कर्मों का खाता (भाग पांच ):
Creating Fortune While Settling Karmic Accounts
पूर्व के कर्मों का बही खाता हिसाब किताब आप तीन
तरह से चुक्तू कर सकते हैं :आगे बढ़के खुद चुकाओ ये खाता अपने तन
मन और धन तीनों से। हारी -बीमारी और मानसिक यंत्रणा (व्यथा मन
की
पीड़ा )इसी रूप में आपके पास चली आ रही है। आप इसे सहर्ष चुकाएं। रोने
झींकने से आगे और अकाउंट बन जाएगा। अपने संबंधों और संपर्कों की
मार्फ़त भी चुकाना पड़ेगा तुम्हे ही यह उधार। बोझा खुद के कर्मों का।
प्राकृतिक आपदाएं मानव निर्मित आपदाएं यथा एटमी लड़ाई /दुर्घटना ,गृह
युद्ध आदि के रूप में ये खाता समूह में भी चुकाना पड़ता है।
इस चुकताई के संग संग तुम संगम युग पर अपने उच्च कर्मों से अपने
भाग्य की भविष्य के लिए एक अच्छी लकीर खींच सकते हो। भाग जगा
सकते हो अपने आने वाले २ १ जन्मों के लिए। बस बीते कल को भूल
जाना है गलतियों को स्मृति में लाना ही नहीं है। पकड़ के नहीं बैठना है
अतीत को ,गुज़रे कल को । अज्ञानता में हो गए थे तुमसे ये कर्म। अब
तुम्हारा ज्ञान का तीसरा नेत्र खुल गया है।सृष्टि के आदि मध्य और अंत
का भेद तुम जान गए हो अब अपना भाग्य बनाओ ऊँच ते ऊँच।
Creating Fortune Through Individual Actions
अपने बेहद के बाप के लाड़ प्यार और याद से कर्मों की पूरी बही (विस्तार
)को अब तुम फूंक सकते हो।
विराट मानवीय वट वृक्ष के विस्तार के साथ साथ ही तुम्हारे कर्मों का खाता
भी विस्तार पाता आया है। न तुम्हें अब इस खाते की शाखाओं का हिसाब
याद है न विराट वृक्ष की तरह बे -तरतीब कर्मों के फैलाव का । इस खाते
की डाल डाल और
पत्ते तुम्हारे शरीर (देह )देह के तमाम सम्बन्धों ,तुम्हारी आत्मा के देह
का बंधक बनने बुरी शैतानी आदतों का शिकार होते जाने ,शरीर से भोगे
जाने वाले तमाम कष्टों का हिसाब किताब छिपाए खड़े हैं।
अलग अलग शाखाओं का हिसाब अलग अलग चुक्तू नहीं करना है। बाप
की याद की योग अग्नि से पूरा खाता ही भस्म हो जाएगा। इस कल्प वृक्ष
के बीज रूप परमात्मा से अब तुम अपनी लौ लगाओ।
Creating Fortune Through the Body
कायिक दुःख भोग तुम्हारे कर्मों का ही आलेख है संगम युग के इस
अल्पकालिक पड़ाव की इस आध्यात्मिक यात्रा में इन्हें बाधा नहीं समझना
है यही सोच के खुश होना है चलो हिसाब किताब चुक्तू हो रहा है बोझ
हल्का हो रहा है। काया भी तो विकारों में आके मैली हो गई थी। ये हृद शूल
ये एञ्जाइना ,दिल की तमाम बीमारियाँ पुराने कर्मों का ही प्राप्य है। अब
इन पुराने संस्कारों से पुरानी काय का मैला तुम उतार रहे हो यही सोचके
खुश
होना है। बीमारी का स्वागत करना है।
अभी तो और भी रातें सफर में आयेंगी ,
चरागे शब मेरे महबूब सम्भाल के रख ।
याद में रह उस परम महबूब की। याद की आध्यात्मिक गोली खा। ख़ुशी
का पारा चढ़ेगा। काया भी खुशहाल (प्रसन्न बदन )बनेगी याद से।
इन दुखों का तू अब चिंतन न कर। चिंता में बदल जाएगा चिंतन। आत्मा
की ताकत और भी छीज ने लगेगी। यही सोच अब मैं (जीव तत्व आत्मा
)ठीक हो रहा हूँ रोग मुक्त हो रहा हूँ। मनन शक्ति है आत्मा की मन इसी
शक्ति से काया का पोषण कर। आध्यात्मिक पुष्टि- कर- तत्व मुहैया
करवा
काया को भी।मंदिर है ये काया। आत्मा का वास इसी में तो रहा आया है।
ये मत सोच ये मेरे साथ ही क्यों हुआ ?मैंने तो किसी का कुछ भी नहीं
बिगाड़ा है इस जन्म में। मेरे भाग्य में ही यह सब क्यों लिखा था ? "क्यू "
लग
जायेगी प्रश्नों की आध्यात्मिक ऊर्जा बिखर जायेगी।
Creating Fortune Through the Mind
इसके लिए बुद्धि के पात्र को निर्मल करना होगा विचार को शुद्ध। बस ये याद
करके खुश होना है इस ड्रामा का हर सीन कल्याण कारी है। जो अन्दर से
संतुष्ट है वही प्रसन्न मन है। मज़े में है। उसका मन हद की इच्छाओं की
तरफ अब जाएगा ही नहीं। किसी वस्तु या व्यक्ति के सम्मोहन में भी नहीं
फंसेगा क्योंकि उसके पास बाप का दिया यह मन्त्र है "मनमनाभव"मेरे ही
प्रेम में लीन रह.एक मेरा ही स्मरण कर। संगम युग पर मैं सेवक बनके
आया हूँ सर्वआत्माओं का करूणा और प्रेम से आप्लावित हो।
अब जिस मन में मैं हूँ वहां कोई व्यर्थ विचार आ ही कैसे सकेगा। अब तू ये
न सोच: सब मुझसे ही क्यों कहते हैं ?मुझे ही क्यों टोकते हैं ?ये ऐसे नहीं
होना चाहिए था वैसे होना था। उसने ऐसा क्यों कहा ?
यही सोच हरेक अपना पार्ट ड्रामा अनुसार बिलकुल एक्यूरेट प्ले कर रहा
है। क्वेश्चंस की क्यू कभी खत्म नहीं होती है। खत्म करना चाहोगे तो और
बढ़ेगी क्योंकि ये तुम्हारे मन की ही तो रचनाएँ हैं सारे सवालात।
नियोजन करना है इन व्यर्थ संकल्पों का वेस्टफुल थाट्स का। है हिम्मत
तुममें -"बाप पूछते हैं ?"
डरना नहीं है इन व्यर्थ संकल्पों से ये आयेंगे ज़रूर इन्हें बाई पास करना है।
मूंझना नहीं है। मास्टर क्रियेटर बनना है थाट्स का। "मैं" वही सोचूँ जो "मैं "
चाहूँ। ये मन तो मेरा सर्वर है सर्च इंजिन है ब्राउज़र है। "मैं "इसके नहीं ये
मेरे
अधीन है।
कर्म करते हुए देखते हुए सुनते हुए यही सोचना है :जो भी कुछ हो रहा है
सब
कल्याण कारी है। अंतरमुखी हो जाना है। मनमना- भव के अभ्यास से
बाप की याद से एक खराब स्थिति और सम्बन्ध को भी अच्छे में बदलना
है।नज़रिया ही तो बदलना है जो हो रहा है उसके प्रति। "होनी "को शुभ
स्पन्दन देना है। शुभ विचार भी।
ॐ शान्ति
(ज़ारी )
Creating Fortune While Settling Karmic Accounts
पूर्व के कर्मों का बही खाता हिसाब किताब आप तीन
तरह से चुक्तू कर सकते हैं :आगे बढ़के खुद चुकाओ ये खाता अपने तन
मन और धन तीनों से। हारी -बीमारी और मानसिक यंत्रणा (व्यथा मन
की
पीड़ा )इसी रूप में आपके पास चली आ रही है। आप इसे सहर्ष चुकाएं। रोने
झींकने से आगे और अकाउंट बन जाएगा। अपने संबंधों और संपर्कों की
मार्फ़त भी चुकाना पड़ेगा तुम्हे ही यह उधार। बोझा खुद के कर्मों का।
प्राकृतिक आपदाएं मानव निर्मित आपदाएं यथा एटमी लड़ाई /दुर्घटना ,गृह
युद्ध आदि के रूप में ये खाता समूह में भी चुकाना पड़ता है।
इस चुकताई के संग संग तुम संगम युग पर अपने उच्च कर्मों से अपने
भाग्य की भविष्य के लिए एक अच्छी लकीर खींच सकते हो। भाग जगा
सकते हो अपने आने वाले २ १ जन्मों के लिए। बस बीते कल को भूल
जाना है गलतियों को स्मृति में लाना ही नहीं है। पकड़ के नहीं बैठना है
अतीत को ,गुज़रे कल को । अज्ञानता में हो गए थे तुमसे ये कर्म। अब
तुम्हारा ज्ञान का तीसरा नेत्र खुल गया है।सृष्टि के आदि मध्य और अंत
का भेद तुम जान गए हो अब अपना भाग्य बनाओ ऊँच ते ऊँच।
Creating Fortune Through Individual Actions
अपने बेहद के बाप के लाड़ प्यार और याद से कर्मों की पूरी बही (विस्तार
)को अब तुम फूंक सकते हो।
विराट मानवीय वट वृक्ष के विस्तार के साथ साथ ही तुम्हारे कर्मों का खाता
भी विस्तार पाता आया है। न तुम्हें अब इस खाते की शाखाओं का हिसाब
याद है न विराट वृक्ष की तरह बे -तरतीब कर्मों के फैलाव का । इस खाते
की डाल डाल और
पत्ते तुम्हारे शरीर (देह )देह के तमाम सम्बन्धों ,तुम्हारी आत्मा के देह
का बंधक बनने बुरी शैतानी आदतों का शिकार होते जाने ,शरीर से भोगे
जाने वाले तमाम कष्टों का हिसाब किताब छिपाए खड़े हैं।
अलग अलग शाखाओं का हिसाब अलग अलग चुक्तू नहीं करना है। बाप
की याद की योग अग्नि से पूरा खाता ही भस्म हो जाएगा। इस कल्प वृक्ष
के बीज रूप परमात्मा से अब तुम अपनी लौ लगाओ।
Creating Fortune Through the Body
कायिक दुःख भोग तुम्हारे कर्मों का ही आलेख है संगम युग के इस
अल्पकालिक पड़ाव की इस आध्यात्मिक यात्रा में इन्हें बाधा नहीं समझना
है यही सोच के खुश होना है चलो हिसाब किताब चुक्तू हो रहा है बोझ
हल्का हो रहा है। काया भी तो विकारों में आके मैली हो गई थी। ये हृद शूल
ये एञ्जाइना ,दिल की तमाम बीमारियाँ पुराने कर्मों का ही प्राप्य है। अब
इन पुराने संस्कारों से पुरानी काय का मैला तुम उतार रहे हो यही सोचके
खुश
होना है। बीमारी का स्वागत करना है।
अभी तो और भी रातें सफर में आयेंगी ,
चरागे शब मेरे महबूब सम्भाल के रख ।
याद में रह उस परम महबूब की। याद की आध्यात्मिक गोली खा। ख़ुशी
का पारा चढ़ेगा। काया भी खुशहाल (प्रसन्न बदन )बनेगी याद से।
इन दुखों का तू अब चिंतन न कर। चिंता में बदल जाएगा चिंतन। आत्मा
की ताकत और भी छीज ने लगेगी। यही सोच अब मैं (जीव तत्व आत्मा
)ठीक हो रहा हूँ रोग मुक्त हो रहा हूँ। मनन शक्ति है आत्मा की मन इसी
शक्ति से काया का पोषण कर। आध्यात्मिक पुष्टि- कर- तत्व मुहैया
करवा
काया को भी।मंदिर है ये काया। आत्मा का वास इसी में तो रहा आया है।
ये मत सोच ये मेरे साथ ही क्यों हुआ ?मैंने तो किसी का कुछ भी नहीं
बिगाड़ा है इस जन्म में। मेरे भाग्य में ही यह सब क्यों लिखा था ? "क्यू "
लग
जायेगी प्रश्नों की आध्यात्मिक ऊर्जा बिखर जायेगी।
Creating Fortune Through the Mind
इसके लिए बुद्धि के पात्र को निर्मल करना होगा विचार को शुद्ध। बस ये याद
करके खुश होना है इस ड्रामा का हर सीन कल्याण कारी है। जो अन्दर से
संतुष्ट है वही प्रसन्न मन है। मज़े में है। उसका मन हद की इच्छाओं की
तरफ अब जाएगा ही नहीं। किसी वस्तु या व्यक्ति के सम्मोहन में भी नहीं
फंसेगा क्योंकि उसके पास बाप का दिया यह मन्त्र है "मनमनाभव"मेरे ही
प्रेम में लीन रह.एक मेरा ही स्मरण कर। संगम युग पर मैं सेवक बनके
आया हूँ सर्वआत्माओं का करूणा और प्रेम से आप्लावित हो।
अब जिस मन में मैं हूँ वहां कोई व्यर्थ विचार आ ही कैसे सकेगा। अब तू ये
न सोच: सब मुझसे ही क्यों कहते हैं ?मुझे ही क्यों टोकते हैं ?ये ऐसे नहीं
होना चाहिए था वैसे होना था। उसने ऐसा क्यों कहा ?
यही सोच हरेक अपना पार्ट ड्रामा अनुसार बिलकुल एक्यूरेट प्ले कर रहा
है। क्वेश्चंस की क्यू कभी खत्म नहीं होती है। खत्म करना चाहोगे तो और
बढ़ेगी क्योंकि ये तुम्हारे मन की ही तो रचनाएँ हैं सारे सवालात।
नियोजन करना है इन व्यर्थ संकल्पों का वेस्टफुल थाट्स का। है हिम्मत
तुममें -"बाप पूछते हैं ?"
डरना नहीं है इन व्यर्थ संकल्पों से ये आयेंगे ज़रूर इन्हें बाई पास करना है।
मूंझना नहीं है। मास्टर क्रियेटर बनना है थाट्स का। "मैं" वही सोचूँ जो "मैं "
चाहूँ। ये मन तो मेरा सर्वर है सर्च इंजिन है ब्राउज़र है। "मैं "इसके नहीं ये
मेरे
अधीन है।
कर्म करते हुए देखते हुए सुनते हुए यही सोचना है :जो भी कुछ हो रहा है
सब
कल्याण कारी है। अंतरमुखी हो जाना है। मनमना- भव के अभ्यास से
बाप की याद से एक खराब स्थिति और सम्बन्ध को भी अच्छे में बदलना
है।नज़रिया ही तो बदलना है जो हो रहा है उसके प्रति। "होनी "को शुभ
स्पन्दन देना है। शुभ विचार भी।
ॐ शान्ति
(ज़ारी )
Murli [30-07-2013]-Hindi
मुरली सार:- ''मीठे बच्चे-अभी तुम बाप, टीचर, सतगुरू-तीनों के सम्मुख बैठे हो, बाप की यही कृपा है जो टीचर बन तुम्हें पढ़ा रहे हैं, सतगुरू बन साथ में ले जायेंगे''
प्रश्न:- तुम बच्चों का बाप से कौन-सा वायदा है? तुम्हारा कर्तव्य क्या है?
उत्तर:- बाप से वायदा है-बाबा, हम आपसे जो कुछ सुनते हैं वह दूसरों को भी अवश्य सुनायेंगे। आप समान बनायेंगे। हमारा कर्तव्य है-बाप समान सबको पढ़ाना क्योंकि अभी बुद्धि का ताला खुला है। जैसे हम वर्सा ले रहे हैं ऐसे रहमदिल बन दूसरों को भी वर्सा दिलाना है।
उत्तर:- बाप से वायदा है-बाबा, हम आपसे जो कुछ सुनते हैं वह दूसरों को भी अवश्य सुनायेंगे। आप समान बनायेंगे। हमारा कर्तव्य है-बाप समान सबको पढ़ाना क्योंकि अभी बुद्धि का ताला खुला है। जैसे हम वर्सा ले रहे हैं ऐसे रहमदिल बन दूसरों को भी वर्सा दिलाना है।
गीत:- ले लो दुआयें माँ-बाप की........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पढ़ाई में मात-पिता को फालो करना है। खुशी में रहना है कि ऊंचे ते ऊंचे धाम से भगवान् हमें पढ़ाने आते हैं।
2) अब हमें वापस स्वीटहोम जाना है, इसलिए अशरीरी बनने का अभ्यास करना है। देह सहित सब कुछ भूल जाना है।
वरदान:- इच्छाओं रूपी मृगतृष्णा के पीछे भागने के बजाए सच्ची कमाई जमा करने वाले इच्छा मात्रम् अविद्या भव
कई बच्चे सोचते हैं कि अगर हमारे नाम से लाटरी निकल आये तो हम यज्ञ में लगा दें। लेकिन ऐसा पैसा यज्ञ में नहीं लगता। कई बार इच्छा स्वयं की होती है और कहते हैं कि लाटरी आयेगी तो सेवा करेंगे! लेकिन अब के करोड़पति बनना अर्थात् सदा के करोड़ गंवाना। इच्छाओं के पीछे भागना तो ऐसे है जैसे मृगतृष्णा इसलिए सच्ची कमाई जमा करो, हद की इच्छाओं से इच्छा मात्रम् अविद्या बनो।
स्लोगन:- विघ्न को विघ्न के बजाए खेल समझकर चलो तो खेल में हंसते गाते पास हो जायेंगे।
BKVishwakarma |
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Brahma Kumaris Murlis | Facebook
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Madhuban Murli :- LIVE 30/07/2013 ( 07.05am to 08.05 ... - YouTube
www.youtube.com/watch?v=y6nzQ-2OG_U
13 hours ago - Uploaded by Madhuban Murli Brahma KumarisMadhuban Murli :- LIVE 30/07/2013 ( 07.05am to 08.05am IST).... Madhuban Murli 16/07/2013 ...
5 टिप्पणियां:
वाह! बहुत ख़ूब
सर जी ,बड़ी ही सुन्दर ज्ञान की बातें ,
कर्मों का भुगतान तो करना ही पड़ेगा..हमने जो बोया है हमें ही काटना है..
बहुत ही सुखद आलेख.
रामराम.
प्रकृति लिखावहिं अपनी भाषा।
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