रविवार, 21 जुलाई 2013

भगवान उवाच :मैं नहीं करता हूँ यह सब

भगवान उवाच :मैं नहीं करता हूँ यह सब 

लोग मेरे बारे में कहतें हैं -भगवान सृष्टि के कण कण में है .कहते रहतें हैं मैं कुत्ते बिल्लियों में भी हूँ कच्छ (कच्छप )और मच्छ (मगरमच्छ )में भी .भक्ति मार्गी मेरे २ ४ अवतार बतलाते हैं .(मत्स्य अवतार ,वराह अवतार ,.....).

कई प्राणिप्रजातियों में घसीट के ले गए हैं मुझे भगत लोग .धूल -धन्काड़ ,कीट पतंग ,यहाँ तक के बिष्टा में भी फिर तो मैं ही हूँ .भगवान पूछते हैं :क्या यह मेरा जीवन वृत्त है ?अपने आप को भी भगवान बतलाते हैं .कंकड़ पत्थर में भी भगवान बतलाते हैं .ईश्वर को पूरी तरह खो चुके हैं ये लोग .घोर अन्धकार की स्थिति है यह .इसीलिए कलियुग को रौरव नर्क कहा गया है .

 बकौल उनके हरेक चीज़ फिर तो भगवान है .सबके सब परम पिता हैं .जबकि आत्मा तो घड़ी घड़ी जन्म ले तमोप्रधान हो जाती है .मेरा तो कोई जन्म होता ही नहीं है .मैं तो हूँ ही अजन्मा . 

लोगों का ऐसा विशवास है भगवान सब कुछ कर सकता है .ऐसा कुछ भी नहीं है जो मैं (भगवान )न कर सकूँ .मेरे बारे में कह देते हैं :मैं मृत व्यक्ति को भी जिला सकता हूँ .

भगवान कहते हैं :मीठे बच्चे मैं न तो रोगी को रोगमुक्त कर सकता हूँ न ही उसके संभावित शल्य कर्म को मुल्तवी कर सकता हूँ .सभी आत्माओं को कर्म फल तो भोगना ही पड़ता है .बेशक किए का दंड भोगती हैं आत्माएं लेकिन सजा देने वाला मैं नहीं हूँ .

फिर भी मनुष्य आत्माएं मुझ पर ही दोष मढ़ती हैं .एक तरफ वह मुझे ही सुख और दुःख देने वाला बतलाते हैं दूसरी तरफ मेरा ही आवाहन करते हैं -मैं आकर उन्हें सुख शान्ति प्रदान करूँ .

बच्चे मैं तो हूँ दुःख हरता ,सुख करता ,मैं किसी का दिल भला कैसे दुखा सकता हूँ .ये तमाम हिंसा और अनाचार दुनिया में मेरी वजह से नहीं हैं .

प्राकृत आपदाएं भी यहाँ अनेक होतीं हैं .इन्हें ईश्वरीय आपदाएं नहीं कहा गया है .सुनामी ,सागरीय ज्वार से होने वाली तबाही के लिए मुझे उत्तरदाई कैसे ठहराया जा सकता है .इस समय समस्त प्राकृतिक तत्व ही कुपित हैं .बेहद के प्रदूषण से तमो प्रधान बन गए हैं .लोग कहते हैं मेरी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता .क्या परमात्मा पत्तों पर बैठ उन्हें कभी हिलाएगा ?

प्रकृति के अपने कायदे क़ानून है .अपना विधान है .कुछ कहते हैं मैं अंतरयामी हूँ सबके दिल की जान लेता हूँ .लोगों के विचार पढ़ लेता हूँ .मैं किसी के दिल की बात नहीं जानता हूँ .और अनेक होंगें जो थाट रीडिंग का करिश्मा करने के लिए पढ़ाई करते हैं .मैं यह सब नहीं करता हूँ .

मैं तो तुम्हें पढ़ाता  हूँ इस ईश्वरीय मदरसे में .सबको निरपेक्ष भाव लिए देखता हूँ .तुम यहाँ ईश्वरीय पढ़ाई पढ़ने  आते हो .रूह रिहान करते वक्त तुम खुद ही अपने दिल की कह देते हो .

ॐ शान्ति 




24 Incarnations of Lord Vishnu

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6 टिप्‍पणियां:

shalini rastogi ने कहा…

namaskaar dr. sahab
आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल रविवार, दिनांक 21/07/13 को ब्लॉग प्रसारण पर भी http://blogprasaran.blogspot.in/ कृपया पधारें । औरों को भी पढ़ें

Amrita Tanmay ने कहा…

अति सुन्दर है ये ईश्वरीय पढ़ाई..

Rahul... ने कहा…

सब कुछ बेहतरीन तरीके से ..... आपसे ऐसे ही पोस्ट की दरकार रहती है ......

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

एक क्रम है, एक भ्रम है,
क्या पता, हम हैं कहां?
तरल सी पायी सरलता,
नियति बहते हम यहाँ।
प्रकृति कहती, मानते हैं,
परिधि अपनी जानते हैं,
लब्ध जितना, व्यक्त जितना
लुप्त उतना, त्यक्त उतना,
इसी क्रम में, इसी भ्रम में,
दृष्टि नभ, कुछ हो वहाँ।

Unknown ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

परम शांति दायक आलेख, आभार.

रामारम.