बुधवार, 3 जुलाई 2013

आत्मा बस एक काल्पनिक तत्व है ?


माननीय कालिपद प्रसाद जी ने अपनी एक पोस्ट में आत्मा के अस्तित्व 


पर ही सवालिया निशान  लगा दिया है .वह पोस्ट इस प्रतिक्रिया के साथ 


साथ 


दी गई है .


"उनका कहना है सब कुछ इस शरीर के साथ ही नष्ट हो जाता है .पुनर 

जन्म कैसा ?पञ्च तत्वों का पञ्च तत्वों में विसर्जन ही मृत्यु है .आत्मा 

बस एक काल्पनिक तत्व है ."

एक ब्लॉगर ने तो अपनी प्रतिक्रिया में मन को ही आत्मा कह दिया है .



मन आत्मा नहीं है। आत्मा की विचार करने की शक्ति है, मनन शक्ति है 


आत्मा की हमारा मन . बुद्धि आत्मा की 


परखने की शक्ति है .जैसा विचार वैसा फिर कर्म और फिर वैसा ही कर्म 


भोग बोले तो परिणाम .यानी विचार से ही प्रेरित होते हैं हमारे कर्म .
"आई" और "माइन" दो बातें हैं .आई एम ए सोल .दिस इज माय बॉडी .मैं 


आत्मा कानों द्वारा सुनती  हूँ  मुख  द्वारा बोलती हूँ ,आँखों द्वारा 


देखती हूँ ये ज्ञानेन्द्रिया मेरे अधीन हैं मैं इनका स्वामी हूँ .मैं बोले तो 


आत्मा .चैतन्य ऊर्जा .मन मेरा (आत्मा )का  मुरीद हो मैं (आत्मा 


)मन का मुरीद नहीं .राजा मैं हूँ .मन तो मेरी प्रजा है .बुद्धि सेनापति है .



"शास्त्रों  में 'आत्मा' 'की  बात कही गई  है। कहते हैं आत्मा नश्वर शरीर  को छोड़कर अलग हो जाती है और परमात्मा में विलीन हो जाती  है जिसे 'मोक्ष' कहते हैं."

कालिपद प्रसाद जी जैसा आपने अपने लेख में कहा है -आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाती है .यह कथन भ्रामक है दो भिन्न सत्ताएं हैं आत्मा और परमात्मा .परमात्मा सर्व आत्माओं का पिता है .सर्वोच्च सत्ता है .सर्वज्ञ है .कालों का भी अकाल अर्थात अकाल है .अजन्मा है .अकर्ता है .जबकि आत्मा परमात्मा का ही वंश है .पुत्र (आत्मा )अपने पिता परमात्मा में विलीन नहीं हो सकता  .क्या लौकिक पुत्र अपने लौकिक पिता में विलीन होता है ?जैसे लौकिक पिता हमारे शरीर का पिता है वैसे ही परमात्मा हमारी आत्मा का पारलौकिक पिता है .

आत्मा परमधाम वासी है .जिसे ब्रह्म लोक ,मुक्ति धाम ,सोल एबोड आदि भी कहा जाता है .यही परमधाम सितारों से परे ,परे से भी परे ,रेडिओ दूरबीनों की पहुँच से भी परे ,का दिव्यलोक है जहां लाल स्वर्णिम प्रकाश का डेरा है .तमाम आत्मा इस सृष्टि रुपी रंग मंच पर अपना पार्ट आने पर शरीर धारण करती हैं , आती हैं .एक बार आने के बाद यही मंच पर रहतीं हैं ड्रामे के अंत तक .अलबत्ता अपने वस्त्र (शरीर )ज़रूर बदलती रहती है आत्मा .एक शरीर (वस्त्र )छोड़ दूसरा चोला लेती है .यह सिलसिला चलता रहता है .मुक्ति नहीं है .अलबत्ता जीवन मुक्ति ज़रूर है .जीवन मुक्ति  मतलब ग्राहस्थ में रहते निस्पृह भाव बनाए रहना .काया से मर जाना मतलब केयर सबकी करनी मोह ममत्व एक से भी नहीं रहे .न कोई लालसा रहे न वासना .यही है जीवन मुक्ति .कर्म की छाया आदमी के साथ साथ चलती है एक से दूसरे जन्म तक इससे मुक्ति नहीं है . अलबत्ता ड्रामा रिपीट होता रहता है जैसे दिन के बाद रात स्वत : ही आ जाती है रात के बाद फिर दिन .जैसे मौसम चक्र चलता रहता है .गर्मी सर्दी पतझड़ बरसात .फिर इनकी पुनरावृत्ति हर साल .वैसे ही यह अनादि ड्रामा है बना बनाया .सतयुग ,त्रेता ,द्वापर ,कलि युग .कलियुग के बाद फिर सतयुग और कलियुग का संगम स्थल पुरुषोत्तम संगम युग बोले तो डायमंड युग  जब परमात्मा का साधारण मनुष्य तन में अवतरण होता है .विकारी सृष्टि को निर्विकारी बनाने आते हैं बाप (परमात्मा ).आत्मा की एक बार फिर से यात्रा शुरू होती है .पवित्रता के शिखर(सत युग ) से माया रावण (विकारों का साम्राज्य )राज्य यानी कलियुग तक .अनादि समय चक्र है यह इससे मुक्ति नहीं है .मोक्ष कैसा ?



यह सृष्टि सदैव ही एक साम्यावस्था में रहती हैं आत्माओं की आवाजाही ज़ारी रहती है .नया फिर पुराना होता है .व्यवस्था फिर अ-व्यवस्था को जन्म  देती है .देअर आर मोर वेज़ आफ डिसऑर्डर देन ऑर्डर .

आत्मा के संरक्षण का भी सिद्धांत हैं .आत्मा काया बदलती है .आत्मा अविनाशी तत्व है पञ्च भूत से परे सनातन ऊर्जा है .चैतन्य शक्ति है शरीर की .आत्मा शरीर को छोड़ कर गई और बस  शरीर निर्जीव .निर्चेतन .आत्माओं की संख्या भी मुक़र्रर है .अलबत्ता जिस आत्मा का जब रोल आता है तब ही वह परमधाम से शरीर में आती है .शेष समय निश्चेतन निष्क्रिय पड़ी रहती है शीत निद्रा में .शरीर मिलने पर शरीर के द्वारा ही अभिनीत होती है .अपना पार्ट अदा करती है .नर या मादा शरीर होता है आत्मा नहीं .आत्मा निर्लैंगिक है .न्यूटर(Neuter ) है .  


एक प्रतिक्रिया निम्न ब्लॉग पोस्ट पर :




जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !







            जन्म और मृत्यु ,यही है दो अटल सत्य।जन्म होगा तो मृत्यु  निश्चित है। जन्म और मृत्यु के बीच के समय को जीवन की संज्ञा  दी गई है। इस प्रकार जन्म ,जीवन और मृत्यु ,यही है कहानी हर जीव की।परन्तु जन्म के पहले की अवस्था ,स्थिति काया है , मृत्यु के बाद की स्थिति क्या है ? कहाँ  जाते हैं ? यह किसी को पता नहीं है।जन्म के पहले क्या ?  मृत्यु के बाद क्या ? यही है शाश्वत प्रश्न।
              शास्त्रों  में 'आत्मा' 'की  बात कही गई  है। कहते हैं आत्मा नश्वर शरीर  को छोड़कर अलग हो जाती है और परमात्मा में विलीन हो जाती  है जिसे 'मोक्ष' कहते हैं। अतृप्त आत्मा फिर जन्म लेती है अर्थात कोई नया शरीर धारण करती है और यह सिलसिला तब तक चलता रहता है जबतक उसे 'मोक्ष' नहीं मिल जाता है।आत्मा का नया शरीर धारण करने को 'पुनर्जन्म ' कहा जाता है।अब प्रश्न उठता   है ,
 "आत्मा क्या है? शरीर क्या है ?"
शरीर में आत्मा है तो वह जीवित है। शरीर आत्माहीन है तो वह मृत है,शव है। इसका अर्थ है, आत्मा और शरीर का युग्म ही जीव है।शरीर पञ्च तत्व से बना है।शरीर के नष्ट होने पर वे तत्व पांच अलग अलग तत्वों में मिल  जाते हैं, अर्थात पूरा शरीर का रूप परिवर्तन हो जाता  है। यहाँ विज्ञान का सिद्धान्त लागू होता है कि ,"किसी पदार्थ को नष्ट नहीं किया जा सकता है केवल उसका रूप परिवर्तन किया जा सकता है। The matter cannot be destroyed but it can be transformed into another form." इसीलिए मरने के बाद शव को जलाना या कब्र में रखना, रूप परिवर्तन की प्रक्रिया है। इसके बाद के जो क्रिया कर्म ,रस्म रिवाज़ हैं उस से न आत्मा का,  न शरीर का  कोई सम्बन्ध है और न उनको कोई लाभ या हानी होती है। ये क्रियाएं शरीर और आत्मा के लिए अर्थहीन हैं और अंधविश्वास से प्रेरित हैं।
               आत्मा और शरीर का युग्म ही जीव है इसीलिए आत्मा और शरीर का घनिष्ट सम्बन्ध है। शरीर स्थूल है ,दृश्य है।आत्मा सूक्ष्म ,तीक्ष्ण ,तीब्र और अदृश्य है।शरीर पाँच तत्वों से बना है। वे तत्व हैं अग्नि ,वायु ,जल ,मृत्तिका और आकाश।ये सब मिलकर शरीर बनाते हैं और इनकी प्राप्ति माँ से होती है।माँ के गर्भ में जब शरीर बनकर तैयार हो जाता है उसमें कम्पन उत्पन्न होता है जिसे आत्मा का शरीर में प्रवेश का नाम दिया गया है अर्थात आत्मा ने एक नया शरीर धारण कर लिया है। 
                लेकिन इसे यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो यह कम्पन पैदा कैसे होता है?
               पाँच तत्वों में अग्नि उष्मा(Heat Energy)  का स्वरुप है।हीट एनर्जी परिवर्तित होकर (Electrical Energy )इलेक्ट्रिकल एनर्जी बन जाता है। यह शरीर के हर सेल (Bio Cell) को विद्युत् सेल बना देता है। यह स्वनिर्मित विद्युत् है। सब सेलों का  समुह शरीर का पॉवर हाउस बन जाता है।पुरे शरीर में विद्युत् प्रवाहित होने लगता है।हमारे शरीर में जो रिफ्लेक्स एक्शन होता है वह इसी विद्युत् प्रवाह के कारण  होता है।हमारे ब्रेन तेजी से काम करता है वह भी विद्युतप्रवाह के कारण कर पाता  है।पैर में चींटी काटता  है तो हमें दर्द महसूस होता है ,यह रिफ्लेक्स एक्शन के कारण होता है और रिफ्लेक्स एक्शन विद्युत प्रवाह के कारण होता है।जिस सेल में विद्युत् प्रवाह नहीं होता है उसमें चैतन्यता नहीं रहती (स्नायु हीन होता है ).इसीलिए उस सेल में होने वाले दर्द हमें पता नहीं लगता। यही विद्युत् जबतक शरीर में रहता है ,शरीर चैतन्य की हालत में रहता है।
              अग्नि उष्मा के रूप में वायु की गति को नियंत्रित करती है।यही वायु और विद्युत् मिलकर अपनी अपनी प्रवाह से ह्रदय ,फेफड़े तथा  अन्य महत्वपूर्ण अंगो  में कम्पन उत्पन्न करता है और यही कम्पन जीवन की निशनी है।जल और मृत्तिका शरीर को स्थूल रूप देने के साथ साथ विद्युत् और वायुके गति निर्धारण में निर्णायक भुमिका निभाते हैं। दो सेल के बीच  में कुछ स्थान खाली रहता है ,यह सेल के चलन में सहायक है।उसी प्रकार शरीर के अन्दर दो अंगो के बीच में खाली स्थान रहता है।सेल और अंगो के बीच में खालीस्थान को आकाश (शून्य ) कहते हैं।अगर खाली  स्थान नहीं होगा तो वांछित कम्पन उत्पन नहीं होगा। मन की शुन्यता भी आकाश है।इस प्रकार पञ्च तत्त्व शरीर में कम्पन उत्पन्न करने में (प्राण प्रतिष्ठा ) महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।शरीर में अग्नि का कमजोर होने पर या अत्यधिक बढ़ जाने पर वायु की गति में भी तदनुसार परिवर्तन होता है। विद्युत् संचार में भी परिवर्तन होता है।इसीलिए शरीर का तापक्रम पर नियंत्रण रखना बहुत जरुरी है।वृद्धावस्था में या बिमारी की अवस्था में शरीर में उष्मा की कमी हो जाता है। विद्युत् संचार कम हो जाता हैऔर धीरे धीरे ऐसी अवस्था में आ जाता है जब सेल आवश्यक विद्युत् उत्पन्न नहीं कर पाता  है। ऊष्मा की कमी के कारण हवा की गति रुक जाती है।यही मृत्यु की अवस्था है। शरीर में बचा  विद्युत् (Residual) निकलकर अंतरिक्ष के तरंगों में मिलजाता है। शरीर के पाँच तत्त्व अलग अलग होकर पञ्च तत्त्व में विलीन हो जाता है। इस अवस्था में किसी आत्मा की कल्पना करना या उसकी मोक्ष की कल्पना करना ,वास्तव में कल्पना ही लगता है।
           रही बात पुनर्जन्म की तो शरीर जिन अणु परमाणु से  बना था ,दूसरा शरीर वही अणु ,वही परमाणु से नहीं बनता ,इसीलिए शरीर का पुनर्जन्म संभव नहीं है। नया शरीर में पञ्च तत्व के नए अणु ,परमाणु होंगे। अत: उनमे नया कम्पन होगा।विद्युत् पॉवर हाउस भी नया होगा। यहाँ कम्पन का पुनर्जन्म या विद्युत् का पुनर्जन्म कहना सही नहीं लगता। कम्पन आत्मा नहीं ,विद्युत्  भी आत्मा नहीं। अत: 'आत्मा' एक वैचारिक तत्त्व है और वैचारिक  तत्त्व न नष्ट होता है, न उसका पुनर्जन्म 
होता है।


नोट : विद्वान पाठकों से निवेदन है कि  वे विषय पर केवल अपनी सोच/विचार व्यक्त करे।किसी के कमेंट्स के ऊपर कमेंट्स कर वाद विवाद ना करें। इस लेख का उद्देश्य है विभिन्न विचार धारायों से खुद को और पाठकों को  परिचय कराना।  


कालीपद "प्रसाद "


©सर्वाधिकार सुरक्षित
.


5 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही सरल शब्दों में सहज रूप से आपने अनेकों की शंका निवारण कर दिया, बहुत बहुत आभार.

रामराम.

Anita ने कहा…

बहुत सुंदर ज्ञानवर्धक पोस्ट..आभार!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गीता ने कहा और हमने मान लिया, आत्मा न सिद्ध की जा सकती है और न ही असिद्ध।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

आत्मा पर ज्ञानवर्धक विश्लेषण करता सुंदर बहुत उम्दा आलेख,,,

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