एक वक्त था कोई बहुत पुरानी नहीं हमारे दौर की ही बात है परिवार का
एक ही व्यक्ति कमाता था ,पूरा
परिवार खाता था .मजे से गुजर बसर हो जाती थी एक की कमाई से ही
.खाना मेहनत से अर्जित होता था .अब सब कमाते हैं लेकिन सब खा नहीं
पाते .इसलिए अब फ़ूड बिल लाना पड़ता है .खाना फिर भी गरीब की थाली
तक क्या हाथ तक भी नहीं पहुंचेगा .हथेली सरकार के दल्ले खा जायेंगें
सब्सिडी .
गरीब तब स्वाभिमान से रहता था ,क्योंकि सरकारें सु -स्थिर थीं .इस तरह
नहीं था सुबह उठो कुछ और हो जाएगा .अब अगर बीमार आदमी नींद का
झटका ले ले तो उठने के बाद क्या कहेगा ?
ये आधी रात का चक्कर क्या है आधी रात के बाद पेट्रोल के दाम क्यों बढाए
जाते हैं .
जब भी सरकार सांसत में आती है लोग भूखे मरते हैं ,ये राजनीति के धंधे
बाज़ सेकुलरिज्म का बुर्का ओढ़ लेते हैं .फिर किसी न किसी बिल में घुस
जाते हैं .ये सेकुलरिज्म का बिल भी बड़ा अजीब है .
अब ये क़ानून बना रहे हैं -खाना हरेक की थाली तक पहुंचना चाहिए .देश
को आज़ाद हुए ६ ६ साल हो गए .अब जाके इन्हें इल्म हुआ -खाना हरेक को
मयस्सर होना चाहिए .ज़िंदा रहने के लिए खाना ज़रूरी है .
याद कीजिये जब खाद्यान्न सड़ रहा था क्योंकि सरकार के पास उसे रखने
के लिए गोदाम नहीं थे तब सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था .पेशतर इसके कि
अनाज रखरखाव के अभाव में सड़े इसे गरीबों में बाँट दिया जाए .सरकार ने
कहा इसमें संविधानिक दिक्कत है .जानते हैं उस अनाज का क्या हुआ था
.४ ५ पैसे किलोग्राम की दर से शराब माफिया को दे दिया गया सड़ा हुआ
अनाज शराब बनाने के लिए .लेकिन सिर्फ सड़ा हुआ ही नहीं दिया गया था .
सरकार अब खाद्य सुरक्षा बिल (क़ानून) लागू करने जा रही है .बिल शब्द
का एक
अर्थ अब क़ानून भी हो गया है .बिल वह भी होता है जिसमें मौक़ा ए
वारदात सब सेकुलर
एक साथ घुस जाते हैं .
भाईसाहब अब शब्दों का व्याकरण सम्मत अर्थ तो रह नहीं गया है सरकार
के प्रवक्ता पिल्ला शब्द की नै नै अर्थ छटाएँ बतला रहें हैं .कोई इसका अर्थ
बुर्का तो कोई सेकुलर बतला रहा है .
बुर्के का मतलब भी अब सिर्फ पर्दा या परदे दारी नहीं रह गया है .सेकुलर हो
गया है .बड़ा व्यापक शब्द है सेकुलर ब्रोड स्पेकट्रम एंटीबायटिक की तरह
.लालू के लिए यह शब्द रेल का डिब्बा है वह सेकुलर कम्पार्टमेंट की बात
करते हैं २ ० १ ४ के चुनावी दंगल के लिए .वैसे लालटेन वालों का इस
समय कोई नामलेवा नहीं है .नीतीश बड़े सेकुलर बनके उभरे हैं .जिन्हें हम
माननीय कह रहें हैं .सबके सब राजनीतिक धंधे बाज़ अप -मानननीय हो
गएँ हैं .इनकी सुबह सुबह उठकर हल्कावार मज़म्मत की जाए .
दमदमे में दम नहीं .अब खैर मांगे जान की ,
ए जफर ठंडी हुई ये तेग हिन्दुस्तान की .
कभी अंग्रेजों ने यह बात बादशाह बहादुरशाह जफर से कही थी -
उन्होंने पलट वार किया था -
गाजियों में बू रहेगी ,जब तलक ईमान की .
तख्ते लन्दन तक चलेगी तेग हिन्दुस्तान की .
तब की बात और थी .अब न गाजी हैं न जफर .अब सारे के सारे सेकुलर हैं .
सारा इंतजामिया सेकुलर हो गया है .खुदा खैर करे .
अब तो सीमा पे शत्रु के हेलिकोप्टर उड़ते रहें ये कहतें हैं :देश सीमाओं से
थोड़ी चलता है .देश वोट से चलता है .सरकार सेकुलरिज्म को बचाने में
लगी है वोट तो यह मक्कारी से ले ही लेगी .इसीलिए बिल ला रही है .
ॐ शान्ति .
एक ही व्यक्ति कमाता था ,पूरा
परिवार खाता था .मजे से गुजर बसर हो जाती थी एक की कमाई से ही
.खाना मेहनत से अर्जित होता था .अब सब कमाते हैं लेकिन सब खा नहीं
पाते .इसलिए अब फ़ूड बिल लाना पड़ता है .खाना फिर भी गरीब की थाली
तक क्या हाथ तक भी नहीं पहुंचेगा .हथेली सरकार के दल्ले खा जायेंगें
सब्सिडी .
गरीब तब स्वाभिमान से रहता था ,क्योंकि सरकारें सु -स्थिर थीं .इस तरह
नहीं था सुबह उठो कुछ और हो जाएगा .अब अगर बीमार आदमी नींद का
झटका ले ले तो उठने के बाद क्या कहेगा ?
ये आधी रात का चक्कर क्या है आधी रात के बाद पेट्रोल के दाम क्यों बढाए
जाते हैं .
जब भी सरकार सांसत में आती है लोग भूखे मरते हैं ,ये राजनीति के धंधे
बाज़ सेकुलरिज्म का बुर्का ओढ़ लेते हैं .फिर किसी न किसी बिल में घुस
जाते हैं .ये सेकुलरिज्म का बिल भी बड़ा अजीब है .
अब ये क़ानून बना रहे हैं -खाना हरेक की थाली तक पहुंचना चाहिए .देश
को आज़ाद हुए ६ ६ साल हो गए .अब जाके इन्हें इल्म हुआ -खाना हरेक को
मयस्सर होना चाहिए .ज़िंदा रहने के लिए खाना ज़रूरी है .
याद कीजिये जब खाद्यान्न सड़ रहा था क्योंकि सरकार के पास उसे रखने
के लिए गोदाम नहीं थे तब सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था .पेशतर इसके कि
अनाज रखरखाव के अभाव में सड़े इसे गरीबों में बाँट दिया जाए .सरकार ने
कहा इसमें संविधानिक दिक्कत है .जानते हैं उस अनाज का क्या हुआ था
.४ ५ पैसे किलोग्राम की दर से शराब माफिया को दे दिया गया सड़ा हुआ
अनाज शराब बनाने के लिए .लेकिन सिर्फ सड़ा हुआ ही नहीं दिया गया था .
सरकार अब खाद्य सुरक्षा बिल (क़ानून) लागू करने जा रही है .बिल शब्द
का एक
अर्थ अब क़ानून भी हो गया है .बिल वह भी होता है जिसमें मौक़ा ए
वारदात सब सेकुलर
एक साथ घुस जाते हैं .
भाईसाहब अब शब्दों का व्याकरण सम्मत अर्थ तो रह नहीं गया है सरकार
के प्रवक्ता पिल्ला शब्द की नै नै अर्थ छटाएँ बतला रहें हैं .कोई इसका अर्थ
बुर्का तो कोई सेकुलर बतला रहा है .
बुर्के का मतलब भी अब सिर्फ पर्दा या परदे दारी नहीं रह गया है .सेकुलर हो
गया है .बड़ा व्यापक शब्द है सेकुलर ब्रोड स्पेकट्रम एंटीबायटिक की तरह
.लालू के लिए यह शब्द रेल का डिब्बा है वह सेकुलर कम्पार्टमेंट की बात
करते हैं २ ० १ ४ के चुनावी दंगल के लिए .वैसे लालटेन वालों का इस
समय कोई नामलेवा नहीं है .नीतीश बड़े सेकुलर बनके उभरे हैं .जिन्हें हम
माननीय कह रहें हैं .सबके सब राजनीतिक धंधे बाज़ अप -मानननीय हो
गएँ हैं .इनकी सुबह सुबह उठकर हल्कावार मज़म्मत की जाए .
दमदमे में दम नहीं .अब खैर मांगे जान की ,
ए जफर ठंडी हुई ये तेग हिन्दुस्तान की .
कभी अंग्रेजों ने यह बात बादशाह बहादुरशाह जफर से कही थी -
उन्होंने पलट वार किया था -
गाजियों में बू रहेगी ,जब तलक ईमान की .
तख्ते लन्दन तक चलेगी तेग हिन्दुस्तान की .
तब की बात और थी .अब न गाजी हैं न जफर .अब सारे के सारे सेकुलर हैं .
सारा इंतजामिया सेकुलर हो गया है .खुदा खैर करे .
अब तो सीमा पे शत्रु के हेलिकोप्टर उड़ते रहें ये कहतें हैं :देश सीमाओं से
थोड़ी चलता है .देश वोट से चलता है .सरकार सेकुलरिज्म को बचाने में
लगी है वोट तो यह मक्कारी से ले ही लेगी .इसीलिए बिल ला रही है .
ॐ शान्ति .
5 टिप्पणियां:
क्या झनझनाटा हुआ करारा दिया है....चारों तरफ से निचोड़ के रख दिया। बढ़िया तब हो जब २०१४ में ये बिलधारी ऐसे ही निचुड़ं जाएं।
बहुत ही सटीक, इनके हिसाब से तो देश वोट से ही चलता है. जनता जाये भाड में.
रामराम.
अपने शब्दों से क्या खूब ऑपरेशन किया है आपने ...मान गए आपकी बहुआयामी कलम को....
मेरा नया ब्लॉग पता अब ये है ....आप आइये...
rahulkmukul.blogspot.com
पहले भी आपकी कलम को दिल से मानता था ...
हकीकत को अच्छा कटाक्षपूर्ण शब्दों में व्यक्त किया है !!
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