ॐ शान्ति
Are artificial sweeteners used in soft drinks and foods safe ?Will
they make us fat ?How much is too much ?
एक नवीन अध्ययन के अनुसार कृत्रिम मिठास से तैयार किये गए पेय
पदार्थ भी उतने ही हानिकारक हैं जितने की चीनी से तैयार किये गए पेय
होते हैं .
सवाल उठता है क्या इन्हें स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयुक्त (निरापद )समझा
जाए और क्या ये पेय भी मोटापा बढ़ाते हैं .इनकी कितनी मात्रा को
रोजमर्रा के पेयों में
निरापद समझा जा सकता है ?
विज्ञान के पास इन सारे सवालों के दो टूक ज़वाब नहीं हैं .आइये देखते हैं
कुछ शोधकर्मियों का इस बाबत क्या कहना मानना है .
भले आपके पास सबसे आसान उपाय है प्यास लगे तो पानी पीयें .इन पेयों
के स्थान पर ताज़े फलों से निकाला गया जूस पीयें .पड़े ही क्यों इस पचड़े
में .
लेकिन यदि इनका इस्तेमाल आपके लिए अपरिहार्य ही हो चला है तब
आपके लिए कुछ सवालों के ज़वाब हाज़िर हैं .
पहला सवाल तो यही है ये हैं क्या बला ?क्या है इनकी
रासायनिक बुनावट ?
अमरीकी खाद्य एवं दवा संस्था फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन
द्वारा मंजूर शुदा कृत्रिम मिठास वाले कुछ पदार्थों की रासायनिक बुनावट
तथा इनके रासायनिक और व्यावसायिक नाम कुछ इस प्रकार है :
(१)Sucralose (Splenda)
(2)Acesulfame potassium(Suneet ,Sweet one )
(3)Aspartame(Equal Nutrasweet)
(4)Neotame and Saccharin(Sugar Twin ,Sweet'N Low)
Aspartame:डाईट सोडाज़ में अमूमन इस्तेमाल किये जाने वाला यह
कृत्रिम मीठा पदार्थ दो अमीनों अम्लों यथा एस्पार्टिक अम्ल (Aspartic
acid )फिनाइलएलानाइन (phenylalanine)का संयोजन है .(स्रोत
:अमरीकी कैंसर सोसायटी ).
Splenda को तैयार करने के लिए शुगर के रासायनिक रूप(अणु ) से
हाइड्रोजन और ऑक्सीजन परमाणुओं को हटाकर क्लोरीन परमाणुओं को
समायोजित कर दिया जाता है .
माहिरों के अनुसार सारा मामला इनके अलग अलग स्वाद होने से
ताल्लुक रखता है .किसी को कोई स्वाद माफिक आता है किसी को कोई
और .
उपभोक्ता अमूमन कुदरती चीज़ों यथा फलों के अर्क ,मकरंद (नेक्टर )बोले
तो शहद बनाने के लिए मधुमख्खियों द्वारा फूलों से एकत्रित मधुर द्रव
,शहद ,मलैसिज (molasses),मैपिल सिरप (Maple syrup )आदि को
निरापद मानते हैं अक्सर इनको भी प्रोसेस किया जाता है ,सुरक्षित रखने
के लिए इन पर भी रसायनों की आज़माइश की जाती है ,इनका भी
परिष्करण किया जाता है (स्रोत :Mayo Clinic ).
परिष्कृत टेबिल शुगर और इन मीठों में मौजूद खनिज और विटामिनों में
कोई
फर्क नहीं पाया गया है .इन दिनों लोकप्रियता की हदों को छू रहा Stevia
भी इन रासायनिक प्रक्रियाओं से नहीं बचता है .जिसे अक्सर कुदरती
कहके बेचा और विज्ञापित किया जा रहा है .
फिर फर्क कहाँ रह जाता है ?
असल बात है हमारा शरीर इन अलग अलग मिज़ाज़ के
कृत्रिम मीठों से कैसे पेश आता है ?कैसे इनको प्रोसेस
करता है .
Essentially, the receptors your body uses to detect
sweetness are "really awful," according to Eric Walters,
author of "The Sweetener Book." In other words, the body's
sweet-taste receptor is not very sensitive. It really only
detects sugar in large quantities.
But "artificial sweeteners randomly fit the receptor better and
it triggers the receptor with far smaller quantities of the
material," Walters said. That's why if you were to taste a
packet of sugar and a packet of Sweet'N Low, the Sweet'N
Low would taste sweeter.
"In fact, in the Sweet'N Low packet there only needs to be a
tiny bit of the actual sweet, Sweet'N Low material. It's that
sweet -- the rest of it is filler."
क्या ये कृत्रिम मीठे कैंसर की वजह बनते हैं ?
नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट(NCI) के मुताबिक़ ऐसे कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं
मिले हैं .
कुछ बहुत पहले किये गए अध्ययनों में जिनमें चूहों को इन रसायनों के
बेहद की ज्यादा मात्रा(खुराकें ,doses) दी गई थी एक अंतर सम्बन्ध देखा
ज़रूर
गया था लेकिन मनुष्यों से इस अंतर सम्बन्ध का कुछ लेना देना नहीं है
.मनुष्यों पर ऐसी कोई आजमाइशें इतनी बड़ी खुराकों की कभी भी नहीं की
गईं हैं .मनुष्य इतना सेवन इन मीठों का करता ही कहाँ है ?
For example, studies done in the 1970s linked saccharin to
bladder cancer in rats, prompting scientists to look into the
sweetener's effect on humans. They found the mechanism
that caused the cancer wasn't even possible in the human
body. Saccharin was removed from the United States' list of
carcinogens in 2000.
Carinogen कहते हैं कैंसर पैदा करने वाले तत्व बोले
तो कैंसरकारक को .
You may also remember the 1996 study that suggested
aspartame was linked to an increase in brain tumors
between 1975 and 1992. But a later NCI analysis concluded
the increase in brain cancers overall started several years
before the FDA's approval of aspartame.
क्या Aspartame को निरापद माना जाए ?
२ ० ० ५ में चूहों को एक अध्ययन में बेहद की ज्यादा खुराक (रोजाना २ ०
० ० डाईट सोडा के समतुल्य )देने पर इनमें रक्त कैंसर (lymphoma or
leukemia)का जोखिम बढ़ा
हुआ पाया गया .
क्या हम मनुष्यों में इस रसायन की हमारे द्वारा अमूमन ली गईं छोटी
खुराकें भी ऐसा ही जोखिम पैदा
कर सकतीं हैं ?
माहिरों के अनुसार इसका उत्तर नकारात्मक है .नहीं में है .
किसे बेहतर माना जाए टेबिल शुगर को या इन रसायनों
को ?
"That's where it gets complicated," Walters said. "Different
sweeteners have different advantages and disadvantages. If
you worry about the calories, then stay away from sugar. If
you are most concerned about taste quality, sugar generally
tastes best."
Some artificial sweeteners can have small side effects. If you
eat too much sorbitol, for instance -- a type of sweetener
called a "sugar alcohol" -- it can trigger gas and diarrhea.
This is because your body doesn't digest sorbitol as well,
Walters said.
केलोरी गिन गिन जग मुआ पतला भया न कोय
Artificial sweeteners contain no calories, so they may aid in
weight loss. Yet the new study suggests the lack of calories
could also have a counterintuitive effect on the body.
The Purdue University scientists believe the fake sugar in
diet sodas teases your body by pretending to give it real
food. But when your body doesn't get the things it expects, it
becomes confused on how to respond. On a physiological
level, they say, this means when diet soda drinkers consume
real sugar, the body doesn't release the hormone that
regulates blood sugar and blood pressure.
Sugar substitutes may make weight loss tougher
Basically, the healthiest people are those who eat a healthy
diet and have limited their intake of any type of sweetener,
Popkin said. But if you have a sweet tooth, that may be a
hard sell.
आखिर ऊपरी सीमा क्या मानी जाए इन कृत्रिम मिठासों की ?
The FDA recommends ingesting no more than 50 milligrams
of aspartame per kilogram of body weight every day. That
amounts to 22 cans of diet soda for a 175-pound man, and
15 cans for a 120-pound woman. If you're putting two
packets of artificial sugar into coffee, that would be about
116 cups of coffee for the man in this example, and 79 cups
for the woman.
"I really think that if you are consuming five or six cans a
day, you may have more problems from consuming too
much caffeine or acid than from the sweeteners," Walters
said.
No large, controlled studies have shown that there is a limit
to how much diet soda you can consume without harm if
you're keeping the rest of your diet in check, Popkin said. So
far, at least, human research has not shown that quantity of
artificial sweetener matters.
"It's not whether it's 2 or 6 or 10," Popkin said. "It's a
question of what else they do with their diet that counts."
अति सर्वत्र वर्ज्यते
थोड़ा थोड़ा कुछ भी खाओ पीयो . .कृत्रिम मीठे इसका अपवाद नहीं हैं .
Are artificial sweeteners used in soft drinks and foods safe ?Will
they make us fat ?How much is too much ?
एक नवीन अध्ययन के अनुसार कृत्रिम मिठास से तैयार किये गए पेय
पदार्थ भी उतने ही हानिकारक हैं जितने की चीनी से तैयार किये गए पेय
होते हैं .
सवाल उठता है क्या इन्हें स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयुक्त (निरापद )समझा
जाए और क्या ये पेय भी मोटापा बढ़ाते हैं .इनकी कितनी मात्रा को
रोजमर्रा के पेयों में
निरापद समझा जा सकता है ?
विज्ञान के पास इन सारे सवालों के दो टूक ज़वाब नहीं हैं .आइये देखते हैं
कुछ शोधकर्मियों का इस बाबत क्या कहना मानना है .
भले आपके पास सबसे आसान उपाय है प्यास लगे तो पानी पीयें .इन पेयों
के स्थान पर ताज़े फलों से निकाला गया जूस पीयें .पड़े ही क्यों इस पचड़े
में .
लेकिन यदि इनका इस्तेमाल आपके लिए अपरिहार्य ही हो चला है तब
आपके लिए कुछ सवालों के ज़वाब हाज़िर हैं .
पहला सवाल तो यही है ये हैं क्या बला ?क्या है इनकी
रासायनिक बुनावट ?
अमरीकी खाद्य एवं दवा संस्था फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन
द्वारा मंजूर शुदा कृत्रिम मिठास वाले कुछ पदार्थों की रासायनिक बुनावट
तथा इनके रासायनिक और व्यावसायिक नाम कुछ इस प्रकार है :
(१)Sucralose (Splenda)
(2)Acesulfame potassium(Suneet ,Sweet one )
(3)Aspartame(Equal Nutrasweet)
(4)Neotame and Saccharin(Sugar Twin ,Sweet'N Low)
Aspartame:डाईट सोडाज़ में अमूमन इस्तेमाल किये जाने वाला यह
कृत्रिम मीठा पदार्थ दो अमीनों अम्लों यथा एस्पार्टिक अम्ल (Aspartic
acid )फिनाइलएलानाइन (phenylalanine)का संयोजन है .(स्रोत
:अमरीकी कैंसर सोसायटी ).
Splenda को तैयार करने के लिए शुगर के रासायनिक रूप(अणु ) से
हाइड्रोजन और ऑक्सीजन परमाणुओं को हटाकर क्लोरीन परमाणुओं को
समायोजित कर दिया जाता है .
माहिरों के अनुसार सारा मामला इनके अलग अलग स्वाद होने से
ताल्लुक रखता है .किसी को कोई स्वाद माफिक आता है किसी को कोई
और .
उपभोक्ता अमूमन कुदरती चीज़ों यथा फलों के अर्क ,मकरंद (नेक्टर )बोले
तो शहद बनाने के लिए मधुमख्खियों द्वारा फूलों से एकत्रित मधुर द्रव
,शहद ,मलैसिज (molasses),मैपिल सिरप (Maple syrup )आदि को
निरापद मानते हैं अक्सर इनको भी प्रोसेस किया जाता है ,सुरक्षित रखने
के लिए इन पर भी रसायनों की आज़माइश की जाती है ,इनका भी
परिष्करण किया जाता है (स्रोत :Mayo Clinic ).
परिष्कृत टेबिल शुगर और इन मीठों में मौजूद खनिज और विटामिनों में
कोई
फर्क नहीं पाया गया है .इन दिनों लोकप्रियता की हदों को छू रहा Stevia
भी इन रासायनिक प्रक्रियाओं से नहीं बचता है .जिसे अक्सर कुदरती
कहके बेचा और विज्ञापित किया जा रहा है .
फिर फर्क कहाँ रह जाता है ?
असल बात है हमारा शरीर इन अलग अलग मिज़ाज़ के
कृत्रिम मीठों से कैसे पेश आता है ?कैसे इनको प्रोसेस
करता है .
Essentially, the receptors your body uses to detect
sweetness are "really awful," according to Eric Walters,
author of "The Sweetener Book." In other words, the body's
sweet-taste receptor is not very sensitive. It really only
detects sugar in large quantities.
But "artificial sweeteners randomly fit the receptor better and
it triggers the receptor with far smaller quantities of the
material," Walters said. That's why if you were to taste a
packet of sugar and a packet of Sweet'N Low, the Sweet'N
Low would taste sweeter.
"In fact, in the Sweet'N Low packet there only needs to be a
tiny bit of the actual sweet, Sweet'N Low material. It's that
sweet -- the rest of it is filler."
क्या ये कृत्रिम मीठे कैंसर की वजह बनते हैं ?
नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट(NCI) के मुताबिक़ ऐसे कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं
मिले हैं .
कुछ बहुत पहले किये गए अध्ययनों में जिनमें चूहों को इन रसायनों के
बेहद की ज्यादा मात्रा(खुराकें ,doses) दी गई थी एक अंतर सम्बन्ध देखा
ज़रूर
गया था लेकिन मनुष्यों से इस अंतर सम्बन्ध का कुछ लेना देना नहीं है
.मनुष्यों पर ऐसी कोई आजमाइशें इतनी बड़ी खुराकों की कभी भी नहीं की
गईं हैं .मनुष्य इतना सेवन इन मीठों का करता ही कहाँ है ?
For example, studies done in the 1970s linked saccharin to
bladder cancer in rats, prompting scientists to look into the
sweetener's effect on humans. They found the mechanism
that caused the cancer wasn't even possible in the human
body. Saccharin was removed from the United States' list of
carcinogens in 2000.
Carinogen कहते हैं कैंसर पैदा करने वाले तत्व बोले
तो कैंसरकारक को .
You may also remember the 1996 study that suggested
aspartame was linked to an increase in brain tumors
between 1975 and 1992. But a later NCI analysis concluded
the increase in brain cancers overall started several years
before the FDA's approval of aspartame.
क्या Aspartame को निरापद माना जाए ?
२ ० ० ५ में चूहों को एक अध्ययन में बेहद की ज्यादा खुराक (रोजाना २ ०
० ० डाईट सोडा के समतुल्य )देने पर इनमें रक्त कैंसर (lymphoma or
leukemia)का जोखिम बढ़ा
हुआ पाया गया .
क्या हम मनुष्यों में इस रसायन की हमारे द्वारा अमूमन ली गईं छोटी
खुराकें भी ऐसा ही जोखिम पैदा
कर सकतीं हैं ?
माहिरों के अनुसार इसका उत्तर नकारात्मक है .नहीं में है .
किसे बेहतर माना जाए टेबिल शुगर को या इन रसायनों
को ?
"That's where it gets complicated," Walters said. "Different
sweeteners have different advantages and disadvantages. If
you worry about the calories, then stay away from sugar. If
you are most concerned about taste quality, sugar generally
tastes best."
Some artificial sweeteners can have small side effects. If you
eat too much sorbitol, for instance -- a type of sweetener
called a "sugar alcohol" -- it can trigger gas and diarrhea.
This is because your body doesn't digest sorbitol as well,
Walters said.
केलोरी गिन गिन जग मुआ पतला भया न कोय
Artificial sweeteners contain no calories, so they may aid in
weight loss. Yet the new study suggests the lack of calories
could also have a counterintuitive effect on the body.
The Purdue University scientists believe the fake sugar in
diet sodas teases your body by pretending to give it real
food. But when your body doesn't get the things it expects, it
becomes confused on how to respond. On a physiological
level, they say, this means when diet soda drinkers consume
real sugar, the body doesn't release the hormone that
regulates blood sugar and blood pressure.
Sugar substitutes may make weight loss tougher
Basically, the healthiest people are those who eat a healthy
diet and have limited their intake of any type of sweetener,
Popkin said. But if you have a sweet tooth, that may be a
hard sell.
आखिर ऊपरी सीमा क्या मानी जाए इन कृत्रिम मिठासों की ?
The FDA recommends ingesting no more than 50 milligrams
of aspartame per kilogram of body weight every day. That
amounts to 22 cans of diet soda for a 175-pound man, and
15 cans for a 120-pound woman. If you're putting two
packets of artificial sugar into coffee, that would be about
116 cups of coffee for the man in this example, and 79 cups
for the woman.
"I really think that if you are consuming five or six cans a
day, you may have more problems from consuming too
much caffeine or acid than from the sweeteners," Walters
said.
No large, controlled studies have shown that there is a limit
to how much diet soda you can consume without harm if
you're keeping the rest of your diet in check, Popkin said. So
far, at least, human research has not shown that quantity of
artificial sweetener matters.
"It's not whether it's 2 or 6 or 10," Popkin said. "It's a
question of what else they do with their diet that counts."
अति सर्वत्र वर्ज्यते
थोड़ा थोड़ा कुछ भी खाओ पीयो . .कृत्रिम मीठे इसका अपवाद नहीं हैं .
11 टिप्पणियां:
अगर ध्यान से खोजें तो आपके लेखों में हर समस्या का निदान है बीरू भाई !
धन्यवाद !
बड़ी अच्छी जानकारी है ,अब तो सॉफ्ट ड्रिंक भी संभलकर पीना पड़ेगा
latest post सुख -दुःख
अच्छा स्पष्टीकरण-
सचेत करती प्रस्तुति-
आभार भाई जी-
विस्तार से जानकारी मिली ...... आजकल तो इनका बड़ा चलन है , मानों ये कई स्वास्थ्य समस्याओं का हल हों .....
हमने तो आजतक साफ़्ट या ड्रिंक किसी का भी स्वाद नही लिया, दूर ही हैं इनसे.
वैसे साफ़्ट ड्रिंक्स की वजह से आजकल के बच्चों के दांत तो बहुत जल्दी खराब हो रहे हैं.
रामराम.
जहाँ तक हो सके प्रकृति के निकट रहें और प्राकृतिक वस्तुओं का सेवन करें...
आपने एक ज्वलंत विषय पर बहुत बढ़िया और विस्तृत जानकारी पाठकों को देकर कृतार्थ किया है. प्राकृतिक उपादेय का कोई विकल्प नहीं है, आर्टिफीशियल स्वीटनर के दूरगामी दुशापरिणाम आने में अभी भी वक्त लगेगा. आपने चेताया है. धन्यवाद.
मतलब जो खाओ पियो ... अपने जोखिम पे खाओ ... अच्छी जानकारी दि है आपने ... राम राम जी ...
कारीगरी से तैयार मूलतत्वों के प्रतिस्थानी कभी स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद नहीं हो सकते। देखते नहीं हैं आप अमेरिका के बड़े-बड़े राष्ट्रीय नेता ५५-६० साल में ही झुर्रियों-मस्सों से लद जाते हैं, इनके लिए कहां गई अमेरिकन ड्रग एसोसिएशन्स द्वारा तैयार स्वास्थ्य-निरोग-जवां रहने के नुस्खे।
प्रकृति प्रदत्त मिठास ही सबसे अच्छी है, शेष में कुछ न कुछ कड़वाहट घुली है।
अच्छी जानकारी युक्त पोस्ट ....अति हर चीज़ की बुरी होती है ....
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