आरएसएस की नज़र में भगवा ध्वज और राष्ट्रीय ध्वज
भगवा ध्वज राष्ट्रीय स्वयं सेवकों के लिए 'गुरुदक्षिणा' का प्रतीक है।यही गुरुदक्षिणा संघ परिवार का पोषण करती है।
राष्ट्रीय ध्वज का उनके लिए वही महत्व है जो आम भारतीय के लिए हैं। एक मर्तबा जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने महाराष्ट्र के जालान में कांग्रेस द्वारा आयोजित उत्स्व में ध्वाजारोहण कर रहे थे झंडा डोरी खींचने के दरमियान अटक गया। देखते ही देखते एक स्वयं सेवक उस पोल पर चढ़गया तथा बाधा को हटा दिया अब झंडा पूरी शान से लहरा रहा था। भगवा झंडा राहुल गांधी के दिमाग में ज्यादा लहराता है जो आरएसएस फोबिया से बुरी तरह ग्रस्त हैं।
उन्हें तीन दिवसीय विचार गोष्ठी में निमंत्रित किया गया था ताकि राष्ट्रीयता पर वह अपने विचार रख सकें और संघ को भी इस मुद्दे पे सुन सकें। लेकिन वो क्या कहतें हैं ,चोर की दाढ़ी में तिनका। राहुल गांधी इस गोष्ठी में आने का साहस ही न जुटा सके।
कमसे कम युवा अखिलेश यादव ने साफ़ गोई से काम लेते हुए इस मुद्दे पर साफ कहां - मैं इस संस्था के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता इसीलिए मैं वहां नहीं जा सका।
हालांकि ये दलील भी बड़ी लचर है अगर आप नहीं जानते तो एक राज्य के दूसरी बार भावी मुख्या मंत्री बनने का सपना देखने वाले अखिलेश जी वहां जाकर कुछ और जान सकते थे इस संस्था के बारे में।
आंतरिक प्रजातंत्र है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में
यहां एक आम सदस्य संस्था के सरसंघ चालक से निस्संकोच पूछ सकता है मान्यवर आप संघ की नागपुर शाखा में क्यों नहीं आते ?जबकि आप यहीं से इस संस्था के पंजीकृत सदस्य हैं।
नौसीखिए राहुल गांधी कहते हैं संघ में महिलाएं क्यों नहीं हैं ?
इस मतिमंद को मालूम हो -'राष्ट्रीय सेविका समिति'
'संघ -परिवार' से ही जुड़ी है। तमाम संस्थाएं जो संघ से किसी न किसी रूप में जुड़ी हैं उनका एक ही मकसद है देश की एकता को कायम रखना आपसी सद्भाव बनाये रहना नागरिकों के बीच।
चर्च से आदेश राहुल और उनकी अम्मा लेते हैं संघ भारत राष्ट्र के हर नागरिक भारत धर्मी समाज की उस विरासत को अक्षुण्य रखने के लिए निसिबासर जुटा है जो सबकी सांझी है चाहे कोई किसी पंथ का अनुयायी होवे। स्वर्ण मंदिर की तरह संघ सबका है। इसके दरवाजे सब के लिए खुले हैं राहुल और उनकी अम्मा के लिए भी।
भगवा ध्वज राष्ट्रीय स्वयं सेवकों के लिए 'गुरुदक्षिणा' का प्रतीक है।यही गुरुदक्षिणा संघ परिवार का पोषण करती है।
राष्ट्रीय ध्वज का उनके लिए वही महत्व है जो आम भारतीय के लिए हैं। एक मर्तबा जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने महाराष्ट्र के जालान में कांग्रेस द्वारा आयोजित उत्स्व में ध्वाजारोहण कर रहे थे झंडा डोरी खींचने के दरमियान अटक गया। देखते ही देखते एक स्वयं सेवक उस पोल पर चढ़गया तथा बाधा को हटा दिया अब झंडा पूरी शान से लहरा रहा था। भगवा झंडा राहुल गांधी के दिमाग में ज्यादा लहराता है जो आरएसएस फोबिया से बुरी तरह ग्रस्त हैं।
उन्हें तीन दिवसीय विचार गोष्ठी में निमंत्रित किया गया था ताकि राष्ट्रीयता पर वह अपने विचार रख सकें और संघ को भी इस मुद्दे पे सुन सकें। लेकिन वो क्या कहतें हैं ,चोर की दाढ़ी में तिनका। राहुल गांधी इस गोष्ठी में आने का साहस ही न जुटा सके।
कमसे कम युवा अखिलेश यादव ने साफ़ गोई से काम लेते हुए इस मुद्दे पर साफ कहां - मैं इस संस्था के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता इसीलिए मैं वहां नहीं जा सका।
हालांकि ये दलील भी बड़ी लचर है अगर आप नहीं जानते तो एक राज्य के दूसरी बार भावी मुख्या मंत्री बनने का सपना देखने वाले अखिलेश जी वहां जाकर कुछ और जान सकते थे इस संस्था के बारे में।
आंतरिक प्रजातंत्र है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में
यहां एक आम सदस्य संस्था के सरसंघ चालक से निस्संकोच पूछ सकता है मान्यवर आप संघ की नागपुर शाखा में क्यों नहीं आते ?जबकि आप यहीं से इस संस्था के पंजीकृत सदस्य हैं।
नौसीखिए राहुल गांधी कहते हैं संघ में महिलाएं क्यों नहीं हैं ?
इस मतिमंद को मालूम हो -'राष्ट्रीय सेविका समिति'
'संघ -परिवार' से ही जुड़ी है। तमाम संस्थाएं जो संघ से किसी न किसी रूप में जुड़ी हैं उनका एक ही मकसद है देश की एकता को कायम रखना आपसी सद्भाव बनाये रहना नागरिकों के बीच।
चर्च से आदेश राहुल और उनकी अम्मा लेते हैं संघ भारत राष्ट्र के हर नागरिक भारत धर्मी समाज की उस विरासत को अक्षुण्य रखने के लिए निसिबासर जुटा है जो सबकी सांझी है चाहे कोई किसी पंथ का अनुयायी होवे। स्वर्ण मंदिर की तरह संघ सबका है। इसके दरवाजे सब के लिए खुले हैं राहुल और उनकी अम्मा के लिए भी।
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