञासा !जिज्ञासा !

ब्रह्मा मुख कमल से शिवभगवान उवाच 

14 टिप्‍पणियां:

Satish Saxena ने कहा…

ॐ शान्ति ..

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

सर जी ज्ञानचक्षु को देदीप्यमान करती
सुन्दर रचना

पुरुषोत्तम पाण्डेय ने कहा…

अहं ब्रम्हास्मि.
मैं आनादि हूँ.
मैं शिव हू.
बहुत सुन्दर शब्दों में आपने ओंकार को चित्रित किया है. ये हमारा दर्शन है.साधुवाद.

Unknown ने कहा…

सर जी,जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओरउन्मुख करती आस्था की ज्योति जालाती बेहतरीन प्रस्तुति

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत सुंदर शब्द में शाश्वत सत्य का वर्णन ...
संग्रहणीय पोस्ट ।आभार ।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत शांतिदायक आलेख, शुभकामनाएं.

रामराम.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

गहनता से विचार किया ....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

प्रकाश याने ऊर्जा, ऊर्जा याने पञ्च तत्व, पंचतत्व याने में ... मैं ही शिव और शिव ही मैं ...
आलोकिक जो जाना ही जीवन का लक्ष्य ...
राम से राम हो जाना ही लक्ष्य जी ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

शिव का शान्त स्वरूप..

Anita ने कहा…

बहुत गहन ज्ञान से भरी पोस्ट..आभार !

Harihar (विकेश कुमार बडोला) ने कहा…

गहन पाठ पढ़ाया आपने तथाकथित दलाल सतगुरुओं को,,,,ये तो ट्रेलर देख के अभी भी अपनी चला रह हैं, पूरी पिक्‍चर ही देखना चाहते हैं ये। आपकी टिप्‍पणियों के लिए आभार। डोभाल जी का स्‍वर्ग-नरक पर कादम्‍बिनी जुलाई २०१३ में लेख आया है। कृपया इसे भी पढ़ें, पिछले वाले का ही विस्‍तार है ये।

Rajendra kumar ने कहा…

आपकी यह रचना कल गुरुवार (04-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

रविकर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति पर आभार भाई जी-

Arvind Mishra ने कहा…

अब हम स्वामी वीरेंद्रचार्य का आतुर इंतज़ार कर रहे हैं विदेश प्रवास से वापस आने का - :-)