कहानी आत्मा के उत्थान और अवपतन की
इस पृथ्वी पर समय चक्र की शुरूआत सतयुग से होती है ज़ैसे दिन के बाद रात आती है और फिर रात के बाद दिन और यह चक्र २४ घंटे का है ज़ैसे ऋतुचक्र की अवधि एक बरस है वैसे ही सृष्टि चक्र की अवधि ५ ० ० ० बरस है इसे ही कहते हैं काल का पहिया समय चक्र ।इस समय चक्र में चार युग हैं एक अति - अल्पावधि गुप्त पुरुषोत्तमसंगम युग भी है जो
प्रच्छन्न बना रहता है .यह शिखर मांगलिक युग ही संधि स्थल है समाप्त प्राय :कलियुग और आसन्न सतयुग का .
आत्माओं का महाकाव्य है यह काल चक्र ।पवित्रता और अपवित्रता ,शान्ति और अशांति की कथा है ।अति -वैभवसम्पन्नता और आत्माओं के घोर दारिद्र्य का पोता -मेल है समय चक्र ।
इस काल चक्र की सुप्रभात में आत्माएं वैभव संपन्न होती हैं शाम होते होते
भिखारी बन जाती हैं अपनेसुदिनों में नहीं दुर्दिनों में ही आत्माएं एक बार
फिर अपने संगम युग पर आकर विश्व के इतिहास और भूगोल की कथा
सुनती है .भारत ही स्वर्ग था जो अब रौरव नर्क बन गया है ।
बाप आकर तुम्हें अतीत की कथा सुनाते हैं .लघु कथा है यह तुम्हारे ही अतीत की ।समय चक्र की भी कथा है यह जिसके अंतर्गत पहले रात दिन में बदलती है और फिर से दिन रात में .दोनों के बीच में एक अमृत वेला है .
आत्माओं के विविध किरदारों की कथा है यह क़ैसे आत्माएं सृष्टि रुपी अभिनय मंच पर ,स्टेज आव एक्शन पर अपने अपने पार्ट सही समय पर आकर बजाती हैं क़िसी आत्मा का पार्ट एक दम से छोटा होता तो किसी का शुरू से लेकर आखिर तक भी रहता है .
बाप संगम पर सबके सोये हुए भाग जगाने आते हैं .बाप बच्चों को स्नेह
पूर्वक निहारते हैं सोचते हुए बच्चे भटक रहे थे मार्ग की तलाश में रस्ता
भूलकर .इतने जन्मों तक बच्चों ने पूजा अर्चना की है .द्वापर से अब तक
तुम यही करते आये हो .मेरे स्वरूप को पूरी तरह भूल कर तुम मुझे ही
जन्म जन्मान्तरों से ढूंढते रहे हो .ताकि तुम्हें अपना खोया हुआ
आत्माभिमान (soul consciousness ),संप्रभुता (सतयुग और त्रेता की
राजाई )फिर से मिल जाए .तुम पूज्य थे पुजारी बन गए .
संगम पर आके तुम्हें फल मिलता है इस तलाशबीन का .
बाप बतलाते हैं :
मेरे बच्चो! यह
सृष्टि पल प्रति पल बदलती रहती है लेकिन सृष्टि चक्र अनादि और
सनातन है .मैंने आत्माओं को नहीं बनाया है लेकिन संगम पर मैं उनका
एक तरह से नवीकरण और पुनर्शोधन करता हूँ .प्रत्येक ५ ० ० ० साल के
बाद यह चक्र अपनी पूर्वावस्था में आ जाता है .
ऊर्जा की तरह इस अनादि चक्र का भी संरक्षण होता है .मैं भी इस चक्र से
मुक्त नहीं हूँ संगम पर मेरा भी पार्ट है .तुम बच्चों का परिशोधन कर वापस
घर ले जाना .वही तो मेरा और तुम्हारा संयुक्त घर है .एक्सटेनडिड
फेमिली है .संयुक्त परिवार है .अभी तो तुम न्यूक्लीयर (अन -क्लीयर
)फेमिली में हो .
यह ड्रामा भी अनादि है इसके हीरो हीरोइन तमाम किरदार भी .सबके पार्ट भी अनादि हैं .शूटिंग कभी रूकती नहीं है हरआत्मा को अपना पार्ट याद रहता है .आत्मा के बिन्दुवत कलेवर में जन्म जन्मान्तरों का अनादि पार्ट भरा रहता है .इस रिकारिडिंग को इरेज़ नहीं किया जा सकता है .किसी एक को भी इस पार्ट से छुट्टी नहीं मिलती है .एक बार स्टेज पर आजाने के बाद फिर अंत तक आत्मा यहीं रहती है सिर्फ कस्ट्यूम बदलते हैं एक से दूसरे एक्ट (जन्म )के बीच.सम्बन्ध बदलते हैं देह के ,देह धारियों से .आत्मा तो शुरू में निर्दोष ही आती है सोलह आने खरी अपना मूल वतन छोड़ के .
हमारे हृदय की तरह चार कमरों वाला चतुर्युगीय है यह समय चक्र .स्वर्ण,रजत ,ताम्र और लौह युगीन हैं ये कमरे .
इसी भव्य कायनात पर खेला जाता है यह रंगारंग नाटक .सूरज ,चाँद सितारा इस कायनात को बराबर रोशन करते रहते हैं .प्रारम्भ में सृष्टि (प्रकृति )के पाँचों तत्व जल ,वायु ,अग्नि ,आकाश और यह वसुंधरा अपनी सतोप्रधान अवस्था (पवित्र तम प्रावस्था )में रहते हैं .धन धान्य से परिपूर्ण रहती है ये धरा सतयुग में .इस सच खंड में हरियाली का बिछौना ,वृक्षों के बहुरंगी पत्ते और पुष्प माहौल में एक सौरभ एक संगीत भर देते हैं .पक्षियों का गान सुर तान लिए रहता है .वीणा को छूने भर से वह रागयुक्त हो जाती है .प्रकृति और पुरुष (आत्मा और देह )में एक सामंजस्य ,समस्वरता रहती है .
प्राकृत झरनों का जल खनिजलवणों से अभिसिंचित रहता है .सौर ऊर्जा विविध ऊर्जा रूपों में सृष्टि को चलाये रहती है .हर मौसम बसंत होता है .बोले तो सुहावना .भूमि खंड जो जितना चाहे ले कोई प्रोपर्टी टेक्स नहीं लगता है यहाँ .सारे समुन्दर एक रहते हैं अब तक .इनका नीर ही क्षीर समान होता है ।सर्वआत्माओं का वितान बन जाता है एक आसमान .न न ं धरती बंटती है न आकाश .कल्याण कारी राज्य यही है .सबके सब प्रदाता है यहाँ .स्वभाव और चरित्र में दिव्यता है सबके इसीलिए सब मनुष्य देवता कहलाते हैं .परिष्कृत रूप रहता है इस समय एटमी ऊर्जा का .शान्ति ,अहिंसा और प्रेम ही सर्व मनुष्य आत्माओं का धर्म रहता है .
खानें हीरों से भरी रहती हैं .अन्य जवाहरात का भी बाहुल्य रहता है .इमारतों(महलों ) के नगीने बनते हैं ये हीरे जवाहरात .न यहाँ किले हैं न किले बंदी न कोई द्ध ं मत वैभिन्य . हर भवन यहाँ "वाईट "
क्या गोल्डन हाउस है पूर्ण सुरक्षित है .
सम्पूर्ण व्यवस्था रहती है यहाँ .सबको तवज्जो मिलती है क्या राजा क्या प्रजा .कोई उपेक्षित नहीं रहता है स्वर्ण और रजत युग में .सुख शान्ति का साम्राज्य रहता है .अकाली मृत्यु नहीं है स्वेच्छया शरीर त्याग है .प्रसव वेदना हीन है .उम्र लम्बी है .
कोई हिंसा नहीं है सतयुग में शेर बकरी एक घाट पानी पीते हैं .घात लगाके हमला नहीं करते हैं य़ह इसी पृथ्वी की कथा है .स्वर्ग इसी सतयुग को कहा गया है स्वर्ग कोई ऊपर नहीं है ऊपर तो रहने का कमरा है परम धाम है आत्म लोक है.
पूर्ण सुख शान्ति वैभव और कला सम्पन्नता है यहाँ .ये हम ही थे जो आत्माभिमान से भरे रहते थे .देह -अभिमान का हमें पता ही नहीं था .
त्रेता युग में भी सुख शान्ति वैभव सम्पन्नता का साम्राज्य रहता है लेकिन उतना नहीं प्रकृति के तत्व भी थोड़ा सा छीज जाते हैं .मानों सोने में थोड़ी मिश्र धातु की मिलावट आ जाती है .इसी लिए इसे रजतयुग कहा गया है क्योंकि मिलावट भी यहाँ चांदी की होती है .लेकिन मनुष्य अभी भी देवतुल्य हैं आत्माभिमानी (स्वाभिमानी हैं देह अभिमानी नहीं ).बस थोड़ी सी पवित्रता की डिग्री(अंश भाग ) कम हो जाती है .
द्वापर से द्वंद्व शुरू होता है आत्म अभिमान में देह अहंकार ,सुख में दुःख ,खरे में खोट जगह बनाने लगता है .सत एवं रजत युगी व्यवस्था अव्यवस्था में तबदील होने लगती है .आत्मा में ताम्बे की खाद भरती जाती है .
प्राकृतिक तत्व भी पहले सतो -प्रधान से सतो ,फिर रजो प्रधान से रजो हो जाते हैं .सच के साथ झूठ ,सदाचार के साथ दुराचार (अनाचार )आ बैठता है और आदरणीय स्थान भी पाने लगता है .ईश्वर की तलाश जोरशोर से शुरू हो जाती है .हालाकि उसके स्वरूप को ही अब लोग भूलने लगते हैं .स्मृति में अपना देवस्वरूप रहता है सो अपने ही देवस्वरूप की प्रतिमा बना मंदिरों में स्थापित कर देते हैं .अपने ही दिव्यस्वरूप को पूजने लगता है अब मनुष्य पूज्य से स्वयं पुजारी बन जाता है .कहाँ वह स्वयं माला का मनका था अब माला फेरने लगता है .नवधा भक्ति भी धीरे धीरे व्यभिचारी होने लगती है .कर्म काण्ड पूजा अर्चना का जैसे आन्दोलन ही चल पड़ता है एक के बाद एक धर्म संस्थापक आते जाते हैं लेकिन गिरावट का दौर ज़ारी रहता है .प्राकृत तत्व गंधाने लगते हैं कर्म कांडी आराधना से .
कलियुग के आते आते सच का प्राय :लोप हो जाता है .भ्रष्ट होना पद प्रतिष्ठा का प्रतीक बनने लगता है .तीर्थों का तीर्थ तिहाड़ बन जाता है .प्राकृतिक तत्व छीज कर कराहने लगते हैं .प्राकृतिक आपदाएं कुदरत के अपने कायदे कानूनों के अनुरूप बारहा आती रहतीं हैं .प्राकृतिक तत्व ही नहीं आत्मा भी तमो प्रधान हो जाती है जंग लगे लोहे सी .विकार और अव्यवस्था पृथ्वी को अपने कब्ज़े में ले लेते हैं .राष्ट्र परस्पर एक दूसरे को अपने एटमी दांत और मिसायल दिखलाने लगते हैं .एटमी दुर्घटनाएं आप से आप प्रकृति के अपने नियमों के अनुसार होने लगती हैं क़िसी के रोके न रुकतीं हैं .इलाज़ के साथ बीमारियाँ भी बढ़तीं हैं .सारीदुनिया ही अब लंका बन जाती है .सब जगह मायारावण का राज्य पनपता है .
माया रावण का दंभ तोड़ने इसी वेला कलियुग की समाप्ति और सतयुग के आगमन से ठीक पहले बाप प्रच्छन्न रूप आकर प्रच्छन्न ज्ञान देते हैं .इसी संगम युग पर बेहद के बाप करुणा से आप्लावित हो अपने कल्प पहले के बिछुड़े बच्चों से आ मिलते हैं .ये वही बच्चे थे जो सतयुग में सोलह कला प्रवीण थे अब एक दम से दीन हीन हो गए हैं .कहाँ तो इनके खजाने अखूट थे कहाँ अब हद दर्जे का दिवालियापन है .आत्मा भी अपवित्र शरीर भी .संबंधों से तृप्ति नहीं अतृप्ति ही बढ़ती अब .सम्बन्ध भी नित नए अनेक बनते हैं .लेकिन सब हद के .आत्मा की ज्योति बुझने जैसी हो जाती है जैसे चाँद की रौशनी अमावस्या से ठीक पहले हो जाती है .चाँद के नाम पे एक लकीर भर रह जाती है .यही हाल अब विकारी आत्मा का हो जाता है .गोरे(पवित्र) से काली (अ -पवित्र )हो जाती है आत्मा . शरीर भी .बाप आके सारी खाद निकालते हैं .बच्चों को मार्ग बतलाते हैं अपना मददगार बना लेते हैं .आखिर बच्चे तो उस बेहद के बाप के ही हैं न .सिकी लधे और मीठे।बाप बच्चों को उनके दिव्यगुणों की याद दिलाते हैं श्री मत बतलाते हैं .आत्मा के एक बार फिर से सतो -प्रधान बनने का सिलसिला शुरू हो जाता है .समय का पहिया घूमता ही रहता है बच्चे गाते हैं :
हम तो थे अँधेरे में दिया प्रकाश आपने ,
पिंजरे के पंछी को ,दिया आकाश आपने ,
आपकी शुभ आशिष ने हमको मालामाल कर दिया .
ओ !बाबा आपने कमाल कर दिया .
हम तो थे उलझन में ,मार्ग बताया आपने ,
हम तो थे गफलत में आके ,जगाया आपने ,
आपकी मीठी दृष्टि ने हमको निहाल कर दिया .
हमारा काया कल्प किया ,अनोखे राज योग ने ,
हमें बिलकुल ही बदल दिया ,सत्य के नित्य प्रयोग ने ,
आपकी शुभ शिक्षा ने ,हमको बे -मिसाल कर दिया .
ओ ! बाबा ! आपने कमाल कर दिया .
हमारा सारा जीवन आपने निहाल कर दिया ,
ओ बाबा ,आपने कमाल कर दिया ,
हमारे बाबा ,ओ मीठे बाबा आपने ,
कमाल कर दिया .
ॐ शान्ति
आध्यात्मिक शब्दावली (सात )
(३ ६ )सकाश :परमपिता परमात्मा से आत्माओं को जो (ज्ञान के )प्रकाश की धारा और आध्यात्मिक शक्ति सीधे सीधे प्राप्त होती है और जिसका इस्तेमाल आत्माएं आगे विश्व कल्याण के लिए करती हैं सकाश कहलाता है .
sakash: the current of spiritual light and might received directly from the Supreme Soul to Souls and transmitted by souls to the world .
(३ ७ )संन्यास धर्म :आदिगुरु शंकराचार्य (धर्मात्मा )द्वारा प्रतिपादित संन्यास धर्म .इस धर्म में दीक्षित लोगों को सन्यासी कहा जाता है .मुक्ति की चाह में सन्यासी जगत का त्याग कर तप के लिए एकांत वास में चले जाते हैं इसीलिए इन्हें तपस्वी भी कहा जाता है .
Sanyas Religion :founded in India by the prophet soul Shankaracharya .Those who belong to this religion are known as Sannyasis .Sannyasis are hermits who choose a life of renunciation and solitude by isolating themselves from the world with the aim of attaining liberation .
(३८ )संस्कार :प्रत्येक आत्मा जब गर्भ में प्रवेश करती है तब अपने साथ कुछ संस्कार लिए आती है .पूर्व जन्मों की छाप होतें हैं ये संस्कार .हरेक आत्मा का एक विशेष स्वभाव संस्कार रुझान प्रवृत्ति रहती है जिसके ऊपर वर्तमान जन्म के कर्मों की पर्त भी चढ़ती जाती है .आत्मा की मनन शक्ति मन है .विचार और मनन से ही प्रेरित होतें हैं कर्म जब एक कर्म बार बार दोहराया जाता तब वह व्यक्ति का स्वभाव बन जाता है .सद्विचार से प्रेरित हो व्यक्ति अच्छे कर्म करता है निम्न कोटि के निकृष्ट विचार व्यक्ति से विकर्म करवाते हैं क़र्मो के अनुसार ही वह सज्जन या दुष्ट कहलाता है .सद्कर्मी साधु या महात्मा कहलाता है दुष्कर्मी पापात्मा .परोपकारी नेक कर्मी महात्मा कहाता है .विश्व आत्माओं का कल्याण करने वाला पतित से पावन बनाने वाला परम आत्मा कहाता है .परमात्मा एक है आत्मा अनेक हैं आत्माओं के अपने अपने स्वभाव संस्कार हैं .
मन ,बुद्धि ,अहंकार (संस्कार )आत्मा की तीन जन्म जात शक्तियां हैं .
sanskaras :An inborn power or faculty within the soul that determines the soul's individual and unique identity in terms of character ,personality traits ,talents ,habits ,and propensities .
(३ ९ )सतगुरु :सच्चा पथ प्रदर्शक .सतगुरु (शिक्षक और पिता)एक परमात्मा को ही कहा जाता है जो आत्माओं को श्री मत पे चलाकर पवित्र बना आत्मलोक (आत्माओं के सच्चे सच्चे धाम ,मूल वतन ,परमधाम ,सोल वर्ल्ड )में ले जाता है हरेक कल्प के अंत में .
satguru :literally ,the true guide .Satguru is the title given to God as the only one who guide souls back home to the incorporeal world.
(४ ० )सतो :सत्य ,पवित्रता और नेकी को सतो गुण कहा गया है .जब व्यक्ति या सृष्टि में ये गुण अधिकतम होते हैं तब वह सतोप्रधान कहलाते हैं .सतो का मतलब है आंशिक रूप से पवित्र .सतोप्रधान मतलब पूर्ण पवित्रता का गुण .एक दम से खरा सोलह आने सच (खरा ).तमोप्रधान का मतलब पूर्ण अपवित्रता(मिलावट और खोट ही खोट ) .सतो गुण दोनों धुर सिरों (गुणों ,अंश या डिग्रीज़ )के बीच की स्थिति है .
sato :The properties of truth ,purity ,and goodness are present ,but not in their full state .On a continuum between satopradhan (purity in the extreme )and tamopradhan (impurity in the extreme ),sato represents a place of partial purity .
(४ २ )सतोप्रधान :सतयुग में यह सृष्टि ,ये कायनात अपनी शुद्धतम (पवित्रतम )अवस्था में होती है .सोलह आने खरी ,२ ४ कैरट गोल्ड सी खरी रहती है सतयुगी मनुष्यों की आत्मा स्वभाव संस्कारमें .जो सच खंड है सतयुग है .नेकी ही नेकी है जहां बदी का नाम निशाँ नहीं .उसे ही कहा जाएगा सतोप्रधान .स्वर्ग (सतयुग )को कहा जाता है सतोप्रधान .त्रेताको स्वर्ग नहीं कहेंगे न ही सतोप्रधान यहाँ तो शुद्धता ८ ० फीसद ही रह जाती है .सोने में चांदी की खोट आने लगती है आत्मा की कला सम्पन्नता दो अंश कम हो जाती है .
satopradhan :the highest state of human existence and of the natural world ,when the total truth ,purity ,and goodness prevail .
(४ ३ )सतयुग :जहां सच का ही बस बोलबाला रहता है .आत्मा अपने मूल स्वभाव संस्कार में रहती है सोलह आने खरी सोलह कला संपन्न .सच खंड है सतयुग .कल्प की शुरुआत का यह पहला चरण होता है .एक दम से बे -दाग होती है सृष्टि और उसके तत्वइस समय .इसे ही स्वर्ण युग भी कहा जाता है आदमी यहाँ सोने सा खरा है मन बुद्धि स्वभाव संस्कार में .बुद्धि का पात्र एक दम से निर्मल रहता है सतोप्रधान .इसे स्वर्ग ,बहिश्त और सुख शान्ति आनंद की दुनिया कहा गया है .इसकी अवधि १, २ ५ ० वर्ष की रहती है .आत्मा यहाँ पूरी उम्र जीकर अपने वस्त्र बदलती है नया जन्म लेती है वह कहाँ जा रही है उसे इल्म रहता है .कृष्ण इसी दुनिया का पहला राजकुमार है .आठ जन्म हैं कृष्ण के यहाँ जन्माष्टमी कृष्ण के आठ जन्मों का ही यादगार है .
Satyug :the age of truth and pristine virtue ,It is the first of four ages
,the Golden Age .It is also called the land of happiness ,heaven ,and paradise .Its duration is 1 ,2 5 0 years .The maximum number of births souls can take in Satyug is 8 .
( ४ ४ )सात्विक :इस शब्द का विशेष सम्बन्ध हमारे खान पान से है .परमात्मा की याद में पकाया गया कुदरती तत्वों से उगाया गया खाद्य पदार्थ जो पाचन का सहज हिस्सा बन खून तैयार करता है चेतना को .चित्त को पुष्टकर ऊर्ध्व गामी बनाता है सात्विक भोजन कहलाता है .कहा गया है जैसा अन्न वैसा मन .सात्विक भोजन हमारे मन को भी निर्मल रखता है तन को भी सुवासित बनाए रहता है .परमात्मा की याद की भासना आ जाती है सात्विक भोजन में .याद में ,योगयुक्त रहकर तैयार किया जाता है यह भोजन .आत्मा की परमात्मा से प्रीती ,उसकी याद ही योग है .परमात्मा की भंडारी (प्रसाद )मान कर ही ग्रहण किया जाता है यह भोजन .
sattvic :purest matter in the form of food that the human being digest to support the highest and purest form of consciousness.A sattvic diet consists of totally vegetarian food cooked in God's remebrance.Its glycemic index is low and its a heart healthy food .
(४ ५ )शिव :जो इस सृष्टि रुपी कल्प वृक्ष ह्यूमेन ट्री का बीज रूप है ,जिसमें सृष्टि का आदि मध्य और अंत समाहित है जो सदैव ही दयालु(करूणानिधि )सर्वआत्माओं के लिए कल्याणकारी है .सदैव ही चैतन्य स्वरूप है .ज्योति बिंदु (ज्योतिर्लिन्गम ,ज्योति जिसकी पहचान है )लेकिन गुणों में सिन्धु है वही शिव है सुन्दर है मनोहर है .
Shiva:Shiva means the universally Benevolent One ,the Supreme Benefactor ,the infinitesimal Point the Seed of the human tree .Qualities of Shiva as the Seed are auspiciousness and perfection .
(३ १ )सम्पूर्ण स्वरूप
जब आत्मा में पूर्ण पवित्रता तमाम दिव्य गुण आजाते हैं बाप की याद से ,योग बल से ज़ब वह श्री मत पे चलके हर मुश्किल को साध लेती है हर काम बिना श्रम के सहज रूप हो जाता है उस स्थिति को कहा जाता सम्पूर्ण होना .
perfection :prosperous ,thriving ,accomplished ,abundantly endowed with .The soul in its state of perfection is filled with all spiritual powers and divine virtues and live by the highest code of conduct.
(३ २ )राजा :आत्मा को ही कहा जाता है राजा जब वहअपने शरीर की जिसमें बैठ वह अभिव्यक्त होती है , तमाम कर्मेन्द्रियों ,ज्ञानेन्द्रियों मन बुद्धि अहंकार को अपनी समर्पित प्रजा बना लेती है .तब आत्मा संप्रभु बन जाती है .राजा किसी और से आदेश नहीं लेता है .उसका आदेश परम आदेश होता है .
raja:sovereign ,king ,master ,ruler .The best and highest of its kind .
(३ ३ )राज योग :बाप की सहज याद आत्मा का परमात्मा के साथ स्वत :स्फूर्त सहज संवाद जब हमारे संकल्प एक स्विच बन जाएँ .स्विच दबाते ही हमारा बाप से कनेक्शन हो जाए .मन और चित्त एकाग्र हो जाएं एक बाप के साथ ही रूह रिहान में तब वह स्थिति ही राज योग की स्थिति है .ध्यान की यह एक शैली है पद्धति है .राजयोग ईश्वरीय पढ़ाई पढ़के उसे टेक्नोलाजी ,एक मेथड एक युक्ति में बदलना है .ताकि ईश्वर से योग युक्त होके हम अपना स्वभाव संस्कार बदल सकें .
अपने आपको शांत स्वरूप आत्मा समझ बाप के ध्यान में जो शान्ति का सागर है लाना सहज राज योग है .इसके लिए न किसी विशेष मुद्रा की ज़रुरत है न मेहनत की बस एक पवित्रता चाहिए .शुद्धि चाहिए मन और संकल्प की .
Raja Yoga :A practice of meditation undertaken to bring the soul into union with the Supreme Soul. Raj Yoga is also the study and practice of spiritual knowledge that results in transformation of human awareness in relation to the self ,God ,and the world.
(३ ३ )राज योगी :जो अपनी तमाम कर्मेन्द्रियों ,ज्ञानेन्द्रियों ,मन ,बुद्धि अहंकार को जीत उनका स्वामी बन जाता है .जो अपने मन, कर्म और वचन में समस्वरता हासिल कर लेता है सब काम उसकी याद में रहते हुए करता है .सहज रूप वही सच्चा सच्चा योगी है .राज योगी है कर्म योगी है .
Raja Yogi :one , who through the spiritual link with the Supreme Being ,aspires to the highest form of mastery over the physical senses and over thoughts ,words and actions.
(३ ४ )रजोप्रधान :आत्मा की वह अवस्था जब वह आत्मा भिमान (स्वाभिमान ,स्वमान ,खुद को आत्मा समझते हुए कर्म करना )और देह -अहंकार के बीच झूलने लगती है ऽअभी सेल्फ रेस्पेक्ट अभी सेल्फ एरोगेंस .इस अवस्था में पवित्रता में अपवित्रता आ मिलती है ,व्यवस्था में अ -व्यवस्था ,सच में झूठ मिला हुआ आने लगता है .
परिशुद्धता और बेहद की मिलावट अपवित्रता के बीच की स्थिति है यह .जब पुरुष (आत्मा )और प्रकृति देह (शरीर )के बीच द्वंद्व फूटता है .
rajopradhan :the state of the human soul at the time of duality ,the state between soul consciousness (self respect ),and body consciousness (self arrogance )when purity is mixed with impurity ,order with disorder , and truth with falsehood .Rajopradhan is the middling stage on a continuum satopradhan(purity in the extreme )and tamopradhan (impurity in the extreme ).
(३५ )रावण:महाबलशाली है पांच विकारों काम क्रोध लोभ मोह अहंकार का मानवीय चोला .आत्मा को कब्ज़े में यही सर्व व्यापी विकार रुपी माया रावण किये रहता है आत्मा के बुनियादी गुण धर्म मूल स्वभाव के ऊपर यही माया रावण कुंडली मारके बैठ जाता है .आत्मा की रजो और तमोप्रधान अवस्था का प्रगटीकरण है रावण का वजूद मुखरित होना .
ravan :the five vices -lust ,anger ,attachment ,ego and greed .They are the base forces that dominate over the original virtues and powers in the soul during rajopradhan and tamopradhan stages.
आध्यात्मिक शब्दावली भाग छ :
(ज़ारी )
इस पृथ्वी पर समय चक्र की शुरूआत सतयुग से होती है ज़ैसे दिन के बाद रात आती है और फिर रात के बाद दिन और यह चक्र २४ घंटे का है ज़ैसे ऋतुचक्र की अवधि एक बरस है वैसे ही सृष्टि चक्र की अवधि ५ ० ० ० बरस है इसे ही कहते हैं काल का पहिया समय चक्र ।इस समय चक्र में चार युग हैं एक अति - अल्पावधि गुप्त पुरुषोत्तमसंगम युग भी है जो
प्रच्छन्न बना रहता है .यह शिखर मांगलिक युग ही संधि स्थल है समाप्त प्राय :कलियुग और आसन्न सतयुग का .
आत्माओं का महाकाव्य है यह काल चक्र ।पवित्रता और अपवित्रता ,शान्ति और अशांति की कथा है ।अति -वैभवसम्पन्नता और आत्माओं के घोर दारिद्र्य का पोता -मेल है समय चक्र ।
इस काल चक्र की सुप्रभात में आत्माएं वैभव संपन्न होती हैं शाम होते होते
भिखारी बन जाती हैं अपनेसुदिनों में नहीं दुर्दिनों में ही आत्माएं एक बार
फिर अपने संगम युग पर आकर विश्व के इतिहास और भूगोल की कथा
सुनती है .भारत ही स्वर्ग था जो अब रौरव नर्क बन गया है ।
बाप आकर तुम्हें अतीत की कथा सुनाते हैं .लघु कथा है यह तुम्हारे ही अतीत की ।समय चक्र की भी कथा है यह जिसके अंतर्गत पहले रात दिन में बदलती है और फिर से दिन रात में .दोनों के बीच में एक अमृत वेला है .
आत्माओं के विविध किरदारों की कथा है यह क़ैसे आत्माएं सृष्टि रुपी अभिनय मंच पर ,स्टेज आव एक्शन पर अपने अपने पार्ट सही समय पर आकर बजाती हैं क़िसी आत्मा का पार्ट एक दम से छोटा होता तो किसी का शुरू से लेकर आखिर तक भी रहता है .
बाप संगम पर सबके सोये हुए भाग जगाने आते हैं .बाप बच्चों को स्नेह
पूर्वक निहारते हैं सोचते हुए बच्चे भटक रहे थे मार्ग की तलाश में रस्ता
भूलकर .इतने जन्मों तक बच्चों ने पूजा अर्चना की है .द्वापर से अब तक
तुम यही करते आये हो .मेरे स्वरूप को पूरी तरह भूल कर तुम मुझे ही
जन्म जन्मान्तरों से ढूंढते रहे हो .ताकि तुम्हें अपना खोया हुआ
आत्माभिमान (soul consciousness ),संप्रभुता (सतयुग और त्रेता की
राजाई )फिर से मिल जाए .तुम पूज्य थे पुजारी बन गए .
संगम पर आके तुम्हें फल मिलता है इस तलाशबीन का .
बाप बतलाते हैं :
मेरे बच्चो! यह
सृष्टि पल प्रति पल बदलती रहती है लेकिन सृष्टि चक्र अनादि और
सनातन है .मैंने आत्माओं को नहीं बनाया है लेकिन संगम पर मैं उनका
एक तरह से नवीकरण और पुनर्शोधन करता हूँ .प्रत्येक ५ ० ० ० साल के
बाद यह चक्र अपनी पूर्वावस्था में आ जाता है .
ऊर्जा की तरह इस अनादि चक्र का भी संरक्षण होता है .मैं भी इस चक्र से
मुक्त नहीं हूँ संगम पर मेरा भी पार्ट है .तुम बच्चों का परिशोधन कर वापस
घर ले जाना .वही तो मेरा और तुम्हारा संयुक्त घर है .एक्सटेनडिड
फेमिली है .संयुक्त परिवार है .अभी तो तुम न्यूक्लीयर (अन -क्लीयर
)फेमिली में हो .
यह ड्रामा भी अनादि है इसके हीरो हीरोइन तमाम किरदार भी .सबके पार्ट भी अनादि हैं .शूटिंग कभी रूकती नहीं है हरआत्मा को अपना पार्ट याद रहता है .आत्मा के बिन्दुवत कलेवर में जन्म जन्मान्तरों का अनादि पार्ट भरा रहता है .इस रिकारिडिंग को इरेज़ नहीं किया जा सकता है .किसी एक को भी इस पार्ट से छुट्टी नहीं मिलती है .एक बार स्टेज पर आजाने के बाद फिर अंत तक आत्मा यहीं रहती है सिर्फ कस्ट्यूम बदलते हैं एक से दूसरे एक्ट (जन्म )के बीच.सम्बन्ध बदलते हैं देह के ,देह धारियों से .आत्मा तो शुरू में निर्दोष ही आती है सोलह आने खरी अपना मूल वतन छोड़ के .
हमारे हृदय की तरह चार कमरों वाला चतुर्युगीय है यह समय चक्र .स्वर्ण,रजत ,ताम्र और लौह युगीन हैं ये कमरे .
इसी भव्य कायनात पर खेला जाता है यह रंगारंग नाटक .सूरज ,चाँद सितारा इस कायनात को बराबर रोशन करते रहते हैं .प्रारम्भ में सृष्टि (प्रकृति )के पाँचों तत्व जल ,वायु ,अग्नि ,आकाश और यह वसुंधरा अपनी सतोप्रधान अवस्था (पवित्र तम प्रावस्था )में रहते हैं .धन धान्य से परिपूर्ण रहती है ये धरा सतयुग में .इस सच खंड में हरियाली का बिछौना ,वृक्षों के बहुरंगी पत्ते और पुष्प माहौल में एक सौरभ एक संगीत भर देते हैं .पक्षियों का गान सुर तान लिए रहता है .वीणा को छूने भर से वह रागयुक्त हो जाती है .प्रकृति और पुरुष (आत्मा और देह )में एक सामंजस्य ,समस्वरता रहती है .
प्राकृत झरनों का जल खनिजलवणों से अभिसिंचित रहता है .सौर ऊर्जा विविध ऊर्जा रूपों में सृष्टि को चलाये रहती है .हर मौसम बसंत होता है .बोले तो सुहावना .भूमि खंड जो जितना चाहे ले कोई प्रोपर्टी टेक्स नहीं लगता है यहाँ .सारे समुन्दर एक रहते हैं अब तक .इनका नीर ही क्षीर समान होता है ।सर्वआत्माओं का वितान बन जाता है एक आसमान .न न ं धरती बंटती है न आकाश .कल्याण कारी राज्य यही है .सबके सब प्रदाता है यहाँ .स्वभाव और चरित्र में दिव्यता है सबके इसीलिए सब मनुष्य देवता कहलाते हैं .परिष्कृत रूप रहता है इस समय एटमी ऊर्जा का .शान्ति ,अहिंसा और प्रेम ही सर्व मनुष्य आत्माओं का धर्म रहता है .
खानें हीरों से भरी रहती हैं .अन्य जवाहरात का भी बाहुल्य रहता है .इमारतों(महलों ) के नगीने बनते हैं ये हीरे जवाहरात .न यहाँ किले हैं न किले बंदी न कोई द्ध ं मत वैभिन्य . हर भवन यहाँ "वाईट "
क्या गोल्डन हाउस है पूर्ण सुरक्षित है .
सम्पूर्ण व्यवस्था रहती है यहाँ .सबको तवज्जो मिलती है क्या राजा क्या प्रजा .कोई उपेक्षित नहीं रहता है स्वर्ण और रजत युग में .सुख शान्ति का साम्राज्य रहता है .अकाली मृत्यु नहीं है स्वेच्छया शरीर त्याग है .प्रसव वेदना हीन है .उम्र लम्बी है .
कोई हिंसा नहीं है सतयुग में शेर बकरी एक घाट पानी पीते हैं .घात लगाके हमला नहीं करते हैं य़ह इसी पृथ्वी की कथा है .स्वर्ग इसी सतयुग को कहा गया है स्वर्ग कोई ऊपर नहीं है ऊपर तो रहने का कमरा है परम धाम है आत्म लोक है.
पूर्ण सुख शान्ति वैभव और कला सम्पन्नता है यहाँ .ये हम ही थे जो आत्माभिमान से भरे रहते थे .देह -अभिमान का हमें पता ही नहीं था .
त्रेता युग में भी सुख शान्ति वैभव सम्पन्नता का साम्राज्य रहता है लेकिन उतना नहीं प्रकृति के तत्व भी थोड़ा सा छीज जाते हैं .मानों सोने में थोड़ी मिश्र धातु की मिलावट आ जाती है .इसी लिए इसे रजतयुग कहा गया है क्योंकि मिलावट भी यहाँ चांदी की होती है .लेकिन मनुष्य अभी भी देवतुल्य हैं आत्माभिमानी (स्वाभिमानी हैं देह अभिमानी नहीं ).बस थोड़ी सी पवित्रता की डिग्री(अंश भाग ) कम हो जाती है .
द्वापर से द्वंद्व शुरू होता है आत्म अभिमान में देह अहंकार ,सुख में दुःख ,खरे में खोट जगह बनाने लगता है .सत एवं रजत युगी व्यवस्था अव्यवस्था में तबदील होने लगती है .आत्मा में ताम्बे की खाद भरती जाती है .
प्राकृतिक तत्व भी पहले सतो -प्रधान से सतो ,फिर रजो प्रधान से रजो हो जाते हैं .सच के साथ झूठ ,सदाचार के साथ दुराचार (अनाचार )आ बैठता है और आदरणीय स्थान भी पाने लगता है .ईश्वर की तलाश जोरशोर से शुरू हो जाती है .हालाकि उसके स्वरूप को ही अब लोग भूलने लगते हैं .स्मृति में अपना देवस्वरूप रहता है सो अपने ही देवस्वरूप की प्रतिमा बना मंदिरों में स्थापित कर देते हैं .अपने ही दिव्यस्वरूप को पूजने लगता है अब मनुष्य पूज्य से स्वयं पुजारी बन जाता है .कहाँ वह स्वयं माला का मनका था अब माला फेरने लगता है .नवधा भक्ति भी धीरे धीरे व्यभिचारी होने लगती है .कर्म काण्ड पूजा अर्चना का जैसे आन्दोलन ही चल पड़ता है एक के बाद एक धर्म संस्थापक आते जाते हैं लेकिन गिरावट का दौर ज़ारी रहता है .प्राकृत तत्व गंधाने लगते हैं कर्म कांडी आराधना से .
कलियुग के आते आते सच का प्राय :लोप हो जाता है .भ्रष्ट होना पद प्रतिष्ठा का प्रतीक बनने लगता है .तीर्थों का तीर्थ तिहाड़ बन जाता है .प्राकृतिक तत्व छीज कर कराहने लगते हैं .प्राकृतिक आपदाएं कुदरत के अपने कायदे कानूनों के अनुरूप बारहा आती रहतीं हैं .प्राकृतिक तत्व ही नहीं आत्मा भी तमो प्रधान हो जाती है जंग लगे लोहे सी .विकार और अव्यवस्था पृथ्वी को अपने कब्ज़े में ले लेते हैं .राष्ट्र परस्पर एक दूसरे को अपने एटमी दांत और मिसायल दिखलाने लगते हैं .एटमी दुर्घटनाएं आप से आप प्रकृति के अपने नियमों के अनुसार होने लगती हैं क़िसी के रोके न रुकतीं हैं .इलाज़ के साथ बीमारियाँ भी बढ़तीं हैं .सारीदुनिया ही अब लंका बन जाती है .सब जगह मायारावण का राज्य पनपता है .
माया रावण का दंभ तोड़ने इसी वेला कलियुग की समाप्ति और सतयुग के आगमन से ठीक पहले बाप प्रच्छन्न रूप आकर प्रच्छन्न ज्ञान देते हैं .इसी संगम युग पर बेहद के बाप करुणा से आप्लावित हो अपने कल्प पहले के बिछुड़े बच्चों से आ मिलते हैं .ये वही बच्चे थे जो सतयुग में सोलह कला प्रवीण थे अब एक दम से दीन हीन हो गए हैं .कहाँ तो इनके खजाने अखूट थे कहाँ अब हद दर्जे का दिवालियापन है .आत्मा भी अपवित्र शरीर भी .संबंधों से तृप्ति नहीं अतृप्ति ही बढ़ती अब .सम्बन्ध भी नित नए अनेक बनते हैं .लेकिन सब हद के .आत्मा की ज्योति बुझने जैसी हो जाती है जैसे चाँद की रौशनी अमावस्या से ठीक पहले हो जाती है .चाँद के नाम पे एक लकीर भर रह जाती है .यही हाल अब विकारी आत्मा का हो जाता है .गोरे(पवित्र) से काली (अ -पवित्र )हो जाती है आत्मा . शरीर भी .बाप आके सारी खाद निकालते हैं .बच्चों को मार्ग बतलाते हैं अपना मददगार बना लेते हैं .आखिर बच्चे तो उस बेहद के बाप के ही हैं न .सिकी लधे और मीठे।बाप बच्चों को उनके दिव्यगुणों की याद दिलाते हैं श्री मत बतलाते हैं .आत्मा के एक बार फिर से सतो -प्रधान बनने का सिलसिला शुरू हो जाता है .समय का पहिया घूमता ही रहता है बच्चे गाते हैं :
हम तो थे अँधेरे में दिया प्रकाश आपने ,
पिंजरे के पंछी को ,दिया आकाश आपने ,
आपकी शुभ आशिष ने हमको मालामाल कर दिया .
ओ !बाबा आपने कमाल कर दिया .
हम तो थे उलझन में ,मार्ग बताया आपने ,
हम तो थे गफलत में आके ,जगाया आपने ,
आपकी मीठी दृष्टि ने हमको निहाल कर दिया .
हमारा काया कल्प किया ,अनोखे राज योग ने ,
हमें बिलकुल ही बदल दिया ,सत्य के नित्य प्रयोग ने ,
आपकी शुभ शिक्षा ने ,हमको बे -मिसाल कर दिया .
ओ ! बाबा ! आपने कमाल कर दिया .
हमारा सारा जीवन आपने निहाल कर दिया ,
ओ बाबा ,आपने कमाल कर दिया ,
हमारे बाबा ,ओ मीठे बाबा आपने ,
कमाल कर दिया .
ॐ शान्ति
आध्यात्मिक शब्दावली (सात )
(३ ६ )सकाश :परमपिता परमात्मा से आत्माओं को जो (ज्ञान के )प्रकाश की धारा और आध्यात्मिक शक्ति सीधे सीधे प्राप्त होती है और जिसका इस्तेमाल आत्माएं आगे विश्व कल्याण के लिए करती हैं सकाश कहलाता है .
sakash: the current of spiritual light and might received directly from the Supreme Soul to Souls and transmitted by souls to the world .
(३ ७ )संन्यास धर्म :आदिगुरु शंकराचार्य (धर्मात्मा )द्वारा प्रतिपादित संन्यास धर्म .इस धर्म में दीक्षित लोगों को सन्यासी कहा जाता है .मुक्ति की चाह में सन्यासी जगत का त्याग कर तप के लिए एकांत वास में चले जाते हैं इसीलिए इन्हें तपस्वी भी कहा जाता है .
Sanyas Religion :founded in India by the prophet soul Shankaracharya .Those who belong to this religion are known as Sannyasis .Sannyasis are hermits who choose a life of renunciation and solitude by isolating themselves from the world with the aim of attaining liberation .
(३८ )संस्कार :प्रत्येक आत्मा जब गर्भ में प्रवेश करती है तब अपने साथ कुछ संस्कार लिए आती है .पूर्व जन्मों की छाप होतें हैं ये संस्कार .हरेक आत्मा का एक विशेष स्वभाव संस्कार रुझान प्रवृत्ति रहती है जिसके ऊपर वर्तमान जन्म के कर्मों की पर्त भी चढ़ती जाती है .आत्मा की मनन शक्ति मन है .विचार और मनन से ही प्रेरित होतें हैं कर्म जब एक कर्म बार बार दोहराया जाता तब वह व्यक्ति का स्वभाव बन जाता है .सद्विचार से प्रेरित हो व्यक्ति अच्छे कर्म करता है निम्न कोटि के निकृष्ट विचार व्यक्ति से विकर्म करवाते हैं क़र्मो के अनुसार ही वह सज्जन या दुष्ट कहलाता है .सद्कर्मी साधु या महात्मा कहलाता है दुष्कर्मी पापात्मा .परोपकारी नेक कर्मी महात्मा कहाता है .विश्व आत्माओं का कल्याण करने वाला पतित से पावन बनाने वाला परम आत्मा कहाता है .परमात्मा एक है आत्मा अनेक हैं आत्माओं के अपने अपने स्वभाव संस्कार हैं .
मन ,बुद्धि ,अहंकार (संस्कार )आत्मा की तीन जन्म जात शक्तियां हैं .
sanskaras :An inborn power or faculty within the soul that determines the soul's individual and unique identity in terms of character ,personality traits ,talents ,habits ,and propensities .
(३ ९ )सतगुरु :सच्चा पथ प्रदर्शक .सतगुरु (शिक्षक और पिता)एक परमात्मा को ही कहा जाता है जो आत्माओं को श्री मत पे चलाकर पवित्र बना आत्मलोक (आत्माओं के सच्चे सच्चे धाम ,मूल वतन ,परमधाम ,सोल वर्ल्ड )में ले जाता है हरेक कल्प के अंत में .
satguru :literally ,the true guide .Satguru is the title given to God as the only one who guide souls back home to the incorporeal world.
(४ ० )सतो :सत्य ,पवित्रता और नेकी को सतो गुण कहा गया है .जब व्यक्ति या सृष्टि में ये गुण अधिकतम होते हैं तब वह सतोप्रधान कहलाते हैं .सतो का मतलब है आंशिक रूप से पवित्र .सतोप्रधान मतलब पूर्ण पवित्रता का गुण .एक दम से खरा सोलह आने सच (खरा ).तमोप्रधान का मतलब पूर्ण अपवित्रता(मिलावट और खोट ही खोट ) .सतो गुण दोनों धुर सिरों (गुणों ,अंश या डिग्रीज़ )के बीच की स्थिति है .
sato :The properties of truth ,purity ,and goodness are present ,but not in their full state .On a continuum between satopradhan (purity in the extreme )and tamopradhan (impurity in the extreme ),sato represents a place of partial purity .
(४ २ )सतोप्रधान :सतयुग में यह सृष्टि ,ये कायनात अपनी शुद्धतम (पवित्रतम )अवस्था में होती है .सोलह आने खरी ,२ ४ कैरट गोल्ड सी खरी रहती है सतयुगी मनुष्यों की आत्मा स्वभाव संस्कारमें .जो सच खंड है सतयुग है .नेकी ही नेकी है जहां बदी का नाम निशाँ नहीं .उसे ही कहा जाएगा सतोप्रधान .स्वर्ग (सतयुग )को कहा जाता है सतोप्रधान .त्रेताको स्वर्ग नहीं कहेंगे न ही सतोप्रधान यहाँ तो शुद्धता ८ ० फीसद ही रह जाती है .सोने में चांदी की खोट आने लगती है आत्मा की कला सम्पन्नता दो अंश कम हो जाती है .
satopradhan :the highest state of human existence and of the natural world ,when the total truth ,purity ,and goodness prevail .
(४ ३ )सतयुग :जहां सच का ही बस बोलबाला रहता है .आत्मा अपने मूल स्वभाव संस्कार में रहती है सोलह आने खरी सोलह कला संपन्न .सच खंड है सतयुग .कल्प की शुरुआत का यह पहला चरण होता है .एक दम से बे -दाग होती है सृष्टि और उसके तत्वइस समय .इसे ही स्वर्ण युग भी कहा जाता है आदमी यहाँ सोने सा खरा है मन बुद्धि स्वभाव संस्कार में .बुद्धि का पात्र एक दम से निर्मल रहता है सतोप्रधान .इसे स्वर्ग ,बहिश्त और सुख शान्ति आनंद की दुनिया कहा गया है .इसकी अवधि १, २ ५ ० वर्ष की रहती है .आत्मा यहाँ पूरी उम्र जीकर अपने वस्त्र बदलती है नया जन्म लेती है वह कहाँ जा रही है उसे इल्म रहता है .कृष्ण इसी दुनिया का पहला राजकुमार है .आठ जन्म हैं कृष्ण के यहाँ जन्माष्टमी कृष्ण के आठ जन्मों का ही यादगार है .
Satyug :the age of truth and pristine virtue ,It is the first of four ages
,the Golden Age .It is also called the land of happiness ,heaven ,and paradise .Its duration is 1 ,2 5 0 years .The maximum number of births souls can take in Satyug is 8 .
( ४ ४ )सात्विक :इस शब्द का विशेष सम्बन्ध हमारे खान पान से है .परमात्मा की याद में पकाया गया कुदरती तत्वों से उगाया गया खाद्य पदार्थ जो पाचन का सहज हिस्सा बन खून तैयार करता है चेतना को .चित्त को पुष्टकर ऊर्ध्व गामी बनाता है सात्विक भोजन कहलाता है .कहा गया है जैसा अन्न वैसा मन .सात्विक भोजन हमारे मन को भी निर्मल रखता है तन को भी सुवासित बनाए रहता है .परमात्मा की याद की भासना आ जाती है सात्विक भोजन में .याद में ,योगयुक्त रहकर तैयार किया जाता है यह भोजन .आत्मा की परमात्मा से प्रीती ,उसकी याद ही योग है .परमात्मा की भंडारी (प्रसाद )मान कर ही ग्रहण किया जाता है यह भोजन .
sattvic :purest matter in the form of food that the human being digest to support the highest and purest form of consciousness.A sattvic diet consists of totally vegetarian food cooked in God's remebrance.Its glycemic index is low and its a heart healthy food .
(४ ५ )शिव :जो इस सृष्टि रुपी कल्प वृक्ष ह्यूमेन ट्री का बीज रूप है ,जिसमें सृष्टि का आदि मध्य और अंत समाहित है जो सदैव ही दयालु(करूणानिधि )सर्वआत्माओं के लिए कल्याणकारी है .सदैव ही चैतन्य स्वरूप है .ज्योति बिंदु (ज्योतिर्लिन्गम ,ज्योति जिसकी पहचान है )लेकिन गुणों में सिन्धु है वही शिव है सुन्दर है मनोहर है .
Shiva:Shiva means the universally Benevolent One ,the Supreme Benefactor ,the infinitesimal Point the Seed of the human tree .Qualities of Shiva as the Seed are auspiciousness and perfection .
(३ १ )सम्पूर्ण स्वरूप
जब आत्मा में पूर्ण पवित्रता तमाम दिव्य गुण आजाते हैं बाप की याद से ,योग बल से ज़ब वह श्री मत पे चलके हर मुश्किल को साध लेती है हर काम बिना श्रम के सहज रूप हो जाता है उस स्थिति को कहा जाता सम्पूर्ण होना .
perfection :prosperous ,thriving ,accomplished ,abundantly endowed with .The soul in its state of perfection is filled with all spiritual powers and divine virtues and live by the highest code of conduct.
(३ २ )राजा :आत्मा को ही कहा जाता है राजा जब वहअपने शरीर की जिसमें बैठ वह अभिव्यक्त होती है , तमाम कर्मेन्द्रियों ,ज्ञानेन्द्रियों मन बुद्धि अहंकार को अपनी समर्पित प्रजा बना लेती है .तब आत्मा संप्रभु बन जाती है .राजा किसी और से आदेश नहीं लेता है .उसका आदेश परम आदेश होता है .
raja:sovereign ,king ,master ,ruler .The best and highest of its kind .
(३ ३ )राज योग :बाप की सहज याद आत्मा का परमात्मा के साथ स्वत :स्फूर्त सहज संवाद जब हमारे संकल्प एक स्विच बन जाएँ .स्विच दबाते ही हमारा बाप से कनेक्शन हो जाए .मन और चित्त एकाग्र हो जाएं एक बाप के साथ ही रूह रिहान में तब वह स्थिति ही राज योग की स्थिति है .ध्यान की यह एक शैली है पद्धति है .राजयोग ईश्वरीय पढ़ाई पढ़के उसे टेक्नोलाजी ,एक मेथड एक युक्ति में बदलना है .ताकि ईश्वर से योग युक्त होके हम अपना स्वभाव संस्कार बदल सकें .
अपने आपको शांत स्वरूप आत्मा समझ बाप के ध्यान में जो शान्ति का सागर है लाना सहज राज योग है .इसके लिए न किसी विशेष मुद्रा की ज़रुरत है न मेहनत की बस एक पवित्रता चाहिए .शुद्धि चाहिए मन और संकल्प की .
Raja Yoga :A practice of meditation undertaken to bring the soul into union with the Supreme Soul. Raj Yoga is also the study and practice of spiritual knowledge that results in transformation of human awareness in relation to the self ,God ,and the world.
(३ ३ )राज योगी :जो अपनी तमाम कर्मेन्द्रियों ,ज्ञानेन्द्रियों ,मन ,बुद्धि अहंकार को जीत उनका स्वामी बन जाता है .जो अपने मन, कर्म और वचन में समस्वरता हासिल कर लेता है सब काम उसकी याद में रहते हुए करता है .सहज रूप वही सच्चा सच्चा योगी है .राज योगी है कर्म योगी है .
Raja Yogi :one , who through the spiritual link with the Supreme Being ,aspires to the highest form of mastery over the physical senses and over thoughts ,words and actions.
(३ ४ )रजोप्रधान :आत्मा की वह अवस्था जब वह आत्मा भिमान (स्वाभिमान ,स्वमान ,खुद को आत्मा समझते हुए कर्म करना )और देह -अहंकार के बीच झूलने लगती है ऽअभी सेल्फ रेस्पेक्ट अभी सेल्फ एरोगेंस .इस अवस्था में पवित्रता में अपवित्रता आ मिलती है ,व्यवस्था में अ -व्यवस्था ,सच में झूठ मिला हुआ आने लगता है .
परिशुद्धता और बेहद की मिलावट अपवित्रता के बीच की स्थिति है यह .जब पुरुष (आत्मा )और प्रकृति देह (शरीर )के बीच द्वंद्व फूटता है .
rajopradhan :the state of the human soul at the time of duality ,the state between soul consciousness (self respect ),and body consciousness (self arrogance )when purity is mixed with impurity ,order with disorder , and truth with falsehood .Rajopradhan is the middling stage on a continuum satopradhan(purity in the extreme )and tamopradhan (impurity in the extreme ).
(३५ )रावण:महाबलशाली है पांच विकारों काम क्रोध लोभ मोह अहंकार का मानवीय चोला .आत्मा को कब्ज़े में यही सर्व व्यापी विकार रुपी माया रावण किये रहता है आत्मा के बुनियादी गुण धर्म मूल स्वभाव के ऊपर यही माया रावण कुंडली मारके बैठ जाता है .आत्मा की रजो और तमोप्रधान अवस्था का प्रगटीकरण है रावण का वजूद मुखरित होना .
ravan :the five vices -lust ,anger ,attachment ,ego and greed .They are the base forces that dominate over the original virtues and powers in the soul during rajopradhan and tamopradhan stages.
आध्यात्मिक शब्दावली भाग छ :
(ज़ारी )
4 टिप्पणियां:
आत्माओं का आत्मालाप...एक रोचक विश्व..
कलियुग के आते आते सच का प्राय :लोप हो जाता है .भ्रष्ट होना पद प्रतिष्ठा का प्रतीक बनने लगता है .तीर्थों का तीर्थ तिहाड़ बन जाता है .प्राकृतिक तत्व छीज कर कराहने लगते हैं .प्राकृतिक आपदाएं कुदरत के अपने कायदे कानूनों के अनुरूप बारहा आती रहतीं हैं .प्राकृतिक तत्व ही नहीं आत्मा भी तमो प्रधान हो जाती है जंग लगे लोहे सी .विकार और अव्यवस्था पृथ्वी को अपने कब्ज़े में ले लेते हैं
अच्छा, तो यह सब होने ही वाला था..?
sir ji ,behatareen post,sundat vishleshan network problem
बहुत ही आत्मक्लाणक वार्ता. आभार.
रामराम.
एक टिप्पणी भेजें