गुरुवार, 25 जुलाई 2013

मधुबन मुरली (साकार )

मधुबन मुरली (साकार ):२ ४ /० ७ /२ ० १ ३ /http://www.youtube.com/watch?



मुरली सार:- ”मीठे बच्चे-बाप का राइट हैण्ड बन, सर्विस का शौक रख 

श्रीमत पर पूरा-पूरा अटेन्शन दो, अखबारों में कोई सर्विस की बात 

निकले तो उसे पढ़कर सर्विस में लग जाओ”


प्रश्न:- बाप का नाम तुम बच्चे कब बाला कर सकेंगे?


उत्तर:- जब तुम्हारी चलन बड़ी रॉयल और गम्भीर होगी। तुम शक्तियों 

की चाल ऐसी चाहिए जैसे डेल (मोरनी)। तुम्हारे मुख से सदैव रत्न 

निकलने चाहिए, पत्थर नहीं। पत्थर निकालने वाले नाम बदनाम करते हैं। 

फिर उनका पद भी भ्रष्ट हो जाता है। बाप का बनकर कोई भी 

विकर्म न हो-इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखना है।


गीत:- छोड़ भी दे आकाश सिंहासन……..इस धरनी पर आ जाओ .

अब तो आ गये,बच्चे जानते हैं बाप का कार्य कितनी तेज़ी से चल रहा है . 


याद करते हैं हे परम पिता अपना निराकार रूप बदल साकार रूप में आओ 

.यह तो नहीं कहेंगे कच्छ मच्छ में आओ .

अब यदि परमात्मा सर्व -व्यापी है तो यह क्यों कहते आप आओ .

ब्राह्मण कुल भूषन हैं तो बहुत  पर  उनमें भी कोटो में कोई एक हैं जो 

अखबार 

में देख सेवा में लग जाते हैं .श्री मत  पे अटेंशन देते हैं .


भ्रष्टाचारी और श्रेष्ठा चारी का तुम बच्चे अंतर समझाओ .बच्चों भारत तो 

बड़ा  स्वर्ग  था अब तो भ्रष्टाचारी है .द्वापर में ऐसे श्रेष्ठाचारी राजा रानी के 

मंदिर बनाके पूजा करते हैं .भारत में ही उनकी महिमा गाते हैं .जो ऊपर से 

आत्माएं पहले पहले आतीं हैं वह श्रेष्ठा चारी होतीं हैं .देवतायें भी नीचे  

आतें ही हैं नीचे  तो आना ही है .यह तो है ही ड्रामा .

क्राईस्ट से तीन हज़ार 

बरस पहले भारत 

स्वर्ग था .अब तो भ्रष्टाचारी है .पहले सरकार श्रेष्ठाचारी बनें ,तो प्रजा भी 

बने.बाप तो आके सबको ही श्रेष्ठाचारी बनाते हैं .


यथा राजा रानी तथा  प्रजा अभी तो कहा जाएगा यथा गवर्नमेंट तथा प्रजा 

.सतयुग में सब श्रेष्ठाचारी थे .द्वापर में ऐसे श्रेष्ठाचारी राजा रानी के 

मंदिर बनाके पूजा करते हैं .आप तो हैं ही सर्वगुण संपन्न हम तो हैं ही 

विकारी ऐसे आँख बंद कर मूर्तियों के आगे गाते हैं .

धर्मस्थापन करने वाली आत्माओं की भी महिमा गाई जाती है.पावन 

अवस्था में ही आते हैं वह भी .नीचे तो फिर वह भी आते हैं य़ह खेल ही सारा 

उत्थान पतन की कहानी  का  भारत पे ही है जो आधा कल्प तो श्रेष्ठाचारी 

था 

.सारा कल्प तो एक रस नहीं रह सकते .बाप कहते हैं जब जब अति भ्रष्टा 

चार होता है तब तब मैं आता हूँ .पावन को श्रेष्ठा चारी कहा जाता है विकारी 

को भ्रष्टाचारी .भारत ही सोने की चिड़िया थी यथा राजा रानी  तथा प्रजा 

स्वर्ग में तो सभी सुखी थे . सभी श्रेष्ठाचारी थे .


यहाँ तो अब सब भ्रष्टाचारी हैं प्रजा का  ही  राज है प्रजा के लिए  .सारा खेल 

यह ऐसे ही बना हुआ है .बंगाल में  काली का मंदिर है .ऐसी चंडिका आई 

कहाँ से ?

जो बाप की गोद लेते तो हैं लेकिन फिर छोडके चले जाते हैं ,पूजा उनकी भी 

होती है सतयुग में वह चांडाल बनते हैं .ताज और पतलून तो उन्हें भी मिल 

ही जाती है .तुम बच्चे ये सब बातें समझा सकते हो .


ये भी उनसे पूछो -ये हिन्दू धर्म किसने स्थापित किया .बता न सकेंगे 

ज़ानते ही नहीं हैं .तो बताएँगे कहाँ से ?

यहाँ कलियुग में भी अच्छे बुरे मनुष्य हैं .सतयुग में ये शब्द ही नहीं 

निकलेगा बुरा अर्थात पाप आत्मा वहां तो वाइसलेस  वर्ल्ड है .तुम बच्चे 

जानते 

हो अभी हम देवी देवता बन रहें हैं .

ये भगत नहीं जानते हैं . भटक रहें हैं वे तो यात्राओं पर कित्ता कित्ता 

दूर जाते हैं .

आत्मा तो परमात्मा की आशिक होती है बाप माशूक है .अभी तुम बच्चों 

को यह पुरुषार्थ करना है हम निरंतर याद करते ही रहें .सिमरन  शब्द तो है 

ही भक्ति 

मार्ग का. लेकिन याद करना मुश्किल नहीं है हम बच्चे तो बाबा को याद 

करते हैं

 य़ह अक्षर याद प्रवृत्ति मार्ग का है .बच्चे कहतें हैं , हम बाप को भूल जाते 

हैं .अपने से  

 बात करनी चाहिए हम बाप को भूल क्यों जातें हैं जब तुम मात पिता के 

सम्मुख बैठे हो 

,तुम्हें तो ख़ुशी होनी चाहिए अभी हम बच्चे तो बाप के सामने ही बैठे हैं 

.बाप तो तुम्हें मेहनत नहीं देते हैं बस  चुप करके तुम्हें बाप को याद ही तो 

करना है . 


ये किसी को पता नहीं है यह संगम युग है कल्प के इस संगम युग की 

महिमा बहुत है क्योंकि इस समय ही बाप आके राज योग सिखलाते हैं 

क्यों  सिखलाते हैं ?क्योंकि .सतयुग  लाना है .अभी जो मनुष्य हैं उनमें 

कोई कनिष्ट 

है कोई उत्तम भी है .


 ये भगत लोग ही  बाप को बताते हैं मैं कामी हूँ कपटी हूँ .तुम बच्चे 

जानते हो हम राजयोग सीख रहे हैं .ऐसी क्या युक्ति हो तुम सबको बताओ 

भगवान आ गया है अ ब तो थोड़ा समय ही बचा है .थोड़े का भी थोड़ा .


ये ज्ञान तो सेकिंड में मिलता है जिससे तुम जीवन मुक्ति पा लेते हो 

.लेकिन अभी तुम्हारे ऊपर आधा कल के पाप चढ़े हैं वह सेकिंड में थोड़ी 

काटेंगे .


आभी हम ब्रह्मा कुमारिस के पास क्यों जाए अभी तो बहुत समय पडा है वे 

नहीं जानते हैं अब समय कहाँहै ?


जिन्होनें बाप के साथ पहले भी पुरुषार्थ किया है वह जानते हैं यह संगम 


युग स्वर्ग से भी अच्छा है जिसमें बाप आके हम बच्चों से मिलते हैं 

समझाते हैं अभी हमें यह हीरे जैसा युग मिला है .तुम बच्चे समझा 



सकते हो अभी है ये डायमंडयुग जो स्वर्ग से भी अच्छा है .सतयुग है गोल्ड 

फिर  त्रेता है सिल्वर तुम बच्चे ऐसे समझा सकते हो ज़ब आठ रत्नों की 

अंगूठी बनाते हैं तो बीच में  हीरा रखते हैं .


रूहानी बाप आकर यह रूहानी कालिज संगम पे ही देते हैं मनुष्य जिनमें 

अहंकार है वह यह बात इत्ती जल्दी कैसे मानेगें .इस संगम युग की आयु 

बहुत छोटी है सतयुग और त्रेता तो हैं दोनों १ २ ५ ० बरस के अभी तुम 

बच्चे ये समझा सकते हो .


ये है मनुष्य से देवता बनने की पाठशाला  .अतीन्द्रीय सुख पूछना है तो 

गोप 

गोपियों से पूछो .भगवान स्वयं  पढ़ाते हैं और वह हमें साथ भी ले जायेंगे .

अभी सब  कहते हैं विश्व में शान्ति हो .उनसे पूछो पहले भी कभी शान्ति 

थी पृथ्वी पर .थी तो कब थी .वह तो कहते हैं राम राज्य था .


अ भी तो रावण राज्य है .बाप ने हमें कितना बड़ा ख़ुशी का खज़ाना दिया है 

इसलिए तुम बच्चों को किसी से भी रूठकर घर नहीं बैठना है .पढ़ाई छोडके 

घर नहीं बैठना है .एक दो से कभी नहीं रूठना चाहिए यज्ञ में एक  दो 

असुरों के

 विघ्न तो पड़ते ही रहते हैं लेकिन तुम बच्चों को किसी से भी कभी रूठना 

नहीं 

है यह बात याद रखो . 

अच्छा मीठे मीठे सिकी लधे बच्चों प्रति  रूहानी बाप की याद प्यार और 

नमस्ते .रूहानी बच्चों की रूहानी बाप दादा को नमस्ते .


धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) श्रीमत पर श्रेष्ठाचारी बनकर श्रेष्ठाचारी बनाने की सेवा करनी है। कोई 


ऐसी चलन नहीं चलनी है जिससे नाम बदनाम हो। मुख से सदा 

रत्न निकालने हैं, पत्थर नहीं।


2) बेहद की गुह्य पढ़ाई को विस्तार से सुनते उसे सार में समाकर दूसरों 


की सेवा करनी है। श्रीमत पर पूरा अटेन्शन देना है।


वरदान:- सदा साक्षी स्थिति में स्थित रह निर्लेप अवस्था का अनुभव 


करने वाले सहजयोगी भव


जो देह के संबंध और देह से साक्षी अर्थात न्यारे हैं वह इस पुरानी दुनिया से 


भी साक्षी हो जाते हैं। वे सम्पर्क में आते हुए, देखते हुए भी सदा

 न्यारे और प्यारे रहते हैं। यह स्टेज ही सहजयोगी का अनुभव कराती है। 

इसी को कहते हैं साथ में रहते हुए भी निर्लेप। आत्मा निर्लेप नहीं है 

लेकिन आत्म-अभिमानी स्टेज निर्लेप अर्थात् माया के लेप व आकर्षण से 

परे है। इस अवस्था में रहने वाले माया के वार से बच जाते हैं।


स्लोगन:- शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा सूक्ष्म सेवा करने वाले ही 

महान आत्मा हैं।

विशेष :सृष्टि में इस  समय ही नवनिर्माण का कार्य चल रहा है इसे ही यज्ञ 

(वास्तव में रूद्र यज्ञ क्योंकि इसके करन करावन हार हैं शिव )कहा गया है 

इस ज्ञान मुरली में जिसका प्रात :प्रसारण सीधा मधुबन (माउंट आबू 

,राजस्थान से होता है .इसे यू ट्यूब पर लाइव सुना जा सकता है .भारतीय 

समय के अनुसार प्रात :० ७ :०५ -०८ :०५ तक .बाद में रिकारिडिंग भी 

कभी भी .)


सन्दर्भ -सामिग्री :Madhuban murli live july 2 4 ,2 0 13 






ॐ शान्ति 


आध्यात्मिक शब्दावली :

(४ ६ )शिव बाबा :निराकारज्योतिर्लिन्गम शिव को ही प्यार से शिव बाबा 

कहते हैं हम बच्चे .

Shiv Baba :Shiva ,the Father 



(४ ७ )श्रीमत :हमारे मंगल और शुभभविष्य के लिए बाप द्वारा हम बच्चों 

को दी गई सीख .मन्त्र बाप का हमारे लिए :"मनमनाभाव ."ही है .

"
shrimat :Supreme directions revealed by God , considered to 


carry auspicious omens.


(४ ८  )आत्म अभिमानी (आत्म अभिमानी होने का मतलब 

,आत्मअभिमानता):

स्वयं को इस शरीर में मस्तक के बीच (भ्रू -मध्य ,जहां लोग तिलक /बिंदी 

लगाते हैं )अकालतख़्त पर बैठी ,विराजमान ज्योति बिंदु स्वरूपा आत्मा 

समझ औरों के साथ व्यवहार करना .उन्हें देह न देख आत्म रूप (शांत 

,आनंद संसिक्त ,प्रेम संसिक्त आत्मा )ही बूझना समझना .


soul consciousness :to be in the awareness of the self as a 

being of light seated in the centre of the forehead and to 

interact  with others in this consciousness.


"I"  as self respect is soul consciousness ."I " as self -

arrogance is body consciousness. 


(४ ९ )सूक्ष्म लोक (सूक्ष्म वतन ,सूक्ष्म दुनिया ):निराकारी दुनिया(मुक्ति 

धाम ,आत्मलोक ,परम धाम या शान्तिधाम ,ब्रह्म लोक ,जहां सूरज चाँद 

सितारा से परे स्वर्णिम लाल प्रकाश का डेरा है,जो हम सभी आत्माओं का 

मूल वतन है ,परमात्मा का भी जो आवास है  ) और 

साकारी दुनिया के बीच एक सूक्ष्म वतन भी है जहां आवाज़ की दुनिया से 

परे सिर्फ नीलाभ स्वच्छ प्रकाश का डेरा है वही सूक्ष्म लोक  है यहीं  पर हैं 

ब्रह्मा ,विष्णु और महेश पुरियां .इस त्रिमूर्ति का संयुक्त आवास  है सूक्ष्म 

लोक  .शिव रचता (रचनाकार ,सृजनहार)है इन तीनों का य़े रचना हैं 

निराकार शिव की .

फरिश्तों की दुनिया है यह जिनका शरीर प्रकाश का है शुभ संकल्प से 

संपन्न होतें हैं यहाँ सब काम .


subtle region : a realm of light between the incorporeal world 

and the corporeal world.The activities of the subtle region

 function through the power of pure thought and the power 

of pure feelings .The subtle region is also referred to as the 

angelic world.


(५ ० ) तिराहा :जहां तीन सड़कें मिलती हैं .इन जगहों पर सड़क  दुर्घटनाएं 

बहुत होतीं हैं इसलिए भक्तों ने यहाँ पूजा करने की जगह बना दीं  हैं ताकि 

दुर्घटनाओं को कम किया जा सके .



बस आसपास किसी पेड़ के नीचे साईंबाबा की तस्वीर रख दो किसी और 

पूज्य 

की प्रतिमा रख दो बन गया पूजा स्थल .भारत में ऐसी जगहें आपको बहुत 

मिल जायेंगी जहां लोग वृक्षों की भी पूजा करते हैं जल की भी ,वायु और 

अग्नि की भी .

T -junction intersection :where three roads meet .In India 

,such intersections are roads where frequent accidents occur 

.Therefore ,devotees have created places there to perform 

worship as a means of protection .


(५ १ )तमोप्रधान :जिस वक्त इस कायनात के तमाम कुदरती तत्व 

निम्नीकृत होकर अपनी तात्विकता खोकर अधोअवस्था में आ जाते हैं 

.अपनी गुणवत्ता खो देते हैं .आत्मा पर विकारों की पर्त-दर -पर्त चढ़ जाती 

है .अज्ञान अन्धकार सृष्टि को अपने मायावी आवरण में आच्छादित कर 

लेता है .जब घोर अव्यवस्था और अनैतिकता अनाचार ही शेष रह जाता है 

मायारावण का राज्य सबको घेर लेता है इस वेला प्रकृति और पुरुष दोनों 

को ही .

tamopradhan :the lowest state of human existence and of the 

natural world ; a state of complete darkness of ignorance 

,disorder and unrighteousness.when the entropy of the 

universe becomes almost  maximum .when there are more 

ways of disorder than order entropy continue to increase.


(५२ )त्रेतायुग :समय चक्र या एक कल्प का दूसरा युग ,जिसे रजतकाल या 

आधा स्वर्ग भी कहा जाता है .उच्च स्तरीय व्यवस्था रहती है इस समय

 कायनात में लेकिन सर्वोच्चस्तरीय  नहीं .प्रकृति और पुरुष सतो गुण लिए 

रहते हैं 

सतोप्रधान नहीं रहते हैं .सतयुग में जन्म लेते लेते जब आत्मा की २ ० 

फीसद शक्तियां कम हो जातीं हैं तब आता है त्रेतायुग में चली आती है 

.मनुष्य में 

वैभवसम्पन्नता कला सम्पन्नता अभी भी रहती है लेकिन सतयुग से 

थोड़ी कम रह जाती है .विकार यहाँ भी नहीं हैं .चन्द्र वंशी राजा राम का 

राज्य यहीं है लेकिन यहाँ रावण नहीं है .वह तो होता ही कलियुग में है .लोग 

जानते नहीं है .इस कालखंड की अवधि भी १ ,२ ५ ० वर्ष की है .आत्मा 

अधिकतम १ २ मर्तबा यहाँ अपने वस्त्र बदलती है .प्रसव अभी भी 

वेदनाहीन रहता है क्योंकि प्रकृति का हर तत्व सहयोग करता है .

Tretayug :the second of the four ages ,the Silver Age ,is called 

semi-heaven .There is a high degree of order ,but it is not the 

highest ;it is moderately less than Satyug .Its duraton is 1 ,2 5 

0 years.The maximum number of births souls can take in 

Tretayug is 1 2 .


(५ ३ )योग :योग का मतलब है आत्मा की परमात्मा से प्रीती उसकी सहज 

याद सोते जागते हुए .

yoga :yoke ,link , or bond .Spiritual connection or union 

achieved through remembrance .


(५ ४ )योगी :जो याद के रियाज़ से अध्यात्मशक्ति प्राप्त करता है संकल्प 

को एक स्विच बना उस परमपिता से जुड़ता है जब चाहे तब .

yogi :one who practices connection or union through 

remembrance.






4 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर पाठ..जीवन तत्वों से भरा..

Anita ने कहा…

बाबा की मीठी सीख बच्चों को उनके पास खींचती है..आभार!

Satish Saxena ने कहा…

वीरू बाबा की जय ..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जय हो जय हो जय हो ...
कितना कुछ समेटा है आज ... विस्तृत आकाश धरती के साथ समेटने का प्रयत्न ...
जय राम जी की ...