दशम ग्रन्थ क्यों ?
दशमग्रंथ प्रतिरक्षा विभाग का स्वरूप था तत्कालीन भारत का। खालसा उसकी फौज थी। यहां रणनीति युद्धनीति शस्त्रनीति ,शास्त्रनीति सब कुछ बखान की गई है। जोश की वाणी है श्री दशम गुरुग्रंथ साहब। यहां शस्त्र को भगवान् का दर्ज़ा प्राप्त है वही सबका प्रतिरक्षक है। प्रतिपालक है।
यहां "जाप साहब "पहली वाणी हैं ,अकाल उसतति दूसरी जिसमें परमात्मा की स्तुति है उसकी सिफत का गायन है उसके तमाम नामों का बखान किया गया है पहली वाणी जाप साहब में ।
यह वैसे ही जैसे विष्णुसहस्त्र नाम और इस्लाम के अंतर्गत अल्लाह के ९९ नामों का बखान है।
वाह! गुरु के ,परमात्मा के इसी गुणगायन यशोगान से पैदा होती है 'भगौती' (देवी भगवती ,आद्या शक्ति चंडी अनेक शक्ति रूपा दुर्गा )परमात्मा की एक शक्ति का ही नाम यहां 'भगौती' है यहां वही 'पंज ककार 'धारण कर खालसा बन जाती है।
बाबा आदम से बना है 'आदमी' और सब आदमियों का आदमियत का यहां एक ही धर्म है कोई वर्ण ,भेद रंग, भेद जाति,पंथ भेद नहीं है ।
मनु से मनुज और 'मान 'से बना है मानव मनुष्य। यहां किसी का अलग से कोई अहंकार हउमै या अहंता नहीं है। सब बराबर हैं।
तीसरी वाणी यहां बचित्र नाटक है जिसमें गुरुगोबिंद सिंह स्वयं अपनी आत्म कथा लिखते हैं अपने पूर्व जन्म का ब्योरा भी देते हैं। आप कहते हैं :
मैं हूँ परम पुरुष को दासा पेखन आया जगत तमाशा
ये दुनिया एक तमाशा ही तो है। एक खेल ही तो है उस परमात्मा का यहां कब क्या होना है वही जानता है।
यहां दो चंडी चरित्र हैं एक का बखान अपेक्षाकृत बड़े छंद रूप 'कवित्त' और 'सवैये' बने हैं दूसरी में छोटे छंद आये हैं मकसद एक ही है हनुमान जैसे यौद्धा चरित्रों का बखान करके खालसा में जोश भरना। यहां एक एक खालसा सवा सवा लाख शत्रु सैनकों पर इसी जोश और आत्मबल की वजह से भारी पड़ता है।
चंडी दी वार का बखान अलग से भी एक वाणी के रूप में आया है।
इसे पंजाब के शूर वीरों की परम्परा को याद दिलाने के लिए कथाओं के रूप में जन मन तक पहुंचाने के लिए पंजाब की तत्कालीन प्रचलित पंजाबी भाषा में ही लिखा गया है।
इससे पूर्व की वाणियां ब्रजमंडल की ब्रज भाषा का पहरावा पहने हुए हैं। यहां मथुरा ,अलीगढ़ ,बुलन्दशहर की भाषा है। चंडी दी वार जिसे भगौती की वार भी कहा जाता है पंजाबी भाषा में आई है। यहां ५५ पद या पौड़ियां हैं स्टेंज़ाज़ हैं।
वीर रस की अप्रतिम प्रस्तुति है चंडी दी वार। इसे डमरू और सारंगी के साथ गाया जा सकता है आज भी।
सातवीं वाणी 'ज्ञान प्रबोध है जिसमें यज्ञ और युद्ध की कला ,कर्म क्या है समझाया गया है।
आठवीं वाणी चौबीस अवतारों की कथा लिए आई है।
अवतार भगवान् के ही भेजे गए एम्बेस्डर हैं परमात्मा की ज्योत लिए आये हैं ये अवतार। पूर्ण परमात्मा नहीं हैं।
जे चौबीस अवतार कहाये ,तिन भी तुम प्रभ तनिक न पाए।
दशम ग्रन्थ में रामायण भी है। महाभारत भी।
बीसवां पाठ यहां राम -अवतार तथा इक्कीसवाँ कृष्णावतार है।
यहां धर्म -युद्धों धर्म -यौद्धाओं का बखान है।
ब्रज भाषा में सम्बोधित हैं ये अवतार कथाएँ।
शब्दहज़ारे विद्वान लोगों ब्रह्मा जैसे चरित्रों का बखान करती है। इसके आगे खालसा महिमा अलग से लिखी गई है।
यहां गुरूजी उन ब्राह्मणों की परवाह नहीं करते जो लोहा उड़द दाल ,सरसों तेल आदि का दान लेने से इंकार कर देते हैं। वह लोहे के अस्त्र बनवा देते हैं दाल के बड़े (दही भल्ले )ताकि खालसा ये परसादा जी भरके खा सके। यहां जो कुछ कर रहा है वह खालसा ही तो है तत्कालीन धर्म यौद्धा ही तो है।
शस्त्र माला में सिमरनि शस्त्रों की बनाई गई है।ये शस्त्र ही यहां परमात्मा हैं।
यहां शस्त्रों के नाक कूट भाषा में लिखे गए हैं। कोड वार्ड इस्तेमाल किये गए हैं शस्त्रों के लिए।
यहां एक बन्दूक के लिए सौ सौ पर्यायवाचै कूट नाम आये हैं जैसे काश्ठ-कुन्डनी ,शीशे को चुगलखोर और बकरे को चौ-टंगा ,बकरी को आकाश परी कहा गया है।
इसके आगे है 'तिरिया चरित्र '(चरित्र -उपख्यान ). छोटी छोटी कहानियों के माध्यम से यहां दशम गुरु इस देश के लोगों को शिक्षा देते हैं सीख देते हैं। ज्ञान देते हैं। यहां बहादुर स्त्री पुरुषों की तारीफ़ की गई है माड़े (बुरे )की निंदा।
निज नारी के संग नित नेह बढ़इयों
पर नारी के सेज, भूल सुपने नहीं जइयो।
चौपाई साहब का पाठ चरित्र उपाख्यान के अंत में आता है तथा इसी का अंग है।
चरित्र उपाख्यान एक राजा और उसके सेनापति के परस्पर संवाद रूप में आया है। यहां ४०५ छोटी छोटी कहानियां हैं जो सेनापति राजा को सुना रहा है।
ये गढ़े गए चरित्र खालसे को क्या करना चाहिए क्या नहीं इसका संकेत देते हैं।मूल सन्देश है काम - रस ,राम रस की तरफ तभी ले जाएगा जब धर्म अर्जित अर्थ के बाद 'काम' का उपभोग किया जाएगा धर्म किरत की तरह।वासना वर्जित है यहां। यही इन कथाओं का सन्देश है।खुली वासना 'लिव -इन' रिलेशन आदमी को भ्रष्ट करते हैं।किसी भी तरह जायज नहीं हैं इनसे खालसे को बचे रहना है। भटका हुआ काम भटकी हुई वासना महा -शत्रु है।यह खालसे के विनाश का कारण बन सकती है।
'ज़फरनामा' श्री दशम गुरुग्रंथ के आखिर में आता है। यह एक चिठ्ठी है ,एक सन्देश है जो औरंगज़ेब को भेजा गया था।जफ़र का मतलब होता है जीत और नामा का चिठ्ठी।
दो खालसे -श्री दया सिंह और श्री धर्म सिंह इस जफ़रनामे को लेकर औरंगाबाद पहुंचे थे लेकिन बादशाह के दरबारियों ने जब उन्हें इंतजारी में रखा तब भाई दया सिंह ध्यान में बैठे ,दशमगुरु को उन्होंने ने सारी कहानी कह सुनाई। आठवें गुरु हर कृष्ण जी ने औरंगज़ेब को एक शब्द दिया था जिसका ध्यान करने से वह काबा पहुंचकर पांच मरतबा नमाज़ पढ़ लेता था। दशम गुरु वहीँ पहुँच गए थे। जब बादशाह नमाज़ से उठा तो सामने उनके लिबास, कलगी ,बादशाही ठाठ आदि की चमक उनके नूर से तेज़ से घबरा कर कांपने लगा। गुरु ने उसे आदेश दिया अपने दरबारियों को जाकर कहो मेरे दोनों खालसाओं को अंदर आने दें।
औरंगज़ेब ने एलान किया हुआ था जो अपनी जुबां से खालसा बोलेगा उसकी जुबां तराश ली जायेगी। औरंगज़ेब दया सिंह जी पूछने लगा -खालसा पैदा हो गया। 'आप ही जाने' हुज़ूर ज़वाब मिला औरंगज़ेब ने दूसरी और तीसरी बार भी यही पूछा हर बार यही ज़वाब मिला।
अब तक वह तीन बार खुद ही अपने दिए आदेश का उल्लंघन कर चुका था। काज़ियों ने उसे यह बात याद दिलाई। साथ ही चालाकी से जड़ दिया यदि आप सोने की जुबां बनाकर उसे तराश कर हमें दे दें तब आप अपने इस हुकुम की तामील से बच सकते हैं। इस प्रकार मुल्ले उसे बे -वक़ूफ़ बनाकर वहां से चम्पत हो गए।
औरंज़ेब ने फतहनामा पढ़ना शुरू किया आखिर तक पहुंचते -पहुँचते वह मरणासन्न होने लगा। मलमूत्र भी उसका निकल गया। ज़ेबु निशाँ ने कहा अब्बाजान आपकी रूह आज़ाद हो सकती है यदि आप ऊपर से इसे पढ़ना शुरू करें - औरंगज़ेब इसे सिख धर्म का कलाम ,कलमा समझता था उसने इसे पढ़ने से इंकार कर दिया। तब ज़ेबु ने कहा -अब्बा जान न पढ़ो न सही आप इसे लिख ही दें। आपकी तकलीफ काम हो जाएगी।
बादशाह ने लिख दिया और उसकी रूह बदन से आज़ाद हो गई यह सोचने से पहले के लिखने के लिए भी तो उसे पढ़ना पड़ेगा।
कथा जो भी हो गुरु मन्त्र एक ओंकार की शक्ति तो अपना काम कर ही चुकी थी। कल भी करती थी आज भी। आइंदा भी करती रहेगी।
आदि सचु जुगादि सचु ,
है भी सचु नानक होसी भी सचु . (गुरु मंत्र )
दशमग्रंथ प्रतिरक्षा विभाग का स्वरूप था तत्कालीन भारत का। खालसा उसकी फौज थी। यहां रणनीति युद्धनीति शस्त्रनीति ,शास्त्रनीति सब कुछ बखान की गई है। जोश की वाणी है श्री दशम गुरुग्रंथ साहब। यहां शस्त्र को भगवान् का दर्ज़ा प्राप्त है वही सबका प्रतिरक्षक है। प्रतिपालक है।
यहां "जाप साहब "पहली वाणी हैं ,अकाल उसतति दूसरी जिसमें परमात्मा की स्तुति है उसकी सिफत का गायन है उसके तमाम नामों का बखान किया गया है पहली वाणी जाप साहब में ।
यह वैसे ही जैसे विष्णुसहस्त्र नाम और इस्लाम के अंतर्गत अल्लाह के ९९ नामों का बखान है।
वाह! गुरु के ,परमात्मा के इसी गुणगायन यशोगान से पैदा होती है 'भगौती' (देवी भगवती ,आद्या शक्ति चंडी अनेक शक्ति रूपा दुर्गा )परमात्मा की एक शक्ति का ही नाम यहां 'भगौती' है यहां वही 'पंज ककार 'धारण कर खालसा बन जाती है।
बाबा आदम से बना है 'आदमी' और सब आदमियों का आदमियत का यहां एक ही धर्म है कोई वर्ण ,भेद रंग, भेद जाति,पंथ भेद नहीं है ।
मनु से मनुज और 'मान 'से बना है मानव मनुष्य। यहां किसी का अलग से कोई अहंकार हउमै या अहंता नहीं है। सब बराबर हैं।
तीसरी वाणी यहां बचित्र नाटक है जिसमें गुरुगोबिंद सिंह स्वयं अपनी आत्म कथा लिखते हैं अपने पूर्व जन्म का ब्योरा भी देते हैं। आप कहते हैं :
मैं हूँ परम पुरुष को दासा पेखन आया जगत तमाशा
ये दुनिया एक तमाशा ही तो है। एक खेल ही तो है उस परमात्मा का यहां कब क्या होना है वही जानता है।
यहां दो चंडी चरित्र हैं एक का बखान अपेक्षाकृत बड़े छंद रूप 'कवित्त' और 'सवैये' बने हैं दूसरी में छोटे छंद आये हैं मकसद एक ही है हनुमान जैसे यौद्धा चरित्रों का बखान करके खालसा में जोश भरना। यहां एक एक खालसा सवा सवा लाख शत्रु सैनकों पर इसी जोश और आत्मबल की वजह से भारी पड़ता है।
चंडी दी वार का बखान अलग से भी एक वाणी के रूप में आया है।
इसे पंजाब के शूर वीरों की परम्परा को याद दिलाने के लिए कथाओं के रूप में जन मन तक पहुंचाने के लिए पंजाब की तत्कालीन प्रचलित पंजाबी भाषा में ही लिखा गया है।
इससे पूर्व की वाणियां ब्रजमंडल की ब्रज भाषा का पहरावा पहने हुए हैं। यहां मथुरा ,अलीगढ़ ,बुलन्दशहर की भाषा है। चंडी दी वार जिसे भगौती की वार भी कहा जाता है पंजाबी भाषा में आई है। यहां ५५ पद या पौड़ियां हैं स्टेंज़ाज़ हैं।
वीर रस की अप्रतिम प्रस्तुति है चंडी दी वार। इसे डमरू और सारंगी के साथ गाया जा सकता है आज भी।
सातवीं वाणी 'ज्ञान प्रबोध है जिसमें यज्ञ और युद्ध की कला ,कर्म क्या है समझाया गया है।
आठवीं वाणी चौबीस अवतारों की कथा लिए आई है।
अवतार भगवान् के ही भेजे गए एम्बेस्डर हैं परमात्मा की ज्योत लिए आये हैं ये अवतार। पूर्ण परमात्मा नहीं हैं।
जे चौबीस अवतार कहाये ,तिन भी तुम प्रभ तनिक न पाए।
दशम ग्रन्थ में रामायण भी है। महाभारत भी।
बीसवां पाठ यहां राम -अवतार तथा इक्कीसवाँ कृष्णावतार है।
यहां धर्म -युद्धों धर्म -यौद्धाओं का बखान है।
ब्रज भाषा में सम्बोधित हैं ये अवतार कथाएँ।
शब्दहज़ारे विद्वान लोगों ब्रह्मा जैसे चरित्रों का बखान करती है। इसके आगे खालसा महिमा अलग से लिखी गई है।
यहां गुरूजी उन ब्राह्मणों की परवाह नहीं करते जो लोहा उड़द दाल ,सरसों तेल आदि का दान लेने से इंकार कर देते हैं। वह लोहे के अस्त्र बनवा देते हैं दाल के बड़े (दही भल्ले )ताकि खालसा ये परसादा जी भरके खा सके। यहां जो कुछ कर रहा है वह खालसा ही तो है तत्कालीन धर्म यौद्धा ही तो है।
शस्त्र माला में सिमरनि शस्त्रों की बनाई गई है।ये शस्त्र ही यहां परमात्मा हैं।
यहां शस्त्रों के नाक कूट भाषा में लिखे गए हैं। कोड वार्ड इस्तेमाल किये गए हैं शस्त्रों के लिए।
यहां एक बन्दूक के लिए सौ सौ पर्यायवाचै कूट नाम आये हैं जैसे काश्ठ-कुन्डनी ,शीशे को चुगलखोर और बकरे को चौ-टंगा ,बकरी को आकाश परी कहा गया है।
इसके आगे है 'तिरिया चरित्र '(चरित्र -उपख्यान ). छोटी छोटी कहानियों के माध्यम से यहां दशम गुरु इस देश के लोगों को शिक्षा देते हैं सीख देते हैं। ज्ञान देते हैं। यहां बहादुर स्त्री पुरुषों की तारीफ़ की गई है माड़े (बुरे )की निंदा।
निज नारी के संग नित नेह बढ़इयों
पर नारी के सेज, भूल सुपने नहीं जइयो।
चौपाई साहब का पाठ चरित्र उपाख्यान के अंत में आता है तथा इसी का अंग है।
चरित्र उपाख्यान एक राजा और उसके सेनापति के परस्पर संवाद रूप में आया है। यहां ४०५ छोटी छोटी कहानियां हैं जो सेनापति राजा को सुना रहा है।
ये गढ़े गए चरित्र खालसे को क्या करना चाहिए क्या नहीं इसका संकेत देते हैं।मूल सन्देश है काम - रस ,राम रस की तरफ तभी ले जाएगा जब धर्म अर्जित अर्थ के बाद 'काम' का उपभोग किया जाएगा धर्म किरत की तरह।वासना वर्जित है यहां। यही इन कथाओं का सन्देश है।खुली वासना 'लिव -इन' रिलेशन आदमी को भ्रष्ट करते हैं।किसी भी तरह जायज नहीं हैं इनसे खालसे को बचे रहना है। भटका हुआ काम भटकी हुई वासना महा -शत्रु है।यह खालसे के विनाश का कारण बन सकती है।
'ज़फरनामा' श्री दशम गुरुग्रंथ के आखिर में आता है। यह एक चिठ्ठी है ,एक सन्देश है जो औरंगज़ेब को भेजा गया था।जफ़र का मतलब होता है जीत और नामा का चिठ्ठी।
दो खालसे -श्री दया सिंह और श्री धर्म सिंह इस जफ़रनामे को लेकर औरंगाबाद पहुंचे थे लेकिन बादशाह के दरबारियों ने जब उन्हें इंतजारी में रखा तब भाई दया सिंह ध्यान में बैठे ,दशमगुरु को उन्होंने ने सारी कहानी कह सुनाई। आठवें गुरु हर कृष्ण जी ने औरंगज़ेब को एक शब्द दिया था जिसका ध्यान करने से वह काबा पहुंचकर पांच मरतबा नमाज़ पढ़ लेता था। दशम गुरु वहीँ पहुँच गए थे। जब बादशाह नमाज़ से उठा तो सामने उनके लिबास, कलगी ,बादशाही ठाठ आदि की चमक उनके नूर से तेज़ से घबरा कर कांपने लगा। गुरु ने उसे आदेश दिया अपने दरबारियों को जाकर कहो मेरे दोनों खालसाओं को अंदर आने दें।
औरंगज़ेब ने एलान किया हुआ था जो अपनी जुबां से खालसा बोलेगा उसकी जुबां तराश ली जायेगी। औरंगज़ेब दया सिंह जी पूछने लगा -खालसा पैदा हो गया। 'आप ही जाने' हुज़ूर ज़वाब मिला औरंगज़ेब ने दूसरी और तीसरी बार भी यही पूछा हर बार यही ज़वाब मिला।
अब तक वह तीन बार खुद ही अपने दिए आदेश का उल्लंघन कर चुका था। काज़ियों ने उसे यह बात याद दिलाई। साथ ही चालाकी से जड़ दिया यदि आप सोने की जुबां बनाकर उसे तराश कर हमें दे दें तब आप अपने इस हुकुम की तामील से बच सकते हैं। इस प्रकार मुल्ले उसे बे -वक़ूफ़ बनाकर वहां से चम्पत हो गए।
औरंज़ेब ने फतहनामा पढ़ना शुरू किया आखिर तक पहुंचते -पहुँचते वह मरणासन्न होने लगा। मलमूत्र भी उसका निकल गया। ज़ेबु निशाँ ने कहा अब्बाजान आपकी रूह आज़ाद हो सकती है यदि आप ऊपर से इसे पढ़ना शुरू करें - औरंगज़ेब इसे सिख धर्म का कलाम ,कलमा समझता था उसने इसे पढ़ने से इंकार कर दिया। तब ज़ेबु ने कहा -अब्बा जान न पढ़ो न सही आप इसे लिख ही दें। आपकी तकलीफ काम हो जाएगी।
बादशाह ने लिख दिया और उसकी रूह बदन से आज़ाद हो गई यह सोचने से पहले के लिखने के लिए भी तो उसे पढ़ना पड़ेगा।
कथा जो भी हो गुरु मन्त्र एक ओंकार की शक्ति तो अपना काम कर ही चुकी थी। कल भी करती थी आज भी। आइंदा भी करती रहेगी।
आदि सचु जुगादि सचु ,
है भी सचु नानक होसी भी सचु . (गुरु मंत्र )
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