शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

आध्यात्मिक शब्द कोष (भाग दो और तीन )

आध्यात्मिक शब्द कोष (भाग दो और तीन )

(६ )विचार सागर मंथन :

आध्यात्मिक शिक्षा और अध्ययन से प्राप्त जानकारी में से चिंतन मनन द्वारा ज्ञान रत्नों का दोहन करना .

churn :to think about ,ruminate ,ponder or cogitate upon points of spiritual knowledge .As a metaphor , to "churn "the "milk "of knowledge and extract the butter .

(७ )आत्मा की सम्पूर्ण अवस्था :

इस सृष्टि रुपी रंग मंच पर जब आत्मा अपना पार्ट प्ले करने आती है वह अपनी मूल अवस्था ,निज स्वरूप स्वमान  ,में होती है .पूर्ण पवित्र सोलह आने खरी .विकार शून्य ,नामोनिशाँ नहीं होता है विकारों का .पूर्णिमा के चाँद सी संपन्न पूर्ण होती है आत्मा निज धर्म में .देह और देह के संबंधों में आने से ही आत्मा पर विकारों की पर्त चढ़ती है .कर्मबंध में आजाती है आत्मा .कर्म छाया की तरह संग संग चलता है हमारा भाग्य लिखता है .

completion :entire ,whole, full ,e.g .the full moon .Every soul enters the world in its original state of completion ,totally pure ,with no trace of gross or subtle vices.

(८ )पुरुषोत्तम संगम युग :

दो कल्पों के बीच की वह अल्पावधि जब एक कल्प समाप्त प्राय  :और दूसरे  कल्प  का श्रीगणेश होने को होता है .इसी वक्त ज्योतिबिंदु स्वरूप (ज्योतिर्लिन्गम )निराकार परमात्मा शिव साधारण मनुष्य तन में प्रवेशित हो सृष्टि का उद्धार करते हैं .पञ्च तत्वों को पावन बनाते हैं .बेहद की प्राप्ति का वक्त है यह जब आत्मा ब्रह्मा मुख कमल से शिव वाणी सुन हीरा समान बनती है .

ब्रह्मा नाम देते हैं शिव उस साधारण मनुष्य तन को प्रवेश लेने के बाद .शिव तो निराकार है उसकी अपनी कोई  देह नहीं है .इसलिए वहमनुष्य  देह का लोन लेते हैं .इसी ज्ञान गीता(श्रीमत ) को सुन आत्मा की जन्म जन्मान्तर की खोट उतरती है ,सम्पूर्ण बनती है आत्मा फिर से .

Confluence Age :the age of transition .The most subtle and elevated of the great ages of humankind ,the Confluence Age is a time of transformation and divine intervention .This short time period ,also known as the leap age ,or Diamond Age ,runs concurrently with the end of the Iron Age until the beginning of the Golden Age.

(९ )साकारी दुनिया (लौकिक जगत ),गोचर सृष्टि :

ऊर्जा और पदार्थ का  बना दृश्यमान जगत (गोचर ),जहां आवाज़ (ध्वनि )भी है गति भी .चेतना एटमी है ,यही है सृष्टि रुपी रंग मंच स्टेज आफ एक्शन जहां मनुष्य आत्मा शरीर धारण कर पार्ट बजाती हैं .अभिनीत होतीं है .

corporeal world :the physical world ,the world of matter and material things ,where there is sound and movement.

(१ ० )देवकुल :

दिव्यगुणों से संपन्न मनुष्य आत्माएं .ये पृथ्वी ही सतयुग में स्वर्ग बनती है .देवात्माएँ यहीं होतीं हैं .कलियुग में यही रौरव नरक होता है .हम मनुष्य आत्माएं ही देवतुल्य बनती हैं हम ही माया रावण (विकारों )के चंगुल में फंसके असुर बनती हैं .राक्षसी वृत्ति की हो जाती हैं .ये नहीं कि देवताओं के कोई चार हाथ पैर होतें हैं और राक्षसों के कोई सींग होतें हैं .

deities:human beings with divine virtues.

(१ १ )कर्मयोगी :

जो सुख दुःख बाहरी प्रभावों से निरपेक्ष बना साक्षी बन सब कर्म करता है .ट्रस्टी  भाव लिए .जिसे कर्मों की गुहिय गति का ज्ञान है जो अनादि ड्रामे से वाकिफ है और जानता है मैं तो निमित्त मात्र हूँ .ऐसा कुछ नया नहीं होता है इस सृष्टि रंगभूमि में जो मैंने पहले न किया हो .जो सृष्टि के आदि मध्य और अंत को जानता है ,तीसरा नेत्र लिए है .

detached observer : A capacity that is highly desirable for a spiritual  aspirant .One who is a detached observer is not only able to be a "witness ",unaffected by external and internal influences ,but is also able to observe situations while being fully aware of the subtle dynamics at play .The detached observer is able to see a particular situation and understand it in the full context of the principles of karma, the three aspects of time ,and the accuracy of the drama of life .

(१ २ )धर्मात्मा :

धर्म और आत्मा दो शब्दों का मेल है धर्मात्मा .हिन्दू ,बौद्ध तथा जैन धर्मों में दिव्यविधान का मूल सिद्धांत धर्म कहलाया है .नैतिक रूप से मान्य आचरण धर्मानुरूप होता है .जो आत्मा धर्मानुरूप आचरण करती है धर्मात्मा कहलाती है .

ये आत्माएं दिव्यआत्म शक्ति ,आत्मबल की शक्ति से नए धर्म वंश की स्थापना भी करतीं हैं जैसे अब्राहम आकर इस्लाम धर्म वंश ,बुद्ध बौद्ध धर्म वंश की ईसा ईसाई मत की शंकराचार्य सन्यासी धर्म की,मोहम्मद साहब मुस्लिम धर्म वंश तथा  गुरु नानक देव सिख धर्म वंश की स्थापना आत्मबल से करते हैं .ये आत्माएं सभी धर्मात्माएं कहलाती हैं .ये सभी महापुरुष धर्मात्मा कहे जायेंगे आईंदा  भी .

dharamatma :Dharam means religion or righteousness ,and atma means soul : a righteous soul is called dharmatma.

(१ ३ )धर्म :

सर्व मान्य सार्वत्रिक आध्यात्मिक नियमों की आचरण संहिता है धर्म .यह आचार संहिता जीवन को एक दिशा देती है एक व्यवस्था स्थापित करती है सामाजिक जीवन  में ,एका भी .

dharama :religion .to give foundational support and to hold together in cohesion and unity .Dharama is the code of universal ,spiritual laws that gives direction to life and brings it back to a state of order and unity.

(१ ४ )दृष्टि :

सामने वाले को शुभ स्पन्दन,शुभ वाइब्रेशन  देती हैं आँखें .आध्यात्मिक तौर पर देखें तो शुभ भावना और प्रेम लिए रहतीं है ये दृष्टि .दृष्टि से ही सृष्टि का निर्माण होता है .पावन दृष्टि पञ्च तत्वों को भी पावन बना देती है .

drishti :sharing of vibrations through the physical eyes .In spiritual terms ,the love and good wishes one soul has for another is conveyed through eye contact .

आध्यात्मिक शब्दावली (भाग तीन )

(१ ४ )द्वापरयुग :

वह युग जहां से द्वैत शुरू होता है .भौतिक द्वंद्व (dialectical materialism )की शुरुआत होती है .सतयुग ,त्रेतायुग  के बाद द्वापर युग किसी भी कल्प का तीसरा युग होता है जिसे ताम्र युग भी कहा जाता है .यहीं से भक्ति की शुरुआत होती है .भक्तिमार्ग का प्रादुर्भाव होता है .सतयुग ,त्रेता में जो पूज्य थे ,देवता थे वही यहाँ आते अपने देवस्वरूप को बिसराकर पुजारी बनते हैं .अपने ही दिव्यनिज स्वरूप की प्रतिमा  को पूजने लगते हैं .पहला मंदिर सोमनाथ का राजा विक्रमादित्य बनाते हैं अब से कोई २ ५ ० ० साल पहले .

अब सुख के साथ दुःख ,ख़ुशी के साथ गमी ,राजी के साथ नाराजी ,सदाचार के साथ दुराचार ,पवित्रता के साथ खोट (अपवित्रता ),व्यवस्था के साथ अव्यवस्था सत्य के साथ का मिश्र आने लगता  है .कहाँ सतयुग में आत्मा सोलह आने सच ,२ ४ कैरट गोल्ड समान शुद्ध और कहाँ अब उसमें आधा मिश्र धातु ताम्बा आ मिलता है .आत्मा के गुणों का तेज़ी से ह्रास होता है .त्रेता तक आत्मा ८ ० फीसद शुद्ध थी .हालाकि मिश्र वहां भी आने लगा था लेकिन द्वापर में तो एक के बाद एक दूसरा जन्म लेते लेते गिरावट तेज़ी से आती है .त्रेता तक ही आत्मा २ १ जन्म ले चुकी होती है यहाँ भी अधिकतम २ १ मर्तबा चोला (वस्त्र ,कास्ट्यूम ,शरीर )बदलती है मनुष्य आत्मा .इस युग के अवधि भी सतयुग और त्रेता के समान १ २ ५ ० वर्ष ही रहती है .तीन चौथाई कल्प पूरा हो जाता है यहाँ तक आते आते .

Dwapuryug :the age when duality begins .Dwapuryug is the third quarter of the world cycle ,the Copper Age,when seeking and devotion start .This is the age when happiness is mixed with sorrow ,purity with impurity ,order with disorder ,and truth with falsehood .Its duration is 1 ,2 5 0 years .The maximum number of births souls can take during this age is 2 1.The enotropy of the world increases and with it the disorder.

(१ ५ )चढ़ती कला (ऊर्ध्वाधर मनोवृत्ति ,ऊर्ध्वगामी दृष्टि  कोण ):

आत्मसचेत आत्म अनुप्राणित  -प्रेम की मनो -प्रावस्था (मनोदशा ,मन :स्थिति )है यह चित्तवृत्ति   .जहां हम औरों को उदारता से अपना लेते हैं गले लगा लेते  हैं ,औरों को अपने से भिन्न नहीं समझते ,आध्यात्मिक खिंचाव महसूस करते हैं उनके संग .

elevated attitude :a state of mind characterized by soul -conscious love ,acceptance of others ,and feelings of spiritual connection ; a way of being that does not discriminate against others .

(१ ६ )गुरु :एक सम-आदरणीय ज्ञानवान (पंडित ),बुद्धिमान शख्शियत जो एक शिक्षक होने के साथ साथ आध्यात्मिक पथ -प्रदर्शक भी हो .

guru: a venerable honoured ,learned ,and wise person who is a teacher or spritual guide.

(१ ७ )निराकार (निराकारी ):

जो साकार में न हो अव्यक्त हो .जिसका हाड़  मांस (एटमी चेतना )से युक्त शरीर न हो .जो विदेह और निराकृति हो .आध्यात्मिक ज्योति ऐसा ही निराकार रूप है ..

incorporeal:not corporeal :having no material body or form .The incororeal form is pure spiritual light.

(१ ८ )निराकारी दुनिया :महत ब्रह्म तत्व ,प्रकाश का ब्रह्म स्वरूप जो परम आत्मा का सनातन आवास है हम आत्माओं का भी जो मूल वतन है .जहां आवाज़ की दुनिया से परे सभी आत्माएं प्रशांति की प्रावस्था में रहतीं हैं ,ज्योतिबिंदु स्वरूप में .इसीलिए आत्मा चमकता  हुआ सितारा कहा गया है .

incorporeal world :the brahm element of light ,where the supreme soul resides and where the souls reside in complete silence and peace ,as tiny points of lights .

(१ ८ )बाबा :

प्रीतिकर लगने वाला हमारा बेहद का बाप (शिव बाबा )

Baba:Father ,a term of endearment.

ॐ शान्ति 

(ज़ारी )




ॐ शान्ति 

(ज़ारी )












1 टिप्पणी:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

चित को असीम शांति देता आलेख, बहुत आभार.

रामराम.